सुनीता झाड़े मराठी और हिन्दी में कविताएँ लिखती हैं तीन मराठी कविता संग्रह प्रकाशित संपर्क: commonwomen@gmail.com
एक
डोर बेल बजाने के
कोई तीसरी चौथी बार में
दीक्षित भाभी दरवाजा खोलती हैं
पहली नजर में दिखाई देता है
माथे पर जोर से लगाया कुमकुम
कुछ रूठ कर हाथ पांव फैलाता हुआ
भीगी पलकें, झुकीं ऑंखें….
किसी और के आने की आहट सुन
अंदर जाकर सारे रंगों को
मलकर निकालती हुई
अपनी धवल काया के साथ
अपने घर के दीवान-ए-खास पर बैठती
दीक्षित भाभी…
कुछ पूछती नहीं
फिर भी कराह कर कहती
बहुत मन करता है
कुमकुम लगाने को
अभी तो कोई बुलाता भी नहीं
घर में भी कोई नहीं लगाता
सब टालते हैं
वैधव्य मानो छूत की बीमारी हो कोई….
बाद तुम्हारे
दो
वह अपने आपको
थ्री फोर्थ पेंट-टी शर्ट में ढाले
अपने मंहगे से सोफा सेट पर
पैरों को यूं फैला बैठी…
फिर अपनी रुआंसी आवाज को
हौले से थाम
हाथों से बतियाते
‘भाभी के यहां हो आई
… पुजा प्रसाद के लिए
बुलाया था
वहां उनकी दूर की बहन
कुमकुम लगाने आई
तब उन्होंने सबके सामने कहा
उन्हे कुमकुम ना लगाना सखी
उन्हें क्या लगा?
क्या मैं उनकी कुमकुम की मोहताज हूं
मैं अपने घर नहीं लगा सकती
देखो,
पुजाघर में रखे कुमकुम को
आड़े हाथों माथे पर फैलाये रक्त..रक्त…
हम गुनाहगार औरतें और अन्य
तीन
देर रात उसके मुंह से आनेवाली
शराब की बू को टालते
धीरे से उसके गले से नीचे उतर
बाहों में…
फिर सीने पर माथा टेकती
उसी मन्नत के साथ
सुनो,
(उसकी नशे में डूबी उंगलियों को माथे से छूआते…)
मुझे यहां माथे पर कुमकुम लगाना बहुत अच्छा लगता है
मेरी इसी चाह के लिए ही सही
तुम यूं शराब पीकर खुद को मारना छोडो…
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उसके तकिये के करीब सीमोन द बोउआर की *सेकंड सोच.!
(सीमोन द बोउआर की मुल किताब का नाम ’सेकंड सेक्स’)
महाराष्ट्र के हर घर में हर दिन पुजा के समय, हर त्योहार में माथे पर हल्दी कुमकुम
लगाने की प्रथा है. इस प्रथा में घर की सुहागने ही शामिल होती है. उन्ही को यह सम्मान दिया जाता है. बाकी जिनके पति नही है, छोड गये है, या छोड दिया गया है उनको यह सम्मान ना देकर अपमानित किया जाता है. सारे शुभ कार्य में उनको बडे ही अभद्र व्यवहार का सामना करना पडता है. उपर तीनो कविताओं की नायिका ऐसे ही मराठी घरों में से है…
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