नई दिल्ली, 6 सितम्बर : समलैंगिकता की धारा 377 को लेकर चल रहे घमासान पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना अहम फैसला सुना दिया है. पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने आज आम सहमति से IPC की धारा 377 को मनमाना और अतार्किक बताते हुए निरस्त कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है. धारा 377 अतार्किक और मनमानी धारा है और LGBTQ समुदाय को भी समान अधिकार है.
संविधान पीठ ने कहा, “यौन प्राथमिकता बायोलॉजिकल तथा प्राकृतिक है... इसमें किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन होगा. कोर्ट ने कहा, अंतरंगता और निजता किसी की भी व्यक्तिगत पसंद होती है. दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने यौन संबंध पर IPC की धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार, यानी अनुच्छेद 14 का हनन करती है..
संविधान पीठ के न्यायाधीश– दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने इस केस में शुरूआती सुनवाई के दौरान यह तय करना सुनिश्चित किया था कि वो जांच करेंगे कि क्या जीने के मौलिक अधिकार में ‘यौन आजादी का अधिकार’ शामिल है, ख़ास कर तब जब 9 न्यायाधीशो के संविधानिक पीठ ने एक अन्य मामले में ‘निजता का अधिकार’ को एक मौलिक अधिकार है, तय किया. इसके बाद यह फैसला सुनाया गया. जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने इस आशय की बात कही कि इतिहास को उनसे की गई इस नाइंसाफी केलिए माफ़ी मांगनी चाहिए.
इससे पहले अपने 17 जुलाई को दिए आदेश में संविधान पीठ ने धारा-377 की वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए यह साफ किया था कि इस कानून को पूरी तरह से निरस्त नहीं किया जाएगा. संविधान पीठ का कहना था कि यह दो समलैंगिक वयस्कों द्वारा सहमति से बनाए गए यौन संबंध तक ही सीमित रहेगा. पीठ ने कहा था कि अगर धारा-377 को पूरी तरह निरस्त कर दिया जाएगा तो आरजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. हम सिर्फ दो समलैंगिक वयस्कों द्वारा सहमति से बनाए गए यौन संबंध पर विचार कर रहे हैं. यहां सहमति ही अहम बिन्दु है. पहले याचिकाओं पर अपना जवाब देने के लिए कुछ और समय का अनुरोध करने वाली केन्द्र सरकार ने बाद में इस दंडात्मक प्रावधान की वैधता का मुद्दा अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था.
न्यायधीश रोहिंगटन ने धारा 377 से सम्बंधित सवाल उठाया कि क्या प्रजनन के लिए किए जाने पर ही सेक्स प्राकृतिक होता है?केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि नाबालिगों और जानवरों के संबंध में दंडात्मक प्रावधान के अन्य पहलुओं को कानून में रहने दिया जाना चाहिए. धारा 377 ‘अप्राकृतिक अपराधों’ से संबंधित है जिसमें किसी महिला, पुरुष या जानवरों के साथ अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाने वाले को आजीवन कारावास या दस साल तक के कारावास की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. समलैंगिकता अपराध है या नहीं, इस पर केंद्र ने कहा था- धारा 377 का मसला हम सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ते हैं.
भारतीय दंड विधान की धारा-377 क्या कहती है?
इस एक्ट की शुरुआत लॉर्ड मेकाले ने 1861 में इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) ड्राफ्ट करते वक्त की थी. इसी ड्राफ्ट में धारा-377 के तहत समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखा गया था. जैसे आपसी सहमति के बावजूद दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच सेक्स, पुरुष या महिला का आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध (unnatural Sex), पुरुष या महिला का जानवरों के साथ सेक्स या फिर किसी भी प्रकार की अप्राकृतिक हरकतों को इस श्रेणी में रखा गया है. इसमें गैर जमानती 10 साल या फिर आजीवन जेल की सजा का प्रावधान है.
भारत में धारा 377 पर पहला विवाद? लगभग १५० साल पुरानी इस धारा को पहली कानूनी चुनौती नाज़ फाउंडेशन की तरफ से 2009 में मिली जब पहली बार सेक्स वर्करों ने दिल्ली हाई कोर्ट में इस धारा 377 के खिलाफ याचिका दायर की. इस याचिका में उनका कहना था कि यह सिर्फ सेक्स की बात नहीं बल्कि यह हमारी आजादी, भावना, समानता और सम्मान का हनन है.
तब क्या था दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था. लेकिन बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने 11 दिसंबर 2013 को सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को फिर से अपराध की श्रेणी में ला खडा कर दिया था और इस मामले में पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी. लेकिन यह मामला फिर से पांच जजों के सामने क्यूरेटिव याचिका के तौर पर लंबित थी.
कुछ अजब-गजब और अच्छी टिप्पणियां–
इस ऐतिहासिक फैसले को लेकर कुछ मजेदार टिप्पणियाँ भी देखने को मिली. जाने-माने फिल्म निर्माता- निर्देशक और LGBTQ के समर्थक करण जौहर ने ट्वीट किया है और कहा है कि ऐतिहासिक फ़ैसला!!! आज फक्र हो रहा है! समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करना और धारा 377 को ख़त्म करना इंसानियत और बराबरी के हक़ की बड़ी जीत है. देश को उसका ऑक्सीजन वापस मिला है!
एक बीजेपी सांसद ने कहा कि अब हमें राहुल गांधी के गले लगा लेने से डर लगता है, क्योंकि उसके बाद हमारी पत्नियां तलाक दे सकती हैं..!
स्त्रीकाल का प्रिंट और ऑनलाइन प्रकाशन एक नॉन प्रॉफिट प्रक्रम है. यह ‘द मार्जिनलाइज्ड’ नामक सामाजिक संस्था (सोशायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड) द्वारा संचालित है. ‘द मार्जिनलाइज्ड’ मूलतः समाज के हाशिये के लिए समर्पित शोध और ट्रेनिंग का कार्य करती है.