शोध-सारांश
अब तक के समय में जहां भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है वहीं कुछ समस्याएं आज भी जस की तस बनी हुई हैं। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण समस्या है अनियंत्रित जनसंख्या। देश के सम्पूर्ण विकास में जहां मृत्यु दर का ह्रास हुआ है वहीं जन्म दर पूर्ववत बना हुआ है। बेहतर स्वाथ्य और भोजन प्राप्ति से लोगों की प्रजनन क्षमता बढ् गई है इस प्रकार उच्च जन्म दर व निम्न मृत्युदर के कारण जनसंख्या विस्फोट की समस्या सम्मुख आ खड़ी हुई है। इस जनसंख्या विस्फोट ने कई अन्य समस्यााओं को जन्म दिया, जैसे- निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, आवास, कुपोषण आदि। जनसंख्या वृद्धि को मानवीय समाज के सम्मुख प्रस्तुत सभी समस्याओं जैसे तापमान में असंतुलन, पर्यावरणीय गिरावट, जातीय प्रतिस्पर्धा, व्यासपक स्तर पर फैल रही गरीबी और भुखमरी आदि के अलावा आर्थिक विकास दर में कमी, राजकीय समाज कल्याण क्षमता में कमी, तथा लोगों का जीवन स्तर सुधरने की दिशा में मुख्य बाधा के रूप में मना जाता है।
काहिरा सम्मेमलन में विश्व के 180 देश शामिल हुए थे। इन सभी ने मिल कर इस पर चिंता जताई थी कि प्रतिवर्ष 9 करोड़ लोग दुनिया में बढ़ रहे हैं। इसकी रोक-थाम के लिए परिवार-नियोजन को अपनाने पर जोर दिया गया था। दुनिया की आबादी ना बढ़े इसके लिए जिन साधनों का उपयोग किया जाएगा उन पर 17 अरब डॉलर खर्च किए जाने की घोषणा की गई थी। रॉयल सोसायटी द्वारा प्रकाशित एक अन्य रपट में कहा गया है कि इस पृथ्वी पर लम्बे समय तक जीवन बनाए रखने के लिए जितनी आबादी होनी चाहिए उससे हमारी आबादी इस समय हजार गुना ज्यादा है।
प्रस्ताावना
उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर दादरी में मोहम्मद उमर अपनी पत्नी आसिया के साथ रहते हैं। सरकार द्वारा या गैरसरकारी एजेंसियों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के संदेशेा की इन्होंने बारहाअनदेखी की या गमभीरता से नहीं लिया। इनके 24 बच्चे हैं। आसिया बेगम को जहां तक याद है उन्होंने 29 बच्चों को जन्म दिया। जिसमें से चार बच्चे चल बसे। पिता उमर का कहना है कि मेरे सारे बच्चे कामकाज में लगे हैं। परिवार चलाने में भी कोई परेशानी नहीं होती। वहीं आसिया बेगम कहती हैं कि ‘’ हमारे इस्लाप में जनसंख्या निंयंत्रण के साधनों का इस्त माल करने की मनाही है।‘’ वह कहती हैं ‘’ऑपरेशन करना पाप है। यदि मैं ऑपरेशन कराती हूं तो मरने के बाद मेरी कब्र पर कोई प्रार्थना नहीं की जाएगी।‘’
यह अकेला ऐसा उदाहरण नहीं है, ऐसे लाखों उदाहरण हमें मिल जाएंगे जहां आम मुसलमान आंध-आस्था ग्रस्त है। इसका निवारण तभी हो सकता है जब मुस्लिम समुदायों में परिवार-नियोजन के प्रति जागरूकता फैलाई जाए। यही भ्रांतियां मुसलमानों की तरक्की में अवरोधक साबित होती हैं।
वास्तव में अरबियन समाज को कभी बर्बर समाज की संज्ञा दी जाती थी। यहां तमाम छोटे-छोटे कबीले थे, जिनकी स्थिति काफी चिंताजनक थी। वहां ऐसी प्रथा थी कि गरीब अरब कबीलों में लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था। चूंकि लड़के कमाने वाले होते थे इसलिए उनकी रक्षा की जाती थी। इन कबीलों में लड़कियों को बचाना भी एक कठिन समस्या थी। उसी युग में ये आयत उतरी—‘’ कत्ल न करो, हम उसको भी रोजी देते हैं, तुमको भी देते हैं’’ यह आयत संतान के कत्ल’ यानि लड़की को कत्ल करने के संबंध में उतरी थी न कि गर्भ-निरोध के बारे में।
