राजीव सुमन
“मेरा किया हुआ वादा मैंने कभी नहीं तोड़ा।” कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का यह वाक्य कांग्रेस के इस बार के घोषणा पत्र 2019 का पंच लाईन है. छप्पन पन्नो का यह भारी भरकम चुनावी घोषणा पत्र की पड़ताल स्त्री मुद्दों के सन्दर्भ में यदि देखें तो निम्नलिखित वादे यहाँ साफ़ नज़र आते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में आशा कार्यक्रम का विस्तार करने का वादा है और प्रति 2500 से अधिक आबादीवाले गांवो के लिए दूसरी आशा कार्यकर्ता (स्वास्थ्य कार्यकर्ता) की नियुक्ति करेंगे।
महिला सशक्तीकरण और जेंडरसंवेदीकरण के मुद्दे पर इस बार कांग्रेस ने बहुत सारे वायदे किये हैं. सबसे पहले तो जेंडरसंवेदी शब्द को सभी योजनाओं पर लागू करने की बात कर रही है. महिला आरक्षण का मुद्दा दशकों से राजनीतिक मुद्दा है पर आज तक वह पारित नहीं हो पाया. पर कांग्रेस के इस घोषणा पत्र में महिला सशक्तिकरण से सम्बंधित विषय पर इसको पहला स्थान दिया गया है. घोषणा पत्र में लिखा है, “कांग्रेस 17 वीं, लोकसभा के पहले सत्र में, और राज्य सभा में, संविधान संशोधन विधेयक पास करवाकर, लोकसभा और राज्य विधान सभाओं में, महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करेगी।“ दूसरे नंबर पर केन्द्र सरकार के सेवा नियमों में संशोधन करके केन्द्रीय नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने की बात लिखी गई है. इसके बाद समान पारिश्रमिक अधिनियम को प्रभावी ढ़ंग से लागू करने, महिलाओं और पुरुषों को समान काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित करने के लिए सभी संबधित कानूनों की समीक्षा की घोषणा है. इसके अलावा विशेष आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत्, श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने, कामकाजी सुरक्षित छात्रावास और सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था तथा महिलाओं को रात की पाली में काम करने से प्रतिबंधित करने वाले कानून के प्रावधान को रदद् करने की बात शामिल की गई है. ये सभी बातें वास्तव में महिला अधिकारों और उनके विकास के साथ ही समानता के लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण हैं, पर किसी राजनितिक पार्टी के घोषणा पत्र में शामिल ये मुद्दे कहीं महज चुनावी वादे न साबित हो जाएं.
समाज के श्रमशील वर्ग की महिलाओं के लिए भी महत्वपूर्ण घोषणा है जिसमे प्रवासी महिला श्रमिकों के लिए पर्याप्त रैन बसेरों, कसबों और शहरों में महिलाओं के लिए स्वच्छ एवं सुरक्षित शौचालयों की संख्या बढ़ाने, सार्वजनिक स्थलों, स्कूलों और कॉलेजों में सेनेटरी नेपकिन वेंडिंग मशीने लगाने की बात है.
महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से कार्यस्थलों पर यौन उत्पीडन अधिनियम 2013 की व्यापक समीक्षा करने और इस अधिनियम को सभी कार्यस्थलों तक विस्तारित करने के वादे के साथ ही महिला उत्पीडन के किसी भी रूप को समाप्त करने की प्रतिबद्धता इस घोषणा पत्र में है. इसके अतिरिक्त आपराधिक मामलों में महिला एवं बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की जांच के लिए एक अलग जांच एजेंसी स्थापित करने के लिए एक मॉडल कानून पारित करने और राज्य सरकारों से भी इसी मॉडल कानून की तर्ज में कानून बनाने की बात इस घोषणा पत्र में है.
ग्रामीण और निम्न वर्ग की महिलाओं के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM आजीविका) और स्वयं सहायता समूहों को महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बनाने, आजीविका के साधन बढ़ाने और सामाजिक बदलाव की शुरूआत करने के लिए NRLM-2 की शुरूआत करने का वादा भी है.
सामाजिक क्षेत्र में एकल विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता और निराश्रित महिलाओं को गौरवपूर्ण और सुरक्षित जीवन प्रदान करने के लिए, राज्य सरकारों के साथ मिलकर, कार्यक्रम लागू करने, महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने तथा कानूनों को शक्ति के साथ लागू करने में मदद करने के लिए प्रत्येक पंचायत में महिलाओं को उनके अधिकारों से परिचित कराने के लिए एक अधिकार मैत्री की नियुक्ति, विवाह के पंजीकरण को कानूनन आवश्यक करने के लिए, कानून बनाने तथा बाल विवाह निरोधक कानून को सख्ती से लागू करने की घोषणा है. इसके अलावा कांग्रेस ने आई.सी.डी.एस. कार्यक्रम का विस्तार कर और हर आंगनवाड़ी में जरूरत और मांग के हिसाब से एक क्रेच प्रदान करने का वादा भी अपने घोषणा पत्र में करती है.
जेंडर संवेदी योजनाओं के अलावा कांग्रेस ने देशद्रोह क़ानून को हटाने अथवा ऐफ्सपा कानून को हटाने का वादा भी किया है. इस कानून को हटाने के लिए इरोम शर्मिला पिछले कई वर्षों से भूल हड़ताल करती रही थीं. शिक्षा पर जीडीपी के 6 प्रतिशत खर्च की घोषणा भी महिलाओं की शिक्षा के लिए कारगर कदम होगा. किसानों के कर्ज डिफाल्ट को क्रिमिनल की जगह सिविल करने का निर्णय भी महिलाओं के हित में है, खासकर उन इलाकों में जहाँ पुरुष किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं और महिलायें जिम्मेवारी से पीड़ित हो जाती हैं.
हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुधा सिंह कहती अपने फेसबुक पोस्ट में लिखती हैं:
“एक होता था ‘भारतीय महिला बैंक’ , जिसे महिला उद्यमियों को प्रोत्साहन देने और आर्थिक विकास में महिलाओं को बराबरी का सहभागी बनाने के लक्ष्य के साथ यूपीए गठबंधन सरकार ने चलाया था। सन् 2017 में उसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ मिला दिया गया, कोई हंगामा नहीं हुआ। किसी ने नहीं पूछा कि क्या इस बैंक ने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया था कि उसे मिटा दिया? इसी तरह से यूपीए में पी चिदंबरम के समय में जेंडर बजटिंग की गई थी, आज इसका भी अता-पता नहीं कि यह किस चिड़िया का नाम है।
फिर भी विकास तो है, धरती पर न सही आकाश में ही सही। वैसे भी भारतवासियों को स्वर्ग का फंडा और स्वर्गिक चीजें जल्दी समझ में आती हैं! न तो भारतीय महिला ज़मीनी है और न महिलाओं के मुद्दे.’
राजीव सुमन स्त्रीकाल के संपादन मंडल के सदस्य हैं: