कविता संग्रह “आइना भीगता है“ 2011 में बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित. संपर्क : anupamatiwari91@gmail.com
उसका नाम तेज है
वह औरत
देखती है
सुनती है
बोलती है
लड़ती है,
अन्याय के विरुद्ध
परवाह नहीं करती
उस समाज की
जो रोकता है उसे
देखने से,
सुनने से,
और बोलने से.
उसने नहीं दिया कभी दगा
नहीं चुराया कभी धन किसी का
नहीं मारी ज़मीन / मकान किसी का
नहीं तोड़ा घर किसी का
उसने छोड़ा तो कभी – कभी
हक़ अपना.
वह खुद्दार है
इसलिए उसका तेज़ है !
और मेरा नाम तेज़ है !!
मेरी पहचान
मेरे माथे पे
बिंदी न देख
कुछ आँखें पूछती हैं
तुम मुसलमान हो ?
पैरों में बिछुए न देख
पूछती हैं
तुम कुंवारी हो ?
पूजा न करते देख
पूछती हैं
तुम आर्य समाजी हो ?
तुम नास्तिक हो ?
मैं धीमे से कहती हूँ
मैं प्रकृति की कृति हूँ
पर उन आँखों में किरकिराहट आ जाती है
और वे अपने जेब में रखे बिल्लों में से
एक बिल्ला मेरे माथे पे चस्पा कर देती हैं
मेरे लिए मुश्किल होता है
उन आँखों को कहना कि
तुम भी सबसे पहले यही हो
बस यही बाकी सब बाद में.
पर शायद वो बना दी गई हैं
पहले ये सब !
ऐ लड़की!
तुम लड़की हो
अपने हाथों को समेटकर चलना सीखो
अभी सीखने हैं तुम्हें,
बहुत से तौर – तरीके.
कल को कुछ हो गया
तो फुसफुसाहट सुनाई देगी –
उसलड़की की इज्ज़त लुट गई !
कुछ जुबानें साफ़ –साफ़ कहेंगी
क्यों पहनती हो छोटे – छोटेकपड़े ?
क्यों निकलती हो टाइम – बेटाइम बाहर
आज का अखबार कह रहा है
तीन साल की लड़की का हुआ
बलात्कार….
फिरहत्या!
आवाज़
बहनों उठो !
तोड़ दो,
गुलामी की जंजीरों को
बाहर आओ
खुली हवा में.
फेफड़े भर कर सांस लो
और उड़ चलो
उस हवा के साथ
जो जाती है उन्मुक्त आकाश में !