‘आज के दौर में तटस्थता असांस्कृतिक और अभारतीय हैः अशोक वाजपेयी’

प्रेस विज्ञप्ति 

‘‘अतताई को नींद न आये – इतना तो करना ही होगा। आज तटस्थता संभव नहीं है। तटस्थता असांस्कृतिक और अभारतीय है। हमें हिम्मत और हिमाकत की जरूरत है। हमारी सार्थकता इसी में है कि हम आज के समय के विरूद्ध बोल रहे हैं। आवश्यकता है कि इप्टा के इस 75वें साल में सांस्कृतिक अन्तःकरण को फिर गढ़ा जाय। पूरी जिम्मेदारी और साहस के साथ हमें इसे गढ़ें। हमारी अन्तःकरण की बिरादरी बहुलतावादी होगी। इस बिरादरी में वे ही बाहर होंगे जिनका न्याय, समता और बराबरी के मूल्यों में विश्वास नहीं होगा।’’

अशोक वाजपेयी इप्टा के कार्यक्रम में बोलते हुए

इप्टा प्लैटिनम जुबली व्याख्यान – 4 के अंतर्गत ‘सांस्कृतिक अन्तःकरण का आयतन’ विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने देश के सांस्कृतिक-सामाजिक स्थितियों पर संस्कृतिकर्मियों की एकजुटता का आह्वान करते हुए ये बाते कहीं।

पी० सी० जोशी की स्मृति में बिहार इप्टा द्वारा आयोजित प्लैटिनम जुबली व्याख्यान -4 में बोलते हुए अशोक वाजपेयी ने कहा कि आज धर्म और संस्कृति के नाम पर हत्या हो रही है, लेकिन आश्चर्जनक है कि सारे धार्मिक नेता चुप हैं। कोई भी धार्मिक गुरू, धार्मिक नेता इन हत्यों, भीड़तंत्र हिंसा के खिलाफ बोल नहीं रहा है। आज का हिन्दुस्तान में हर 15 मिनट में एक दलित पर हिंसा हो रही है। रोजाना 6 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है। आज देश के राज्यों की कोई भी राजधानी नहीं बची और कोई प्रमुख नगर और कस्बा नहीं बचा है, जहां हिंसा न हुई हो। 2017 का साल सबसे खराब साल रहा है। औसतन रोज हिंसा हो रही है। 2019 का साल और खतरनाक होगा। इसे भूलना नहीं चाहिए।

इप्टा के सांस्कृतिक अवदान पर चर्चा करते हुए अशोक वाजपेयी ने कहा कि 1942 में इप्टा भारत में बहुलतावादी सांस्कृतिक आन्दोलन की नींव रखी। इप्टा का मंच था जहाँ बंगाल का अकाल और स्वतंत्रता आन्दोलन के गीत बजे। नृत्य हुए। चित्रकारों ने पेंटिंग की और नाटक रचे गये। पी० सी० जोशी लोहिया के अलावा ऐसे राजनेता थें, जिसे राजनीति के साथ संस्कृति की समझ थी। बाद के नेता चाहे वे वामपंथी, समाजवादी और अन्य कोई वैचारिकी का नेता हो संस्कृति में अपनी समझ नहीं रखी। पी०सी० जोशी ने इप्टा और प्रलेस के साथ देश को सांस्कृतिक अन्तःकरण का प्रतीक गढ़ा और फिर से यह जरूरी हो गया है।
देश की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए श्री वाजपेयी ने कहा कि देश में हिंसक, आक्रामक एवं भीड़तंत्र की संस्कृति पनप रही है और दुर्भाग्य से इसे लोक सहमति भी मिल रही है। सांस्कृतिक अन्तःकरण, धार्मिक अन्तःकरण और मीडिया में अन्तःकरण समाप्त हो गया है। कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती। ऐसे वक्त में क्या सांस्कृतिक अन्तःकरण संभव है? हिन्दी साहित्य के पूरी तरह से अप्रसांगिक होने का मुकाम आ गया है क्योंकि हिन्दी साहित्य कहीं से भी आज के समय को पुष्ट नहीं करता है। आज देष में रोजाना ‘दूसरे’ गढ़े जा रहे हैं और इनके साथ हिंसा का सलूक हो रहा है। अहिंसक, विरोध, प्रतिरोध की कोई जगह नहीं रही है। झूठ, धर्मान्ध, हिंसा का नया भारत पैदा हो रहा है। ज्ञान, लज्जा, नैतिकता को भूलता भारत पैदा हो रहा है। आज का लोक सेवक ज्ञान से अंधा बेशर्म होकर बोलता है। स्वच्छ भारत बनाने के लिए पूरे भारत की गंदगी को यहाँ के नागरिकों के दिमाग में भरा जा रहा है। आज का भारत महाजनी सभ्यता के समाने सेल्फी लेता नजर आ रहा है। देश में सिर्फ तोड़ा जा रहा है और देश तोड़ने वाली शक्तियों के चंगुल में है। तोड़ने वाले इतने मशगुल है कि उनसे राम मंदिर तक नहीं बना पा रहे हैं। तकनीक का काम मानव विरोधी गलीज में भारत कर कर रहा है। अपने ही संविधान को रौंदता भारत आगे बढ़ रहा है और तमाम लोक सेवक संविधान की नहीं वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ सेवा कर रहे हैं।

इप्टा के 75वें साल पर तमाम संस्कृतिकर्मियों और साहित्यकारों को आह्वान करते हुए अषोक वाजपेयी ने कहा कि अंतर्विरोध छोड़कर केवल न्याय, बंधुत्व, समता और भाईचारा के लिए एक हों।

कार्यक्रम की शुरूआत में पटना विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो० तरूण कुमार ने कहा है कि आज के दौर वह जब एक विधायक बौद्विक कार्यकर्ताओं को गोली मारने की धमकी देता है और मुक्तिबोध के शब्द एक बार फिर से प्रसांगिक होते हैं कि क्या कभी कभार अंधेरे समय में रोशनी भी होती है?

इस अवसर पर बड़ी संख्या में कवि, लेखक, साहित्यकार, कलाकार और संस्कृमिकर्मी उपस्थित थे।

स्त्रीकाल का प्रिंट और ऑनलाइन प्रकाशन एक नॉन प्रॉफिट प्रक्रम है. यह ‘द मार्जिनलाइज्ड’ नामक सामाजिक संस्था (सोशायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड) द्वारा संचालित है. ‘द मार्जिनलाइज्ड’ मूलतः समाज के हाशिये के लिए समर्पित शोध और ट्रेनिंग का कार्य करती है.
आपका आर्थिक सहयोग स्त्रीकाल (प्रिंट, ऑनलाइन और यू ट्यूब) के सुचारू रूप से संचालन में मददगार होगा.
लिंक  पर  जाकर सहयोग करें :  डोनेशन/ सदस्यता 

‘द मार्जिनलाइज्ड’ के प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें :  फ्लिपकार्ट पर भी सारी किताबें उपलब्ध हैं. ई बुक : दलित स्त्रीवाद 
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles