महिला दिवस पर विशेष
पूर्वांचल के लोगों के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय किसी वरदान या आक्सफोर्ड से कम नहीं है। यहाँ उत्तर प्रदेश और बिहार के अलावा तमाम राज्यों से और विदेशों से छात्र- छात्राएं उच्च शिक्षा के लिए आते हैं। यूँ तो बीएचयू बहुत सारे भेदभाव को लेकर हमेशा सवालों के कटघरे में रहा है लेकिन ताज़ा मामला लड़कियों के लिए रात को लाइब्रेरी जाने को लेकर है। इन लड़कियों की मांग है कि होस्टल को रात के सात बजे के बाद भी खोला जाए ताकि वे लाइब्रेरी जा सकें। सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग डीयू मामले में गुरमोहर कौर के पक्ष में खड़ा हुआ लेकिन क्या आपको पता है इस जायज मांग को लेकर आंदोलन कर रही लड़कियों को भी बलात्कार और जान से मारने की धमकी दी गई। जितना जरूरी गुरमोहर के पक्ष में खड़ा होना है उतना ही जरूरी है कि इन लड़कियों के साथ भी खड़ा हुआ जाए। सस्पेंड कर दिए जाने के डर के बावज़ूद ये लड़कियां जिस तरह से खड़ी हैं उससे एक बात तो साफ़ है कि इन लड़कियों ने गंगा पट्टी की पितृसत्तात्मक दीवार में छेद तो कर ही दिया है अब बस उसका गिरना बाकी है। कविता के माध्यम से इन लड़कियों के हौसले को मेरी और से एक सलाम।
एक तस्वीर में कैप्शन है ” बोलबू ढेर ?” इसे लगाने का मकसद सिर्फ इतना है कि लड़कियों को लेकर पूर्वांचल की अधिकांश मानसिकता यही है। अगर लड़की कहीं भी किसी भी रूप में अपनी आवाज़ अपने हक़ के लिए उठा रही है तो उसे धमकी स्वरूप यह बोलकर चुप करा देना कि “बोलबू ढेर” यह सिर्फ शब्द नहीं है यह अपने आपमें एक धमकी है कि चुप रहो वरना हम अपने तरीके से चुप कराएँगे। आज जबकि महिला दिवस है तब हमें अपने पूरे सिस्टम पर एक बार पलट कर सोचने की जरूरी है कि आखिर महिलाओं के लिए एक जरूरी और सम्मानजनक माहौल तैयार करने में हम सफल हो पाये हैं या अभी बाकी है।
शाश्वत
पिंजरे के विरुद्ध
जादू जानते हैं?
वही हो रहा है यहाँ !
देखेंगे …. बे टिकट है .
आइये ,
‘बाएं चलियेगा’
सौ कदम बाद एक पिंजरा दिखेगा….
बाहर से ही दिखेगा .
पिंजरा क्या है सेट है जादूगर का .
नही नही हम जादूगर का नाम नही लेंगे .
कहीं हमको खरगोश बना दिया तो टोपी में डाल के….
तो पता है क्या हुआ ,
तीन चार बेहूदे बेलगाम जानवर हैं वो करतब नही दिखा रहे थे अड़े हुये थे पेट भर खाने के लिये
मछली मांस खाने का मन है उनका…..
और कल जब जानवर पिंजरे की जंजीरों में दौड़ रहे करेंट की बात कर रहे थे
तो जादूगर और उनके टोपी ,छड़ी , नाक , सूट ,जैकेट , सेट को झटका लगने लगा ।
झटका तो मतलब अभी लगना शुरू ही हुआ है वैसे ।
तो अब उनके चरणकमल के रज (कण) लगे हुए हैं मामला सम्भालने में ।
पूरा का पूरा सर्कस हो गया है मतलब .
अच्छा,
एक और पिंजरा के रखवाले जी हैं
नही नही मै नाम नही लूंगा ,
कहीं मुझे लड़की बना के पिंजरे में रख लेंगे तो फजीहत हो जायेगी .
एनएसएस करना पड़ेगा ,
बड़के जादूगर को सलामी देना पड़ेगा
और सबसे बड़ी बात लड़की होने पर दहेज नही मिलेगा.
मेरे उपधिया जी को तो खुद ही बी. पी. है .
अच्छा एक बात अब ये है ,
सोचियेगा आप,
जानवरों का क्या होगा .
घर बाहर तो नही हो जायेंगे ?
ए भइया ,
देखियेगा आप लोग जरा , बहुत डर लग रहा है ।
वैसे जादू तो शुरू हो गया है .करेंट तो लगेगा अभी .
लेकिन डरवाइये जरा इन लोगों को … बेहुद्दा जानवर हैं डरते ही नही हैं ।
आप लोग सिंग ओंघ दिखाइए . धमकी वगैरह सब देना पड़ेगा न ! कब देंगे ?
डरना बन्द कर देंगे सब तो बड़ा दिक्कत होगा .
गोरख पाण्डेय बोलबे किये थे
“वे डरते हैं
किस चीज़ से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद ?
वे डरते हैं
कि एक दिन
निहत्थे और चुप्प लोग
उनसे डरना
बंद कर देंगे ।”
आप तमाम जादूगरों ,सर्कस करने वालों और जोकरों की धमकी, गाली आदि की पूर्व उम्मीद के साथ
मेरी बच्ची
मेरी बाहें तुम्हारे डोर से सजकर सुंदर
और
मन समंदर हो गया है ।
मेरी बच्ची ,
मुझे याद है ,
अधपके करौंदे
कि जिसके लिये हर बार मै अपने भाई संग तुमसे बेईमान हो जाता ।
मुझे याद है ,
क्या बेजोड़ डांटा था मैंने
जब कालोनी के किस्सों को चाव दे रही थी तुम ।
मुझे याद है ,
जब उठ रहा था छोटी बुआ का शगुन
तुम नाचते -नाचते धप्प से रुक गई
कि मै किसी काम से अंदर कमरे मे आ गया था ।
मुझे याद है ,
मेरी आँखों भर से….
तुम बाल बांध कर कॉलेज जाती ।
तुम बाइक पर एक तरफ बैठती ।
तुम फोन को हाथ भी नही लगती ।
और ओढ़नी,
ओढ़नी तो जैसे गाय का पगहा !
आह !
न जाने हर रोज की कितनी बातें / डांट
मुझे आज बीरा रहे
सबके लिये सबक हो यह
सबके लिये क्षमा करो मुझे ।
पर मेरी बच्ची
आज डोर बांधते वक्त जिस अदा से हाथ घुमा कर
तुमने स्काउट की न मालूम कौन सी गांठ लगाई है
समझो की मै झूम गया भीतर तक ।
मेरी बच्ची
मुझे सिखाओ मै सीखूंगा
फिर
जोर करूँगा
ऐसी एक गांठ लगाने की सूरज पर
की छन के आये रौशनी तुम तक ।
मेरी बच्ची
मुबारक हो डोरी का त्यौहार
तुम्हारी डोर से…..