‘दलित’ शब्द पर प्रतिबंध के खिलाफ सरकार के मंत्री आठवले
केरल सरकार ने दलित और हरिजन शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. सरकार के पब्लिक रिलेशन विभाग ने दलित और हरिजन शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए सर्कुलर जारी किया है। पीआर विभाग ने एसटी/एससी कमिशन की एक सिफारिश का हवाला देते हुए नोटिस जारी किया है। पीआर विभाग ने सर्कुलर के जरिए सभी सरकारी पब्लिकेशन और सरकार की प्रचार-प्रसार सामग्री में ‘दलित’, ‘हरिजन’ शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की अपील की है।
पीआर विभाग का यह सर्कुलर सरकार और अन्य विभागों के बीच इन शब्दों पर बैन लगाने को लेकर चल रही चर्चा के बीच आया है। सर्कुलर में दलित/हरिजन शब्दों की जगह एससी/एसटी शब्द इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है। एससी/एसटी कमिशन के सूत्रों का कहना है कि दलित और हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने की सिफारिश उन सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लिए की गई थी जो आज भी कई जगहों पर हो रहे हैं।
इस बीच केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री (राज्य) और दलित नेता रामदास आठवले इस दलित शब्द को प्रतिबंधित किये जाने के पक्ष में नहीं हैं. आठवले महाराष्ट्र के दलित पैंथर आन्दोलन से जुड़े रहे हैं. उन्होंने प्रतिबंध के खिलाफ यह विचार उनपर शीघ्र प्रकाश्य किताब ‘ भारत के राजनेता: रामदास आठवले’ में संकलित एक बातचीत में रखा है.
दलित शब्द का जो राजा ढाले और दूसरे लोग विरोध कर रहे हैं उसको आप कैसे देखते हैं
राजा ढाले दलित का विरोध नहीं करते हैं. उनके दिमाग में था कि भाई हम बुद्धिष्ट हैं . राजा ढाले ‘दलित’ शब्द का विरोध नहीं करते थे, क्यूंकि दलित पैंथर उन्होंने ही स्थापित किया था. लेकिन राजा ढाले कम्युनिजम का ज्यादा विरोध करते थे और उनका कहना ये था कि वर्ग आधारित लड़ाई से अपने देश के अन्दर से जाति व्यवस्था नहीं जायेगी. जो कम्युनिस्ट लोग सोचते हैं कि भाई वर्ग की लड़ाई होनी चाहिए , लेकिन जब तक जातिवाद ख़त्म होता नहीं होता तब तक वर्ग एक वर्ग नहीं होता है. इसलिए राजा ढाले कम्युनिज् का विरोध करते थे. बाबा साहब अम्बेडकर भी बोलते थे कि मैं जन्म से कम्युनिस्ट हूँ. माओवादी विचार, मारपीट करने का विरोध राजा ढाले करते थ. ढसाल भी अम्बेडकराइट ही थे ,लेकिन उनके संबंध थोड़े कम्युनिस्ट लोगों के साथ थे, इसलिए राजा ढाले इनलोगों पर कम्युनिस्ट हैं, ऐसा आरोप करते थे. राजा ढाले का दलित शब्द से ऐसा कोई विरोध नहीं था, क्यूंकि राजा ढाले दलित पैंथर मूवमेंट के संस्थापकों में से एक हैं.
लेकिन वही आश्चर्य है कि अभी शायद एक मुकदमा भी है. नागपुर हाई कोर्ट में मुकदमा है, दलित शब्द को हटाने का एक जनहित याचिका है. वहां सरकार भी आई है कि हम शेड्यूल कास्ट कहेंगे? एक प्रोफ़ेसर हैं हमारे, प्रोफ़ेसर एल कारुण्यकारा वे इस मुकदमे में दलित शब्द के पक्ष में हस्तक्षेप कर रहे हैं.
नहीं दलित शब्द कैसे ख़त्म होगा. हरिजन शब्द ख़त्म हो गया ये ठीक बात है, सरकारी रिकॉर्ड से हरिजन निकल गया है.
लेकिन दलित शब्द नहीं होना चाहिए ऐसा आपका मानना है?
नहीं दलित शब्द तो होना ही चाहिए दलित का अर्थ तो लोग समझते हैं कि दलित का मतलब शेड्यूल कास्ट. लेकिन हम बोलते हैं दलित का मतलब सभी कष्ट करने वाले लोग, झुग्गी-झोपडी में रहने वाले लोग, गरीब लोग बेरोजगार लोग महिला, पिछड़े अल्पसंख्यक सब दलित हैं.
