नीतीश जी,आपकी पुलिस बलात्कारी को बचा रही है.

मुकेश कुमार 

21 जनवरी को जिस वक्त पूरे राज्य में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में शराबबंदी को लेकर करोड़ों लोग मानव श्रृंखला में खड़े थे उसी वक्त घर में अकेली नाबालिग मुस्लिम बच्ची के साथ भागलपुर जिले के बिहपुर प्रखण्ड के एक गांव में भूमिहार जाति के एक दबंग प्रभाष चौधरी ने दुष्कर्म कर उसकी योनी को तेज धार वाले हथियार से लहूलुहान कर दिया. न्याय मंच की एक जांच टीम ने घटना स्थल पर जाकर पूरे मामले की गहराई से छानबीन की. उक्त जांच टीम में न्याय मंच के डॉ. मुकेश कुमार, अंजनी, मोहम्मद आकिब, अमित कुमार और अन्य शामिल थे. घटना स्थल से लौटकर जांच टीम ने बताया कि घटना के 5 दिन बीत जाने के बाद भी बलात्कारी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. बलात्कारी के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस घटना के बाद से पूरे इलाके के लोग इतने दहशत में हैं कि मामले पर कोई खुलकर बोलने तक को तैयार नहीं है. इस भयानक दहशत के बीच आज न्याय मंच की टीम ने उक्त गांव जाकर पीड़ित परिवार से मिलकर पूरे मामले की छानबीन की. पीड़िता के भाई ने बताया कि जिस वक्त यह वारदात हुई उस वक्त बहन घर में अकेली थी. अम्मी बीमार थी, जिसे डाक्टर से दिखाने के लिए अब्बू उन्हें लेकर भागलपुर गए हुए थे और हम भाई-बहन भी घर से बाहर थे. बहन को अकेली पाकर प्रभाष चौधरी ने उसे झोपड़ी के अंदर ले जाकर दुष्कर्म किया और तेज हथियार से उसके गुप्तांग घायल कर फरार हो गया. बलात्कारी ने पहले बच्ची के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, ताकि वह चीख-चिल्ला न पाये, और उसके बाद इस घटना को अंजाम दिया.



पीड़िता के भाई ने बताया कि हमारे घर के पास लगभग 11 बीघा जमीन प्रभाष चौधरी की है. अपनी जमीन और फसल की देखभाल करने वह अक्सर यहाँ आता-जाता था और हमारे घर भी आता-जाता था. घटना के दिन भी वह इसी क्रम में आया था और बच्ची को अकेली पाकर उसने इस घटना को अंजाम दिया. इस घटना को अंजाम देकर जब वह भाग गया तो बच्ची झोपड़ी से बाहर निकलकर गिरते-पड़ते खेतों से बाहर आयी. यहाँ बता दें कि पीड़ित परिवार जहां झोपड़ी बनाकर रह रहा है, उसके चारों ओर खेत ही खेत है और उसमें अभी मकई की लहलहाती फसल लगी है. मक्के की यह फसल अब तैयार होने की तरफ बढ़ रही है. मक्के का पौधा इतना बड़ा है कि सड़क पर से आने-जाने वालों की बात तो दूर पीड़ित परिवार की झोपड़ी दिखाई तक नहीं देती है. इसी का फायदा उठाकर बलात्कारी भागने में कामयाब रहा. घटना के बाद पीड़िता सड़क पर आ गई और लोगों से उसने सारी बात बतायी, तो आस-पास के लोगों ने उसकी बिगड़ती हुई गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे हरिओ गांव पंचायत के मुखिया के पास ले गए. उसके बाद उसे उसी गांव के एक मेडिकल प्रैक्टिस्नर के पास इलाज के लिए ले जाया गया. तब तक बलात्कारी प्रभाष चौधरी के भाई को भी घटना ककई खबर मिल गई थी और वह भी हरिओ गांव आ पहुंचा और उसने पीड़िता की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए उसे देर शाम हरिओ से चार-पाँच किलोमीटर दूर नारायणपुर के एक निजी क्लिनिक में भर्ती कराया. 22 जनवरी की सुबह वहाँ से बच्ची को लाया गया और पीड़िता के परिजनों और बलात्कारी के भाई की मौजूदगी में दोनों पक्षों में सुलह कराने और मामले को रफा-दफा करने की नीयत से पंचायत के मुखिया ने पंचायत बुलाई. पंचायत में बलात्कारी प्रभाष चौधरी को भी बुलाया गया था, किन्तु वह नहीं आया. उसके नहीं आने पर उसका भाई पूरे मामले से पीछे हट गया और उसने कहा कि मानवता के नाते हमने इलाज करा दिया, अब मुझे इस मामले से कोई मतलब नहीं है. पंचायत की बैठक बेनतीजा देखते हुए मुखिया ने पीड़ित परिवार को पुलिस के पास भेज दिया. उसके बाद पीड़िता के माँ-बाप ने नवगछिया के महिला थाना में इस पूरे मामले की शिकायत दर्ज करते हुए छानबीन शुरु की. लेकिन पुलिस अब तक बलात्कारी को गिरफ्तार नहीं कर पायी है. उसके पिता को पुलिस ने कुछ घंटे के लिए गिरफ्तार कर थाना जरूर लाया किन्तु बाद में उसे भी छोड़ दिया.

