मैंने पहली बार जब ‘ना’ कहा तब मैं 8 बरस की थी,
“अंकल नहीं .. नहीं अंकल ‘
एक बड़ी चॉकलेट मेरे मुंह में भर दी अंकल ने,
मेरे ‘ना’ को चॉकलेट कुतर कुतर कर खा गई,
मैं लज्जा से सुबकती रही, बरसों अंकलों से सहमती रही,
फिर मैंने “ना” कहा रोज ट्यूशन तक पीछा करते उस ढीठ लड़के को’ “ना ,प्लीज मेरा हाथ ना पकड़ो “ना…
मैंने कहा न ” ना ”
मैं नहीं जानती थी कि “ना “एक लफ्ज़ नहीं,
एक तीर है जो सीधे जाकर गड़ता है मर्द के ईगो में,
कुछ पलों बाद मैं अपनी साईकिल सहित औंधी पड़ी थी,
मेरा ” ना” भी मिट्टी में लिथड़ा दम तोड़ रहा था,
तीसरी बार मैंने “ना” कहा अपने उस प्रोफेसर को,
जिसने थीसिस के बदले चाहा मेरा आधा घण्टा,
मैंने बहुत ज़ोर से कहा था ” ना ”
“अच्छा..! मुझे ना कहती है ” और फिर बताया कि
जानते थे वो, क्या- क्या करती हूँ मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ,
अपने निजी प्रेमिल लम्हों की अश्लील व्याख्या सुनते हुए मैं खड़ी रही बुत बनी,
सुलगने के वक्त बुत बन जाने की अपराधिनी मैं
थीसिस को डाल आयी कूड़ेदान में और
अपने ‘”ना ” को सहेज लायी,
वो जीवनसाथी हैं मेरे जिन्हें मैं कह देती हूँ कभी कभार
” ना ,,,,प्लीज़ ,आज नहीं ”
वे पढ़े लिखे हैं ,ज़िद नही करते, झटकते हैं मेरा हाथ और मुंह फेर लेते हैं निःशब्द,
मेरे स्नेहिल स्पर्श को ठुकराकर वे लेते हैं ‘ना’ का बदला,
आखिर मैं एक बार आँखें बंद कर झटके से खोलती हूँ,
अपने “ना “को तकिए के नीचे सरकाती हूँ,
और उनका चेहरा पलटाकर अपने सीने पर रख लेती हूँ,
“मैं और मेरा ‘ना’ कसमसाते रहते हैं रात भर,”
“” ना “” क्या है ?,,,,,,केवल एक लफ्ज़ ही तो जो बताता है मेरी मर्ज़ी, खोलता है मेरे मन का ताला,
कि मैं नहीं छुआ जाना चाहती तुमसे, कम-से-कम इस वक्त,
तुम नहीं सुनते,
तुम ‘ना’ को मसल देते हो पंखुरी की तरह,
कभी बल से , तो कभी छल से,
और जिस पल तुम मेरी देह छू रहे होते हो,
मेरी आत्मा कट कट कर गिर रही होती है,
“कितने तो पुरुष मिले, कितने ही देवता,”
एक ऐसा इंसान न मिला..
जो मुझे #प्रेम करता मेरे _____”नां” __के साथ,……..
विवाह के भीतर बलात्कार
“क्यों भाभी, अभी तो आपकी शादी को एक ही साल हुये हैं फिर इसकी क्या ज़रूरत थी?”
{बेबी-बम्प के साथ एक लड़की और मैं, लड़की बरामदे में और घर के बाहर झांकती है और धीरे से बोलती है
“बाबू, अभी तो मैं भी ये बच्चा नहीं चाहती थी लेकिन तुम्हारे भईया कहाँ सुनने वाले हैं, ”
“आप उन्हें मना भी तो कर सकती थीं ”
“मैं उन्हें कैसे मना कर सकती हूँ, आख़िर वो मेरे हसबैंड हैं , वैसे भी मेरा मन उनके लिए कहाँ मायने रखता है क्योंकि मेरी तबियत चाहे ठीक हो या ना हो उन्हें तो सिर्फ मेरे साथ ……. करने से मतलब हैं ”
“अरे आप मना क्यों नहीं कर सकती हैं आख़िरकार वो आपको शादी करके लाये हैं कोई खरीदकर नहीं ”
“कैसे बातें कर रहे हो, उन्हें मना करके मुझे नरक में जाना है जाना है क्या ? ”
‘पार्च्ड’ के जवाब , ‘पिंक’ से कुछ सवाल : स्त्रीवाद के आईने में (!)
दोस्तों ये हैं उस समस्या का असल रूप जिसे क़ानून की क़िताबों में “विवाह में बलात्कार” यानी “Marital Rape” के नाम से जाना जाता हैँ। (अग़र सोशल मीडिया के ज़माने मैं भी आपका पाला इस शब्द से न पड़ा हो तो जान लीजिये कि “बलात्कार वह सम्बन्ध होता है जो कि प्यार के अभाव में स्थापित किया जाये” और ये कोई ज़रूरी नहीं की शादी होते ही प्यार भी हो जाएगा इसलिए ऐसे ज़बरदस्ती के शारीरिक सम्बन्ध को “विवाह में बलात्कार” की संज्ञा दी गयी है।)
हर लड़की का यह सपना होता है की जब वो बड़ी हो तब उसकी केयरिंग करने वाला उसे समझने वाला एक अच्छे दिलवाला पति या बॉयफ्रेंड मिले लेकिन वहीँ लड़की जब 20-21 साल तक अपने मैरिज लाइफ के सुनहरे सपने संजोकर जबरन हलाल (सॉरी निक़ाह) होने के लिए पिया की सेज पर बैठा दी जाती है तब नियति से उसका पहला क्रूर साक्षात्कार होता है क्योंकि उसका राजकुमार उस पर आकर ऐसे टूट पड़ता है मानो वो कई जन्मों का भूखा हो ,हवस का पुजारी।
अग़र आप संस्कारी होंगे(Anti-Romeo Squad या बानर दल वाले) तो ये कहेंगे कि हंमारी संस्कृति में तो पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है, तो फिर ऐसा कोई अपनी पत्नी के साथ कैसे कर सकता है। आईये आपको आँकड़ों की मदद से समझाता हूँ क्योंकि “हाथ कंगन को आरसी क्या ,पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या और पान को बनारसी क्या? ”
National Health Family Survey 2016 के अनुसार भारत में 37% औरतें अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी में शारीरिक , मानसिक और Sexual हिंसा (विवाह में बलात्कार) झेलती हैं। प्रख्यात समाजशास्त्री डॉ. राम आहूजा का मानना था कि “शिक्षित महिलाओं की तुलना में घरेलु हिंसा (जिसमें Marital Rapes भी शामिल है) अशिक्षित महिलाओं के साथ ज्यादा होती है “, जबकि इस सर्वे के मुताबिक घरेलु हिंसा और विवाह में बलात्कार झेलने वाली महिलाओं में केवल 29% औरतें ही नहीं पढ़ी- पढ़ी-लिखी थी जबकि 71% औरतें ग्रेजुएट थीं या इससे भी अधिक पढ़ी लिखी थीं। इस रिपोर्ट के अनुसार 39% महिलाओं के पति उनकी मर्जी के बिना उनके करते हैं और 46% औरतों ने यह भी बताया की उनके पतियों द्वारा contraception का यूज़ ना बिना अपनी मर्जी के प्रेग्नेंट हो चुकी हैं। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि पति खुद contraception means का यूज़ नहीं करता बल्कि अपनी पत्नी को जबरदस्ती contraceptive pills दे-देकर उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से अपाहिज बना देते हैं क्योंकि अनवांटेड-72 जैसे गर्भनिरोधक दवाओं के साइड-इफ़ेक्ट के कारण औरतों और अनब्याहीं लड़कियों में अधकपारी, खून की कमी , चक्कर आना और बाँझपन जैसे समस्याएं आम हो जाती हैं। और फिर गाँव के लोग ही नहीं बल्कि कुछ पढ़े-लिखे भी इनसे छुटकारा पाने के लिए साधुओं और तांत्रिकों के पास जाते हैं जो कि धर्म की आड़ में अपनी हवस पूरी करते हैं।
“विवाह में बलात्कार के कारण
भारत जैसे देश में जहां एक घर के छज्जे का पानी अग़र दूसरे घऱ की छत पर गिरने लगता है तो मार-काट मच जाती है वहीँ घरेलु हिंसा और “विवाह में बलात्कार चाहे वो पति करे, देवर करे या ससुर करे ) का नाम सामने आने पर लोग इसे “दूसरे के घऱ की बात” कहकर चुप करवा देते हैं। असल में इन सबके पीछे लोगों की धार्मिक अंधभक्ति काम करती है, आईये समझते हैं कैसे ?
