पिछले दिनों हिन्दी विश्वविद्यालय की पांच दलित शोधार्थियों/ विद्यार्थियों पर कार्रवाई करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें निलंबित कर दिया था, जब उनपर एक फर्जी मुकदमा वर्धा के एक थाने में दर्ज हुआ. अब उसी मुकदमे में कोई तथ्य नहीं पाते हुए पुलिस ने अपनी रिपोर्ट फ़ाइल कर दी है. इस रिपोर्ट के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन को शर्मसार होना चाहिए लेकिन उसके अधिकारियों की कार्यप्रणाली से ऐसा दिखता नहीं है. प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं कि निलंबन तत्काल तो निलंबन वापसी में ‘प्रक्रिया’ क्यों? इसके पूर्व भी विश्वविद्यालय के प्रभारी रजिस्ट्रार के के सिंह द्वारा पीड़िताओं पर समझौते का दवाब बनाते बातचीत का एक ऑडियो वायरल हुआ था. सुशील मानव की रिपोर्ट:
विश्वविद्यालय परिसर का एक भाग |
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा की पाँच दलित लड़कियों के खिलाफ नजदीकी रामनगर पुलिस थाने में धारा 143, 147,149,312, और 323 में लिखाई गई एफआईआर की बुनियाद पर वर्धा यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा उक्त पाँच लड़कियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था। तीन महीने की आईजी स्तर से जाँच में निर्दोष पाए जाने के बाद आरोपित पाँचों लड़कियों को पुलिस प्रशासन द्वारा क्लीनचिट दे दिया गया। और उसकी एक कॉपी कल ही वर्धा विश्वविद्यालय को रिसीव करवा दी गई। आईजी जाँच में निर्दोष करार दिए जाने के बाद पाँचों छात्राएं जब यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार से अपने निलंबन वापसी के बाबत जानकारी लेने गई तो रजिस्ट्रार ने बताया कि पुलिस जाँच की रिपोर्ट वीसी तक पहुँचा दी गई है और निलंबन वापसी की प्रक्रिया में है। इस बाबत जब इस रिपोर्ट के लिए मैंने कुलपति से फोन पर पूछा कि ‘आईजी जाँच में पाँचों लड़कियों को क्लीनचिट दिए जाने के बाद अब कितने समय में उन लड़कियों का निलंबन वापिस लिया जाएगा?’ तो इसके जवाब में वीसी ने कहा कि ‘अभी वह कागज यूनिवर्सिटी प्रशासन तक नहीं पहुँचा है। जब पहुँचेगा तो देख विचारकर फैसला लिया जाएगा।‘ मैंने जोर देकर कहा कि सर हमें पक्की जानकारी है कि पुलिस जाँच रिपोर्ट यूनिवर्सिटी प्रशासन तक कल ही पहुँच गई है।
इस सवाल पर बहुत हत्थे से उखड़ गये कुलपति गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि ‘आप लोगों को क्या है क्यों पड़े हो इस मामले में। उन लड़कियों के खिलाफ़ एफआईआर हुई है।’ मैंने प्रतिप्रश्न किया, ‘एफआईआर तो आप पर भी हुई है यूनिवर्सिटी के और भी कई लोगों के खिलाफ़ हुई है। मेरी इस बात से तिलमिलाए वीसी महोदय ने मेरी कॉललाइन काट दी। मैंने कई बार फिर से प्रयास किया पर उन्होंने मेरा नंबर ब्लैकलिस्ट में डाल दिया। मेरा दूसरा प्रश्न अनुत्तरित रह गया। मैं वीसी महोदय से अगला प्रश्न यह पूछना चाहता था कि ‘उक्त पाँचों लड़कियों को क्लीचनिट मिलने के बाद क्या वर्धा यूनिवर्सिटी प्रशासन अपने गलत फैसले के लिए उन लड़कियों से माफी माँगेगा?’
इसके ठीक बाद मेरी बात रजिस्ट्रार केके सिंह से हुई। के के सिंह ने पाँचों लड़कियों के निलंबन वापसी पर पूछने के बाबत बताया कि निलंबन वापसी प्रक्रिया में है। वीसी इसे देख रहे हैं और जल्द ही इस पर फैंसला होगा। मैंने पूछा, ‘कुछ अनुमान ही बता दीजिए कितने दिन में होगी?’ तो उन्होंने कहा कि ये हम आपको नहीं बता सकते। बस इतना जान लीजिए की ये प्रक्रिया में है। इसके जवाब में कि ‘लड़कियों को क्लीनचिट मिलने के डॉक्युमेंट आपको कब मिले थे, उन्होंने बेहिचक कहा कि, ‘कल (11 सितम्बर) शाम को।’
वहीं पाँचों पीड़िताओं में से एक लड़की आरती से भी बात हुई। उसने फोन पर बातचीत में बताया कि ‘निर्दोष होते हुए भी हमें निलंबित कर दिया गया। निलंबन के बाद से हम पाँच लड़कियों ने पिछले तीन महीने से मानसिक और शारीरिक यातनाएँ झेली है।‘ वे बताती हैं कि ‘हमने बार-बार कुलपति और रजिस्ट्रार को बताया था कि हमलोग निर्दोष हैं और उसके सबूत विश्वविद्यालय में ही उपलब्ध हैं. अंततः पुलिस के आई जी से हमें मिलना पड़ा. उनके हस्तक्षेप से पुलिस ने जल्द जांच पूरी कर हमें क्लीनचिट दिया है.’ पुलिस जाँच में क्लीनचिट मिलने के बाद वे पिछले दो दिन से लगातार यूनिवर्सिटी कैंपस में रजिस्ट्रार और वीसी दफ्तर के चक्कर लगा रही हैं। रजिस्ट्रर द्वारा उन्हें बार-बार प्रक्रिया में होने को कहकर टाला जा रहा है । बता दें कि के के सिंह वही रजिस्ट्रार हैं जिनका कुछ दिन पहले फोनकाल ऑडियो वायरल हुआ था जिसमें वो पीड़ित लड़कियों को ही समझौते के लिए दबाव बनाते और धमकाते हुए साफ सुनाई पड़ते हैं। पीड़ित लड़कियों का कहना है कि जब यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा निलंबन तत्काल कर दिया गया था, उसमें किसी तरह की आंतरिक जांच की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई तो अब पुलिस से क्लीनचिट मिलने के बाद उनका निलंबन तत्काल वापिस क्यों नहीं लिया जा रहा। प्रक्रिया के नाम पर निलंबन वापसी में टाल-मटोल क्यों किया जा रहा है?
पूरा मामला क्या है-
बी. एड.–एम. एड. एकीकृत की छात्रा ललिता ने आरोप लगाया था कि शादी का झांसा देकर शोध छात्र चेतन सिंह लगातार उसका यौन शोषण करता रहा। और फिर 29 दिसंबर 2017 को उसने चेतन सिंह पर आईपीसी की धारा 376, 323, 506, 417 के तहत स्थानीय राम नगर पुलिस स्टेशन, वर्धा में केस दर्ज कराया। इस केस में विश्वविद्यालय की चार लड़कियां आरती कुमारी, विजयालक्ष्मी सिंह, कीर्ति शर्मा, शिल्पा भगत पीड़िता की गवाह थीं।विश्वविद्यालय की महिला सेल की सिफारिश पर हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा प्रशासन ने चेतन सिंह को यौन शोषण के आरोप में निष्कासित कर दिया। कुछ दिन बाद आरोपी चेतन सिंह को कोर्ट से इस शर्त पर जमानत मिली कि जमानत के बाद वो पीड़िता या गवाहों को किसी प्रकार से प्रताड़ित नहीं करेगा। इसके बाद आरोपी चेतन सिंह विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास के निकट ही पंजाब राव कॉलोनी में अपनी पत्नी सोनिया के साथ किराए पर आकर रहने लगा।
कुलपति गिरीश्वर मिश्र और विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं छात्र |
इसी दौरान दिनांक 03 मई 2018 की शाम अपनी ज़रूरत के सामान लेने गई पीड़ित छात्रा ललिता और चेतन सिंह व सोनिया सिंह का आमाना-सामना हो गया, जिसके बाद गाली गलौज करते हुए चेतन सिंह कथित रूप से पीड़िता को थप्पड़ मारता है। और फिर उसी रात 8:00 बजे अपनी पत्नी सोनिया सिंह के साथ रामनगर पुलिस थाना में जाकर चेतन सिंह ललिता के खिलाफ धारा 504, 506 के तहत एनसीआर दर्ज कराता है । ललिता भी विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास के कर्मचारी, गार्ड, केयरटेकर तथा 3 महिला मित्र के साथ रामनगर थाने में चेतन सिंह के खिलाफ धारा 324 के तहत केस दर्ज कराती है। फिर दिनांक 08 मई 2018 को चेतन सिंह की पत्नी सोनिया सिंह द्वारा हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा को लिखित शिकायत पत्र दिया जाता है जिसमें पीड़िता पक्ष की 4 मुख्य गवाहों पर आरोप लगाए गए कि उन सबने चेतन सिंह व उसकी पत्नी के साथ मारपीट की जिसके दौरान उसका गर्भपात हो गया। इस मामले में सेवाग्राम से बनी एक मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर 07 जून 2018 को उक्त पाँचों लड़कियों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज कर ली गई। एन.सी.आर. में जहाँ पीड़िता के अलावा किसी का भी नाम नहीं था वहीं बाद में एफआईआर में चार अन्य नाम लड़कियों के नाम जोड़ दिया गया।इसी केस के सिलसिले में रामनगर थाने के पी.एस.आई.सचिन यादव पीड़िता और उसके साथ के गवाह लड़कियों व उनके अभिभावकों को धमकी देता है कि “5 लड़कियों की पीएच-डी. खत्म करवा दूँगा और सब को जेल कराऊँगा”। पी.एस.आई. का यह रवैया देखकर पीड़िता लड़कियों ने इसकी शिकायत आईजी नागपुर से की। आईजी ने मामले पर तुरंत संज्ञान लेते हुए वर्धा एसपी से जांच प्रक्रिया शुरू करवाई। इस बीच पीएसआई का ट्रांसफर हो गया. 6 जुलाई 2018 को आरोपियों के बयान दर्ज़ कराए गए। उसी दिन 6 जुलाई 2018 को एफआईआर को आधार बनाते हुए विश्वविद्यालय द्वारा 5 लड़कियों को बिना किसी प्राथमिक जांच किए निलंबित कर दिया गया। जोकि पूर्णतयः असंवैधानिक था। इन लड़कियों का निलंबन मुंबई न्यायालय के आदेश क्रमांक 9889/2017 का खुला उल्लंघन है जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि केवल एफआईआर दर्ज होने के आधार पर विद्यार्थियों के शिक्षा लेने के संवैधानिक अधिकार का हनन करने का अधिकार किसी संस्था के पास नहीं है। तो क्या अब यूनिवर्सिटी के वीसी अपनी इस गंभीर और असंवैधानिक गलती के लिए उन लड़कियों से माफी माँगेंगे जिन्हें उनके असंवैधानिक कार्रवाई के चलते मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, विश्वविद्यालय प्रशासन व पुलिसिया यंत्रणाओं से गुजरना पड़ा।
सुशील मानव फ्रीलांस जर्नलिस्ट हैं. संपर्क: 6393491351
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