ठीक उसी दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की जनता को बुलेट ट्रेन का सपना बेच रहे थे संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक प्रकाशित रिपोर्ट में कहा है भारत में प्रजनन की आयु में 51.4% महिलायें खून की कमी से जूझती हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ ने खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति के संदर्भ में 2017 की अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2016 में दुनिया में कुपोषित लोगों की संख्या अनुमानित तौर पर 815 मिलियन थी, जो 2015 में 777 मिलियन से काफी अधिक है । रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि भारत इन कुपोषितों की जनसंख्या का 14.5% आबादी वाला देश है यानी 190.7 मिलियन लोग भारत में कुपोषित हैं ।
आंकड़ों के मुताबिक भारत में पांच साल से कम उम्र के 38.4% बच्चे अविकसित एवं कमजोर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों का शारीरिक रूप से अविकसित होना लम्बे समय तक कुपोषण का परिणाम है जो उनके मानसिक विकास, बौद्धिक क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
दुखद है कि श्रीलंका में 14.7% और चीन में 9.4% की तुलना में भारत में 38.4% बच्चे शारीरिक कमजोरी और अल्पविकास के शिकार हैं. रिपोर्ट कहती है कि विश्व स्तर पर, उप-सहारा अफ्रीका में कुपोषण (आबादी के प्रतिशत के अनुसार) सबसे ज्यादा बनी हुई है और बड़ी आबादी के कारण एशिया में सबसे ज्यादा कुपोषित रहते हैं, उसके बाद अफ्रीका में 243 मिलियन और लैटिन अमेरिका में 42 मिलियन हैं लोग कुपोषित हैं।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्सों में खाद्य सुरक्षा की स्थिति काफी खराब है, खासकर तनाव और संघर्ष की स्थिति के कारण भी तथा सूखे और बाढ़ के कारण ।
सवाल है कि भारत में गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा और बीमारियों से मुक्कम्मल लड़ाई की जगह चमचमाती सड़कों और बुलेट ट्रेन के सपनों को विकास का दर्जा देना क्या महज सत्तावानों की चालाकियां हैं या भारत की जनता से धोखा और उनके खिलाफ स्टेट और पूंजीपतियों का अघोषित युद्ध है, उनके खात्मे की नियत से.
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