संजीव चंदन
निकिता आनंद
कैसी हैं?
जाहिर है आप परेशान होंगी अपने पिता के लिए. आप कम से कम उतनी प्रसन्न तो नहीं होंगी जितना आपके पिता जघन्य यौन-उत्पीड़न मामले के आरोपी होकर भी पुलिस वाले के साथ पेशी के लिए जाते हुए दिख रहे हैं-उस प्रसन्नता की तस्वीर तो आपने देख ली ही होगी न.
पारिवारिक पूजा में हवन करता ब्रजेश ठाकुर |
मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ. इस समाज की परवरिश में रहे हम सबकी यह परेशानी हो सकती है, अपने परिवार के अपराधियों, कुंठितों, बलात्कारियों के बचाव की. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. मैंने आपके जवाबों का वीडियो देखा है, एक रिपोर्ट में भी आपका विस्तृत पक्ष पढ़ा है. बचाव में परिवार की महिलाओं को बहुत बार लाया जाता है-निर्भया काण्ड के आरोपियों के बचाव में भी उसके परिवार की महिलाएं आगे आयी थीं, इंदौर में भाजपा के विधायक की भी और कठुआ काण्ड में भी. आपका मामला पहला नहीं है और आख़िरी भी नहीं.
हाँ, तो आपका मानना है कि आपके पिता को फंसाया जा रहा है. और इसके कई तर्क हैं आपके पास, जिसे मैंने भी देखा, पढ़ा, सूना. उन तर्कों पर सिलसिलेवार बात करते हैं. पहले एक सवाल आपसे कि तीन-तीन अख़बार के मालिक आप अपने पिता को कारोबार करते देख रही हैं. एक अख़बार की आप सम्पादक भी हैं तो आपसे न तो अख़बार का प्रबंधन छिपा होगा न, न उसका सर्कुलेशन, न उसका अर्थ-गणित. इसके अलावा पारिवारिक बिजनस के सक्रिय सदस्य के रूप में यह भी जानती होंगी कि रजिस्टर्ड संस्था में कौन-कौन से कार्यकारिणी में हैं? क्या आपको पता है कि आपके पिता की एक संस्था का सचिव, जो मुख्य पद होता है, कहीं एक्जिस्ट ही नहीं करता. जिस व्यक्ति को सचिव बताया गया है, उसका अता-पता आपके पिता भी नहीं बता पा रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर छपी है, उसमें एक अदृश्य व्यक्ति को सचिव बताया गया है. क्यों नहीं अब आप एक्सप्रेस को उस अदृश्य का पता बता देती हैं? कुछ तो मजबूरी होगी आपके ‘अच्छे पिता’ की एक अदृश्य को सचिव बनाने की. और हाँ, आप विज्ञापनों का गणित भी समझती होंगी न. शहर में न दिखने वाले अख़बार को अफसरों तक पहुंचा कर और बड़ी संख्या में सर्कुलेशन बताकर ही न सरकार से तीन अख़बारों का नियमित विज्ञापन लिया जा सकता है- जिले से लेकर देश की सरकार तक का विज्ञापन. इस तन्त्र पर कभी आपके मन में सवाल उठा था क्या, नहीं न-यही, यही है हमारे-आपके परवरिश से प्राप्त परिवार के प्रति मजबूरी.
पेशी के दौरान ब्रजेश ठाकुर |
ज़रा आपके तर्कों पर बात करते हैं:
1. आपका कहना है “क्योंकि, मेरे बाप के पास बहुत पैसा है. अगर उसे शारीरिक संबंध ही बनाना होता और लड़कियों की सप्लाई करनी होती तो यहां की लड़कियां क्यों करता? यहां तो वो लड़कियां थीं, जिन्हें समाज ने भी तज दिया था. कई मानसिक रूप से विक्षिप्त थीं. कुछ लड़कियों की उम्र आठ साल से भी कम थीं. सच बताऊं तो मेरे पिता को मैंने कभी ऊपर जाते देखा ही नहीं है. जहां आप अभी बैठे हैं यहीं बैठते थे. ऊपर जो ग्रिल दिख रहा है वो बालिका गृह के ओसारे का ग्रिल है जहां से बच्चियां नीचे की ओर झांकती रहती थीं. कभी हमसे भी बात कर लेतीं तो कभी पापा से.”
क्या आपका यह सवाल इस मामले से तनिक भी सम्बद्ध है ? आपके पिता से ज्यादा रसूख वाले लोगों पर बलात्कार सिद्ध नहीं हुए हैं! बहुत से बलात्कारी पैसे देकर सेक्स खरीदने की स्थिति में होते हैं, फिर भी बलात्कार करते हैं. लड़कियों की सप्लाई के लिए सहज उपलब्ध लड़कियों से अलग वे क्यों इन्वेस्ट करते भला? सीधा जवाब दे रहा हूँ, कोई भावुक सवाल नहीं कर रहा कि एक बेटी होकर पिता के लिए सेक्स क्रय का रूट आप क्यों देख रही हैं? इस सवाल का अर्थ ही नहीं है, क्योंकि आप यौन-शोषण के आरोपी अपने पिता का बचाव कर रही हैं.
