महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, में एक फर्जी मायग्रेशन प्रकरण में पूर्व कुलपति, साहित्यकार और पुलिस के बड़े अधिकारी रहे विभूति नारायण राय एवं विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों के खिलाफ सेवाग्राम पुलिस स्टेशन,वर्धा में दर्ज एफआईआर में नया मोड़ आ सकता है. परीक्षा विभाग के एक कर्मचारी भालचंद्र ने, जो फर्जी मायग्रेशन प्रकरण के दौरान विभाग में कार्यरत था, कुलपति राय की इस मामले में संलिप्तता के संकेत दिए हैं. भालचंद्र मार्कशीट, मायग्रेशन आदि जारी करने वाला स्टाफ रहा है. कुछ दिन पहले ही वर्धा के एक कोर्ट ने इस प्रकरण में पुलिस द्वारा दायर क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर फिर से जांच का आदेश दिया था.
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पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय |
हमारे पास उपलब्ध ऑडियो क्लिप में इस प्रकरण में एफआईआर दर्ज कराने वाले राजीव सुमन और कर्मचारी भालचंद्र के बीच की बातचीत इस प्रकार है, जो पूर्व कुलपति वी एन राय की इस प्रकरण में सीधी संलिप्तता का संकेत देती है:
लिंक क्लिक कर पूरी बातचीत सुन सकते हैं: बातचीत का ऑडियो
“राजीव (रा.)- हेलो, भालचंद्र जी बोल रहे हैं..
भालचंद्र (भा.)- हेलो. हाँ जी.
रा. भालचंद्र जी
भा. जी.
रा. हां. नमस्कार. मैं राजीव सुमन बोल रहा हूं.
भा. हाँ नमस्कार. बोलिए, बोलिए सर . बोलिए.
रा. पहचान पाए कि भूल गए.
भ. एकदम.. एकदम पहचान गए.
रा. कैसे हैं?
भ. बस बढ़िया भाई.
रा. आपसे एक मदद चाहिए थी अगर कर पाए तो बहुत एहसान मानूंगा…
भा. बताइये भाई…..
रा. मुझे बस एक बात बताइये कि ये जो माइग्रेशन सर्टिफिकेट है वो यूनिवर्सिटी मतलब कंप्यूटर से प्रिंट आउट
करती है ना..
भा. जी. फार्मेट प्रिंटेड होता है और उसपर जो कॉलम खाली रहते हैं
………….
(इस विषय पर बातचीत थोड़ी देर होती है. फिर एक पेमेंट की बातचीत है बीच में, वह ट्रिब्यूनल के मामले में है.)
भा. एक दो बार आपकी फ़ाइल आई थी पमेंट के लिए मुझे ध्यान था कि वो
रा. अच्छा अब आप फाइनेंस में हैं इसलिए
भा. हाँ…आर्बिट्रेशन वाले में जो 5000 रुपया पेमेंट होता है तो दुबारा मेरे पास फ़ाइल आई तो मुझे ध्यान है
रा- अरे उस टोकन मनी का क्या मतलब जब जीवन ही जब..
भा अरे उसका तो कोई मतलब ही नहीं आपका मामला जो उलझा हुआ है वही सुलझ जाए हम तो इतना ही चाहते
हैं.
रा. सुलझेगा तो नहीं आप जान रहे हैं कि क्या मामला हुआ है.
भा नहीं वो तो आपको भी मालूम है मुझे भी मालूम है. उसमे कोई छिपने-छिपाने वाली बात नहीं है. चुकी अब
क्या किया जाए, चुकी मामला इस तरह से उलझा हुआ है हम तो देख रहे हैं सारी चीजों को न. अब आर्बिट्रेटर
लोगों ने क्या पक्ष रख रहे हैं, आप क्या पक्ष रख रहे हैं क्या निचोड़ निकलेगा वह तो अभी क्या..
रा. आर्बिट्रेशन से ज्यादा वो मैटर होगा. देखिये क्रिमिनल मैटर हो गया ….
भ. क्रिमिनल मैटर चुकी कैसे उलझा हुआ मामला हो गया, क्या त्रिपाठी जी ने किया मैं खुद नहीं समझ पा रहा
हूँ उनको.
(त्रिपाठी मतलब कौशल किशोर त्रिपाठी, जो परीक्षा प्रभारी है और इस मामले में एक अभियुक्त भी. इसके बाद की बातचीत में पूर्व कुलपति विभूति राय की संलिप्तता के बारे में भालचंद्र बोलता है.)
रा. उसमे, उस समय विभूति बाबू ने किया क्या था न कि दिया था पुराने फार्मेट पर और रिसीविंग ले लिया
था फोल्डेड पेपर पर.
भा. हां हाँ. यही सब. उनके दिमाग में ये सब चलता है जो लोग करते आये हैं ऐसा कुछ भी कर सकते हैं.
आपके सामने वाला इतना थोड़े ही सोचता है कि हमारे साथ इस तरह से भी चीटिंग हो सकती है.
रा. हाँ..अब सुप्रीम बॉस है और गुड फेथ में चीजें हो रही हैं तो कैसे..सोच भी नहीं सकता.
भा. एकदम एकदम भाई. अगर सामने बैठा वाला सही कह रहे हैं सुप्रीम बॉस अगर वो इस तरह से कर सकता
है तो सामने वाला तो भाई हर चीज़ को नहीं देखता.
रा. हाँ. इसमें कादर नवाज़ जी का बहुत गन्दा भूमिका रहा.
भा. अरे क्या जो है. अरे सामान्य रूप से आप देखिये की कोई किसी को पैसा देता है आदमी नहीं गिनता है
लो रख लो ठीक है अब दिया होगा तो सही दिया होगा. बताइये अब छोटी छोटी चीजों में भी. अरे जो आप
कह रहे हैं सही भी है. अब क्या ..चीजें जो है ..
रा. चलिए जो होना था अब..
भा. आदमी कहाँ से कब चीटिंग कर ले जाए कोई नहीं..
रा. मतलब इस तरह से साजिश..देखिये कोई भी वाइस चांसलर होता ना जो एकेडेमिक्स से आता तो इस
तरह मतलब इस तरह से फ्राड नहीं कर पाता. इस तरह की साजिश नहीं करता.
भा. नहीं करता..नहीं करता..
रा. चूँकि ये पुलिसिया बैकग्राउंड से रहे तो उनके दिमाग में इसी तरह की प्रवृत्ति रही है
भा. नहीं. इसी तरह से लोग अपने को करते आए हैं भाई. आप जो कह रहे हैं न जो बैकग्राउंड होता है न उसका
भी असर तो रहता ही रहता है.
रा. एकदम एकदम.
भा. बस वही. वह है.
रा. बस ये सब है तो उसी में कादर नवाज खान सपोर्ट कर गए..उसी में सेल्फ अटेस्टेशन वाला मामला बना.
भा. हम्म..
रा. यही सब..कोई और जानकारी हो तो थोडा जरुर बताइयेगा बियोंड इसके
भा. अब यार उसमे जानकारी क्या..आपको भी जानकारी है मुझे भी जानकारी है क्योंकि न तो आप ऐसा कर सकते हैं. ठीक है न. आप जो कह रहे हैं जो बैकग्राउंड का असर है वही है. उसमे सच्चाई है. हंड्रेड परसेंट उसमे एक भी परसेंट कटने वाली चीज़ नहीं है. लेकिन उसको कैसे फेस करेंगे वो बड़ा मुश्किल काम हो गया.”
मायग्रेशन प्रकरण में क्या और क्यों झूठ बोल रहे हैं. डिप्टी रजिस्ट्रार कादरनवाज खान
इस केस से संबंधित एक बड़े अधिकारी कादर नवाज़ खान हैं, जिनका नाम भी उक्त एफ. आई.आर. में है. बताया जाता है कि उन्होंने पुलिस को और इस प्रकरण में राजीव सुमन के निष्कासन के सम्बन्ध में बने ट्रिब्यूनल के समक्ष झूठा बयान दिया है. ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज एपी देशपांडे कर रहे हैं. दरअसल शोधार्थी राजीव सुमन ने अपने एफआईआर में बताया था उन दिनों अकादमिक के डिप्टी रजिस्ट्रार के रूप में कादर नवाज खान ने उन्हें और अन्य विद्यार्थियों को अपने डॉक्यूमेंट सेल्फ अटेस्ट के लिए बुलाया था. नवाज ने अपने बयान में कहा था कि उन्होंने दस्तावेजों पर सेल्फ अटेस्ट करने को किसी को नहीं बुलाया था, जबकि उनसे एक बड़े अधिकारी यानी डीन और दलित एवं आदिवासी अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष, जहाँ सुमन शोधार्थी थे ने उनसे विपरीत बयान दिया है। डीन और विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर एल कारुन्यकारा एवं दो शोधार्थियों ने पुलिस और ट्रिब्यूनल को बताया है कि दस्तावेजों को अटेस्ट करने के लिए कादर नवाज खान ने शोधार्थियों को बुलवाया था. सवाल है कि कादर नवाज खान क्यों झूठ बोल रहे हैं, वे क्या छिपा रहे हैं?
उलटा हस्ताक्षर
बताया जाता है कि मायग्रेशन के रिसीविंग में सभी विद्यार्थियों के हस्ताक्षर सीधे फॉर्म में हैं, सिवाय दो के, जिनके मायग्रेशन का फर्जी होने का केस दर्ज है. इस तथ्य का खुलासा इस प्रकरण के सिविल मामले में गठित ट्रिब्यूनल में हुआ है. इन दो शाधार्थियों का एफआईआर में कहना था कि उनके हस्ताक्षर फोल्डेड कागज़ पर लिए गये थे. दो विद्यार्थियों के हस्ताक्षर उलटे फॉर्म में हैं और यह फोल्डेड कागज पर ही संभव है जब कोई सामने से कागज़ बढ़ा कर साइन ले रहा हो.
गेंद पुलिस के पाले में
इस प्रकरण की अब वर्धा पुलिस कोर्ट के आदेश पर दुबारा जांच कर रही है. पहले इस मामले में आधा-अधूरा जांच कर पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट फ़ाइल कर दी थी, जिसे कोर्ट ने रिजेक्ट करते हुए दुबारा जाँच का आदेश दिया है. कोर्ट ने तीन महीने की अवधि दी थी. तीन महीने से अधिक हो गए हैं और पुलिस जाँच कर रही है. सवाल है कि क्या इन तथ्यों के आधार पर पुलिस शामिल अधिकारियों, कर्मचारियों को गिरफ्तार कर उनसे पूछताछ करेगी? क्या यह जानने की कोशिश करेगी कि विभाग का कर्मचारी क्या संकेत दे रहा है और डिप्टी रजिस्ट्रार क्यों झूठ बोल रहे हैं. तथा के के त्रिपाठी ने ऐसा क्या किया जिसका संकेत उसका सहयोगी दे रहा है.
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