प्रधानमंत्री को मारने की योजना वाले और बाबा साहेब के पोते और रिपब्लिकन नेता, प्रकाश अम्बेडकर को माओवादी बताने वाले पत्रों पर उठे रहे सवाल. नागपुर हाई कोर्ट के और ह्यूमैन राइट्स लॉ नेटवर्क से जुड़े एक वकील ने पत्र की भाषा के आधार पर कहा कि वे पत्र प्लांट किये गये हैं. पढ़ें पूरी खबर और क्या है वकील के दावे का आधार:
नागपुर के अम्बेडकरवादियों के अनुसार मीडिया में प्रसारित कथित नक्सलवादी पत्रों में डा. बाबा साहेब अम्बेडकर के पोते प्रकाश अम्बेडकर का भी नाम है, जो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है. पुलिस का टार्गेट होने से बचने के लिए नाम न छापने की शर्त पर कई अम्बेडकरवादियों ने बात की और कहा कि सरकार और राजनीतिक संगठन अपनी राजनीति के लिए बाबा साहेब के परिवार को भी बदनाम कर रहे हैं, जबकि सबको पता है कि बाबा साहेब के पोते प्रकाश अम्बेडकर रिपब्लिकन पार्टी के नेता हैं, नक्लवादी नहीं. इस बीच नागपुर हाई कोर्ट के एक वकील ने कई गंभीर सवाल उठाते हुए मीडिया में दिखाये जा रहे इन पत्रों को पुलिस द्वारा निर्मित बताया है. एक तबका तो इसे भाजपा के किसी समर्थक द्वारा लिखित पत्र भी बता रहा है. उसके अनुसार पत्र में ‘दो राज्यों की हार और 15 राज्यों में जीत’ वाले वाक्य संदेह पैदा करते हैं.
दरअसल मीडिया में कथित माओवादियों के पत्र प्रसारित किये जा रहे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरह की घटना दुहराने की बात की जा रही है. राजीव गांधी की तरह की घटना से तात्पर्य उसी अंदाज में ह्त्या से लगाया जा रहा है. इसके अलावा उन पत्रों में मुख्य विपक्षी पार्टी द्वारा कथित रूप से माओवादियों को फंड उपलब्ध कराने का जिक्र भी बताया जा रहा है. जाहिर है मीडिया के एक सेक्शन द्वारा इस अतिउत्साही प्रचार अभियान पार्ट सवाल उठने थे, उठ रहे हैं. यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है कि प्रमुख विपक्षी पार्टी को देश में सशस्त्र क्रान्ति और अशांति फैलाने में लिप्त बताया जाये,खासकर उसे जो संसदीय लोकतंत्र में मजबूती से यकीन करता हो.
ये पत्र कथित रूप से नागपुर, मुम्बई, दिल्ली से महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगाँव में होने वाली हिंसा को उकसाने के कथित जिम्मेवार लोगों की गिरफ्तारियों के बाद सामने आये हैं. पिछले 6 जून को दिल्ली से रोना विल्सन, नागपुर से एडवोकेट सुरेन्द्र गडलिंग, शोमा सेन, मुम्बई से विद्रोही पत्रिका के सम्पादक सुधीर ढवले और महेश राउत को महाराष्ट्र की पुलिस ने गिरफ्तार कर पुणे ले गयी. 1 जनवरी 2018 और उसके बाद भीमा-कोरेगाँव में हुई हिंसा के पूर्व पुणे में ‘यलगार परिषद’ आयोजित कर हिंसा को उकसाने के आरोप में इन्हें गिरफ्तार किया गया है. भीमा-कोरेगाँव में दलित कार्यकार्ता 1 जनवरी को शौर्य दिवस मनाते हैं क्योंकि वे अपनी दीनता के लिए जिम्मेवार पेशवा राज्य के खिलाफ अंग्रेजों की जीत में दलित सैनिकों की भूमिका को वे हर साल इसी रूप में याद करते हैं. उधर सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री (राज्य) और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा महाराष्ट्र के कद्दावर दलित नेता रामदास आठवले ने अम्बेडकरवादियों को नक्सली बता कर गिरफ्तार किये जाने की निंदा भी की है.
