स्मृति जी कंडोम के विज्ञापन वल्गर तो डीयो के संस्कारी कैसे?



श्वेता यादव


अष्टभुजा शुक्ल की लाइनें हैं एक हाथ में पेप्सी कोला दूजे में कंडोम, तीजे में रमपुरिया चाकू चौथे में हरिओम, कितना ललित ललाम यार है, भारत घोड़े पर सवार है. देखा जाए तो भारत सही में ललित ललाम ही हुआ जा रहा है. यहाँ जिन चीजों पर रोक लगनी चाहिए, जिन मामलों में कड़े कदम उठाने चाहिए उन पर कदम नहीं उठाये जाते या फिर उठाये जाते हैं तो उनका पालन नहीं हो पाता और जिन चीजों की आवश्यकता नहीं या कम है उन पर कड़े क़ानून बनाए जाते हैं और उनका पालन भी किया जाता है.

क्या है पूरा मामला?


सरकार ने सोमवार कंडोम को प्रमोट करने वाले विज्ञापनों को लेकर टीवी चैनलों को निर्देश जारी किया. सरकार का कहना है कि उसने ऐसा बच्‍चों के लिए स्‍वस्‍थ माहौल और विकास को देखते हुए किया कि टीवी चैनलों पर कंडोम के विज्ञापन केवल रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक ही चलाए जाएंगे. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालयकी तरफ से जारी एडवाइजरी में कहा गया है कि, ‘कंडोम के विज्ञापन सुबह छह से रात 10 बजे के बीच नहीं दिखाए जाएंगे, ताकि बच्चों को इनसे दूर रखा जा सके. साथ ही 1994 के केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जा सके.’  नियमों के उलंघन पर कार्यवाही का प्रावधान है.

मंत्रालय ने कहा कि कंडोम के ऐसे विज्ञापन का प्रसारण न किया जाए जो बच्‍चों की मानसिकता को प्रभावित करें. मंत्रालय ने ऐसा लोगों की शिकायत पर किया है कि कुछ टीवी चैनल विशेषकर बच्चों के लिए, कंडोम के विज्ञापन दिखा रहे हैं. मंत्रालय ने केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमावली के नियम 7(7) का हवाला दिया है। इसमें कहा गया है कि कोई भी केबल सेवा प्रदाता ऐसे विज्ञापन का प्रसारण नहीं कर सकते जिससे बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ती हो या गलत व्यवहार के प्रति उनमें रुचि पैदा हो अथवा जिनमें उन्हें भीख मांगते हुए, अभद्र या अपमानजनक परिस्थितियों में दिखाया गया हो.

कंडोम से इतना डरते क्यों हैं?


ताजा मामला कंडोम को बैन करने को लेकर है. खबर पर बात करने से पहले, इस बात पर बात जरूरी है कि आखिर कंडोम पर बैन क्यों? कंडोम का नाम लेते ही लोगों को सांप सूंघ जाता है कोई भी खुल कर इस बारे में बात करना नहीं चाहता. हम जनसँख्या बढ़ा सकते हैं पच्चीस बच्चे पैदा करके उस पर बधाई ले और दे सकते हैं लेकिन कंडोम पर बात नहीं कर सकते. हम खुले में शौच तो बड़े आराम से कर लेते हैं लेकिन खुले में कंडोम पर या सेक्स पर बात नहीं कर सकते. आखिर क्यों? इसका कुछ हद तक जवाब है हमारे समाज और उसकी सामजिक संरचना. यहाँ सेक्स पर बात करना लगभाग बैन ही है. यहाँ बलात्कार होते हैं बड़े पैमाने पर होते हैं यहाँ तक की लड़कियां खुद के घर तक में सुरक्षित नहीं हैं. लेकिन सेक्स पर बात करने वाला चरित्रहीन हो जाता है. जहाँ इस देश में गर्भपात कानूनन अपराध हैं वहीं कानूनों की अनदेखी करते हुए यहाँ खुलेआम गर्भपात होते हैं. इन गर्भपातों में सबसे ज्यादा संख्या में होने वाले गर्भपात कन्या भ्रूण हत्या और दूसरे नंबर पर अनवांटेड चाइल्ड के लिए करवाए जाते हैं. अब बड़ा सवाल यह है कि ये आनचाहा गर्भ ठहरने की आखिर वजह क्या है? वजह साफ़ है या तो लोगों को सुरक्षा के उपाय पता नहीं हैं या फिर वे अपनाना नहीं चाहते.



