प्रारम्भ इस लिंक से होता है: भारतीय संतों के हमेशा कुंडलिनी जागरण की तरह हमेशा सेक्स की समस्याओं में उलझे रहने वालों पर भी मैं अविश्वास करता हूं: लेनिन
तीसरी क़िस्त: सिवाय साम्यवाद के महिलाओं की मुक्ति संभव नहीं:लेनिन
एक पखवाड़े के बाद महिला आंदोलन को लेकर मेरी लेनिन से दूसरी बातचीत हुई। हमेशा की तरह, उनकी भेंट अप्रत्याशित और एक अनायास मुलाकात थी। एक विजयी क्रांति के महान नेता द्वारा किए जा रहे भारी-भरकम कामों के बीच मिले अंतराल के दौरान हुई। लेनिन बहुत थके हुए और चिंतित लग रहे थे। रैंगेल अभी खत्म भी नहीं हुआ था, बड़े शहरों को खाद्यान्न पूर्ति का प्रश्न, किसी निर्दयी स्फिंक्स की तरह सोवियत सरकार के समक्ष था। लेनिन ने पूछा, ‘धारणाएं कैसी बन रही हैं?’ मैंने उन्हें बताया कि एक बड़ी बैठक आयोजित की गई। जिसमें, मास्को में तब जितनी प्रमुख कम्युनिस्ट महिलाएं थी, वे आई। वहां उन्होंने अपने विचार रखे। थिसिसें तैयार है, जिन पर अब एक छोटी समिति में चर्चा होना है।
लेनिन ने सुझाया, ‘हमें कोशिश करना चाहिए कि इस समस्या की तीसरी विश्व कांग्रेस में व्यापक परीक्षा हो। सिर्फ सत्य ही हमारे कई साथियों के पूर्वाग्रह खत्म करेगा। किसी भी तरह, पहले कम्युनिस्ट महिलाओं को काम अपने हाथ में पूरी मजबूती से लेना होगा।
‘सिर्फ बातूनियों की तरह मत बतियाना! बल्कि जोर देकर और स्पष्टता से बोलना, जैसा कि एक लड़ाकू को करना चाहिए।’ लेनिन ने एक जीवंत निःश्वास छोड़ी।
‘कांग्रेस , एक ऐसी बैठक नहीं है जिसमें महिलाएं अपने आकर्षकता का प्रदर्शन करें, जैसा कि हम उपन्यासों में पढ़ते हैं। बल्कि कांग्रेस तो एक रणभूमि होती है। जिसमें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जो ज्ञान हमें चाहिए, उसके लिए हम लड़ते हैं। यह दिखा दो कि तुम संघर्ष कर सकती हो। पहले तो, बेशक अपने दुश्मनों से, फिर जरूरत हो तो पार्टी के भीतर भी। आखिर, ज्यादातर महिलाओं का जीवन दांव पर लगा हुआ है। हमारी रूसी पार्टी इन समुदायों को साथ लाने के लिए जिन प्रस्तावों, कामों से सहायता होगी, करेगी। यदि महिलाएं हमारे साथ नहीं आएंगी, तो क्रांति के विरोधी उन्हें अपने पक्ष में कर हमारे विरुद्ध करने में सफल हो जाएंगे। हमें यह बात हमेशा अपने दिमाग में रखना चाहिए।’
जैसा कि स्ट्रालसुंड कहता है, ‘यदि महिलाओं को स्वर्ग में भी जंजीरों से जकड़ कर रखा गया है, तो भी हमें उन्हें जीतना होगा।’ लेनिन के विचार के अनुसार मैंने कहा, ‘यहाँ, क्रांति के केंद्र में, इसके भरपूर आंदोलित जीवन, और मजबूत तेज धड़कनों के साथ कामकाजी महिलाओं के लिए एक संयुक्त अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का विचार मेरे दिमाग में आया है। इसकी सूझ, आपके विशाल पक्षपातहीन महिला अधिवेशनों और सम्मेलनों से मिली। हमें उन्हें राष्ट्रीय से अंतररार्ष्ट्रीय में बदलने की कोशिश करना चाहिए। यह एक सच्चाई है कि विश्व युद्ध और उसके प्रभावों ने समाज के विभिन्न वर्गों और तबकों की अधिकांश महिलाओं को गहरे तक हिलाकर रख दिया है। वे उत्तेजित हैं और गति में आ चुकी हैं। आजीविका सुरक्षित रखने की उनकी कष्टमय चिंता और जीवन के उद्देश्य की खोज ने उनकी मुठभेड़ ऐसी समस्याओं से करा दी है, जिनके बारे में अधिकतर ने पहले कभी सोचा तक न होगा, या बहुत थोड़े लोगों ने सोचा होगा। उनके प्रश्नों का समाधानकारक जवाब देने में बुर्जुआ समाज असमर्थ है। सिर्फ कम्युनिस्ट ही ऐसा कर सकते हैं। पूंजीवादी देशों की महिलाओं की व्यापक आबादी को हमें संवेदनशील और सचेत बनाना होगा। इसके लिए हमें एक पक्षपातहीन अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन करना चाहिए।’
