सेक्स और स्त्री देह के प्रति सहजता और कुंठा के बीच महीन रेखा

संपादकीय

कभी आपने अपनी नानियों, दादियों, मां, मौसी, चाची या आस-पास की औरतों को सेक्स के बारे में बात करते सुना है ! यकीनन आपका बचपन यदि गांवों में बीता हो, ड्योढ़ी, जो घर के आँगन से लगी स्त्रियों की बैठक होती रही है, यदि उसे आप जानते-समझते हों, तो वहाँ के संवादों को याद करते हुए आप इस सवाल का जवाब ढूंढ सकते हैं. हालांकि यह कभी-कभी ही अनायास का संयोग हो सकता है कि आप उनसे ऐसा कुछ सुनें, क्योंकि बच्चों/किशोरों  के सामने वे सीधे इस पर बात करने में बचती होंगी, फिर भी कूट संकेतों, अचानक की हंसी और गोपनीयता मिश्रित खिखिलाहटें शायद आपको याद हों या अनायास के सुने शब्द भी. मैंने तो अपनी बड़ी नानी को सीधे मुझे संबोधित ऐसे मजाक सुने हैं, अक्सर ये पुरधाइनें (बूढ़ी और अनुभवी स्त्रियाँ) आपके निर्धारित मजाक के रिश्तों के साथ जोड़कर आपको सेक्स से सम्बंधित टिप्पणियाँ दे जाती होंगी.

यहाँ सेक्स बिकता है, सेक्स क़त्ल करता है: बदनाम नहीं, ये मर्दों की गलियाँ हैं

फिर ऐसा क्या होता जाता है कि सेक्स से सम्बंधित बातों के लिए हम दुरग्रह से ग्रस्त होते गये. सेक्स की गोपनीयता अतिरेक में तब्दील होती गई, सेक्स स्त्रियों की इज्जत से जुड़ता गया और इस कदर की यौन अंगों से जुड़े रोग भी छिपाये जाने लगे-यानी आनंद और पीड़ा दोनो ही अतिगोपनीय खाते में डाल दिये गये. शायद ऐसा सभ्यता के प्रभाव में होता जाता है. जानकार इस अतिआरोपित गोपनीयता को विक्टोरियन प्रभाव मानते हैं. अंजता-खजुराहों, कोणार्क, कामसूत्र और के इस देश में सेक्स से सम्बंधित बातचीत अश्लीलता और फुहड़पन में शुमार होने लगीं.  ड्योढ़ी-संस्कृति के जिस अवशेष की बात मैं कर रहा हूँ वह प्रायः बीसवीं सदी के अंत तक का है, लेकिन इसका पूरा शवाब 19वीं सदी तक तबतक रहा होगा, जब विक्टोरियन प्रभाव में हम कथित संस्कार की और न बढ़े. बंगाल में 19वीं सदी में भद्र (कुलीन) महिलाओं के बीच इस कथित अश्लील या फूहड़ माहौल का जिम्मेवार भदेस ( अकुलीन, खासकर यजमानी से जुड़ी ) महिलाओं को माना गया था,अंग्रेज महाप्रभुओं का अनुकरण करते भद्र बंगाली पुरुषों ने जाति और वर्ग की सीमा से परे इस महिला-साख्य को नियंत्रित करने की कोशिश की थी, नियंत्रित किया था.

सेक्स से जुड़ी खबरों, फीचरों को मिलते हिट्स 

ऑनलाइन मीडिया के जमाने में सेक्स से जुड़ी खबरों/ फीचर को हिट्स काफी मिलते हैं. यानी लोग उसे पढ़ते हैं, इन खबरों को क्लिक करने के पीछे उनकी मानसिकता चाहे जो भी होती हो, अलग -अलग, कभी उत्सुकता, कभी जानकारी और कभी कुंठा के लिहाज से लेकिन ऐसी खबरें/फीचर अनुकूलता पर प्रहार करते हैं-लोगों को सहज करते हैं. मैं ऐसा उन खबरों के बारे में नहीं कह रहा हूँ जो क्लिक के नंबर के लिए महिला विरोधी अश्लील हिंसा को प्रोत्साहित करते हैं-कभी ऊप्स मूमेंट की तस्वीरें जारी कर तो कभी ऐसे शीर्षकों से खबरें प्रस्तुत कर जो सॉफ्ट पोर्न का इशारा देते हों. हद तो तब होती है जब रील के बलात्कार को रियल बलात्कार की तरह पेश करते हुए शीर्षक दिये जाते हैं, और वैसी ही तस्वीरें लगाई जाती हैं, मसलन मध्यप्रदेश में पत्रिका ने अपनी एक फीचरनुमा खबर का शीर्षक लगाया: ‘ बड़ी खबर: एक बार फिर दहला बॉलीवुड, ऐक्ट्रेस पंखुरी अवस्थी का हुआ दिन दहाड़े रेप, सभी आरोपी फरार.’ जबकि यह फीचर/ खबर एक सीरियल में फिल्माये गये बलात्कार से सम्बंधित थी. जनसत्ता,अमर, उजाला जैसी अखबारों ने इसी हिट्स की दौड़ में शीर्षक दिया ‘सात लोगों से संबंध बनाते पकड़ी गई कतर की राजकुमारी’ और पूरी फर्जी खबर एक फर्जी तस्वीर के साथ चला दी थी. इस तरह के खबर और भ्रामक फीचर सेक्स की कुंठाओं के दोहन से हिट्स पाने की ललक और व्यापार के हिस्सा होते हैं.



