जब हम ऐडल्ट्री शब्द की बात करते हैं तो सामान्य अर्थों में इसका मतलब होता है दो विपरीतलिंगी व्यक्तियों के बीच अमान्य और अवैध संबंध। यानि ऐसे दो लोग जो आपस में विवाहित नहीं हैं , के बीच यदि शारीरिक संबंध स्थापित होता है तो ये स्थिति ऐडल्ट्री कहलाती है और इसमें शामिल व्यक्ति ऐडल्टेरस कहलाते हैं। जब से यह मानव समाज है तब से ऐडल्ट्री भी है और ऐसे संबंध भी रहे हैं। लगभग सभी मानव समूहों ने, धर्मों ने इसे पाप और अनैतिक माना। और सभी संस्कृतियों ने इसके लिए दंड निर्धारण भी अपंने-अपने तरीकों से किये। कहीं मर्द और औरत दोनों के लिए सजा का प्रावधान था तो कहीं सिर्फ औरत ही सजा की हक़दार होती थीं। इस अपराध के लिए सजा भी आर्थिक दंड से लेकर स्टोन पेल्टिंग और मृत्युदंड तक निर्धारित थे। 15 से ज्यादा इस्लामिक देशों में आज भी ऐडल्ट्री के लिए उसमें शामिल औरतों पर सार्वजानिक स्थल पर पत्थर बरसाए जाने के प्रावधान हैं। बाइबिल के दोनों ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट ऐडल्ट्री को एक पाप और अनैतिक काम मानते हैं। और लगभग सभी क्रिस्चियन देशों ने शुरू में इसे अपराध माना जिसके लिए अलग -अलग सजा निर्धारित की गयी। कुछ देशों ने इसे सिर्फ सिविल रॉंग मानकर इसे तलाक का आधार बना दिया।
यहाँ यह सवाल बड़ा मौजूँ जान पड़ता है कि आखिर दो व्यक्तियों के बीच आपसी सहमति से स्थापित शारीरिक संबंध को अनैतिक, पाप या अपराध कहलाने योग्य क्यों और कब से माना जाने लगा होगा? क्या यह मानव जाति के उद्भव के समय से ही है ? मुझे लगता है नहीं। राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक वोल्गा से गंगा जब आप पढ़ेंगे जो और कुछ नहीं बल्कि मानव सभ्यता के क्रमिक विकास की एक उत्कृष्ट कहानी भर है, उसमें कई दृष्टान्त ऐसे हैं जब लोग घर बनाकर स्थायी तौर पर नहीं रहते थे, खानाबदोश और घुमंतू की जिंदगी थी, समूह में जरूर होते थे। वहाँ कई जगह उल्लेख है कि मर्द और औरत के बीच सेक्स संबंध के लिए कोई स्थापित नियम नहीं थे। कोई भी सहमति से किसी के भी साथ शारीरिक संबंध बना सकता था। एक जगह यह भी जिक्र है कि एक औरत जो किसी कबीले की मुखिया है, उसके किसी मर्द से संबंध बने और उससे कई संतानें उत्पन्न हुई। बाद में जब वह औरत अधेड़ावस्था को प्राप्त हुई तो अपने ही जन्म दिए एक पुत्र से बाद में शारीरिक संबंध स्थापित किये और वह तब भी उस कबीले की मुखिया थी जिस कबीले में कुछ मर्द , जिसमें उसके कुछ पुत्र , कुछ पुत्रियाँ और कुछ दूसरे मर्द थे।
एक दृष्टान्त यह भी है जब एक औरत अपनी ही बेटी को पानी में धकेल कर इसलिए डुबो देती है क्यूँकि दोनों एक ही मर्द को अपने लिए पसंद करती हैं। शायद यह दौर था जब मानव शिकारी हुआ करता था जो बाद में चलकर संग्राहक बना और फिर उत्पादक बना। जब वह शिकारी से संग्राहक बना होगा और फिर उत्पादक बना होगा, तब उस ट्रांजीशन के दौर में उसका समाज एक नए तरीकों को इवॉल्व कर रहा होगा। संग्राहक और उत्पादक के तौर पर उसे स्थायित्व चाहिए होगा, घर चाहिए होगा और अपनी सेक्स जरूरतों को पूरा करने के लिए एक स्थायी पार्टनर चाहिए होगा। संपत्ति-शिकार और जमीन, जो अब तक संग्रह नहीं की जाती रही थी, अब उसे संग्रह किया जाने लगा। संपत्ति और जमीन और स्त्री पर स्वामित्व के प्रश्न भी इसी दौर में आये होंगे , फीलिंग ऑफ़ बिलोगिंग्नेस और पजेशन भी इसी दौर से शुरू हुआ होगा। और इन संपत्तियों के उत्तराधिकार का सवाल भी तभी उठा होगा। और शायद तभी सेक्स संबंधों में भी नियम कायदे बने थे और ऐडल्ट्री भी अनैतिक और पाप तभी से माना जाने लगा। दुनिया की सारी संस्कृति , सारे सेक्ट्स , सारे धर्म बिना किसी अपवाद के ऐडल्ट्री को अनैतिक मानने लगे जिसे बाद में सिविल और क्रिमिनल रॉंग मान लिया गया।
सभ्यताओं का जैसे-जैसे क्रमिक विकास हुआ, उन्नत्ति हुई,व्यक्तिक स्वतंत्रता और महिला अधिकार आदि के प्रश्नों से समाज को दो-चार होना पड़ा। 19 वीं शताब्दी आते-आते यूरोप में यह विमर्श बहुत जोर पकड़ चुका था कि ऐडल्ट्री को क्रिमिनल ऑफेन्स माना भी जाय या नहीं। विमर्श के केंद्र में भी तब भी वही प्रश्न थे कि यह व्यक्तिक स्वतंत्रता के खिलाफ है और एकतरफा है। धीरे-धीरे ऐडल्ट्री कानून में ढील दी गयी। आज यूरोपियन यूनियन के सभी देश , ब्रिटेन सहित, ऐडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से ख़त्म कर चुके हैं। अमेरिका के अलग -अलग राज्यों में अलग -अलग प्रावधान हैं लेकिन इस कानून की पकड़ बहुत ढीली कर दी जा चुकी है। सभी इसे ख़त्म करने की राह पर हैं। ऐडल्ट्री के बेसिस पर तलाक लेने या देने के प्रावधान जरूर हैं।
जहाँ तक भारत में इससे संबंधित कानून के इमर्ज होने की बात है , इसकी शुरुआत होती है 1834 से जब चार्टर एक्ट 1833 के तहत ब्रिटिश इंडिया में पहला लॉ कमिशन बनाया गया था जिसका उद्देश्य भारतीय समाज के तानेबाने को देखते हुए उसी हिसाब से लॉ को कोडीफ़ाय करना था। इस पहले लॉ कमीशन के चेयरमैन थे लॉर्ड मैकाले और अन्य सदस्य थे J.M. Macleod, G.W. Anderson, और F. Millet, उस कमिशन में भी ऐडल्ट्री पर कानून बनाने की चर्चा हुई। इस बात का भी गहन मंथन हुआ कि ऐडल्ट्री को अपराध माना भी जाय या नहीं और चारों इस बात पर सहमत थे कि ऐडल्ट्री को क्रिमिनल ऑफेंस मानने की कोई वजह नहीं है और इसलिए जो ड्राफ्ट बनाये जा रहे थे उसमें भी इस विषय पर कुछ खास नहीं कहा गया। तीनों प्रेसिडेन्सीज से जो फैक्ट्स और ओपीनियंस कलेक्टस किये गए थे उसके रिव्यु के बाद लार्ड मैकाले ने जो निष्कर्ष निकाला वह कुछ इस प्रकार से है ,
” ऐसा प्रतीत होता है कि ऐडल्ट्री के लिए पनिशमेंट निर्धारित करने का किसी को कोई लाभ नहीं है। देश की पूरी आबादी दो मतों में विभाजित दीख रही है- एक तरफ वे लोग हैं जो यह मानते हैं कि इसके लिए मौजूदा दंड या कोई भी दंड उचित नहीं है जबकि दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जिनका कहना है कि ऐडल्ट्री से जो व्यक्ति पीड़ित होगा उसे आर्थिक मुआवजा दिलाना पर्याप्त होगा। वे लोग जिनका सम्मानभाव अपनी पत्नियों के अडलट्रस होने के कारण पेनफुली प्रभावित होता है , वे ट्रिब्यूनल में गुहार नहीं लगा सकेंगे। वे लोग जिनके अहसास थोड़े कम नाजुक हैं उन्हें उचित मुआवजा देकर संतुष्ट किया जा सकेगा। अतः इन परिस्थितियों में हम समझते हैं कि ऐडल्ट्री को सिर्फ सिविल wrong ही माना जाना चाहिए , अपराध नहीं।
इसके बाद 1853 में दूसरा लॉ कमीशन बना जिस पर CPC को ड्राफ्ट करने की जिम्मेवारी थी और जिसके चेयरमैन सर जॉन रोमिली थे, उन्होंने इस विषय पर अलग रुख लिया और ऐडल्ट्री पर मैकाले की समझ से अलग रास्ता अख्तियार करते हुए, लेकिन भारत में महिलाओं की स्थिति उनकी रिपोर्ट पर पूरा भरोसा जताते हुए यह कहा –
” एक तरफ जहाँ मेरा मानना है कि ऐडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से हटाया नहीं जाना चाहिए वहीँ दूसरी तरफ हम इसके दायरे को ऐडल्ट्री टुवर्ड्स मैरिड वीमेन तक ही सीमित कर देने के पक्षधर हैं। और यह भी कि महिलाओं की जो दयनीय स्थिति इस देश में है उसे देखते हुए ऐडल्ट्री के अपराध की जिम्मेवारी और अपराधी सिर्फ पुरुष को ठहराने के पक्ष में हैं। ”
उन्होंने आगे कहा —
” यद्यपि हम अच्छी तरह समझते हैं कि मानव प्रजाति के सबसे महत्वपूर्ण हितों में से एक है उसके स्त्रियों की शुद्धता और वैवाहिक संबंध की पवित्रता। लेकिन हम इस देश की सामाजिक स्थिति और महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए इस कानून के माध्यम से यह बहुत शिद्दत से चाहते हैं कि पुरुष जाति अपनी पत्नी को ऐडल्ट्री के लिए पनिश करने से पहले थोड़ा रूककर विचार करे। इस देश में महिलाओं की दशा बहुत बुरी है, इंग्लैंड और फ्रांस से बहुत भिन्न। बाल विवाह जैसी बुरी प्रथा यहाँ प्रेवेलन्ट हैं। वे खुद बच्ची हैं और विवाहित हैं। मर्दों के लिए बहुविवाह(पोलीगामी) यहाँ आम है। और इस चक्कर में मर्द अपनी पहली पत्नियों का दूसरी पत्नी या औरत के चक्कर में उपेक्षित और तिरस्कृत छोड़ देते हैं। अपने पति का प्यार और सम्मान पाने के लिए उनको भारी प्रतिस्पर्धा से जूझना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में जहाँ मर्दों को अपना जनानाखाना कई औरतों से भरने की आजादी है और वर्तमान कानून उस पर पाबन्दी नहीं लगाता, हम महिलाओं के जीवन में व्याप्त अस्थिरता के लिए कोई कानून बना पाने में अनिच्छुक और असंतुष्ट हैं। हम इतने विजनरी नहीं कि हजारों सालों से इस समाज में एक बुराई के रूप में गहरे जड़ तक व्याप्त , पुरुषों के लिए बहुविवाह प्रथा पर रोक लगाने के लिए कानून लेकर आयें। इसे हम समय पर छोड़ दे रहे हैं लेकिन हमें यह पूरा विश्वास है कि जैसे- जैसे शिक्षा का प्रसार होगा, समाज के लोग शिक्षित होंगे, यह बुराई जो बहुविवाह के रूप में मौजूद है, ख़त्म होती जायगी। लेकिन जब तक ये बुराइयाँ समाज में मौजूद हैं, और जब तक ये बुराइयाँ अपने कभी न असफल होने वाले प्रभाव से समाज की महिलाओं के सम्मान और प्रसन्नता को क्षुण्ण करती रहेगी , हम उन महिलाओं के लिए ऐडल्ट्री में और ज्यादा दंड निर्धारित करने के पक्ष में नहीं है जो पहले ही बहुत ज्यादा प्रताड़ना झेल रही हैं। ”
इस तरह हम देखते हैं कि तत्कालीन विचारकों और नीति नियंताओं ने ऐडल्ट्री को कानूनन अपराध मानने या न मानने के पीछे क्या तर्क दिए और ऐडल्ट्री के अपराध के दायरे में सिर्फ विवाहित महिलाओं को क्यों रखा और यह भी कि इस अपराध के लिए सिर्फ पुरुषों को क्यों अपराधी माना गया, महिलाओं को क्यों नहीं। तत्कालीन समाज में बालविवाह और पुरुषों में बहुविवाह आम थी और महिला की सामाजिक स्थिति एक गुलाम या एक वस्तु से ज्यादा कुछ न थी। ऐसी भी शादियाँ आम थीं जिसमें मर्द अपने से 40 साल कम उम्र की लड़की से शादी कर लेता था।
इसलिए ऐडल्ट्री एक क्रिमिनल ऑफेंस के तौर पर वर्तमान स्वरुप में कानून में IPC की धारा 497 की शक्ल में आया जो 1853 में सेकंड लॉ कमिशन के बनने के बाद गहन विमर्श का उत्पाद था। 1860 में यह इंडियन पीनल कोड 1860 लागू हो गया जो आज तक रिलेवेंट है।
युवा अधिवक्ता लालबाबू ललित उच्चतम न्यायालय सहित दिल्ली के न्यायालयों में वकालत करते हैं.
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