आधी आबादी महिलाओं की है, लेकिन उन्हें अपने छोटे से हक के लिए भी पुरुष तंत्र से लड़ना पड़ता है. इस देश में महिलाओं के स्वास्थ्य से ज्यादा उनका कथित सुहाग, श्रृंगार जरूरी है. सरकार ने जहां सिन्दूर और पूजा पाठ की चीजों को टैक्स फ्री रखा है वहीं महिला-स्वास्थ्य से जुड़े सेनेटरी नैपकिन पर 12% का लक्जरी टैक्स लगाया गया है.
28 मई को माहवारी-स्वच्छता दिवस मनाया जाता है. लगभग तब से ही सरकार की मंत्री मेनका गांधी, कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव आदि ने वित्तमंत्री से अनुरोध किया है कि सेनेटरी नैपकिन पर जीएसटी नहीं लगाया जाये, लेकिन 1 जुलाई से जब जीएसटी लागू की गई तो इन अनुरोधों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. 1 जुलाई को जीएसटी लागू होने के बाद इस टैक्स के खिलाफ स्त्रीकाल में प्रकाशित एक खबर में महिलाओं ने प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को सेनेटरी पैड भेजकर इसका विरोध जाताने की योजना बताई थी. इसके बाद देश के पश्चिमी हिस्से में वर्धा से, जो गांधी जी की कर्मभूमि रही है, कुछ छात्राओं ने 7 जुलाई को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली को सेनेटरी पैड भेजकर अपना विरोध जताया. वर्धा में संचालित युवा नामक संगठन की वनश्री वनकर ने न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली को सेनेटरी पैड भेजा बल्कि इस आशय का वीडियो जारी कर अपील की कि देश भर से सेनेटरी पैड इन्हें भेजा जाये.
देखें वीडियो: देश भर से लड़कियों का अभियान
10 जुलाई को दिल्ली विश्ववविद्यालय की राजनीति विज्ञान की छात्रा और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) की सदस्य अनुराधा कुमारी ने इसे एक व्यवस्थित मुहीम की शक्ल देते हुए अपील जारी की कि ‘ब्लीड विदाउट फीअर, ब्लीड विदाउट टैक्स’ हैश टैग के साथ देश भर से वित्तमंत्री को सेनेटरी पैड भेजकर टैक्स वापस लेने का दवाब बनाया जाना चाहिए.’
एसएफआई की विभिन्न शाखाओं ने इस मुहीम में 12 जुलाई को देश भर में हिस्सा लिया और उन्होंने स्कूल/ कॉलेज में फ्री सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराने की मांग करते हुए उसपर से 12% जीएसटी हटाने की मांग की.
तिरुवनंतपुरम में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) के 300 से भी अधिक विद्यार्थियों ने सेनेटरी पैड पर ‘ब्लीड विदाउट फीअर ब्लीड विदाउट टैक्स’ लिखकर अरुण जेटली के ऑफिस में भेजा. एसएफआई और आल इंडिया डेमोक्रेटिक असोसिएशन (आयडवा) ने दिल्ली विश्ववविद्यालय में इसी प्रोटेस्ट को का आयोजन किया तो 12 जुलाई को ही एसएफआई की आसाम यूनिट ने गुवाहाटी के दिघली पुखुरी में ऐसा ही प्रोटेस्ट किया. आसाम से एसएफआई की स्टेट ज्वाइंट सेक्रेटरी संगीता दास ने कहा ‘सेनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करने से बीमारियाँ नहीं होती हैं. इसपर टैक्स लगाने से महिलाओं को एक स्वस्थ जीवन जीने से वंचित किया जा रहा है.’ संगीता ने कहा कि आसाम में गर्मी की छुट्टी खत्म होते ही मुहीम को और तेज करेंगे. अगस्त के पहले सप्ताह से शुरू होकर 17 अगस्त तक यह मुहीम चलेगी.’ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के विद्यार्थी एवं महिला संगठनों ने ऐसे आंदोलन कई शहरों में किये हैं.
7 जुलाई को वनश्री वनकर द्वारा जारी की गई अपील
प्रियबंधु नामक एक संस्थान, जो आसाम में माहवारी-स्वच्छता अभियान चलाता है, की सदस्य अर्चना बोरठाकुर ने भी सरकार के इस कदम को निराशा जनक बताया. उनकी संस्था फ्री में सेनेटरी पैड भी बांटती है. देखना यह है कि पश्चिम से पूरब तक बहाने वाली यह हवा क्या रंग लेकर आती है!
गांधी के गाँव से छात्राओं ने भेजा वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री को सेनेटरी पैड
हालांकि इसी बीच इस मुहीम के खिलाफ प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं. कन्नड़ की अभिनेत्री और भारतीय जनता पार्टी की सदस्य मालविका अविनाश ने जहां सेनेटरी पैड को भारत में पश्चिमी साजिश बताया वहीं सरकार भी अपना बयान जारी कर भ्रामक जानकारियाँ दे रही है.
सरकार के अनुसार इसपर 5% वित पहले से ही लागू था. हालांकि वैट सारे राज्य नहीं लगाते. सेनेटरी नैपकिन पर 12% जीएसटी के पक्षधर लोगों का कहना है कि इसमें उपयोग आने वाले कच्चे माल की श्रेणी हाई जीएसटी की है इसलिए इसपर भी जीएसटी लगनी चाहिए. इसके निर्माण में इस्तेमाल होने वाले सुपर ऐब्जोर्मेंट पोलिमर, पोली एथीलीन फिल्म, ग्लू , रिलीज पेपर और वुड पल्प पूरे कॉस्ट का 20% है, जो अपने आप में हाई जीएसटी की दायरे में है. 80% कॉटन इस्तेमाल होता है जो अपने आप में 5% जीएसटी के दायरे में है.
क्या महिलायें भेजेंगी वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री को सेनेटरी पैड
आज भी ग्रामीण इलाके में महिलायें सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं करती हैं. सरकार को चाहिए था कि महिलाओं-स्वास्थय को देखते हुए वह इन्हें टैक्स फ्री करे, लेकिन वह इसे विलासिता कैटगरी में रखकर 12 % टैक्स लगा रही है.
क्वीलिन काकोती स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. संपर्क: kakoty.quiline@gmail.com