लेनिन ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया। वे समस्या पर सोचते हुए गहरी सोच में डूब गए। उनके ओठ कस गए, जिससे निचला ओठ हल्का-सा बाहर लटक आया था। ‘हाँ, हमें यह करना होगा,’ अंततः वे बोले। ‘योजना अच्छी है। एक अच्छी, बल्कि बेहतरीन योजना भी बेकार रहती है यदि उसे ठीक से अंजाम न दिया जाए। क्या तुमने सोचा है कि इसे कैसे किया जाएगा? इस बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?’
मैंने विस्तार से अपने विचार लेनिन को बताए– ‘शुरुआत के लिए, हमें विभिन्न देशों की कम्युनिस्ट महिलाओं की एक समिति बनानी होगी, जिसका अपने देशों के समूहों से नजदीकी और लगातार सम्पर्क रहेगा। यह समिति सम्मेलन की तैयारी करेगी, संचालन करेगी और उनका उपयोग करेगी। यह तय करना होगा कि क्या शुरुआत से ही इस समिति का खुले और आधिकारिक तौर पर काम करना उपयुक्त होगा? किसी भी दशा में, इस समिति के सदस्यों का मुख्य काम हर देश की संगठित महिला कामगारों, सर्वहारा महिलाओं के राजनीतिक आंदोलनों, हर तरह के बुर्जुआ महिला संगठनों के नेताओं और अंततः प्रसिद्ध महिला चिकित्सकों, अध्यापकों, लेखकों आदि से सम्पर्क करना होगा। पक्षपातहीन आयोजन-समितियों का राष्ट्रीय स्तर पर गठन करना होगा। इन्हीं समितियों के सदस्यों में से एक अंतर्राष्ट्रीय समिति गठित करनी होगी, जो अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की तैयारी और आयोजन करेगी। उसके लिए समय, स्थान और एजेण्डा तय करेगी।
‘मेरे ख्याल से सम्मेलन में महिलाओं के नौकरियों और धंधों में आने के अधिकार पर चर्चा होना चाहिए। ऐसा करते समय बेरोजगारी, समान काम के लिए समान वेतन, आठ घण्टे के काम और महिलाओं की श्रम-सुरक्षा के कानून, मजदूर संघों का गठन, मां और बच्चे की सामाजिक देखभाल, घरेलू महिलाओं और माताओं की मुक्ति के लिए सामाजिक उपाय आदि-आदि प्रश्नों पर विचार करना होगा। इससे भी बढ़कर सम्मेलन के एजेण्डे में विवाह और परिवार कानूनों और राजनीतिक नियमों में महिलाओं की स्थिति पर बातचीत भी शामिल होना चाहिए।’
ये प्रस्ताव रखने के बाद मैंने यह बात विस्तार से रखी कि, ‘बैठकों और प्रेस में नियोजित प्रचार के जरिए, विभिन्न देशों में राष्ट्रीय समितियां इस सम्मेलन के लिए जमीन तैयार करेंगी। यह प्रचार, चर्चा में उठने वाली समस्याओं पर एक गंभीर अध्ययन की शुरुआत करने, इस सम्मेलन की तरफ और उससे साम्यवाद और कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के दलों की तरफ बड़ी तादात में महिलाओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए खास तौर पर महत्वपूर्ण है। इस प्रचार अभियान को हर स्तर की कामकाजी महिला तक पहुंचाना होगा। इसे हर संबंधित संगठन और महिलाओं की सार्वजनिक सभाओं से, सम्मेलन में हिस्सेदारी हेतु प्रतिनिधियों की उपस्थिति हासिल करनी होगी। ये सम्मेलन, बुर्जुआ संसदों से बिल्कुल अलग एक लोकप्रिय प्रतिनिधि गठन होगा।
‘कहना ना होगा कि शुरुआती काम में कम्युनिस्ट महिलाएं महज कारण नहीं होगी, बल्कि नेतृत्वकारी ताकत भी होंगी, जिन्हें हमारे ऊर्जावान विभागों की सहायता मिलेगी। जाहिर है कि यही बात अंतर्राष्ट्रीय समिति के काम, सम्मेलन के खुद के काम पर लागू होगी, यह उनके लिए बहुत उपयोगी होगी। कम्युनिस्ट थिसिसों और एजेण्डा में शामिल तमाम मुद्दों पर प्रस्तावों को सम्मेलन में भेजना चाहिए। उन्हें सावधान भाषा में तार्किकता और विद्वता से प्रासंगिक सामाजिक तथ्यों के साथ बनाया जाना चाहिए। इन थिसिसों पर कमिन्टर्न की कार्यकारिणी समिति में पहले ही बहस होकर पारित किया जाना चाहिए। कम्युनिस्ट निदान और नारे मुख्य आकर्षण होने चाहिए जिन पर सम्मेलन और लोगों का ध्यान केंद्रित हो। सम्मेलन के बाद उन्हें आंदोलन एवं प्रचार के द्वारा महिलाओं के व्यापक समूहों के बीच ले जाया जाना चाहिए, ताकि वे महिलाओं की अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाही के लिए निर्णायक बन सकें। यह कहना अतिआवश्यक है कि इन सबके लिए जरूरी शर्त यह है कि कम्युनिस्ट महिलाओं को सभी समितियों में और सम्मेलन में भी एक स्थिर और ठोस उपस्थिति के साथ रहना पड़ेगा। ताकि वे एक साथ, एक स्पष्ट और मजबूत योजना पर काम कर सकें।’
मेरे द्वारा उपरोक्त खुलासे के दौरान, लेनिन बीच-बीच में स्वीकार भाव से सिर हिलाते और कहीं-कहीं अपने विचार रखते रहे।
‘मुझे लगता है, प्रिय कॉमरेड कि तुमने मसले के मुख्य बिन्दुओं को राजनीतिक अर्थों और सांगठनिक दृष्टिकोण से गहराई से देखा है।’ वे बोले। ‘मैं पूरी तरह सहमत हूं कि वर्तमान स्थिति में ऐसा सम्मेलन कुछ ज्यादा हासिल कर सकता है। ये हमें महिलाओं की व्यापक संख्या, खासतौर पर विभिन्न धंधों और नौकरियों में काम कर रही महिलाओं, औद्योगिक महिला मजदूरों और घरेलू कामगारों, अध्यापकों और अन्य व्यवसायों में काम कर रही महिलाओं को जीतने का अवसर देता है, यह शानदार होगा। बड़े आर्थिक संघर्षों या राजनीतिक हड़ताल की सोचो! वर्गीय चेतना से सम्पन्न महिलाओं के सहयोग से क्रांतिकारी सर्वहारा को क्या ताकत मिलेगी! बशर्ते हम उनके दिल जीतने और उन्हें अपनी तरफ बनाए रखने के योग्य हों।
‘हमारी उपलब्धि शानदार और विशाल होगी। लेकिन निम्न प्रश्नों के बारे में तुम्हारा क्या कहना है? प्रभुत्वकारी शक्तियां शायद इस सम्मेलन के विचार पर बहुत अप्रसन्नता दिखाएं शायद उसे रोकने की कोशिश करे। हालांकि वे इसे क्रूरता से दबाने की हिम्मत नहीं दिखाएंगे। जो कुछ वे करेंगे, तुम्हें डराने वाला नहीं होगा। लेकिन क्या यह बात तुम्हें नहीं डराती कि समितियों या सम्मेलन में ही कम्युनिस्ट महिलाएं, बुर्जुआ और सुधारवादी प्रतिनिधियों की बड़ी तादाद और उनके बेशक अधिक अनुभव से हार नहीं जाएंगी? इसके अलावा, सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि क्या तुम्हें हमारे कम्युनिस्ट साथियों के मार्क्सवादी शिक्षण पर भरोसा है? क्या तुम निश्चिंत हो कि इस बिखराव में से एक ऐसा समूह तैयार किया जा सकता है, जो इस संघर्ष से सम्मान सहित बाहर निकल आए?’
जवाब में मैंने लेनिन से कहा कि, ‘प्रभुत्वशाली लोग सम्मेलन के विरूद्ध कार्रवाई करना पसंद नहीं करेंगे। इसके विरूद्ध किए गए षड़यंत्र या बुद्धू किस्म के हमले हमारे पक्ष में ही होंगे। गैर कम्युनिस्टों की अधिकता और अनुभव से हम कम्युनिस्ट, ऐतिहासिक भैतिकवाद की सामाजिक समस्याओं के अध्ययन और उन्हें समझने की वैज्ञानिक श्रेष्ठता से मुकाबला करेंगे। आखिर में हम मांग करेंगे कि रूस में सर्वहारा की क्रांति और महिलाओं की मुक्ति को पूरा करने के मूलभूत काम को पूरा किया जाए। हमारे कुछ साथियों की कमजोरियों और प्रशिक्षण की कमी को योजनाबद्ध तैयारियों और सामूहिकता द्वारा पाटा जा सकता है। इस मामले में मैं रूस की महिला कामरेडों से सर्वश्रेष्ठ पहलकदमी की अपेक्षा करती हूँ। वे हमारे व्यूह का लौह केंद्र बनाएंगी। उनकी संगत में मैं सम्मेलन के संघर्षों के मुकाबले कहीं ज्यादा खतरनाक मुठभेड़ों से जूझने की हिम्मत रखती हूं, चाहे हम हार
ही जाएं। यह तथ्य कि हमने संघर्ष किया, साम्यवाद खुलकर सामने आ जाएगा और इसका बड़ा प्रचारात्मक प्रभाव दिखेगा। सबसे बढ़कर यह हमें आगे के कामों के लिए शुरुआत देगा।’ लेनिन मुक्तभाव से हंसे।
‘तुम हमेशा की तरह रूस की महिला क्रांतिकारियों के प्रति उत्साहित हो। सच है, पुराना प्रेम भुलाया नहीं जाता। मैं सोचता हूं, तुम सही हो। एक अडि़यल संघर्ष के बाद की पराजय भी, एक उपलब्धि ही है। ये कामकाजी महिलाओं के बीच भविष्य की उपलब्धियों के लिए जमीन तैयार करेगी। सब कुछ सोचने के बाद यह ऐसा जोखिम है, जिसे उठाया जाना चाहिए। यह बेकार सिद्ध नहीं होगा। लेकिन जाहिर है कि मैं विजय की आशा करता हूं। यह हमारी शक्ति में पर्याप्त वृद्धि करेगा। संघर्ष के हमारे मोर्चे को व्यापक करेगा। उसकी किलेबंदी करेगा। यह हमारी कतारों में जीवन भर देगा। ऐसा हमेशा उपयोगी होता है। साथ ही यह सम्मेलन, बुर्जुआ और उनके सुधारवादी दोस्तों में भड़काव, बेचैनी, अनिश्चितता, विरोधाभास और टकराव बढ़ाएगा। कल्पना करो कि कौन ‘क्रांति के लकड़बग्घों’ के साथ बैठेगा और सब कुछ ठीक हुआ तो उनके नेतृत्व में विमर्श करेगा! वे
शाइडमैन, डिटमॉन और लेगिन के सर्वोच्च मार्गदर्शन में बहादुर, अनुशासित, सामाजिक जनवादी महिलाएं, पोप का आशिर्वाद लिए हुई, या लूथर को समर्पित धार्मिक क्रिश्चियन महिलाएं, सर्वोच्च न्यायाधीशों की बेटियां, राज्य के नवनियुक्त सभासदों की पत्नियां, अंग्रेज शांतिवादी और उत्कट फ्रेंच नारी मताधिकारवादी महिलाएं होंगी! यह सम्मेलन बुर्जुआ दुनिया की भगदड़ और सड़ांध दिखाने के लिए बाध्य है। उसकी आशाहीन स्थितियों का कैसा चित्र! सम्मेलन प्रतिक्रांति की ताकतों में विभाजन कर उन्हें कमजोर बनाएगा। दुश्मन की हर कमजोरी, उतनी ही मात्र में हमारी ताकत बढ़ाएगी। मैं सम्मेलन के पक्ष में हूं। तुम्हें हमारा भरपूर सहयोग मिलेगा। तो चलो शुरू हो जाओ। मैं तुम्हारे संघर्ष के लिए तुम्हें शुभकामना देता हूं।’
फिर हमने जर्मनी की स्थितियों, खासतौर पर पुराने स्पार्टावादियों और स्वतंत्र वामपक्ष के बीच आसन्न ‘एकता सम्मेलन’ पर बातें की। फिर लेनिन उस कमरे में, जिसे उन्हें पार करना था, काम कर रहे कुछ साथियों के साथ अभिवादनों का आदान-प्रदान करते हुए जल्दी-जल्दी वहां से चले गए। मैं बहुत आशाओं के साथ शुरुआती तैयारियां करने लगी। हालांकि सम्मेलन लड़खड़ा गया, क्योंकि जर्मनी और बुलगारियां की महिला साथियों ने इसका विरोध किया, जो कि उस समय सोवियत रूस के बाहर कम्युनिस्ट महिलाओं के सबसे बड़े आंदोलन की नेता थीं। वे सम्मेलन बुलाए जाने के एकदम विरुद्ध थी। जब मैंने लेनिन को इस बारे में सूचित किया, उनका जबाव था- ‘यह दुखद है, बहुत दुखद! इन साथियों ने महिलाओं की आशा को एक नया और बेहतर रूप देने और इस तरह उन्हें सर्वहारा के क्रांतिकारी संघर्ष में साथ लाने का एक शानदार अवसर गवां दिया है। कौन कह सकता है कि निकट भविष्य में ऐसा माकूल मौका फिर मिलेगा कि नहीं? जब लोहा गरम हो तभी उस पर चोट करनी चाहिए। लेकिन काम बचा रह गया है। तुम्हें उन महिलाओं तक पहुंचने की राह तलाशना है, जिन्हें पूंजीवाद ने घोर जरूरतों में फंसा रखा है। तुम्हें हर तरह से इसे देखना होगा। इस अनिवार्य काम को टाला नहीं जा सकता।
कम्युनिस्ट नेतृत्व के तहत संगठित कार्यवाही के बिना पूंजीवाद पर जीत हासिल नहीं की जा सकती, ना ही साम्यवाद की नीव ही रखी जा सकती है। इसीलिए निष्क्रिय पडे़ महिला समुदाय को अंततः गतिवान बनाना ही होगा।’
लेनिन के बिना क्रांतिकारी सर्वहारा ने एक वर्ष पूरा कर लिया है। इसने, उनके उद्देश्य की शक्ति को बता दिया है। इसने, नेता की महान प्रतिभा सिद्ध कर दी है। इसने यह बताया है कि नुकसान कितना बड़ा और अपूरणीय है। एक बरस पहले, जब लेनिन ने अपनी दूरदर्शी और भेदने वाली आंखें हमेशा के लिए मूंद ली थी, उस दुखद समय में जैसे दुख की बाढ़ आ गई थी। मैंने शोक मनाते कामगारों का अंतहीन प्रवाह देखा था, जो लेनिन की कब्र पर जा रहा था। उनका शोक, मेरा शोक है, लाखों का शोक है। मेरे नवजात दुःख ने मेरे भीतर, उस यथार्थ की, जिसने त्रसद वर्तमान को पीछे लौटा दिया था, अनेक स्मृतियां भर दी। मैंने फिर से उस प्रत्येक शब्द को सुना, जो लेनिन ने बातचीत के दौरान मुझसे कहे थे। मैं उनके चेहरे के हर बदलाव को देख रही थी। लेनिन के मकबरे से ध्वाजाएं उतारी जा रही थी। ध्वाजाएं, जो क्रांति के लड़ाकुओं के रक्त से भीगी हुई थी। जयपत्रें की मालाएं रखी जा रही थी। उनमें से एक भी अतिरिक्त नहीं थी और मैं, उनमें अपनी ये विनम्र पंक्तियां जोड़ती हूं।
भारत विज्ञान समिति द्वारा ‘महिलाओं के मुद्दे’ शीर्षक से प्रकाशित किताब से साभार. हिंदी में अनुवाद मनोज कुलकर्णी ने किया है.
तस्वीरें गूगल से साभार
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