इस वैभवशाली बुटिक घर से आ रही आवाजें उनकी हैं, जहाँ पर स्कारलेट लेडिज की सदस्य स्त्रियाँ प्रत्येक बुद्धवार को अपनी यौनिकता पर खुल कर बहस करती हैं, सेक्स के उपर बातचीत करती हैं, आराम फरमाती हैं, अपनी निजी और गुप्त बातें साझा करती हैं. अपनी यौनिकता से उभरे दाग-धब्बों और समस्याओं पर खुलकर चर्चा ही नहीं करती बल्कि अपनी खूबसूरती और अपने यौनिकता के आनंद और अपने शरीर से प्रेम के सन्देश को दुनिया तक पहुंचाना चाहती हैं जिससे दुनिया के हर हिस्से की महिलाएं स्वयं को सार्वभौम बहनापे से खुद को जोड़ते हुए अपने आप को सशक्त कर सकें. ताकि इस पितृसत्तात्मक समाज द्वारा स्त्रियों को उनकी ही यौनिकता से कैद कर दिए जाने की साजिश से मुक्त हो सकें.
स्कारलेट लेडिज के इस वैभवशाली घर के पीछे का इतिहास भी बड़ा रोचक है. 18 वीं सदी में एक कुख्यात फ़्रांसिसी दार्शनिक-साहित्यकार हुए, जिनका नाम था मर्क़ुएश दि सादे ( Marquis De Sade ). ये सुखवाद के पक्के समर्थक और यौनिक नैतिकता के सबसे बड़े आलोचक थे. ये अपने कामुक और रत्यात्मक लेखन के लिए जाने जाते हैं. जिसमें पोर्नोग्राफी का दार्शनिक विमर्श, यौन फंतासियों– जिसमें हिंसा, अपराध, ईश निंदा के साथ -साथ क्रिश्चानिटी का विरोधी साहित्य भी शामिल था. “सैडिज्म” और “सैडिस्ट” शब्द भी इन्हीं के नाम पर बने हैं.
इनकी एक बहुत प्रसिद्द पुस्तक का नाम है “फिलोसोफी इन द बेडरूम”. इसमें इन्होंने एक ऐसे छोटे कमरे या जगह के बारे में लिखा है जो महिलाओं की गुप्त और रहस्यमयी बातों की जगह है. और इस जगह ने समय के साथ एक ऐसी ख्याति प्राप्त कर ली है जहाँ स्त्रिया गंदे काम करती हैं, गन्दी बातें करती, केलि करती हैं जो समाज में लज्जाजनक हैं. आधुनिक समय में इस तरह से स्त्रियों का सुसज्जित निजी बैठका या सलून जहाँ सिर्फ स्त्रियों का वर्चस्व है, जहाँ अपनी मर्ज़ी की हर चीज़ करने को वह स्वतंत्र हैं. आधुनिक अर्थों में बुटीक या सलून जहाँ उच्च घराने की स्त्रियाँ स्नान करती हैं, सजती-संवरती हैं और अपने आनंद का समय बिताती हैं. फ़्रांसिसी शब्द बौदियार (boudoir) अंग्रेजी के बोवर (bower) का समतुल्य है जिसका अर्थ भी यही है.
रीतिकाल में स्त्रीं-यौनिकता का सवाल उर्फ देह अपनी बाकी उनका
तो इस घर ने मूलत: एक ऐसी ख्याति प्राप्त की हुई है जो तथाकथित नैतिकता और सामाजिक मान्यताओं को तार-तार करता रहा है. जहाँ पुरुषों का प्रवेश पूर्णत: वर्जित है बिना किसी अपवाद के. दुनिया की वह हर एक स्त्री जो पुरुषों द्वारा और इस पितृसत्ता द्वारा बनाई धारणाओं और उनके द्वारा थोपी गई वर्जनाओं की वजह से त्रस्त है वह स्त्री अपनी यौनिकता पर आरोपित बदनुमा दाग से, मानसिक गुलामी, झिझक, अनावश्यक रूप से सचेत रखने और एक अलग अनुशासन के बोझ तले दबी हुई है, जिसकी वजह से स्त्रियाँ स्वयं अपनी खूबसूरत देह का ध्यान नहीं कर पातीं, उसका उल्लास और आनंद नहीं मना पातीं, वे इसी तरह के स्थान से मुक्ति की शुरुआत कर सकती हैं. स्कारलेट औरतें मानती हैं कि स्त्री यौनिकतता प्रकृति की एक अनुपम देन है जो विशिष्ट रूप में स्त्रियों को ही मिला है. लेकिन इस समाज ने हमारे इस प्राकृतिक अधिकार पर बेड़ियाँ बाँध रखी हैं. मनुष्य होने के नाते यह सहज और प्राकृतिक है. हम ये नहीं कहती कि जीवन में सब कुछ सेक्स ही है. लेकिन जहाँ तक हमारी निजी पहचान और अस्मिता का सवाल है महिलाओं का कोई सशक्तिकरण अबतक नहीं हो पाया है और ना ही समाज में जेंडर समानता आई है. क्यूंकि इसे अबतक छुपाकर और दबाकर रखा गया है.
हैश टैग टॉक सेक्स से सोशल मीडिया पर वायरल इस अभियान का केंद्रीय विषय है कि स्त्री यौनिकता कोई गंदा रहस्य नहीं है जिसे गुप्त रखा जाए बल्कि यह हमारा भाग है जिससे हमारा वजूद जुड़ा है. इस अभियान का उद्देश्य है कि केवल बातचीत की ताक़त के माध्यम से औरतों की एकता बने और वे खुलकर अपनी उन भावनाओं को, चाहतों को उजागर कर सके जो वास्तव में उनके भीतर है और वैसा ही वो चाहती भी हैं पर समाज के बनाए नीति-नियमो और लोक-लाज के भय से अपनी यौनिकता का उत्सव मनाने और उसके आनंद से वंचित रह जाती हैं. स्कारलेट लेडिज यह समझती और मानती हैं कि दुनिया के हर हिस्से की महिलाएं अपनी सेक्स जरूरतों, अपनी पसंद-नापसंद और अपने अनुभवों को साझा करें. सिर्फ बातचीत के माध्यम से उनके अन्दर एक आत्मविश्वास और मजबूती का भाव जगे और वे खुद को, अपने शरीर को, अपनी यौनिकता से प्रेम करना सीख सकें जिसका वे वास्तव में अंग हैं.
बलात्कार पीड़ित स्त्री से लेकर दाम्पत्य जीवन में सिर्फ सेक्स गुलामी भर करनेवाली औरतों और वे जो अपने को तथा अपनी बेटियों को मजबूत बनाना चाहती हैं और ऐसी लड़कियां जो अपने शरीर के खुबसूरत लोच को बरकरार रखना चाहती हैं उन सबके लिए यह अभियान है. इसकी सह संस्थापिका जेनेट डेविस मानती हैं कि सेक्स पर बात करो “क्यूंकि यह मुझे पसंद है”… “क्यूंकि बलात्कार मेरा हुआ”…”क्यूंकि कुचली मैं गई”…..”क्यूंकि लैंगिक भेदभाव और शोषण की शिकार मै होती हूँ रोज़”—ये सब अनेक कारणों में कुछ हैं जिनकेलिए हमारा अभियान या विश्वास करता है कि सेक्स के बारे में बात करना ही महत्वपूर्ण है.
इस हैश टैग सेक्स टाक अभियान के साथ दो प्रसिद्द बौदियार फोटोग्राफर फैबी और कार्लो भी जुडी हैं जिनका मानना है कि स्त्री सशक्तिकरण में उनकी महती भूमिका हो सकती है क्यूंकि वह अपनी संवेदनशील फोटोग्राफी के जरिये वह उन महिलाओं की निजी, सुन्दर और सौम्य फोटो दिखाकर उनके भीतर आत्मविश्वास भर सकती हैं ताकि वे स्वयं से प्यार कर सकें और अपनी यौनिकता का सम्मान कर सकें और उनका आनंद ले सकें.
राजीव सुमन स्त्रीकाल के संपादन मंडल में है.
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