विभिन्न धर्मों में परिवार-नियोजन
परिवार की नैतिकता को लेकर सभी धर्मों में भिन्न– भिन्न विचार हैं। रोमन कैथोलिक चर्च कुछ मामलों में केवल प्रकृतिक परिवार नियोजन को स्वीाकार करता है। हालांकि कैथेलिकों की एक बड़ी संख्या जो विकसित देशों में निवास करती है परिवार नियोजन के नए साधनों को स्वीकार करती है। प्रोटेस्टेंट में कई तरह के विचार हैं। यहूदी धर्म के विचार कठोर रूढि़वादी सम्प्रदाय से अधिक शिथिल सुधारवादी सांम्प्रदाय तक विविधतापूर्ण हैं। हिंदू सांम्प्रदाय में दोनो प्रकार के उपायों को माना जाता है। वहीं इस्लाम में गर्भनिरोधक को तभी तक समर्थन है जब तक उसमें स्वास्थय के लिए खतरा ना हो। कुरान गर्भ-निरोध की नैतिकता के बारे में कोई विशिष्ट कथन प्रस्तुत नहीं करता। प्राय: इसमें ऐसे कथन शामिल हैं जो बच्चे पैदा करने को प्रोत्साहन देते हैं।
हालांकि इसके पीछे कारण कुछ और ही थे। कहीं न कहीं ये विचार ही पूर्णतः: स्वांर्थपरक था। अध्ययनों से ऐसा लगता कि इसके पीछे कुछ राजनीतिक कारण भी शामिल थे। जो इस प्रकार थे-
राजनीतिक कारण
चूंकि उस दौर में इस्लाकम का विस्ताकर कम या न के बराबर था इस्लािम अपने निर्माण के दौर में था, अत: अपनी संख्याे बढ़ाने के लिए या अपनी उम्म त को बहुमत में लाने के लिए मोहम्मंद ने जनसंख्या: बढ़ाने का अहवान किया और अधिक संतान जनने की अपील की। यही कारण है कि इस्लामी देशों में भी परिवार-नियोजन का बहिष्कारर किया जा रहा है। मसलन पिछले दिनों ईरान के इमाम खुमैनी एवं राष्टवपति अहमद नियाज ने एक वक्तव्य जारी कर कहा कि ‘ईरान में मुस्लिम जनसंख्या तेजी से घट रही है। इसलिए ईरानियों को चाहिए कि कम से कम 9 से 10 बच्चे पैदा करें। इतना ही नहीं मौका पड़ने पर बहु-विवाह भी करें। जीवन स्तर बनाए रखने के लिए जो रिवाज चल निकला है उसे तुरंत समाप्त करें और इस बात की चिंता छोड़ दें कि उनका लालन-पालन कैसे होगा। आने वाली संतानों की चिंता मां-बाप को नहीं बल्कि उस ईश्वर को करनी है जिसकी आज्ञा से उन्होंने धरती पर जन्मा लिया है।’
हालांकि ईरान में शाह के शासन में इस बात की मान्यता थी और प्रचार-प्रसार किया जाता था कि अपना जीवन स्तर उंचा बनाए रखने के लिए छोटा परिवार अत्यंत आवश्यक है किंतु अब ईरानी नेताओं का कहना है कि यह सिद्धांत भ्रामक और इस्लाम विरोधी है। यहां तक कि विश्वा स्तर का मुस्लिम संगठन ‘’उम्माल’’ भी इस विचार को प्रचारित कर रहा है कि मुसलमानों की संख्या घट रही है जो अपने आपमें एक खतरनाक संकेत है। यदि ईश्व रीय संदेश जो कुरान का संदेश है, की अवहेलना की गई तो इस्लाम के साथ-साथ मुस्लिम साम्राज्य भी खतरे में पड़ जाएगा। अत: वर्तमान में परिवार-नियोजन की जो संकल्पना है वो हदीस व कुरान विरोधी है।’
पाकिस्तान की स्थिति भी इससे मिलती-जुलती है। पाकिस्तान के एक कंडोम ‘’जोश’’ को अनैतिक घोषित कर दिया गया। ‘’जोश’’ को पाकिस्तांन में अमरीका का एक गैर-लाभकारी संगठन चलाता था। यह संगठन परिवार-नियोजन और एड्स से बचने के बारे में जागरूकता का काम करता था। देश के इलेक्टरानिक मीडिया नियामक प्रधिकरण पी एम आर (पेमरा) ने सभी टेलिविजिन के चैनलों केा यह निर्देश दिया गया कि वह ‘’जोश’’ का प्रचार-प्रसार बंद करें। पेमरा के प्रवक्ता फखरूददीन मुगल के ब्रॉडकास्टाटर्स एसोसिएशन को भेजे गए पत्र में कहा गया कि ‘’ यह विज्ञापन अश्लील है। अनैतिक है। यह हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक मान्य ताओं के पक्ष में नहीं है।
इसी प्रकार फिलिस्तीन में यासर अराफात ने 12 बच्चों को जन्म देने का आग्रह किया। जिसमें दो पर परिवार का दायित्व हो तथा दस इस्राईल के विरूद्ध संघर्ष करें। आज भी एक फिलिस्तीनी महिला औसतन चार बच्चों को जन्म देती है। वहीं यहूदी परिवार में 7 से 8 बच्चे् जन्म लेते हैं। फिर भी मुस्लिम विद्वानों का मत है कि सारी दुनिया में मुसलमानों की संख्या कम हो रही है। यदि विशाल क्षेत्र वाले हिस्से पर मुसलमानों का अपना अधिकार ही न होगा और अधिकतम भाग पर बाहर वाला आ कर उस पर काम करेगा तो उसकी मिल्कियत कितने समय तक रहेगी। इस्लाामी विद्वान मानते हैं कि इनकी जमीन पर इनका ही कब्जा होना चाहिए। क्योंकि उनकी जमीन अगर किसी और के हाथों में चली जाएगी तो उनका अस्तित्वत कहां रह जाएगा।
इन्हीं का अनुसरण करते हुए भारतीय मुसलमानों में भी परिवार-नियोजन के प्रति कोई रूचि नहीं है। हालांकि तरक्की पसंद मुस्लिम समाज का नजरिया अलहदा है। प्रतिष्ठित साहित्यीकार हसन जमाल कहते हैं कि ‘’ कुदरत का उसूल है कि ताकत का मुकाबला ताकत से किया जाए, चाहे वो किरदार की ही ताकत क्यों न हो।‘’ महात्मा गांधी ने सूरज न डूबने होने वाली ब्रितानी ताकत का मुकाबला अहिंसा से किया। मुसलमानों को उनसे सबक लेना चाहिए। आबादियों की वृद्धि से ताकतों का मुकाबला नहीं किया जा सकता। उसके लिए दूसरे स्तरों पर मजबूत होना पडे़गा। कभी मुसलमान इल्मा, हिकमत, सांईस हर मामले में गोरी कौमों से आगे बढ़ रहे थे किंतु आज वे काफी पिछड़ चुके हैं। दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी देश हैं जहां परिवार-नियोजन को लेकर सकारात्मक अवधारणएं भी हैं। इजिपट में हर शुक्रवार को नमाज के बाद इमाम को परिवार-नियोजन के लाभ पर अपना व्या्ख्यान देना होता है। मलेशिया में परिवार-नियोजन का उलंघन करने वाले को फौजदारी कानून के अंतर्गत दण्डित करने का प्रावधान है। बंगलादेश, इंडोनेशिया, थाईलैण्ड, और ईरान में परिवार-नियोजन की मुहिम एशियाई बैंक के माध्यम से चलाई जाती है। इंडोनेशिया में राष्टीय परिवार-नियोजन बोर्ड परिवार-नियोजन के कार्यक्रमों का संचालन करता है।
असम में गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में सर्जरी के प्रो. इलियास अली ने मुसलमानों के जेहन से परिवार-नियोजन निषेध की जो धारणा है उसे बदलने की मुहिम छेड. रखी है। इसके लिए वह बाकायदा कुरान की आयतों का हवाला देते हुए कहते हैं कि परिवार-नियोजन इस्लाहम में हराम नहीं है या कुरान परिवार नियोजन के खिलाफ नहीं है। डॉ. इलियास गांव-गांव जाकर मुसलमानों केा इसके प्रति जागरूक बना रहे हैं और बता रहे हैं कि इस्लाम एक अनूठा धर्म है जिसमें आबादी पर काबू पाने के तौर तरीकों का ब्योरा भी है जिसे ‘’अजाल’’ कहा जाता है। इसी के आधार पर ईरान में परिवार-नियोजन अपनाया जा रहा है और इसकी जवाबदेही धर्मगुरूओं को सौंपी गई है। ये ईरानी दम्पितयों के बीच कुरान की आयतों की सही व्याख्या कर लोगों को परिवार-नियोजन के लिए प्रेरित करते हैं।
