इन्डियन एक्सप्रेस से साभार |
बच्चों की पढाई धीरे-धीरे सरकारों की प्राथमिकता सूची से गायब होती जा रही हैं और बच्चा यदि गरीब परिवार से, दलित या आदिवासी हो तब तो उसे और भी उदासीनताओं का सामना करना पड़ता है. शिक्षा अब सरकारों के सरोकार से ज्यादा पूंजी उगाहने का निजी तन्त्र बन चुका है और पैसा उगाहने के तंत्र को सत्ता में बैठे लोग अपने निर्णयों से बढ़ावा दे रहे हैं. हालांकि देश की राजधानी के स्कूलों से अच्छी खबरें आ रही हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित और संचालित स्कूल निजी स्कूलों को मात दे रहे हैं और इसका वाजिब श्रेय आम आदमी पार्टी की सरकार को जाता है. लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में, जहां से विकास का ज्यादा शोर-शराबा है ख़बरें बेहद निराशाजनक और बुरी हैं.
फोटो अशोक कांबले |
करोड़ो के बारे-न्यारे और फिर स्कूल पर ताला
शानदार भवन किसी कॉलेज का नहीं है, बल्कि बच्चों के स्कूल का बना नया भवन है, जिसे बनते ही ताला डाल दिया गया और स्कूल किसी दूसरे स्कूल में मर्ज कर दिया गया. हाँ, महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में यह सरकार द्वारा संचालित ‘आदिवासीशाला’ का भवन है, जिसके निर्माण में करोड़ो खर्च हो गये, ठेकेदार को अपना हिस्सा मिला और दूसरों को अपना. फिर फरमान आया कि यह आश्रामशाला शिफ्ट किया जा रहा है. यह भवन वर्धा जिले के नवरगाँव का है. जिले के ही सिंडीविहरी सहित जिले और विदर्भ (हमारे पास अमरावती प्रकोष्ठ की सूची है) के दो दर्जन से अधिक स्कूल बंद किये जा रहे या किसी दूसरे स्कूल में शिफ्ट किये जा रहे हैं. वहीं महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में यह संख्या 50 से भी ऊपर है.
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शासकीय आदेश |
लोगों में आक्रोश
इन स्कूलों के शिफ्ट किये जाने पर स्थानीय जनता में भारी आक्रोश है. आदिवासी अभिभावक सवाल कर रहे हैं कि आखिर हमारे बच्चे कहाँ जायेंगे, वहीं वे दूसरा सवाल भी सरकार से दाग रहे कि जब इन स्कूलों को शिफ्ट ही करना था तो फिर इनके भवन निर्माण में आदिवासी विकास के पैसे खर्च क्यों और किसके इशारे पर किये गये. आदिवासी नेता अवचित सयाम कहते हैं कि ऐसे दर्जनों स्कूल के भवन बनाये गये और उन्हें या तो बंद कर दिया गया है या एक दूसरे में समायोजित किया जा रहा है. उनके अनुसार आदिवासी मद के पैसों का बंदरबांट करने के लिए अफसरों-नेताओं और ठेकेदारों की मिलीभगत से इन स्कूलों के भवन बने और बनते ही यहाँ पढाई बंद कर दी गयी.
स्कूलों की सूची |
अफसरों के बहाने
आश्रमशालाओं के संचालन का जिम्मेवार विभाग के अफसर इस मसले पर कई तर्क देते हैं. वे कहते हैं कि स्कूल बन गये तो कई स्कूलों के इलाके अभयारण्य में घोषित हो गये, इसलिए उन्हें शिफ्ट करना पड़ा तो कई स्कूल इसलिए एक समायोजित हो रहे हैं कि वहां बच्च्चे पढने नहीं आते. इन शालाओं के प्रशासन के सबसे बड़े अधिकारी महाराष्ट्र के आदिवासी कमिश्नर आर जे कुलकर्णी से जब इस बावत बात की गयी तो उन्होंने मामले को अमरावती जोन में असिस्टेंट ट्राइवल कमिश्नर की तरफ बढ़ा दिया, यानी उनसे बात करने की सलाह दे दी. हालांकि आदिवासी अभिभावक प्रतिप्रश्न पूछते हैं कि ‘क्या इलाकों का अभ्यारण्य घोषित होना कोई अचानक से लिया गया निर्णय है?’ वे कहते हैं कि विभागों में सम्बंधित फाइलें जब घूम रही होंगी तो सारे अफसर इस बात से अवगत थे लेकिन उन्हें आदिवासी मद का पैसा मिलजुलकर खाना था इसलिए उन्होंने बंद होने वाले स्कूलों के भवन बनवाये.
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निजी और संघ संचालित आश्रामशालायें
जहां सरकार का दायित्व है कि अपने स्कूलों में वह बच्चों को आकर्षित करे, उन्हें पढने के लिए प्रेरित करे वहीं वह स्कूलों को समायोजित करने के निर्णय ले रही है. राज्य की भाजपा सरकार का कहर इन स्कूलों पर निजी स्कूलों और संघ संचालित स्कूलों में आदिवासी बच्चों को जाने के लिए प्रेरित करने का षड्यंत्र है. विदर्भ में कुल सरकारी आश्रम स्कूल (आदिवासी बच्चों के लिए ) 502 हैं और अनुदानित स्कूल 543, जो निजी हाथों में हैं या संघ के लोगों के नियन्त्रण में.
आदिवासी नेता सयाम कहते हैं ‘ संघ हमारे बच्चों को उनकी संस्कृति से दूर कर हिन्दू संस्कृति में ढालता है, उनके कच्चे मानस पर शबरी और निषादराज का त्याग समर्पण आदि के आदर्श भरे जाते हैं ताकि वह कथित रामराज्य के लिए मरे. वे पूछते हैं कि वे ‘एकलव्य का उत्पीडन क्यों नहीं पढ़ाते? संघ ‘एकल विद्यालय’ ‘वन बंधु परिषद’ आदि नामों से कई स्कूल आदिवासी इलाकों में चलाता है. धरनी में एक छात्रावास हेडगेवार के नाम से है, इस नाम से कई स्कूल संचालित हो रहे हैं. स्थानीय इलाकों में घूमने पर बजरंग दल की सक्रियता के कई प्रमाण मिलते हैं. एक आदिवासी कार्यकर्ता ने बताया कि भाजपा नेता नितिन गडकरी ने नागपुर में अपने जन्मदिन पर संघ के वैसे कार्यकर्ताओं के बीच पैसे बांटे जो इन इलाकों में स्कूल संचालित करते हैं और उनसे और भी स्कूल खोलने का आग्रह भी किया.
दो-दो बच्चों की ह्त्या फिर भी भाजपा की महिला नेता और स्कूल प्रबंधक को बचा रही मोदी-खट्टर सरकार
साभार google |
महाराष्ट्र में और भी स्कूल किये जा रहे बंद या समायोजित
किसान नेता अविनाश काकड़े ने बताया कि आदिवासी इलाकों के अलावा भी कई स्कूल बंद किये जा रहे हैं. सैकड़ो स्कूल पूरे महाराष्ट्र में या तो बच्चों की कमी के नाम पर बंद किये जा रहे हैं या समायोजित. वे कहते हैं इन सरकारी स्कूलों में गरीब परिवारों के बच्चे किसानों के, दलितों के आदिवासियों के बच्चे पढ़ते हैं. स्कूल के इलाकों के बच्चों को पर्याप्त व्यवस्था न देकर स्कूल बंद करना सबके लिए शिक्षा की नीति पर प्रहार करता है.
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