किसी भी धर्म में सबसे अधिक आस्था(या अंधभक्ति?)औरतें ही रखती हैं और वहीँ धर्म का सबसे आसान शिकार भी बनती हैं। इसी की वज़ह से कठमुल्लों और पंडों ने करवाचौथ जैसे व्रत और तीन-तलाक़ व हलाल निकाह जैसे अमानवीय नियम बनाकर पुरुषों की सत्ता को स्त्रियों पर थोप दिया है। क्या हिन्दू क्या मुस्लिम बल्कि पुरे दक्षिण-एशिया में कोई भी ऐसी बीवी नहीं है जोकि इन सब कुरीतियों पर आवाज़ उठाये। और सबसे बड़ी बात हमारे धर्मग्रंथों नें भी इन्हीं पुरुषसत्तात्मक कुरीतियों को प्रश्रय ही दिया है। चलिए इसकी भी थोड़ी सी झलकी आपको दिखा देते हैं
उस आख़िरी दृश्य में अनारकली !
मनुस्मृति (5.147-150) के अनुसार, “पिता या पिता की आज्ञा से भाई चाहे जिस भी आदमी से तुम्हारी शादी करा दे उस की ज़िन्दगी भर सेवा करो और उसके मारने के बाद भी धर्म का उल्लंघन ना करों। ” इसी में स्मृतिकार आगे कहता है कि, “अग़र पति विद्या-गुण आदि से हीन, शराबी, कदाचारी या दूसरी औरत के साथ सम्बन्ध रखता हो तब भी पत्नी को उसकी सेवा देवता के समान करनी चाहिए। पत्नी को कोई भी व्रत, उपवास या यज्ञ अलग से करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह पति की सेवा करने से ही स्वर्ग में पूजित होती है।” ऐसे स्मृतिकार तो औरतों को स्वर्ग का लालच किस तरह देते हैं ये देखिये,”जो स्त्री स्वर्ग जाना चाहती हो उसे अपने जीवित या मृत पति की इच्छा के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।”
और तो और ये धर्मग्रन्थ औरतों को किस तरह से मानसिक ग़ुलाम बनातें हैं ये भी देखिये, मनुस्मृति (5.147-166) में स्मृतिकार कहता है कि “अपने हीन पति(Scrubbed Husband) को त्याग कर अन्य श्रेष्ठ पुरुष को स्वीकार करने वाली स्त्री इस संसार में निंदित होती हुई व्यभिचारिणी(Adulteress) कहलाती है। ऐसे कोई औरत जो दूसरे आदमी से सम्बन्ध रखती है तो उसे कुष्ठ रोग(Leprosy) हो जाता है और अगले जन्म में वह गीदड़ी (Jackal ) के रूप में जन्म लेती है।”
दरअसल, बचपन से ही हमारे चेतन में धार्मिक प्रवित्तियां इतनी कूट-कूट कर भर दी जाती हैं की अगर कोई पंडित ये कहे की ये गोबर नहीं गंणेश हैं तो हम भी वहीँ मान बैठते हैं। हमारी महिलाएं तो इस मामले में और भी ज्यादा अन्धविश्वासी होती हैं वरना चन्द्रमा के किये की सज़ा अहिल्या को नहीं भुगतनी पड़ती और ना ही पांडवों के कर्मों का पाप द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र होकर झेलना पड़ता।
वास्तव में जो पति दिनभर काम के बाद घऱ आता है तो वह पत्नी को For Granted Thing समझ लेता है और बिस्तर पर उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथ रेप करता है {जिनको रेप शब्द पर आपत्ति है वे जान लें की सेक्स और रेप में वहीँ अंतर है जो किसी लड़की की हाँ या ना में हैं , या यूँ कहें की ज़मीन या आसमान में है।} और पत्नी के कॉउन्टर-रिस्पांस न देने पर ” साली ठण्डी है ” कहता है और थप्पड़ लगाकर अपनी मर्दानगी साबित करता है। और हमारी वहीँ औरतें सुबह कड़क सर्दी में उठकर, पति की लंबी उम्र के लिए वट- सावित्री या एकादशी का व्रत करती हैं , और फिर से अपनी गृहस्थी में कोल्हू के बैल की तरह रम जाती हैं। और हम अंधे-बहरे लोग, “ये तो उनका आपस का मामला है” कहकर मुंह फेर लेते हैं।
उपाय
“शिक्षा सभी रोगों की रामबाण दवा है”, मतलब ये की जब तक हमारी स्कूल की किताबों में ये लिखा रहेगा, “राजू विद्यालय जा”, “आनंद पढ़ाई कर”, “कमला कपड़े धो”,”किरण माँ की मदद कर” तब तक “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” के नारे खोखली लफ़्फ़ाज़ी ही साबित होंगे क्योंकि आज भी हमारे देश के लगभग सभी बोर्डों की स्कूली किताबों में पुरुषसत्तात्मक सत्ता की साफ़ झलक देखने को मिलती है। अग़र आपकी मेमोरी कमजोर ना हो तो{ आप कुछ ही दिनों में सब कुछ भूल जाते है,क्योंकि आपको न तो ईरोम शर्मीला का सोलह साल का अनशन याद रहता है, न ही इशरत जहाँ की क़ुरबानी और ना ही सोनी सूरी पर हुआ अत्याचार } आपको याद होगा कि कुछ ही महीने पहले महाराष्ट्र सरकार के ग्यारहवीं की समाजशास्त्र की Text Book में ये कहा गया था कि कम गोरी या अपाहिज न लड़कियों के माता -पिता को अधिक दहेज देना पड़ता है और ऐसी लड़कियों के पति भी उनसे प्यार नहीं करते हैं। {अब ये मत कहियेगा कि ये तो भगवा या बानर दल वालों की ही सोच है क्योंकि मैंने ऐसी घटिया सोच रखने वाले तथाकथित समाजवादियों को भी देखा है} ऐसे सोच वैसे लोग भी रखते हैं जिनका नारीमुक्ति और नारीवाद का प्रश्न केवल लड़कियों के शॉर्ट्स पहनने, सिगरेट-शराब पीने , और पब में डांस करने तक ही सीमित रह जाता है क्योंकि ये Elite Feminist समाज के निचले तबके तक तक जा ही नहीं पाते हैं वरना ये देखते कि किस तरह गाँव में लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी गयी सरपंच की जगह उसका पति-देवर या भाई काम करता है।
रंडी अश्लील शब्द है और फक धार्मिक (!) … पिंक के बहाने कुछ जरूरी सवाल
बहरहाल, चाहे “विवाह में बलात्कार ” हो या कोई और घरेलू हिंसा , उसे रोकने के लिए हमें पहली पाठशाला से ही लैंगिक समानता विषयक कविता, कहानियों और उदाहरणों को शामिल करना होगा , और हाँ ये “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” वाली बात तो भूल ही जाईये क्योंकि इसका भी यहीं हश्र हुआ है जो रघुबीर सहाय जी की कविता में है:-
“पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सब में लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइए.
होंय कँटीली
आँखें गीली
लकड़ी सीली, तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइए.”
तो रेपिस्ट पतियों ये बात याद रखो कि पत्नी सिर्फ हमबिस्तर नहीं बल्कि हमसफ़र होती है.
और आधी आबादी के लिए मेरा यहीं सन्देश है की
“तुम चुप रहकर जो सहती हो , तो क्या ये ज़माना बदला है.
तुम बोलोगी मुंह खोलोगी , तब ही तो ज़माना बदलेगा.
सन्दर्भ:
1.”अस्मिताओं का संघर्ष : भारतीय संस्कृति का पुनर्लेखन ” ,
2. कमल किशोर कठेरिया ,
3. वाणी प्रकाशन-2016
4. P. Venugopal:Different Forms of Violence and Harassment against Women, Indian Journal of Criminology vol.29, 2001
5. Ram Ahuja : Disquistional Criminology
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