इस प्रकार ये स्पष्ट है कि परिवार-नियोजन के खिलाफ फैलाई जाने वाली धारणा नितांत व्यक्तिगत और स्वार्थ परक है। इसका धार्मिकता से कोई लेना-देना नहीं है। हां धर्म के आधार पर इस विचार को आम-जन तक पहुंचाना तथा उन पर लागू करना काफी आसान है इसी लिए इसे धर्म से जोड़ दिया गया है। इस अवधारणा को मुस्लिम धर्म गुरू, मुस्लिम नेता आदि अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार परिभाषित करते रहते हैं। अत: परिवार-नियोजन इस्लाम के खिलाफ है ये पूरी तरह मिथकीय और भ्रामक अवधारणा है।
इस्लामी साहित्य में परिवार-नियोजन की परिकल्पना
ऐसा माना जाता है कि कुरान के सिवा पैगम्बर मोहम्मद साहब के जीवन में भी ऐसी कुछ घटनाएं घटीं जिससे प्रतीत होता है कि वह परिवार-नियोजन के समर्थक थे। दाएमुल इस्लाम भाग दो के पृष्ठ 88 और 89 पर इब्नए ए अब्बाास का जिक्र करते हुए कहा गया है कि बडा कुटुम्ब गरीबी का प्रतीक होता है जबकि छोटा पविार सुखी होता है। काहिरा विश्वविद्यालय के कानून विभाग के अध्यक्ष शेख मो. इब्राहीम का कहना है कि यदि प्राचीन समय में गर्भ रोकने के लिए दवाएं और चीराफाडी होती थी तो फिर आज के समय में परिवार नियोजन पर किस तरह प्रश्न उठाया जा सकता है। शेख मोहम्मद अलमुबारिक अल अब्दुिल्ला अपने निबंध में लिखते हैं—“वास्तव में परिवार-नियोजन आज की दुनिया में धार्मिक समस्या न हो कर सामाजिक समस्या है”। इस लिए इस पूरे मामले पर सामाजिक दृष्टि से विचार करना चाहिए। इस्लाम के चार इमामों में एक इमाम गजाली ने अपनी पुस्तक “अहयाउल उलूम’’ को सिर्फ गर्भ-निरोधक पर ही केद्रित कर लिखा है।
इस्लाम में प्रतिबंधित परिवार नियोजन एक मिथकीय परम्परा है। इसका यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं है। मुस्लिम समाज में परिवार नियोजन को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। इसी कारण यह समाज काफी पिछडा तो है ही, जनसंख्या घनत्व का भी इस पर विपरीत असर पडता है।यही परिकल्पना इस अध्ययन का आधार है।
प्रस्तुयत शेाध अध्ययन के लिए 300 लोगों का चुनाव किया गया है। अध्य यन क्षेत्र वर्धा है। इन लोगों की औसत आयु 35 से 50 वर्ष तक है। इस शोध के अंतर्गत निम्न वर्ग, निम्न मध्ययम वर्ग तथा उच्च वर्ग के परिवारों का चयन किया गया है।
प्रस्तुत शोध में प्रथमिक तथा द्वितीय स्रोतों का प्रयोग किया गया है। प्रथमिक स्रोत के अंतर्गत प्रश्नावली का निर्माण किया गया है जिसमें परिवार नियोजन तथा जनसंख्या से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए हैं। द्वितीय स्रोत के अंतर्गत लिखित पुस्त्कों, समाचार पत्रों, शेाध प्रबंध इत्याबदि का अवलोकन किया गया है।
अनुसूची का विश्लेषण
1. आपके कितने बच्चे हैं ?
300 उत्तरदाताओं से पूछे गए प्रश्नों से ज्ञात हुआ कि 24 प्रतिशत के 1 से 2, 47 प्रतिशत के 3 से 4, 27 प्रतिशत के 5 से 6, 15 प्रतिशत के 7 से 8 तथा 5 प्रतिशत के 9 से अधिक बच्चे हैं। अत: स्पष्ट होता है कि सबसे अधिक 47 उत्तरदाताओं के 3 से 4 बच्चे हैं, तथा यह भी स्पष्ट होता है कि 300 उत्तरदाताओं में 15 प्रतिशत के 7 से 8 तथा 5 प्रतिशत लोगों के 9 से अधिक बच्चे हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मुस्लिम परिवार ज्याादा बच्चे करते हैं।
2. आपकी राय में कितने बच्चे होने चाहिए ?
