समाज में स्त्री के अस्तित्व से जुड़े सवाल मुझे बेचैन करते हैं. जब भी इन सवालों के जवाब तलाशने बैठती हूं, पुरुषवादी सोच के बाण इस कदर चलते हैं कि ‘डिफेंस’ करते-करते सारा ‘एग्रेशन’ चूक जाता है. जी करता है दहाड़ मार कर रो लूं ताकि सारी पीड़ा हृदय से द्रव की तरह बह जाये और मैं मुस्कुरा सकूं. लेकिन अब तो अपनी मुस्कान से भी खीज होती है, क्योंकि उसका सौंदर्यबोध मुझे पुरुषवादी सोच का पोषक जान पड़ता है. जी करता है नोच दूं अपने होंठों से वो मुस्कान जो महज किसी पुरुष को रिझाने-लुभाने के लिए मेरे होंठों पर थिरकते हैं.
मैं एक औरत हूं, इस दुनिया की दूसरी जाति. संभवत: औरत की रचना सृष्टि में पहली जाति पुरुष के सहचरी के रूप में हुई थी. दोनों को एक दूसरे का पूरक बनाया गया था, किंतु ना जानें कब मैं सिर्फ और सिर्फ उसके लिए ‘इंटरटेनमेंट’ का साधन बन गयी. जब उसका जी चाहा, सीने से लगा लिया और जब चाहा कदमों तले रौंद दिया.
आधुनिक काल में जब मनुष्य सभ्य होने का दावा करता है और स्त्री अधिकारों को सुनिश्चित करने की पुरजोर वकालत होती है, स्त्री आज भी इंसान की पहचान से महरूम है. उसे पुरुषवादी सोच सिर्फ देह के रूप में स्थापित करता है. एक स्त्री जो अपनी पहचान इंसान के रूप में बनाना चाहती है, उसके लिए बहुत मुश्किल होता है देह की पहचान को दरकिनार करना.
समाज में जब कोई स्त्री अपनी प्रतिभा के बल पर पुरुषों के समकक्ष या उससे आगे की पंक्ति में खड़ी दिखती है, तो यह कह दिया जाता है कि प्रतिभा तो है किंतु उसे ‘स्त्री होने का लाभ’ मिला है. ‘प्वाइंट टू बी नोटेडेड’ स्त्री होने का लाभ. जी हां, यही सोच तमाम फसाद की जड़ है और एक स्त्री को उसके अधिकारों के लिए जूझने पर मजबूर करती है. इसी सोच ने स्त्री को समाज में सिर्फ ‘देह’ बनाकर रख दिया है. नारी चाहे जैसी भी हो अद्भुत प्रतिभा की धनी, सामान्य या फिर निरक्षर उसकी क्षमता और प्रतिभा का आकलन उसकी देह की सुंदरता से किया जाता है. स्त्री के अस्तित्व पर उसका देह इस कदर हावी है कि शेष तमाम बातें सिफर मालूम होती हैं.
इसकी बानगी देखिए-उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचारकों में प्रियंका गांधी का नाम भी जारी किया है. यह जगजाहिर कि प्रियंका गांधी सोनिया गांधी और राजीव गांधी की बेटी हैं और राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं हैं. हालांकि लोगों को उनमें इंदिरा गांधी का अक्स दिखता है और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की उनसे उम्मीद जुड़ी है. बावजूद इसके प्रियंका गांधी का अनुभव राजनीति में नाम मात्र का है और उन्हें एक कुशल राजनेता की संज्ञा नहीं दी जा सकती. लेकिन परिवारवाद की राजनीति में उनका जादू चलता है, यह बात भी हम सब अच्छे से जानते हैं. ऐसे में जब भाजपा सांसद विनय कटियार से यह पूछा गया कि क्या प्रियंका गांधी के प्रचार करने से भाजपा को कोई नुकसान होगा? तो जवाब में विनय कटियार ने प्रियंका गांधी की क्षमता, प्रतिभा और अनुभव पर सवाल उठाने की बजाय, एक स्त्री के अस्तित्व पर चोट किया और उन्हें सिर्फ ‘देह’ करार दिया. कटियार का मानना है कि प्रियंका से सुंदर कई प्रचारक हैं. विनय कटियार का यह बयान स्त्री जाति का अपमान है. कटियार की इसी पुरुषवादी सोच का परिणाम है कि आज लोग मुलायम परिवार की दो बहुओं की तुलना उनकी राजनीतिक समझ से नहीं बल्कि दैहिक सुंदरता से करते हैं.
जबकि हिंदुस्तान एक ऐसा देश है, जहां राजनीति में महिला नेतृत्व किसी भी अन्य देश की तुलना में ज्यादा बेहतर ढंग से उभरा है. इंदिरा गांधी, मायावती, सोनिया गांधी, जयललिता और ममता बनर्जी जैसे नाम इसके उदाहरण हैं. इन महिला नेत्रियों ने पुरुषों के नेतृत्व क्षमता को चुनौती दी और खुद को साबित किया. बावजूद इसके इतिहास से लेकर आज तक वह अपनी पहचान के लिए जूझ रही है. स्त्री-पुरुष के बीच देह का आकर्षण प्राकृतिक है, लेकिन इसे किसी की पहचान बना देना सर्वथा अनुचित है.