21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर एक कविता वायरल हो गई. सोशल मीडिया पर इसे खूब शेयर किया गया, पढ़ा गया. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह सहित अनेक राजानीतिक, समाजिक एक्टिविस्टों ने इसे शेयर किया. व्हाट्स अप पर पिछले दो दिन से यह कविता घूमती रही है. नाट्य-आलोचक और समकालीन रंगमंच के संपादक राजेश चंद्र ने अपनी यह कविता 21 जून को अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की. कुछ ही घंटों में इसका वायरल हो जाना यह बताता है कि राजनीतिक प्रहसनों के प्रति जनता क्या सोच रही है. जनता अभिव्यक्ति का माध्यम तलाश रही है और मौक़ा और उचित माध्यम मिलते ही राजनीतिक-सांस्कृतिक प्रहसनों के खिलाफ अभिव्यक्त हो रही है, उससे जुड़ जा रही है. स्त्रीकाल के पाठकों के लिए राजेश चंद्र की कविता. तस्वीर फेसबुक यूजर एसके यादव की वाल से साभार:
भूख लगी है? योगा कर!
काम चाहिये? योगा कर!
क़र्ज़ बहुत है? योगा कर!
रोता क्यों है? योगा कर!
अनब्याही बेटी बैठी है?
घर में दरिद्रता पैठी है?
तेल नहीं है? नमक नहीं है?
दाल नहीं है? योगा कर!
दुर्दिन के बादल छाये हैं?
पन्द्रह लाख नहीं आये हैं?
जुमलों की बत्ती बनवा ले
डाल कान में! योगा कर!
किरकिट का बदला लेना है?
चीन-पाक को धो देना है?
गोमाता-भारतमाता का
जैकारा ले! योगा कर!
हर हर मोदी घर घर मोदी?
बैठा है अम्बानी गोदी?
बेच रहा है देश धड़ल्ले?
तेरा क्या बे? योगा कर!
–राजेश चन्द्र, संपर्क: 9871223317, rajchandr@gmail.com