300 उत्तरदाताओं में से 21 प्रतिशत का जवाब 2 बच्चेे, 13 प्रतिशत का 3 बच्चे, 25 प्रतिशत का 4 बच्चे तथा 41 प्रतिशत का जवाब था जितने खुदा दे दे, होने चाहिए।
3. आप बच्चों के भविष्य के बारे में किस तरह सोचते हैं ?
300 उत्त रदाताओं से पूछे गए प्रश्न आप बच्चें के भविष्य के बारे में किस तरह सोचते है से ज्ञात हुआ कि 16 प्रतिशत सब अल्लाह सोचता है एवं 77 प्रतिशत बच्चोंं का भविष्य अच्छा हो तथा 7 प्रतिशत जो किस्मत बना दे के फॉर्म में सोचते हैं।
4. क्या आप परिवार नियोजन के विषय में जानते हैं ?
300 उत्तरदाताओं में से 90 प्रतिशत परिवार नियोजन के बारे में जानते हैं तथा 10 प्रतिशत लोग परिवार नियोजन के बारे में अनभिज्ञ हैं। अत: स्पष्ट होता है कि परिवार नियोजन के बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं। परंतु अन्य प्रश्नों से ज्ञात मतों से यह भी साफ तौर पर स्पष्ट होता है कि परिवार नियोजन के बारे में जानते तो हैं परंतु उसे अपनाने में कोताही बरतते दिखाई प्रतीत होते हैं।
5. क्या परिवार नियोजन लाभदायक है ?
51 प्रतिशत उत्तरदाता परिवार नियोजन को लाभदायक समझते हैं एवं 5 प्रतिशत परिवार नियोजन को लाभदायक नहीं मानते तथा 44 प्रतिशत लोगों ने कह नहीं सकते के पक्ष में अपने मत दिए।
6. परिवार नियोजन से क्या जीवन स्तर में बदलाव आता है.
42 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मत है कि परिवार नियोजन अपनाने से मुस्लिम समुदाय के जीवन स्तर में बदलाव आ सकता है एवं 30 प्रतिशत लोगों ने कहा नहीं कोई बदलाव नहीं आएगा तथा 28 प्रतिशत लोगों ने पता नहीं के पक्ष में अपना मत दिया।
7.क्या आपको लगता है कि परिवार नियोजन अपनाना गुनाह या हराम है ?
300 उत्त रदाताओं में से 49 प्रतिशत लोगों का मानना है कि परिवार नियोजन अपनाना गुनाह या हराम है एवं30 प्रतिशत लोगों ने कहा कि नहीं परिवार नियोजन अपनाना हराम या गुनाह नहीं है, यह वक्त की मांग है तथा 21 प्रतिशत लोगों ने पता नहीं के पक्ष में अपना मत दिया। अत: स्पष्ट होता है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को परिवार नियोजन अपनाना हराम या गुनाह लगता है।
निष्कर्ष
निष्किर्ष के अंतर्गत यही कहा जा सकता है कि परिवार-नियोजन की अवधारणा पूरी तरह से राजनीतिक व अन्य निजी स्वावर्थों के कारणों से प्रेरित है । इस अवधारणा की महत्ता देश व काल व क्षेत्रियता के लिहाज से घटती व बढ़ती रही है। वास्तव में ये एक मिथकीय परम्परा है जिसे पूरी तरह से आम सहमति भी नहीं है।
संदर्भ-ग्रंथ सूची
1- मौदूदी, सैयद अबुल आला, पु. इस्लाम और बर्थ कंट्रोल, (2003) प्र. मर्कजी मक्त-बा इस्लाीमी पब्लिशर्स, नई दिल्ली
2- आजाद, फरजाना अमीन, पु. मुसलमान पुरूष: शोषक व पोषक ( 2005 ) प्र.संघ प्रकाशन, नागपुर
3- हुसैन, मुजफ़्फर, पु. जनगणना, इस्लाम और परिवार-नियोजन (2005) प्र.विश्व। संवाद केंद्, मुंबई
लेखिका अहिंसा एवं शांति अध्यनयन विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्री य हिंदी विश्वाविद्यालय में शोध छात्रा हैं. संपर्क: Email :-nihan073@gmail.com
तस्वीरें गूगल से साभार
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