बलात्कारी प्रभाष चौधरी और उसका परिवार पूरे इलाके में दबदबा रखता है और क्षेत्र के राजद-भाजपा के नेताओं का उसके यहाँ आना-जाना लगा रहता है. यही कारण है कि मुस्लिम नाबालिग बच्ची के साथ हुई इस शर्मनाक घटना के इतने दिन बाद भी न तो सेकुलरिज़्म की बात करने वाली पार्टी राजद के स्थानीय विधायक और सांसद ने ही मुंह खोला है और न ही राज्य की विपक्षी पार्टी बीजेपी के नेताओं का ही कोई प्रेस बयान तक आया है. पीड़ित परिवार से इन लोगों ने मिलना तो खैर जरूरी नहीं ही समझा है.

बताते चलें कि भागलपुर जिले का यह पूरा इलाका भूमिहार जाति के सामंती दबदबे वाला इलाका रहा है. क्षेत्र की अस्सी फीसदी से अधिक जमीन पर इसी जाति विशेष के लोगों का कब्जा बना हुआ है. इस इलाके के दलित-वंचित-कमजोर-अल्पसंख्यक तबके के ज़्यादातर लोग इन्हीं भूस्वामियों के खेतों में मजदूरी और उनके घरों में काम कर अपना जीवन-यापन करते हैं. इन गरीब-दलित मजदूरों के परिवार की महिलाओं की इज्जत-आबरू से खेलना इस इलाके के भूमिहार भूस्वामियों के लिए कोई नई बात नहीं रही है. इलाके में यह सब लंबे समय से होता रहा है जो किसी न किसी रूप में आज भी जारी है. यही कारण है कि नाबालिग के साथ दुष्कर्म का यह घृणित मामला स्थानीय संपन्न लोगों के लिए कोई मुद्दा नहीं है. और जिन दबे-कुचले शोषित लोगों और सामाजिक संगठनों की नजर में यह घृणित घटना मायने रखती है, वे भूमिहार जाति के वर्चस्व के आगे कुछ बोलने और पीड़ित के इंसाफ के लिए आगे आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.

पीड़ित परिवार निहायत ही गरीब है और खेत मजदूरी कर किसी तरह अपना जीवन-यापन करता है. परिवार में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है. पिछले तीन पीढ़ियों से यह अल्पसंख्यक परिवार एक भूस्वामी के खेत में झोपड़ी बनाकर रह रहा है. पीड़िता के भाई ने जांच टीम को बताया कि भूमिहार जाति के एक भूस्वामी ने ही अपने खेत की देखभाल करने के लिए हमारे पूर्वजों को यहाँ बसने के लिए जमीन दी थी. तबसे हमारा परिवार यहीं रहता आ रहा है. हमलोग दूसरों के खेतों में मजदूरी करते हैं और अपना गुजर-बसर करते हैं. बसने की जमीन के एवज में हमलोग भूस्वामी की फसल की देख-रेख करते आ रहे हैं. फसल की देख-रेख के बदले हमें कोई मजदूरी-मेहनताना नहीं मिलता है. जिस दिन हम उनके खेतों में काम करते हैं, उस दिन की ही मजदूरी हमें दी जाती है. कुल मिलाकर पीड़ित परिवार ने जांच टीम को बताया कि हम गरीब-मजदूर लोग इतने ताकतवर लोगों से कैसे लड़ेंगे! पीड़ित परिवार फिलहाल पुलिस-प्रशासन से ही न्याय की उम्मीद कर रहा है. लेकिन ऐसे मामलों में, जहां बलात्कारी सवर्ण-सामंती तबके से ताल्लुकात रखता है, उसके प्रति पुलिस और सत्ता का रवैया हमेशा सवालों के घेरे में रहा है.

इस घटना के खिलाफ अब तक कोई मुस्लिम संगठन भी इस मामले में सामने नहीं आया है. घटना के बाद इस पूरे इलाके में झूठी कहानियां प्रचारित कर मामले को दबाने की कोशिशें तेज हो उठी हैं. यह झूठा प्रचार चलाया जा रहा है कि जमीन पर अवैध कब्जा करने की नियत से आरोपी को झूठे मुकदमे में फंसाया जा रहा है.

पितृसत्तात्मक पुरुषवादी व सामंती शोषण से अनुकूलित इस पिछड़े इलाके में इस किस्म का प्रचार अत्यंत ही आसान हो जाता है. बलात्कारी को बचाने में लगे लोग आम जनता की इस पिछड़ी हुई चेतना का फायदा उठाते हुए बलात्कारी को बचाने में जुट गए हैं. जबकि सच्चाई यह है कि पीड़ित परिवार जिनकी जमीन पर कई पीढ़ियों से रह रहा है, वह जमीन बलात्कारी की न होकर उसी जाति के दूसरे भूस्वामी की है और उन्होंने इससे पूर्व पीड़ित परिवार को जमीन खाली करने के लिए भी नहीं कहा था. लेकिन अब इस बात की आशंका तेज हो गई है कि मामले को ठंढा करने और पीड़ित परिवार को दबाने हेतु उस भूस्वामी से भी दबाव बनवाया जा सकता है, जिसकी जमीन पर पीड़ित परिवार कई पीढ़ियों से रह रहा है. इस मामले में ‘सेफ़्टिक वल्व’ के तौर पर इस भूस्वामी का इस्तेमाल किया जा सकता है.

न्याय मंच ने पुलिस के तौर-तरीकों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पुलिस केवल कार्रवाई का दिखावा कर रही है. जिस झोपड़ी में बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना हुई, वहाँ मिट्टी पर गिरे हुए खून को घटना के छह दिन के बाद भी अब तक जांच के लिए नहीं लाया गया है. इससे साफ जाहिर होता है कि पुलिस बलात्कारी को गिरफ्तार कर सजा दिलाने के प्रति गंभीर नहीं है. न्याय मंच ने बलात्कारी की गिरफ्तारी और पीड़िता के बेहतर इलाज की गारंटी और पीड़ित परिवार के सुरक्षित पुनर्वास की गारंटी की मांग की है. जांच टीम ने कहा है कि इस जघन्य घटना के बाद पीड़ित परिवार का वहाँ अकेले रहना खतरे से खाली नहीं है. इसलिए दूसरे स्थान पर पीड़ित परिवार के सुरक्षित पुनर्वास कराते हुए न्याय की गारंटी मिलनी चाहिए. न्याय मंच ने कहा है कि इस घटना ने नीतीश सरकार के महिला सशक्तिकरण और न्याय के साथ विकास के दावों की पोल खोलकर रख दी है और भूमि सुधार की जरूरत को नये सिरे से सामने ला दिया है.

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