4 अप्रैल को विभिन्न मांगों के साथ देश भर में महिलाओं का मार्च होने जा रहा है. चुनावों के समय में महिलाओं ने अपने राजनीतिक एजेंडे साफ़ किये हैं. इसी की एक कड़ी के रूप में देश भर के (अराजनीतिक) महिला संगठनों के आह्वान पर महिलाएं सडक पर होंगी. जातिवाद से आजादी, मनुवाद से आजादी, पूंजीवाद से आजादी की घोषणा करती देश भर की औरतें महिलाओं के लिए समावेशी आवासीय अधिकार की मांग कर रही हैं.
औरतों के खिलाफ हिंसा, समाज में असमता, पितृसत्तात्मक ढांचे के खिलाफ महिलाओं का यह आगाज देश भर में एक समय पर एक साथ होने जा रहा है. उनका नारा है: बदलाव के लिए महिलाये, बदलाव के लिए हमारा वोट.
महिलाओं का मानना है कि वे नफरत और हिंसा के मौजूदा माहौल के खिलाफ और लोकतांत्रिक गणराज्य के नागरिकों के रूप में अपने संवैधानिक अधिकारों का दावा करने सडक पर उतर रही हैं. महिला मार्च फॉर चेंज का उद्देश्य भारत में महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों पर हमलों के खिलाफ आ राही है आवाजों को एकजुट करना है।
‘देश में फासीवादी और नव-उदारवादी ताकतों में इजाफा और समाज में हिंसा ने महिलाओं के जीवन को प्रभावित किया है। अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुस्लिमों, दलितों और ईसाइयों पर हमले, फर्जी एनकाउन्टर, भीड़तन्त्र द्वारा उन पर हमलों ने भय और असुरक्षा का माहौल पैदा किया है।
पिछले कुछ वर्षों में संविधान पर सीधा हमला देखा गया है, विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर, जिसमें पोशाक, बोलने, लिखने, खाने और चुनने का अधिकार शामिल है. इस हमले ने महिलाओं को ख़ास तौर पर प्रभावित करता है। असंतोष के स्वरों को व्यवस्थित रूप से शांत कर दिया गया है। जबकि सुधा भारद्वाज, शोमा सेन और कई अन्य लोग जेलों में बंद हैं, गौरी लंकेश जैसी महिलाओं को अपनी वाणी और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए अपनी जान तक गंवानी पडी है.’
इन स्थितियों को चिह्नित करते हुए महिलाओं की समवेत आवाज देश भर में गूंजेंगी.