मुजफ्फरपुर बलात्कार मामले में मीडिया रिपोर्टिंग बैन के खिलाफ स्त्रीकाल संपादकीय सदस्य निवेदिता पहुँची सुप्रीम कोर्ट

राजीव सुमन 


 5 सितम्बर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय में पटना उच्च न्यायलय द्वारा मुजफ्फरपुर शेल्टर होम-बलात्कार मामले की जांच से सम्बंधित मीडिया रिपोर्ट पर प्रतिबन्ध-आदेश  को चुनौती दी गयी है. साउथ एशिया वीमेन इन मीडिया  के बिहार चैप्टर की अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्त्रीकाल की संपादकीय सदस्य निवेदिता ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 136 के तहत विशेष याचिका दायर की.

अप्रैल 2018 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई ने बिहार सरकार के अंतर्गत चलने वाले बालिका गृह का सोशल ऑडिट किया जिसके बाद कई चौंकाने वाले तथ्य बाहर आए. बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह में अनाथ बच्चों के यौन और शारीरिक शोषण होने की बात इस रिपोर्ट में आई जिसके बाद मीडिया की सक्रिय भूमिका के कारण यह राष्ट्रीय समाचार बन गया। पटना उच्च न्यायालय में इस मामले में जनहित याचिकायें दायर हैं. संतोष कुमार  द्वारा दायर एक जनहित याचिका है 12845/2018। इसी जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान पटना उच्च-न्यायालय ने अपने एक व्यापक आदेश के तहत आश्रय गृह से सम्बंधित किसी भी मामले की मीडिया रिपोर्टिंग से मनाही कर दी. पटना उच्च न्यायालय ने अपने 23-08-2018 के आदेश में कहा कि “इन परिस्थितियों में, जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती है, तब तक सभी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इस मामले के संबंध में विशेष रूप से, पहले से किए गए जांच के संबंध में और / या जो जांच होनी है, कुछ भी रिपोर्ट करने से रोका जाता है, क्योंकि इससे जांच में बड़ी बाधा होने की संभावना हो सकती है.”

इसी ब्लैंकेट आदेश को चुनौती देते हुए बुद्धवार 5 सितम्बर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है.  निवेदिता ने बताया  कि इस व्यापक आदेश का प्रभाव बड़ा ही नकारात्मक है इस मसले से जुडी हर प्रकार की रिपोर्टिंग पर रोक उचित नहीं है, खासकर वैसी रिपोर्टिंग से जो जांच में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करती हो. मसलन जैसे अदालत की कार्यवाही पर रिपोर्टिंग, वकीलों और कार्यकर्ताओं की राय की रिपोर्ट करना मामले को उजागर करते हुए, इस मुद्दे पर टीवी चर्चाएं आयोजित करना आदि.

याचिका में यह कहा गया है कि न्यायालय के सामने यह निष्कर्ष निकालने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि मीडिया रिपोर्टिंग चल रही जांच में बाधा डाल सकती है। विशेष रूप से, मीडिया रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध के लिए सीबीआई ने भी मांग नहीं की थी, जो अब मामले की जांच कर रही है, न ही राज्य पुलिस द्वारा, जिसने जांच की थी। इस आशंका का समर्थन करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं था कि रिपोर्टिंग किसी भी तरह से जांच को प्रभावित करेगी.

शेल्टर होम में यौन हिंसा के खिलाफ प्रतिरोध में निवेदिता

याचिका में मौलिक अधिकारों के हनन के साथ ये कानूनी प्रश्न उठाए गए हैं. उच्च न्यायालय का उक्त आदेश अवैध है जो जनता के जानने के अधिकार के खिलाफ है. साथ ही, भारत के संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार 19 (1) (ए) का उल्लंघन करता है? उक्त आदेश मीडिया अधिकारों का भी अतिक्रमण करता है. याचिकाकर्ता की वकील फौज़िया शकील ने इस संबंध में बताया कि ‘इस मामले की सुनवाई अगले हफ्ते होने की संभावना है. हालांकि आज ही इस मामले की अर्जेंट सुनवाई की अपील करने वाली हूँ.’

निवेदिता बिहार में महिला हिंसा के खिलाफ सक्रिय प्रतिरोधों की अगुआई भी करती रही हैं. 

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