रंजना
पटना शेल्टर होम की आँखों देखी कहानी बता रही हैं रंजना
बात तब की है जब मै हर शनिवार पटना के सुधारगृह में जाती थी .हालाँकि पत्रकारों का प्रवेश वर्जित था ,फिर भी मै हर हफ्ते गायघाट स्थित महिला सुधारगृह और बाल सुधारगृह में जाती थी .बात 2003-4 की है. तब सुधारगृह के लिए एक निगरानी टीम बनी हुयी थी, पटना विमेंस कॉलेज की सिस्टर की देखरेख में यह टीम काम करती थी ,मै भी उस टीम की सदस्य थी, मै उनके एजुकेशन और सुधारगृह दोनों ही प्रोजेक्ट से जुडी थी. हलाँकि तब सारी आँखों देखी लिखना मना था ,फिर भी बहुत कुछ लिखती थी.
लडकियों के सुधारगृह में जब भी जाती थी, वहां पहले से ही खबर कर दिया जाता था, और फिर नहा धोकर लडकियां तैयार रहती थीं,कुछ के गोद में बच्चा था और कुछ के पेट में,पूछने पर उनकी संरक्षिका कहती ,प्रेम में भागी हुयी है,इस लिए. पर मुझे जहा तक याद है उनमें से बहुत सी थी जिन्हें अपने घर के बारे में कुछ भी याद नहीं था, सालों से उसी जगह रहती थी. संरक्षिका से रिश्ते बना कर रखती थी, ताकि उनको पेट भर कर खाना मिलता रहे. पुराने ही सही कपडे भी मिल जाते थे. खुद खाना बनती थी. और खुद ही सारी सफाई भी. चार –पांच लडकियों की दादागिरी भी चलती थी ,क्योंकि वे अपनी मैडम जी के घर का सारा काम संभाल कर उन्हें खुश रखती थी.जब भी हमलोग लम्बे टाइम तक वहां होते थे, भीतर कमरे में से बहुत ही तेज़ –तेज़ आवाज़ आती थी,कभी दरवाज़ा पीटने की कभी चिल्लाने की. जब पूछती ,सभी कहती की कुछ पागल लडकिया है,जिन्हें बंद करके रखना पड़ता है,उन लडकियों में से ही कुछ कहती थी की,बंद नहीं किया जायेगा तब सब तोड़ –फोड़ करेगी,खुद के भी कपडे फाड़ देती है, दो लडकियां कपडे नहीं पहनती ,नहाती भी नहीं है. जब मैडम जी को या किसी जाँच टीम को आ ना होता है तब उनको भी नहला कर कपडे पहना देते हैं, जबरन. इतनी सारी लडकियों पर दो ही ठीक बाथरूम थे तब, उसके लिए भी आपस में भिड़ती थी.पूछने पर कि मासिक होने पर कैसे ..? फिर तो सब की चुप्पी थी .
सरकार जो भी देती होगी उसमे से ही संचालिका के घर का खाना–पानी चलता था. लडकियों के लिए बने सुधारगृह के भीतर से ही एक गेट खुलता था बाल सुधारगृह का. लडिकियां खुले में नहाने बैठती थी और लड़के छत पर खड़े होते थे. एक बार लडको की आपस में लड़ाई हुयी थी और तब ही एक बच्चाजल गया था. बाल सुधारगृह का संरक्षक सुधारगृह के सामने ही चार-मंजिला माकन बनाये हुए था. बहुत कुछ आँखों देखी, पर ,अलग–अलग तर्क दे देते थे वहां के कर्मचारी. लेकिनराजू नाम का एक कर्मचारी था तब, वही सिस्टर की तरफ से सारा कुछ देखता था,वो जब चाहे जाता था. किसी बात पर सिस्टर उससे नाराज़ हुयी और फिर उसने जो कहानी बताई,उसका प्रमाण ठीक हफ्ते दिन बाद ही मिल गया था.
बाल–सुधारगृह के बच्चे चोरी करने भी निकलते थे और ड्रग्स भी लेते थे,कुछ चहेते बच्चे थे,जिनसे बहुत कुछ गलत काम करवाया जाता था,और बदले में उन्हें भी मनमाफिक रहने को मिलता था. वे ही हर जाँच टीम के आगे अछे बच्चे बन कर खड़े हो जाते थे .लडकियों को अस्पताल के बहाने कही ले जाया जाता था तब भी ये लड़के कर्मचारियों का साथ देते थे. सेक्स लडकियों के लिए बड़ी बात नहीं थी. वही लडकियां इन सब से बची रह पाती थी, जिनका केस खुला होता था .वरना सब सरकारी तरीके से संचालित होता था.राजू ने जब बताया कि लड़के ड्रग्स लेते हैं और लडकियों को भी कही बहार ले जाया जाता है,गाड़ी से. कई बार देर रात को. तब, एक सवाल बनता था. निगरानी टीम से पूछने की.
एक शेल्टर होम में बच्चे |
जब मैंने टीम की वरीय सदस्या को फ़ोन किया तब उन्होंने एसी किसी भी जानकारी से इनकार कर दिया. हालाँकि वह सिस्टर अब इस दुनिया में है भी या नहीं लेकिन तब सतत्तर साल की उम्र में भी हर हफ्ते जाती थी दोनों सुधारगृह में,ये अलग बात है उन सब को सिखाने– पढाने का एक ढकोसला ही होता था.
रंजना फ्रीलांस करती हैं.
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