 फिमेल कंडोम पर कोई विज्ञापन क्यों नहीं? 


पिछले दिनों बिग बॉस के एक एपिसोड में हिना खान और शिल्पा दूसरी प्रतिभागी सपना चौधरी को ये बताती हैं कि सिर्फ मेल कंडोम ही नहीं होता बल्कि फिमेल कंडोम भी होता है. सपना उनकी बातों पर हैरान थी क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि फिमेल कंडोम भी होता है, सपना के साथ मैं भी हैरान होती रही कि क्या सच में फिमेल कंडोम होता है और फिर शुरू हुआ गूगल . यह बहुत आश्चर्य की बात नहीं है कि सपना और मेरी जैसी तमाम लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें फिमेल कंडोम के बारे में पता ही नहीं है. अब सवाल है आखिर क्यों? क्यों नहीं पता है तो जवाब बहुत सीधा सा ही होगा कि जानकारी नहीं है. आप खुद सोचिये मेल कंडोम के बारे में न जाने कितने विज्ञापन हैं जो जानकारी देते हैं लेकिन क्या कोई एक विज्ञापन है जो फिमेल कंडोम के बारे में हो? मुझे तो याद नहीं पड़ता आपको याद हो तो बताइयेगा. आखिर यह भेदभाव क्यों यह समझने की जरूरत है शायद इस एक छोटी बात को समझ लेने से आपको भारतीय समाज की संरचना भी समझ में आ जाए.


 कंडोम बंद किया तो फिर डीयो क्यों नहीं 


चलिए एक मिनट को मान लेते हैं कि कंडोम के विज्ञापन गलत हैं और उन्हें बंद करना चाहिए तो फिर कंडोम ही क्यों डीयो के विज्ञापन क्या सरकार ने नहीं देखे हैं? खासकर मेंस डीयो के विज्ञापन जिनमें ज्यादातर विज्ञापन यही दिखाते हैं कि जैसे ही लड़का डीयो लगाता है लड़की नहीं “लड़कियां” उस पर मरने लगती हैं क्या यह समाज के पतन का कारण नहीं है. क्या इससे सामजिक संस्कार और नैतिकता प्रभावित नहीं होते. बंद करना ही है तो फिर उन विज्ञापनों को भी बंद करना चाहिए जो सीधे सीधे लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देते हैं और स्त्री को बाजार में उपभोग या वस्तु के रूप में प्रचारित करते हैं. अगर इस लिहाज से देखें तो हकीकत यही है कि आधे से अधिक विज्ञापनों को बंद कर देना चाहिए. और सिर्फ विज्ञापन ही क्यों टीवी पर आने वाले कम से कम दर्जन भर सीरियल्स ऐसे हैं जो न सिर्फ बच्चों पर बल्कि बड़ों पर भी बुरा असर डाल रहे हैं. उदाहरण के लिए कुछ दिन पहले सोनी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक “पहरेदार पिया की” बात करें जिसमें एक बच्चा  अपने से दुगनी उम्र की लड़की को प्रेम करता है और फिर उससे उसकी शादी भी हो जाती है, तो क्या वह धारावाहिक बच्चों के मन पर बुरा प्रभाव नहीं डाल रहा था. हालांकि तमाम विरोध के बाद सीरियल बंद हुआ लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इसके लिए सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई. इस धारावाहिक के अलावा भी न जाने कितने ऐसे सीरियल है जो खुलेआम सरकारी नियमों का उलंघन कर रहे हैं फिर ऐसी कहानियों पर रोक क्यों नहीं?


ऐतराज इस बात से है कि एड को बंद करने की जरूरत क्या है? हाँ यह सच है कि अभी जिस तरह के कंडोम के एड दिखाए जा रहे हैं उनके कंटेंट अवेयरनेस कम और वल्गेरिटी ज्यादा फैलाते हैं तब भी सवाल वही उठता है कि इसको रोकने के लिए एड पर बैन की जरूरत है या फिर कंटेंट फ़िल्टर करने की जरूरत है?