2. “PMCH की मेडिकल जांच रिपोर्ट में क्या लिखा गया है किसी ने पढ़ा है क्या? उसमें अंग्रेजी में साफ-साफ लिखा हुआ है, सेक्सुअल कॉन्टैक्ट कैनोट बी रूल्ड आउट. नो रेप फाउंड. नो स्पर्म फाउंड. (Sexual Contact Cannot be ruled out. No rape found. No Sperm found). हिंदी में इसका मतलब क्या होगा कोई मुझे बता सकता है?”
जब आप यह सवाल करती हैं तो यह क्यों नहीं करतीं कि TISS की रिपोर्ट आने के कुछ महीने बाद एफआईआर हुआ. एफआईआर के बाद लड़कियों का तुरत मेडिकल होना था, जिसमें भी कई दिन लग गये. तब तक न डाक्टर स्पर्म ढूंढ सकता है, न देवता. आप क्या सच में इनोसेंटली यह तर्क दे रही हैं या पाठकों,श्रोताओं को उलझाने का एक तर्क है यह. हिन्दी में इसका मतलब भी लोग समझते हैं और अंग्रेजी में भी और उस भाषा में भी जिसका संकेत आपके तर्क में है.
3. आपको पता है, यहां आने वालीं मैक्सिमम लड़कियां कहां से आती हैं? या तो उनके ऊपर पहले से जुर्म हुआ रहता है या फिर वे मानसिक रूप से विक्षिप्त रहती है. उन बच्चियों का रेप और उनपर जुल्म अगर यहां आने से पहले हुआ होगा तो क्या मेडिकल रिपोर्ट में ये बात नहीं आएगी. इस बात की गारंटी कौन देगा.
क्या यह सारी लड़कियों का सच है, क्या उन नाबालिगों का भी, जो काफी कम उम्र की हैं. 34 बच्चियों के साथ पुष्टि हुई शोषण की. और हाँ आपके ‘अच्छे पिता’ ने गायब छः बच्चियों के बारे कभी पुलिस को कोई सूचना क्यों नहीं दी? कभी यह सवाल उठा आपके मन में?
महिला आयोग की अध्यक्षा दिलमणि मिश्र विवादित शेल्टर होम में |
4. हमारे घर पर सब रहते हैं. मम्मी, पापा, भाई, भौजाई, मैं और बच्चों के अलावा दूसरे स्टाफ भी. यदि यह सब इतने दिनों से चल रहा था तो क्या हम लोगों को जरा भी इसकी भनक नहीं लगती. हमें छोड़िए क्या हमारे स्टाफ्स को भी नहीं लगती!
मैं खुद भी एक बच्ची की मां हूं. मैं अपने पिता का साथ कभी नहीं देती. क्या आपको लगता है कि एक पत्नी जो यहीं अपने पति के साथ रह रही हो, उसको इन सब चीजों के बारे में मालूम नहीं चलता. और अगर चल जाता तो क्या एक पत्नी कभी यह बर्दाश्त कर सकती है कि उसका पति किसी दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाए. क्या इसकी इजाजत वो दे सकती है?
मेरे भाई की हाल ही में शादी हुई है. बहु भी यहीं रहती है. वो तो नई लड़की थी हमलोगों के लिए. जिस घर में ये सब हो रहा हो, उस घर में रहना वह कैसे पसंद कर सकती है.
क्या आपको नहीं पता कि भरे -पूरे परिवार के बीच महिलाओं का यौन-शोषण होता है. कई ऐसे मामले आये हैं-करीबी रिश्तेदारों द्वारा शोषण के. पीडिता किसी को बता नहीं पाती है. और न ही पूरे परिवार को पता चल पाता है? आप यह जवाब देते हुए अपने पिता की तस्वीर पेश कर रही हैं, पूरे परिवार के साथ पूजा करते हुए-क्या आप कोई मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालना चाहती हैं? क्या आशाराम से लेकर कई संतों की कथाएं काफी बाद सामने आयीं, उनकी ऐसी हजारो तस्वीरें नहीं पेश की जा सकती हैं?
5. “आप लड़कियों के मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 के अंतर्गत दिए गए बयान देखें. सारे बयानों में सिमिलारिटी ही नजर आएगी. पांच साल की बच्ची भी वही बयान दे रही है, जो अठारह साल की बच्ची दे रही है. ऐसा कैसे संभव है? क्या ऐसा नहीं लगता कि कोई उनका ट्यूटर रहा हो? उनसे बुलवाया गया हो. महिला आयोग की अध्यक्षा दिलमणि मिश्रा नवंबर 2017 में आईं थीं यहां. निरीक्षण के बाद यहां के स्टाफ की पीठ थपाथपा कर गई थीं. निरीक्षण के बाद के रिमार्क्स यहां की रजिस्टर में दर्ज किया था उन्होंने.
