कुछ निर्णयों के व्यवहारिक असर का मूल्यांकन समय करता है लेकिन उनके प्रतीकात्मक असर दूरगामी होते हैं. कभी कांग्रेस का अपना क्षेत्र रहा नागपुर पिछले चुनाव में नितिन गड़करी के जरिये बीजेपी की झोली में गिरा. यह चुनींदा सीटों में से था जिसपर जीत का कारण मोदी लहर से अधिक उम्मीदवार का अपना प्रबंधन और नेतृत्व था. गड़करी बीजेपी में संघ के सबसे निकट माने जाते हैं और गाहे-बगाहे चर्चा होती रहती है कि बहुमत न होने की स्थिति में मोदी की जगह गड़करी भी प्रधानमंत्री हो सकते हैं.
संघ और बीजेपी के लिए इतने महत्वपूर्ण सीट पर और ख़ासकर दो बड़ी पार्टियों की आपसी जोर आजमाइश में बीच पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया (पीपीआई) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का मनीषा बांगर का निर्णय प्रतीकात्मक महत्व का है और व्यवहारिक परिणाम तो 23 मई को ही सामने आयेगा. उनकी उम्मीदवारी का एक बड़ा महत्व यह है भी है कि उनका परिवार डा. अम्बेडकर के नेतृत्व में हुए स्त्री आंदोलनों का भी भागीदार रहा है.
डॉ. मनीषा बांगर पुरुषवादी वर्चस्व की मानसिकता की चुनौतियों से जूझ कर अपनी स्वतंत्र पहचान गढ़ने वाली देश की चुनिंदा बहुजन नेत्री हैं. पेशे से डॉक्टर मनीषा, संभ्रात कल्चर और सुख-सुविधाओं का त्याग कर, जमीनी संघर्ष में कोई 20 वर्ष पहले कूद पड़ी थीं. अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी, तेलगू आदि भाषाओं की जानकार मनीषा न सिर्फ युनाइटेड नेशंस जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बहुजन-मुद्दे उठाती रही हैं बल्कि देशव्यापी स्तर पर आमजन की समस्याओं को सफलतापूर्वक उठा रही हैं. वह अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के शोषण के खिलाफ सशक्त भूमिका निभा रही हैं.
महिलाओं की चुनौती को लेकर मनीषा कहती हैं “पुरुष सत्तात्मक समाज में सामान्य तौर पर महिलाओं की चुनौतियां दोगुनी हैं लेकिन अगर आप बहुजन समाज की महिला हैं तो यह चुनौती और भी गंभीर हो जाती है. पुरुषवादी विचारों के लोग महिलाओं की योग्यता को आसानी से पचा नहीं पाते. फिर भी हम इस बात की ज्यादा चिंता नहीं करतीं और अपने संघर्ष को और भी ऊर्जा के साथ जारी रखती हैं”.
बामसेफ की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रही मनीषा उसके रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट विंग की कार्यकारिणी सदस्य भी रही हैं. वे मूल निवासी संघ की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रही हैं. फिलवकत मनीषा बामसेफ की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के अलावा पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं.
डॉ. मनीषा बांगर नागपुर से चुनाव लड़ने को लेकर कहती हैं, “हम चुनावी जंग प्रतीक के लिए नहीं बल्कि परिवर्तन के लिए लड़ रही हैं. हमारा उद्देश्य सामंतवादी वर्चस्व को चकनाचूर करके दलित, शोषित, पिछड़े और वंचित समाज के मनोबल को स्थापित करना है और यह लोकसभा में जीत दर्ज करके ही संभव हो सकता है”. एक सोशल एक्टिविस्ट से पॉलिटिकल एक्टिविस्ट के तौर पर अपने रुपांतरण के कारणों पर रौशनी डालते हुए मनीषा कहती हैं;- “सामाजिक परिवर्तन का अगला फेज राजनीतिक या सियासी निजाम में बदलाव का फेज होता है. बीस वर्षों के सामाजिक आंदोलनों के बाद मैं यह बात अब शिद्दत से महसूस करने लगी हूं कि अब राजनीतिक परिवर्त अपरिहार्य है. और यही वह अवसर है जब हमें सियासी मैदान में कूदन जाना चाहिए. यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि मैंने यह फैसला कोई खुद से नहीं बल्कि अपने समाज से प्रेरणा ले कर ही किया है. हमारे आत्मविश्वास का यही कारण भी है”. नागपुर में 11 अप्रैल को चुनाव है. परिणाम 23 मई को आयेगा. लेकिन डा. अम्बेडकर की परिवर्तन भूमि एक असरकारी उपस्थिति को महसूस कर रही है.