झुग्गी-झोपडी में कुछ ऊंची जाति के लोग भी रहते हैं तो आप उनको भी दलित कहेंगे?
ऊंची जाति के लोग भी रहते हैं तो गरीब हैं, अभी ऐसा है.बाबा साहब को लीजिये कि बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान लिखा और जो पहला इलेक्शन हुआ 1952 में तो बाबा साहब अम्बेडकर नार्थ बोम्बे लोकसभा क्षेत्र से लड़े और बाबा साहब अम्बेडकर वहां हार गये, आल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडेरेशन की टिकट पर. फिर 54 में भंडारा से बोरकर नाम के एक दलित आदमी ने बाबा साहब को हराया. पंडारा से बाबा साहब अम्बेडकर खड़े हुए और कांग्रेस के बोरकर नाम के आदमी ने बाबा साहब अम्बेडकर को हराया. बोरकर मांग समाज के थे. फिर बाबा साहब ने विचार किया दो बार हारने के बाद कि हमें अभी रिपब्लिकन नाम की पार्टी स्थापित करनी चाहिए और उन्होंने एक पत्र लिखा राममनोहर लोहिया को. बाबा साहब का कहना ये था कि जिस तरह अमरीका, इंग्लेंड, जर्मनी, फ्रांस मं् और बहुत सारे यूरोपीय देशों में ‘टू पार्टी सिस्टम’ है. अपने देश में भी दो पार्टियाँ होनी चाहिए- एक पार्टी कांग्रेस पार्टी और दूसरी रिपब्लिकन पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी में सब लोगों को आना चाहिए. कांग्रेस के खिलाफ बना विचार था यह. बाबा साहब अम्बेडकर 54 के बाद थोडा नाराज हुए थे. उन्होंने थोड़ा धम्म के तरफ ध्यान दिया. बुद्ध धम्म पर किताब लिखी और 14 अक्टूबर 56 को बाबा साहब ने बौध धर्म की दीक्षा ले ली, फिर उसके बाद बाबा साहब अम्बेडकर की 6 दिसंबर 1956 को मृत्यु हो गयी. अगर बाबा साहब अम्बेडकर और दस साल अपने बीच होते तो उनकी उपस्थिति में रिपब्लिकन पार्टी स्थापित होती और यह पार्टी एक बार बाबा साहब के टाइम पर सत्ता में आती, जिस तरह जय प्रकाश नारायण के टाइम पर जनता पार्टी आई. बहुत आन्दोलन हुआ कांग्रेस के खिलाफ सब लोग इकठ्ठा आये और जनता पार्टी की सत्ता आ गई थी, वैसे ही बाबा साहब चाहते थे कि रिपब्लिकन पार्टी ऐसी होनी चाहिए. बाबा साहब अम्बेडकर गरीबों का सपोर्ट करते थे. बाबा साहब ने आल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडेरेशन इसलिए बर्खास्त करने का निर्णय लिया था कि खाली शेड्यूल कास्ट के वोट पर राजनीति में सफलता नहीं मिलेगी इसीलिए सब लोगों को साथ में लेना चाहिए.
अब ब्राह्मण लोगों का जहां तक सवाल है. बाब साहब के महार के चौहार तालाब का सत्याग्रह आंदोलन, काला राम मंदिर का सत्याग्रह, आदि उनके आंदोलनों में ब्राह्मण लोगों ने काफी सपोर्ट किया. केशव सीता राम ठाकरे, जो बाल ठाकरे के पिताजी थे, बाबा साहब का पूरा समर्थन करते थे. बाबा साहब के बड़े समर्थक चिटनिस, चित्रे, सहस्रबुद्धे आदि थे. बाबा साहब का कहना था कि मैं ब्राह्मण जाति का विरोध नहीं करता हूँ मैं ब्राह्मणवाद का विरोध करता हूँ. जहाँ-जहाँ मुझे ब्राह्मणवाद नजर आता है, जातिवाद नजर आता है उनका मैं विरोध करता हूँ. मैं व्यक्तिगत समाज का विरोध नहीं करता हूँ. बाबा साहब सब जाति को लेकर ही राजनीति करना चाहते थे.
यह बातचीत सामाजिक न्याय मंत्री (राज्य) रामदास आठवले से लम्बी बातचीत का हिस्सा है. पूरी बातचीत ‘द मार्जिनलाइज्ड’ प्रकाशन से प्रकाशित किताब ‘भारत के राजनेता: रामदास आठवले’ में संकलित है.
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