बीबीसी और अन्य पोर्टल के सेक्स फीचर/ खबरें 

जिस दिन मैं यह संपादकीय (अग्रिम तौर पर) लिख रहा हूँ उसी दिन बीबीसी हिन्दी के टॉप 10 पोस्ट में तीन खबरें सेक्स से या महिला देह से सम्बंधित हैं. मसलन: 1. महिला हस्त मैथुन: मिथक और सच्चाई 2. सेक्स सेल से चलता है कुदरत का कारोबार, 3. मैं नग्न होती रहूँगी ताकि फॉलो करना छोड़ दो: पेरिस जैक्सन. यहीं बीबीसी हिन्दी में फरवरी में लगी एक खबर ‘वायरल सेक्स वीडियो ने तबाह की उसकी जिन्दगी’ अप्रैल मई तक उसके वेबसाईट के टॉप 10 ख़बरों/ फीचर में बनी रही. बीबीसी हिन्दी के वेबसाईट पर सेक्स से जुड़ी ऐसी  ख़बरें/ फीचर बारंबारता में आते रहते हैं. मसलन: हस्तमैथुन के ये हैं पांच फायदे, कहीं आप वर्चुअल सेक्स के आदि तो नहीं, जिस योनि से जन्मे उसी पर चुप्पी क्यों, कामसूत्र महिलावादी या कामवासना की किताब, चरमसुख की कुंजी क्या है, रेप को भुलाकर शरीर दोबारा सहज हो सकता है आदि. सैनिटरी पैड को लेकर बीबीसी ने एक सीरीज ही चलाया.

कामसूत्र से अब तक

अमर उजाला ने एक पोस्ट लगाया ‘हस्त मैथुन के बारे में ये बातें जानते हैं आप?’ या सेक्स के दौरान इन बातों का ख्याल रखें मर्द या सेक्स टॉय नहीं मशीन देगी सेक्स का सुख. इस तरह की खबरें और फीचर अन्य समाचार पोर्टल पर भी पोस्ट किये जाते हैं.


ऐसी खबरें और फीचर सेक्स को दैनंदिन में शामिल रूटीन के तौर पर पेश करते हैं और सहजबोध से भी भरते  हैं. इन खबरों/ फीचर का सहज प्रभाव है कि महिलाओं के शरीर पर आरोपित गुप्तता और इज्जत दोनो को चुनौती मिलती है. देह को, सेक्स को स्त्री और पुरुष पाठक सहजता में लेने लगते हैं, कुछ पीढ़ियों का अनुकूलन ख़त्म होता जाता है, यह अनुकूलन आधुनिकता के नाम पर डेढ़-दो सदियों में हमने खुद ही ओढ़ लिया है.

धार्मिक ग्रंथों, क्लासिक्स  और लोकसाहित्य में सेक्स

आधुनिकता, विक्टोरियन आधुनिकता के प्रभाव में आरोपित अनुकूलन से अलग इसी देश की सच्चाई है कि देह और सेक्स के प्रति सामाजिक सहजता के प्रतीक स्वरुप लोकसाहित्य, क्लासिक्स और धार्मिक ग्रन्थ भी खूब मिलते हैं. ये सामाजिक दैनंदिन के हिस्सा हैं, खजुराहो, अजन्ता या कोणार्क के भित्तिचित्रों को छोड़ दें तो भी. लोकगीतों, कथाओं में स्त्री देह और स्त्री-पुरुष संसर्ग के प्रसंग खूब होते रहे हैं. बच्चे के जन्म से लेकर शादी-विवाह के गीतों, फसल के दौरान के गीतों में शारीरिक संसर्ग के संकेत होते ही होते हैं, धर्म ग्रंथों में देवियों की जंघाओं, नितंब और स्तन के वर्णन से ही उनके सौन्दर्य का बिम्ब खीचा जाता रहा है, ऐसा ही क्लासिक्स में भी होता रहा है. देह-संबंध इनके कथा-प्रसंगों में किसी भी कुंठा से परे होते हैं.

  वे लाइव पोर्न में प्रदर्शन के पूर्व ईश्वर को प्रणाम करती हैं !

इस लिहाज से विभिन्न समाचार पत्रों, चैनलों के वेब पोर्टल में सेक्स और देह की खबरें और फीचर न सिर्फ हिट्स का प्रबंध करते हैं बल्कि संपादकों की अपनी समझ, प्रतिबद्धता और एजेंडे के अनुरूप इनमें एक महीन रेखा भी होती है, जिसके इस पार देह और सेक्स के प्रति सहजता होती है तो उस पार कुंठा. इस पार जानकारियाँ देते पोस्ट होते हैं, उस पार स्त्री देह के प्रति पुरुष-दृष्टि से हिंसक भाव पैदा करते पोस्ट.

संजीव चंदन 

स्त्रीकाल का संचालन ‘द मार्जिनलाइज्ड’ , ऐन इंस्टिट्यूट  फॉर  अल्टरनेटिव  रिसर्च  एंड  मीडिया  स्टडीज  के द्वारा होता  है .  इसके प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें : 

दलित स्त्रीवाद , मेरा कमराजाति के प्रश्न पर कबीर

अमेजन पर ऑनलाइन महिषासुर,बहुजन साहित्य,पेरियार के प्रतिनिधि विचार और चिंतन के जनसरोकार सहित अन्य 
सभी  किताबें  उपलब्ध हैं. फ्लिपकार्ट पर भी सारी किताबें उपलब्ध हैं.

दलित स्त्रीवाद किताब ‘द मार्जिनलाइज्ड’ से खरीदने पर विद्यार्थियों के लिए 200 रूपये में उपलब्ध कराई जायेगी.विद्यार्थियों को अपने शिक्षण संस्थान के आईकार्ड की कॉपी आर्डर के साथ उपलब्ध करानी होगी. अन्य किताबें भी ‘द मार्जिनलाइज्ड’ से संपर्क कर खरीदी जा सकती हैं. 
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles