स्त्रीकाल डेस्क
20 सितम्बर 2018 से देश की स्त्रियाँ “बातें अमन की” यात्रा पर हैं. यह यात्रा देश भर में अमन राग बिखेरते हुए अपने समापन लक्ष्य की ओर पहुँच चुकी है. 13 अक्तूबर 2018 को अमन की इस यात्रा का समापन समारोह दिल्ली में होना है.
देश के वर्तमान हालात से हम सब वाकिफ हैं. मॉब लिंचिंग, लव जेहाद, हिन्दू-मुस्लिम के बीच फैलता जहर और मार दिए जाते लोग, संविधान का अपमान और देश भक्ति, राष्ट्रवाद के नाम पर अराजक जुनूनी जत्था जिस तरह से हमारे खुबसूरत देश की रन बिरंगी संस्कृति और मेल जोल जे सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न कर कर रही है उसमे सबसे बड़ी देश के वर्तमान हालात से हम सब वाकिफ हैं. मॉब लिंचिंग, लव जेहाद, हिन्दू-मुस्लिम के बीच फैलता जहर और मार दिए जाते लोग, संविधान का अपमान और देश भक्ति, राष्ट्रवाद के नाम पर अराजक जुनूनी भीड़ तंत्र जिस तरह से हमारे खुबसूरत देश की रंग बिरंगी संस्कृति और मेल-जोल के सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न कर रही है उसका सबसे ज्यादा असर और परिणाम इस देश की स्त्र्यों को भुगतना पड़ता है. कठुआ, उन्नाव, अख़लाक़ और अनेक घटनाओं ने इस देश की आधारभूत संरचना को चोट दी है. इसलिए बिना किसी राजनीति के देश भर की महिलाएं निकल पड़ी अमन की बात करने. आयोजक संस्थाएं हैं अनहद और एनएफआईडवल्यू.
लगभग 500 से ऊपर विभिन्न सामाजिक समूहों ने इस यात्रा में शिरकत की है. अमन की इस यात्रा को पांच जत्थों में बांटा गया है और प्रत्येक समूह में 20 से 25 महिलाएं हैं जो पांच अलग-अलग रास्तों से पूरे देश में बंधुत्व, अमन और अधिकारों के लिए लोगों को सन्देश दे रही हैं. पांच राज्यों –केरल तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर, आसाम और दिल्ली से शुरू होकर पूरे देश भर के लोगों के साथ अमन की बातें करता हुआ हर दस्ते ने आठ से दस राज्यों का सफ़र किया और हर राज्य से स्थानीय लोग जुड़ते गए अंततः दिल्ली में आज इसका समापन होगा. इन पांच यात्रा मार्गों के नाम भी अलग –अलग उद्देश्यों के साथ दिए गए हैं.
मसलन, पहली यात्रा जो कश्मीर से होते हुए हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा होते हुए दिल्ली पहुचेगी उसे “मैत्री यात्रा” नाम दिया गया है. दूसरी यात्रा जो केरल, कर्नाटका, महाराष्ट्र, गुजरात होते हुए दिल्ली पहुंचेगी उसे “एकजुटता यात्रा” नाम दिया गया है. तीसरी यात्रा जो तमिलनाडु से होते हुए आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओड़िसा, छत्तीसगढ़ होते हुए दिल्ली आनी है उसे “एकता यात्रा” नाम दिया गया है. चौथी यात्रा जो दिल्ली से होते हुए उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, मध्यप्रदेश राजस्थान होते हुए पुनः दिल्ली आनी है उसका नाम “समानता यात्रा” दिया गया है. पांचवीं और अंतिम यात्रा मार्ग का नाम “न्याय यात्रा” दिया गया है जो उत्तर पूर्व के राज्यों नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय आसाम, पश्चिम बंगाल और बिहार होते हुए दिल्ली आनी है.
इस यात्रा की खासियत यह रही कि प्रत्येक यात्रा को स्थानीय लोगो का भरपूर साथ मिला. खासकर युवा इस मुहीम से जुड़े. जहां जहां भी यह यात्रा गई, वहाँ के स्थानीय लोगों ने सांस्कृतिक , कार्यक्रमों, नाटकों आदि के द्वारा इन जत्थों का स्वागत किया. अमन और भाईचारे से रहने की कसमें खायीं. मुम्बई, पटना, दिल्ली, चेन्नई, तमिलनाडु, केरल आसाम, नागालैंड आदि अनेक स्थानों के स्थानीय अखबारों ने इस यात्रा को सराहा और खूब महत्व दिया. एन ऍफ़ आई डब्लू की एनी राजा ने इस यात्रा को हरी झंडी देने के कार्यक्रम में इस यात्रा की जरुरत को बतलाते हुए कहा था कि आज हमारी लड़ाई विभिन्न प्रकार सामाजिक अन्याय, हिंसा और घृणा के खिलाफ है…साम्प्रदायिकता और संविधान की अवमानना के खिलाफ है..” अनहद की शबनम हाशमी ने ‘वर्तमान समय में घृणा और भय के खिलाफ स्त्रियों द्वारा अमन की यात्रा को महत्वपूर्ण बताया और शान्ति के लिए स्त्रियों की भागीदारी की बात कही.’
इस यात्रा की सार्थकता और इसके दूरगामी परिणाम को लेकर चर्चा में कई तरह के आंकड़ों के द्वारा बताया गया कि किसी भी तरह की हिंसा में सबसे अधिक शोषण या परिणाम स्त्रियों को ही भुगतना पड़ता है. इसलिए अमन के लिए भी स्त्रियों को ही आगे आना होगा. एक शोध आंकड़े के द्वारा बताया गया कि –“1977-1996 की अवधि के दौरान दुनिया के अधिकांश देशों के आंकड़ों के सांख्यिकीय विश्लेषण से यह कहा जा सकता है कि महिलाओं की राजनितिक और संसदीय हिस्सेदारी से राज्य द्वारा की गई हिंसा, मानवाधिकारों के दुरुपयोग, राजनीतिक कारावास, यातना, हत्या, और गायब होने आदि में निश्चित कमी आएगी.” इसी तरह एक अन्य शोध निष्कर्ष को सामने रखते हुए कहा गया कि “मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण एशिया के 30 देशों में 286 लोगों के साथ साक्षात्कार बताते हैं कि महिलाएं अक्सर आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहले खड़ी होती हैं. चूँकि कट्टरतावादी ताक़तों का पहला निशाना स्त्रियाँ ही होतीं हैं और उनके ही अधिकारों का हनन और प्रतिबन्ध पहले होता है. सशस्त्र संघर्ष से पहले वही घरेलु हिंसा की शिकार होती हैं. पिछले तीन दशकों में 35 देशों की 40 शांति प्रक्रियाओं के एक अध्ययन से पता चला है कि किसी शांति प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से कोई महिला समूह क्रियान्वित करती हैं तो शान्ति समझौता लगभग हमेशा सर्वसम्मति से पूरा होता है.”..”लिंग आधारित भेदभाव और हिंसा विकासशील देशों में लड़कियों और महिलाओं की क्षमता को नष्ट कर देता है और उन्हें गरीबी से बाहर नहीं आने देता. शोध दर्शाते हैं कि है स्थानीय स्तर पर, महिलाएं अपने घरों और समुदायों के भीतर शांति का निर्माण जारी रखती हैं और परिवर्तन के लिए सामूहिक रूप से एक साथ आती हैं।“
‘बातें अमन की’ यात्रा में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और केरल, राजस्थान से जोरहाट तक- देश की सारी दिशाओं से महिलाओं का जत्था सिर्फ एक ही मांग को लेकर सफर कर रहा है कि संविधान पर हमला करने वाले, धर्म और जाति के नाम पर लड़वाने वाले लोग महिला विरोधी हैं। अमन-शांति और संविधान की रक्षा के लिए देश के पांच मार्गों से महिलाओं का परचम लहरा रहा है.
नफरत के खिलाफ मोहब्बत का पैगाम लेकर निकली यात्रा, ‘बातें अमन की’ अब अपने आखिरी पड़ाव में पहुँच गई है. 13 अक्टूबर को यह कारवां दिल्ली में थम जायेगा.
बातें अमन की’यात्रा की मुख्य आयोजक और सामाजिक संस्था अनहद की शबनम हाशमी ने बताया कि देश में बहुत ज्यादा बैचेनी है। पांच मार्गों पर चल रही यह यात्रा 13 अक्टूबर को दिल्ली पहुंच रही है. एक-एक बस में देश भर से महिलाएं चल रही हैं। ये औरतें सीधे-सीधे राजनैतिक नेताओ की नफरत की राजनीति को चुनौती दे रही हैं। इनका मानना है कि 2019 के आम चुनावों में आम भारतीयों का यह दुख-दर्द प्रतिबिंबित होगा.
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