कहा यह भी जा रहा है कि यह सहज विश्वसनीय नहीं हो सकता है कि देश के प्रधानमंत्री की ह्त्या की योजना बन रही हो और इसकी खबर देश की खुफिया एजेंसियों की जगह एक राज्य की पुलिस को तब लग रही है जब किसी अन्य मामले में कुछ लोग गिरफ्तार किये गये हैं. विपक्ष सारी कवायद को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ऐसी साजिशों की कहानियाँ बनवाने का एक पैटर्न बता रहा और इसे प्रधानमंत्री की घटती लोकप्रियता से जोड़ रहा है. विपक्ष का आरोप है गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने ऐसी कहानियाँ प्रचारित करवाई थी. सवाल यह भी है कि पुलिस इन पत्रों को मीडिया में किस इरादे से लीक कर रही है.
इस बीच नागपुर हाई कोर्ट के एक वकील ने कई गंभीर सवाल उठाते हुए मीडिया में दिखाये जा रहे इन पत्रों को पुलिस द्वारा निर्मित बताया है. ह्युमन राइट्स लॉ नेटवर्क से जुड़े नागपुर के एडवोकेट निहाल सिंह ने कहा कि हम सब कई मामले न्यायालयों में देखते हैं, उनके चार्जशीट पढ़ते हैं, जिसमें ऐसे पत्र भी पुलिस प्रस्तुत करती है. उनके आधार पर माओवादियों के काम के तरीके को समझते भी हैं. निहाल सिंह के अनुसार ‘माओवादी अपने कैडर या सिम्पेथाइजर का सीधा नाम नहीं लेते, नहीं लिखते. उनके अलग-अलग निक नेम होते हैं. जैसे साईं बाबा की चार्जशीट में पुलिस कहती है कि उनका निक नेम प्रकाश है. प्रकाश के नाम से लिखे गये पत्रों के लिए उन्होंने दावा किया कि ये साईं बाबा के लिए लिखे गये पत्र हैं.’ निहाल सिंह सवाल करते हैं कि ‘ जब साईं बाबा के मामले में सामान्य मुद्दों पर यदि पार्टी निकनेम से पत्र लिखती है तो क्या इतने बड़े मुद्दों पर गिरफ्तार लोगों, रोना विल्सन, शोमा सेन या सुरेन्द्र गाडगिल और सुधीर ढवले, जिग्नेश मेवानी या प्रकाश अम्बेडकर आदि का नाम सीधा लिखेगी? यहाँ तक कि वे अपने कथित टारगेट चाहे नरेंद्र मोदी हों या राहुल गांधी उनका जिक्र भी किसी निक नेम से ही करेंगे, यही उनके काम का तरीका रहता आया’ वे कहते हैं कि ‘इन पत्रों की विश्वसनीयता पर न सिर्फ संदेह है बल्कि ऐसा लगता है कि इन्हें लिखने वाले पुलिस के लोग नक्सली मामलों के विशेषज्ञ भी नहीं हैं.’
निहाल सिंह एडवोकेट गड्लिंग की गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि वे मानवाधिकार के वकील रहे हैं, वे अब तक गैरकानूनी हिरासत के खिलाफ लड़ते रहे हैं लेकिन दुखद यह है कि नियमतः उनकी गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किये जाने की जगह दो दिन बाद पेश किया गया और गैरकानूनी हिरासत में रखा गया. सवाल है कि अपराधियों के बचाव में लड़ने वाला वकील अपराधी नहीं हो जता, बलात्कारियों का बचाव करने वाला बलात्कारी नहीं हो जाता तो फिर माओवादियों के नाम पर गिरफ्तार लोगों का बचाव करने वाला नक्सलाईट कैसे हो जाता है? निहाल सिंह आरोप लगाते हैं कि पुलिस ने मजिस्ट्रेट के सामने पेश करते हुए गडलिंग को अपना वकील तक खडा करने नहीं दिया और एक डमी वकील लेकर गयी. नागपुर के कुछ वकील जब उनसे मिलने गये तो उन्हें मिलने भी नहीं दिया जा रहा था, तब नागपुर बार असोसिएसन ने वहां के प्रिंसिपल जज को पत्र लिखा तो उनके वकील उनसे मिल सके. गौरतलब है कि एडवोकेट गड्लिंग की गिरफ्तारी के विरोध में नागपुर बार एसोसिएसन और गोंदिया बार एसोसिएसन के वकीलों ने 8 जून को काम बंद रखा.