महिला आयोग की ही एक और सदस्या उषा विद्यार्थी जी भी आईं थीं दिसबंर 2017 में. उन्होंने भी जांच के बाद अपने रिमार्क्स दर्ज किए थे. पुलिस ने उसको अब सीज कर लिया है.”
अब यहां सवाल ये है कि, क्या दिलमणि मिश्रा और आयोग के अन्य सदस्यों को यहां तब अनियमितताएं नहीं दिखी थीं. जब पिछले साल उन्होंने आकर निरीक्षण किया था और बच्चियों से बात की थी. क्या तब बच्चियों ने उनको कुछ भी नहीं बताया था?
सवाल इसलिए भी लाजिमी है कि आज उन्हीं दिलमणि मिश्रा के हवाले से अखबारों में खबरें छपी हैं कि बच्चियों ने अपनी पीड़ा की कहानी सुनाई तो उनकी रूह कांप गईं.
आप एक कांस्पीरेसी थेयरी रख रही हैं. इस जवाब का सच है कि आपके पिता रसूख वाले थे और सरकारी अफसरों का आपके पिता के कुकर्म में भागीदारी के प्रसंग सामने आये हैं और कुछ अंदाज से भी समझा जा सकता है. पीडिताओं के पक्ष से यदि आप यह सब देखेंगी तो इसे नेक्सस की तरह देख सकेंगी और मामला सामने आने पर भागीदारों को खुद को बचाने की कवायद के तौर पर. रही बात लड़कियों का पहले किसी अधिकारी से आपबीती नहीं बताने की. तो ऐसा होता है. खौफ के कारण होता है. मेरा खुद का फील्ड रिपोर्टिंग के दौरान ऐसा अनुभव रहा है. दो साल पहले आपके ही राज्य के एक संस्थान में मैं गया था.वहां पढने वाली लड़कियों ने मुझे कुछ नहीं बताया. दो-तीन महीने पहले जब वहां एक यौन-शोषण का मामला आया. तो कई लड़कियों ने मुंह खोला.
मेरे पास कुछ तस्वीरें हैं. मैं आपको वो दिखाती हूं. बकौल निकिता ये तस्वीर उस दिन (31 मई) की है, जिस दिन सभी बच्चियों को यहां से शिफ्ट किया जा रहा था.यहां के जिन स्टाफ्स को अब जेल में डाल दिया गया है, बच्चियां उनसे लिपट कर रो रही हैं. केवल एक बच्ची नहीं. इन तस्वीरों में ढ़ेर सारी ऐसी बच्चियां दिख जाएंगी आपको. 164 के बयान के आधार पर मीडिया में आई खबरों में जिन जुल्मों और यातनाओं का जिक्र किया गया है, उतना सहने के बाद भी कोई बच्ची बिछड़ने के गम में ऐसे रोएगी? आप देखिए और बताइए कि मीडिया में बच्चियों के 164 के बयानों के आधार पर जो खबरें छपी हैं, क्या उनपर यकीन करना संभव है?
एक खौफ और एक अनिश्चितता से दूसरी अनिश्चितता की ओर जाने में और अचानक से घट रही घटनाओं के खौफ में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है? और हाँ, आपके ‘अच्छे पिता’ के साथ साजिश कौन कर रहा है? क्या स्टेट मशीनरी, जिसके लोग खुद ही इस मामले में शामिल बताये जा रहे हैं, आरोपी बनाये जा रहे हैं! 164 के बयान के लिए प्रशिक्षण किसने और क्यों दिया?
और आख़िरी बात कि एक आरोप आपके पिता पर यह भी है कि एक दलित और ओबीसी युगल की शादी को एक वेश्या के उद्धार की तरह पेश करवाते हुए उन्होंने श्रेय लिया, खबर छपी. पीड़ित पक्ष ने ऍफ़आईआर किया. आपके रसूखदार अच्छे पिता का कुछ नहीं बिगड़ा. आपने कभी सवाल किया कि इसमें आपके पिता की कौन सी समाजसेवी प्रवृत्ति काम कर रही थी!
निकिता जी, होता है यह. आप पहली बेटी नहीं हैं, जो पिता के बचाव में इस तरह आयी हैं-यह हमसब के परिवेश का ही हिस्सा है. ऐसा कई बार हुआ है-बचाव में परिवार की महिलाएं उतरी हैं. वैसे अपने पिता के हथकड़ी में जाते हुए आत्मविश्वास से भरे मुसकान वाली तस्वीर को भी डिकोड करियेगा, जैसे अप और तस्वीरों को डिकोड के लिए पेश कर रही हैं. सोचियेगा गलत ढंग से इतने जघन्य आरोप में फंसाया जा रहा व्यक्ति क्या इसी मनोभाव में होता है!
तस्वीरें और बयान के हिस्से www.dpillar.com से साभार
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