 सरकार ने खुद किया था शुरू


एक और जरूरी बात आज सरकार जिस एड को यह कह कर बंद कर रही है कि इससे समाज का नैतिक पतन हो रहा है उसे एक समय में जागरूकता अभियान के अंतर्गत शुरू करने वाली भी सरकार ही है. इन एड को बंद करने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि कंडोम के एड परिवार के साथ बैठ कर देखने लायक नहीं है तो सिर्फ एक सवाल आज के जमाने की एक पिक्चर ऐसी बता दीजिये जो परिवार के साथ बैठ कर देखी जा सकती हो छोड़िये फिल्म की बात आजकल तो सीरियल्स में भी बेड सीन,  चपिचपा आशिकी के सीन खुलेआम फिल्माए जा रहे हैं, उन पर सरकार कोई एक्शन क्यों नहीं ले रही?  क्या वे क़ानून के दायरे से बाहर आते हैं?  एक आखिरी बात भारत एक ऐसा देश है जहाँ सरकार को लोगों को यह तक बताना पड़ता है कि खुले में शौच मना है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है वहां सरकार अगर प्राइम टाइम जोन में अवेयरनेस के एड मसलन गर्भनिरोधक गोलियां, कंडोम ये सब बैन कर देगी तो वह लोगों को जागरूक कैसे करेगी? इस पूरे मुद्दे पर बात करते हुए हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि अनियमितताओं के इस देश में हजारों की जनसँख्या ऐसी है जो मजदूर वर्ग से आते हैं और उनके लिए मनोरंजन के कुल मिला कर दो ही साधन है पहला टीवी और दूसरा सेक्स और इस चक्कर में वह तमाम बच्चे पैदा करते हैं. उनके पास टीवी भी देखने का सीमित समय होता है वह है प्राइम टाइम ऐसे में अगर इसी समय पर इस तरह के एड पर बैन लगा दिया जाता है तो फिर इस वर्ग के पास अवेयरनेस का क्या माध्यम बचेगा?

इस देश में बलात्कार पर रोक नहीं लेकिन कंडोम पर रोक

अगर आंकड़ों की माने तो भारत एक ऐसा देश है जहाँ यौन अपराधों में सबसे ज्यादा अपराधी नाबालिग होते हैं. एक बार फिर आंकड़े की बात करें तो भारत का आज का युवा 14-16 साल की उम्र तक सेक्स कर चुका होता है अब इन आकड़ों के आधार पर बात करें तो यह बैन किसे बचाने के लिए है. यह इंटरनेट का युग है सो काल्ड मार्डन युग जहाँ इंटरनेट के माध्यम से आप कुछ भी देख सकते हैं कुछ भी सीख सकतें हैं ऐसे में सिर्फ टीवी पर कुछ समय के लिए एड को बंद करके सरकार क्या बदल लेगी? उलटे इस बैन के बाद अब उत्सुकता वश और भी ज्यादा लोग उन विज्ञापनों को सर्च करके देखेंगे जिन्हें बैन किया जा रहा है. क्योंकि कहते हैं ना जिस चीज को जितना छिपाया जाता है वह उतना ही उत्सुकता का विषय बनती है. इसमें कोई शक नहीं कि कंडोम के कुछ विज्ञापन सच में देखने लायक नहीं हैं क्योंकि उनमें वास्तविक मैसेज कहीं खो जाता है और सिर्फ शरीर की नुमाइश बचती है. लेकिन सरकार को यह देखना होगा कि ऐसे कंटेंट पर रोक लगाए ना कि अवेयरनेस पर.

साभार :- टेढ़ी उंगली


स्त्रीकाल का प्रिंट और ऑनलाइन प्रकाशन एक नॉन प्रॉफिट प्रक्रम है. यह ‘द मार्जिनलाइज्ड’ नामक सामाजिक संस्था (सोशायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड) द्वारा संचालित है. ‘द मार्जिनलाइज्ड’ मूलतः समाज के हाशिये के लिए समर्पित शोध और ट्रेनिंग का कार्य करती है.
आपका आर्थिक सहयोग स्त्रीकाल (प्रिंट, ऑनलाइन और यू ट्यूब) के सुचारू रूप से संचालन में मददगार होगा.
लिंक  पर  जाकर सहयोग करें :  डोनेशन/ सदस्यता 

‘द मार्जिनलाइज्ड’ के प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें :  फ्लिपकार्ट पर भी सारी किताबें उपलब्ध हैं. ई बुक : दलित स्त्रीवाद 
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles