डॉ. अनुपमा गुप्ता व डॉ. मनोज चतुर्वेदी
इन प्रतिक्रियाओं से अलग एक और चिन्ताजनक पहलू इस शोध में यह सामने आया कि वर्तमान लोकप्रिय पोर्न सचमुच ही बहुत हद तक सिर्फ़ पुरुषों की मर्दाना हिंसक छवि को पोषित कर रहा है। स्त्रियाँ इसकी ग्राहक अब तक जाहिरा तौर पर नहीं हैं और न ही पुरुष उनके साथ इस बारे में चर्चा करना चाहते हैं, लेकिन इसकी भुक्तभोगी तो अंततः वे ही सिद्ध हो रही हैं–यह चाहे पोस्ट्स में उनकी जानकारी/अनुमति के बिना साझा की जा रही उनकी तसवीरों और उन पर मनचाहे कमेंट्स के रूप में हो, या सामाजिक कार्यकलापों की पृष्ठभूमि में हमेशा नज़र आ रहे पुरुषों के निजी एजेन्डा हो, अथवा पत्नियों के रूप में उनकी उपेक्षा-उपहास तथा यौन सम्बंधों में उनसे हिंसक अपेक्षाएँ हों। पोर्न के इस लोकप्रिय पुरुषवादी स्वरूप के चलते, एक आम भारतीय अपने शयनकक्ष में बराबरी वाले यौनसाथी का गरिमामय स्थान कभी मिल भी पायेगा, इसमें संदेह होता है। स्त्रियों के लिए प्रासंगिक या स्वास्थ्य की नज़र से सकारात्मक पोर्न वर्तमान में तो लगभग न के बराबर परोसा जा रहा है, या अगर परोसा भी जा रहा है तो उस पर नज़र नहीं पड़ रही है, जैसा कि इस अध्ययन में ‘लस्ट स्टोरीज’ (तालिका 1 सामग्री IX) के साथ हुआ।
यौन-अपराधों के प्रति अध्ययन समूह के लापरवाह नज़रिये की ओर भी हम ध्यान दिये बिना नहीं रह सके (तालिका 1 सामग्री XV)। हालांकि हमें प्रतीत हुआ कि इस पोस्ट में सदस्यों की रुचि मात्र उसकी अतिअश्लील व उत्तेजक भाषा की वजह से है और उसकी विषयवस्तु की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है; किन्तु निश्चित ही इन पुरुषों की भाषारुचियाँ तो कम से कम वही हैं जो शायद दिल्ली के ‘निर्भया कांड’ के बहुनिंदनीय अपराधियों की भी रही होंगी, यह जानना हमारे लिए किसी आघात से कम नहीं था। इन पुरुषों में न सिर्फ सौंदर्यबोध नष्ट हुआ दिखाई दिया बल्कि अपराध को पहचान कर उससे परे हट जाने की सहज मानवीय प्रवृत्ति भी नहीं दिखी। उनकी क्रूर बातें सुनते हुए प्रतीत हुआ कि ऐसे किसी गंभीर अपराध को सामने होते हुए देख कर भी ये सदस्य कम से कम नज़रअंदाज तो ही कर ही देंगे, चाहे स्वयं उसमें भागेदारी न भी करें। हालांकि साक्षात्कार में इस पोस्ट से जुड़े सवाल का जवाब नहीं दिया गया, मगर अन्य प्रश्नों के जवाब में पोर्न की वजह से व्यक्तित्व पर असर पड़ने की किसी भी संभावना से इन्कार किया गया और इसी बात पर जोर दिया गया कि सिर्फ मस्ती के लिए ये सब साझा किया जाता है।
यद्यपि हमने सिर्फ़ एक ऐसी उम्र व सामाजिक स्तर के पुरुषों पर ही यह अध्ययन किया जो इस तरह की रुचियों में पहले ही संतुष्टि पाकर इनसे सहज रूप से दूर हो गये माने जाते हैं; और इसलिए इस अध्ययन के सभी अवलोकनों को सभी पुरुष समूहों पर अथवा तीसरे लिंग के व्यक्तियों पर लागू नहीं किया जा सकता, लेकिन अध्ययन प्रारंभ करने के पहले का हमारा पूर्वानुमान इन प्रेक्षणों के बाद और भी प्रासंगिक प्रतीत होता है कि अन्य ‘कम उम्र, कम शिक्षित अथवा निचले आर्थिक-सामाजिक’ पुरुष समूहों में तो इससे भी अधिक स्त्रा-विरोधी पोर्न सामग्री लोकप्रिय होगी; जो कि फिर से एक भयावह स्थिति की ओर संकेत करता है।
हालांकि विवाह हमारे अध्ययन के शोधबिन्दुओं में शामिल नहीं था, किन्तु फिर भी ‘मध्य वर्ग’ की कामेच्छाओं के अध्ययन में ‘वैवाहिक जीवन’ का हमारे परिणामों में एक अभिन्न पहलू की तरह प्रवेश सहज ही था, क्योंकि भारतीय संस्कृति, यौन-शुचिता, विवाह और परिवार जैसे शब्दों की ‘पवित्रता’ को बचाये रखने का लगभग सारा भार समाज ने हमारे इसी अध्ययन समूह यानी मध्य वर्ग के कंधे पर ही तो थोपा हुआ है। इसलिए अध्ययन में सामने आईं इस वर्ग के वैवाहिक सम्बंधों से जुड़ी कुछ बातों पर गौर करना हमें आवश्यक लगा।
साक्षात्कार के दौरान अपने आखिरी सवाल (साक्षात्कार प्रश्न 12) ‘क्या पत्नी को भी आपकी अनुमति है?’ में हमने ‘अनुमति’ शब्द जानबूझ कर इस्तेमाल किया था क्योंकि हमें लगा कि ये पुरुष स्वयं को पत्नी की नज़र में इतना महत्वपूर्ण तो शायद अब भी मानते ही होंगे कि पत्नी से सच बोलने की अपेक्षा रखें। मगर इस प्रश्न का उत्तर हमें फिर हतप्रभ कर गया! यहाँ तो यौन स्वतंत्रता स्वयं ले लेने के साथ-साथ पत्नी को भी दे दी जा रही है (क्योंकि कदाचित अंदेशा है कि इस राह पर यह तो अंततः होना ही है)। मगर हाँ, इस सब का छुपे रहना अब भी इन पुरुषों को अतिआवश्यक लग रहा है! तो क्या पितृसत्ता खत्म होते हुए भी दम्पत्तियों के बीच इस बेईमानी के रूप में अपने कुछ अवशेष छोड़े जा रही है; जबकि आधुनिक निजी स्वतंत्रताओं के आंदोलनों को तो दरअसल एक अधिक ईमानदार समाज के लिए राह खोलनी चाहिए थी। इस साक्षात्कार के बाद हमें हैरत होने लगी कि विवाह नाम की संस्था को आखिर बचे ही क्यों रहना चाहिये जब यह इतनी पंगु और सिर्फ मुखौटा भर रह जाये? एक दूसरे से इस कदर छुपते हुए पति-पत्नी आखिर किस संस्कृति में, और निजी तौर भी किन व्यक्तियों को, स्वीकार्य हो सकते हैं? ‘विवाह’ अपने मूल रूप में कामेच्छा की सामाजिक-मान्यता-प्राप्त तृप्ति के लिए ही तो रचा गया था। यदि यह अपने इसी मूल उद्देश्य को न सिर्फ़ पूरा नहीं कर पा रहा है, बल्कि स्वयं यौन-अतृप्त रह कर अपनी आड़ में अन्य सभी यौन संबंध रखने का भी लक्ष्य साधता नज़र आ रहा है, तो फिर समाज में इसे इसके अतिमहिमामंडित स्थान से नीचे क्यों नहीं उतार देना चाहिये, ताकि परिवार शब्द की कोई नई व अधिक सहज परिभाषा ढूंढने के लिए आगे बढ़ा जा सके?
और यदि हम विवाह को अमान्य घोषित कर देने के बाद वाली जटिल परिस्थिति से निपटने को अभी तैयार नहीं हैं, तो फिर इस पोर्न के नीले विष से समाज को बचाने के लिए हमारे पास कदाचित एक ही राह शेष रहती है–हमारा सुझाव यह होगा कि क्यों न फिर विवाह को ही बचाया जाए और इसे बचाने हेतु स्त्रियों के लिए कामक्रिया का क्षेत्रा इतना ज्ञेय बनाया जाये कि न सिर्फ पुरुष बल्कि स्त्रियाँ भी अपनी काम अपेक्षाओं को दाम्पत्य की परिधि में ही एक-दूसरे के सामने खुल कर व्यक्त कर सकें! व्यस्क पारिवारिक स्त्रियों के लिए कामशिक्षा की यह संकल्पना उस समाज में पहली नज़र में बहुत अजीब लगती है न, जहाँ माना जाता हो कि विवाह होते ही पति-पत्नी को पर्याप्त कामशिक्षा प्राकृतिक रूप से स्वतः ही मिल जाती है?
पहला क़िस्त: पोर्न के आईने में सामाजिक-सांस्कृतिक चेहरा
इस अध्ययन की हमारी आरंभिक मूल योजना में, उच्च मध्य वर्ग के ऐसे ही किसी स्त्री-ग्रुप का विश्लेषण भी शामिल था ताकि हम उनमें भी चल रही ऐसी चर्चाओं के स्तर की तुलना पुरुषों से कर सकें। किन्तु, केवल पोर्न साझा करने वाले, ऐसे ही किसी स्त्री-ग्रुप को ढूंढने में हम असफल रहे, जो शायद हमारे पास समय की कमी के कारण भी हुआ हो सकता है। हाँ, हमने यह जरूर देखा कि सामान्य स्त्री-ग्रुपों पर जब कभी-कभी द्विअर्थी लतीफे, स्त्रियों/पुरुषों की कामोत्तेजक परिधानों में तसवीरें या सॉफ्ट पोर्न वीडियो पोस्ट हो जाया करते हैं, तब भी इन पर खुल कर चर्चा करने में स्त्रियों की कोई रुचि/साहस नहीं दिखाई देते। पुरुष जहाँ न सिर्फ सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं कि वे ऐसे किन्हीं ग्रुप्स के सदस्य हैं, बल्कि इसका ज़िक्र गर्व के साथ किया जाता है, वहीं स्त्रियाँ इस विषय पर उदासीन ही दिखाई देती हैं। मगर इससे यह निष्कर्ष निकालना भी पूर्णतः सही नहीं होगा कि वस्तुस्थिति ठीक ऐसी ही है। पुरुषों से अपनी मर्दानगी के प्रदर्शन और स्त्रियों से चुप रहने की कड़ी सामाजिक अपेक्षाएँ भी हमारे इस परिणाम के पीछे हो सकती हैं। स्त्रियों के चर्चा करने से हिचकने में एक कारण तो यह धारणा है ही कि इस विषय में स्त्री-ग्रुप में भी मुंह खोलने पर उन्हें चरित्रहीन ही समझ लिया जा सकता है। दूसरा एक कारण मौजूदा लोकप्रिय पोर्न का स्त्री-विरोधी अवतार भी हो सकता है जो इस शोध के जरिये सामने आया। कारण चाहे जो भी हों, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि दोनों समूहों में पोर्न की स्वीकार्यता के स्तर में अभी जाहिरा तौर पर बहुत फ़र्क है। इस शोध के दौरान बार-बार हमें महसूस हुआ कि भारतीय पुरुष अपनी काम इच्छाओं की चर्चा अपने यौन-साथी से न करके, आपस में ही अभिव्यक्त इसलिए करते हैं क्योंकि वे स्त्रियों के साथ इन नाजायज़ मानी जाने वाली इच्छाओं पर चर्चा करने की हिम्मत नहीं कर पाते। और ऐसा इसलिए कि ये दोनों पक्ष काम-जागरूकता के मामले में बहुत अलग-अलग स्तर पर हैं–एक पक्ष अति उदासीन तो दूसरा अतिमहत्वाकांक्षी! इस अध्ययन समूह में लिए गये पुरुष हमारे समाज में सामान्यतः कामसन्तुष्ट ही माने जायेंगे, लेकिन हमने पाया कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। उनकी काम-कल्पनायें उम्र और सफलता के इस पड़ाव पर भी उग्र हैं और चिकित्सा विज्ञान के अनुसार उनकी ये सभी कामेच्छाएँ निरी अप्राकृतिक या यौनविकार भी नहीं मानी जा सकतीं। किन्तु इन कल्पनाओं को पूरा करने के लिए समाज उन्हें कोई सर्वमान्य तरीक़ा नहीं दे पा रहा है। उन्हें पूरा करने की राह में अक्सर वे ही स्त्रियाँ, यानी उनकी पत्नियाँ, आड़े आ रही हैं जिनको समाज हमारी सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के नाम पर काम-अज्ञान के अंधेरे में ढकेले हुए है। और भी आश्चर्य की बात यह है कि यहाँ हम शायद दुनिया की ऐसी एकमात्रा संस्कृति के बारे में चर्चा कर रहे हैं जिसने अपने आदिकाल में कामक्रिया के आनंद को सार्वजनिक रूप से मान्य किया और आदर दिया था। याद करें, कि न सिर्फ शिव और विश्वामित्र जैसे संन्यासियों के लिए भी इस आनंद को कभी वर्जित नहीं किया गया बल्कि शिव-पार्वती के रूप में एक आदर्शयुगल की संकल्पना भी रखी गई जिसमें दोनों पक्ष पूर्ण यौन-तृप्ति का दावा कर सके! आज उसी संस्कृति के आकाश में अनगिन अतृप्त कामेच्छाएँ या तो हिंसक, स्त्री-विरोधी और सौंदर्यबोध रहित पोर्न को अथवा विवाहेतर सम्बंधों को जन्म दे रही हैं जिनसे हमारे परिवारों, सामाजिक तानेबाने, प्रजनन, मानसिक व नैतिक स्वास्थ्य के छिन्न-भिन्न होने का खतरा तो हमेशा से बना ही हुआ है, साथ ही यौन-सम्बन्धों में स्त्रा की दोयम दर्जे की व दयनीय स्थिति के कभी न सुधर पाने की आशंका भी है। आखिर उग्र-कामेच्छा और रति-आनंद जैसे मानव जीवन के इतने स्थापित अंगों को अपने पारिवारिक-सामाजिक जीवन में सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने का साहस हममें क्यों नहीं हैं? क्या इसलिए कि शनैः शनैः भारतीय संस्कृति में साधारण मानवीय चेतना का स्थान खत्म होता गया है? आज इस संस्कृति में यौनक्रिया जैसे सहज इंद्रियगत आनंद को अत्यंत निकृष्ट, तथा ब्रह्मचर्य के असहज व्रत को परम आदर्श माना जाता है। जीवन में महान व उद्दात्त लक्ष्यों जैसे कि देशसेवा, धर्मसेवा इत्यादि के अलावा जिये जाने वाले जीवन को, पशुवत व हेय समझा जाता है। यहाँ फिर एक विरोधाभास हमारे सामने उपस्थित होता है कि इन महान कार्यों में शामिल होने की अपेक्षा स्त्रियों से कभी नहीं की गई है; किन्तु इस सच्चाई से हम हमेशा ही मुँह मोड़े रहते हैं कि यथार्थ में जितना भी ब्रह्मचर्य हमारी संस्कृति में पाला जा रहा है वह जाने-अनजाने हमारी विवाहित स्त्रियों द्वारा ही पाला जा रहा है। इंद्रियों पर जितना ज्यादा नियंत्रण वे रख रही हैं अब भी, उतना तो हमारे अनगिन तप-स्खलित गुरुजन भी नहीं रख पा रहे हैं! लेकिन इसका कोई लाभ पत्नियों को मिल रहा हो, या इसके लिए उनकी स्तुति ही की जा रही हो, ऐसा भी नहीं है। समाज संहिताएँ उन्हें पुरुषों का ब्रह्मचर्य भ्रष्ट करने वाला प्राणी मानती हैं मगर सोशल मीडिया पर उनकी सर्वमान्य छवि घर के कामों में उलझी हुई, मूर्ख, शृंगाररस विहीन, पति को हमेशा लताड़ते प्राणियों की है जो शायद बहुत कुछ उनके इसी ब्रह्मचर्य व्रत से उपजी है। इन दो ध्रवीय छवियों में उलझी भारतीय स्त्रा अपनी सही यौन-पहचान से अब तक अनजान ही है।
तो, हमारी दृष्टि में स्थिति कदाचित यह बन रही है कि यदि हम परिवार नाम की संस्था को, या निजी व सार्वजनिक जीवन में शुचिता को सचमुच बचाये रखना चाहते हैं तो रतिक्रिया में खेल व आनंद खोजने की सहज प्रवत्ति को पारिवारिक स्त्रियों से गोपनीय रखने की इस फिजूल, मूर्खता भरी व ख़तरनाक ज़िद को छोड़ना होगा। हम मानते हैं कि समाज में एक स्वस्थ काम-पर्यावरण के लिए पुरुष व स्त्री दोनों समूहों की काम-रुचियों व आकांक्षाओं को एक ही स्तर पर होना चाहिए, अन्यथा स्त्रियों के देह-मन तथा समाज की नैतिक मान्यताओं को भी गहरी चोट पहुंचाने वाली यौन-दुर्घटनाएँ (जिनमें हम विवाहेत्तर सम्बन्धों को भी शामिल करते हैं) व यौनहिंसा न सिर्फ़ जारी रहेगीं बल्कि इस विकृत पोर्न के पुरुषों के रोजमर्रा के जीवन में इस तरह सहज रूप से उपस्थित हो जाने से इन दुर्घटनाओं में वृद्धि के आसार हो सकते हैं। सक्रिय यौनशिक्षा द्वारा एक ओर जहाँ पुरुषों को उनकी अतिरंजित व हानिकारक कामकल्पनाओं को नियंत्रण में करना सिखाना होगा, वहीं स्त्रियों को अपने सहमी हुई कूपमंडूक स्थिति से बाहर निकलना। इन दोनों विपरीत ध्रुवों के बीच ही कहीं हम एक सधा हुआ संतुलन-बिन्दु खोज पाने की आशा रख सकते हैं यदि इस लक्ष्य को कुशल व संवेदनशील सोशल इंजीनियरों का साथ मिल सके।
यौन क्रिया का लक्ष्य संतति को बढ़ाने मात्रा से आगे जा कर अतिशय आनंद प्रदान करना भी है और प्रत्येक मानव के लिए यह जिंदगी का अपरिहार्य अंग है, यह सत्य हमारी संस्कृति में प्राचीन काल तरह ही स्वीकार कर लिया जाये तो इस समस्या के हल की ओर हम बढ़ सकते हैं। ‘सभी’ स्त्रियों को इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल कर लें, उनके साथ सकारात्मक पोर्न पर चर्चा हो, उन्हें सिर्फ़ अपनी यौन-कामनाओं को पूरा करने वाले औजार की तरह नहीं, बल्कि बराबरी वाले यौन-साथी की तरह लिया जाये और उनकी भी कामनाओं को पोर्न में अभिव्यक्ति मिले तो समस्या का दूसरा भाग भी हल होने की राह खुल सकेगी। फिर बाक़ी बचा हुआ कार्य दोनों पक्ष मिल कर स्वयं ही कर लेंगे। यदि हम यौन विकारों और इनसे जुड़ी अनगिन दैहिक-मानसिक व्याधियों को समाज से हटाना चाहते हैं तो पोर्न के मौजूदा अधिकांशतः विकृत स्वरूप की बजाय कामसूत्रा और खजुराहो के अपेक्षाकृत सकारात्मक पोर्न को फिर से अस्तित्व में लाने का उपाय हमें करना ही चाहिए।
किये गये सर्वे में आयी प्रतिक्रियाएं और उनका विश्लेषण. हालांकि हम वे तस्वीरें या वीडियो नहीं दे रहे हैं जिनका प्रयोग किया गया.
(इस विवरण में अकादमिक रूप से मान्य हिन्दी शब्दावली का ही प्रयोग किया गया है और पोस्ट्स व प्रतिक्रियाओं के अक्षरशः वर्णन से अधिकांशतः बचा गया है, क्योंकि वह भाषा काफी आपत्तिजनक हो सकती थी। तिरछे शब्द (Italics) वास्तव में प्रयुक्त किये गये शब्द हैं।)
तस्वीरें
- मिनी स्कर्ट पहने हुए एक युवती का इस कोण पर झुका हुआ शरीर कि उसके योनि के मुख पर पियर्सिंग रिंग (piercing ring) और हाथ की उंगली में पहनी हुई शादी की अंगूठी दोनों दिख रहे हैं। साथ का केप्शन दोनों रिंग्स पर ध्यान आकर्षित करता है और इस तरह छुपे शब्दों में लड़की को ‘विवाहेत्तर सम्बन्धों के लिए उपलब्ध करार देता है।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
कहा गया कि ‘ऐसी चीजें हमें ‘किक’ (Kick) देती हैं।’
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
हिंसक व्यवहार के प्रति आकर्षण, स्त्री का पुरुष को लुभाने के लिए दर्द झेलना या अस्वास्थ्यकर तरीके अपनाना कामोत्तेजना पैदा करता है, यौन सम्बन्धों में विवाहित स्त्रियों को तरजीह देना।
तस्वीरें
- दो लड़कियां अपने हाथों में माइक थामे हुए पास-पास बैठी हैं। साथ का केप्शन दावा कर रहा है कि माइक को पकड़ने के तरीके से ही आसानी से यह बताया जा सकता है कि उनमें से कौन सी लड़की शादीशुदा है।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
अधिकांश सदस्यों ने जोर से हंस कर इसका स्वागत किया
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
यौनक्रिया को जीवन के प्रत्येक कार्यकलाप पर आरोपित करना; यौन सम्बंधों में विवाहित स्त्रियों को तरजीह देना।
वीडियो क्लिप्स
- रेलवे टिकट काउन्टर पर एक स्त्री क्लर्क और यूपी या बिहार के एक पुरुष के बीच बातचीत की एनीमेशन क्लिप। क्लर्क के पक्ष को एनीमेशन में खास रेखांकित किया गया है। रिजर्वेशन फार्म को भरते समय ग्राहक द्वारा लिंग (पुल्लिंग/स्त्रालिंग) को शिश्न समझ लेने के बाद क्लर्क के गंभीरता से पूछे गये सवालों के सामने पुरुष के हिन्दी व्याकरण के आभासी अज्ञान को रखा गया है जो देखने में तो पुरुष ग्रहक की मूर्खता सा लगता है लेकिन दरअसल उसके द्वारा द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग क्लर्क को ही मूर्ख सिद्ध करता है और अंत तक देखने पर लगने लगता है कि उसके मजे लिये जा रहे हैं।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
सीटियां बजाई गईं। पूछा गया कि किसी ने इसी तरह के मजे कभी लिये हैं क्या?
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
सामान्य सामाजिक व्यवहारों का उपहास; यौन क्रिया को जीवन के प्रत्येक कार्यकलाप पर आरोपित करना, रास्ते प्रहशन को दमित आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम बनाना।
वीडियो क्लिप्स
- जंगल में सैर के दौरान सुनसान जगह देख कर जल्दी में निपटाई गई रति क्रिया की रिकार्डिंग
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
स्त्री की संभावित उम्र पर लम्बी चर्चा
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
असामान्य जगहों पर रति, अनन्वेशित प्रतीत होती स्त्रादेह का अदमनीय आकर्षण
वीडियो क्लिप्स
- एक सामान्य रति क्रिया की रिकार्डिंग जिसमें कैमरे का फोकस स्त्री के जोर से हिलते हुए वक्षस्थल पर है।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
सबसे ज्यादा लाइक्स मिलने वाला वीडियो
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
नैन सुख, अनन्वेशित प्रतीत होती स्त्रा देह का अदमनीय आकर्षण।
वीडियो क्लिप्स
- एक स्त्री विधायक और एक सबडिवीजनल मजिस्ट्रेट के ‘अवैध सम्बन्ध’ का वायरल हुआ वीडियो।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
राजनीतिक रंग के कारण कड़ी आलोचना का विषय। स्त्रा विधायक पर बहुत अभद्र शब्दों में टिप्पणियां। प्रौढ़ पुरुष के यौनिक दमखम पर छुपे शब्दों में ईर्ष्या की झलक।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
दोहरे मापउंड सार्वजनिक छवि वाली स्त्रा का विवाहेतर सम्बंधों में उलझना जुगुप्सा का कारण है, जबकि पुरुश के बारे में यह सवाल उठाया ही नहीं गया। उसका यही करना ईर्ष्या का विषय बन गया।
वीडियो क्लिप्स
- एक स्वस्थ युवती द्वारा पूर्ण नग्नावस्था में किये गये योगासनों का चित्राण जिसमें शरीर की कुछ मुद्राएं व कैमरे के कोण इसी प्रकार रखे गये हैं कि दर्शन कामोत्तेजित हों। पृष्ठभूमि में एक उत्तेजक गीत भी सुनाई देता है।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
बहुल लाइक्स मिले, यहां तक कि क सक्रिय सदस्यों की ओर से भी।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
नैन सुख; अनन्वेशित प्रतीत होती स्त्रा देह का अदमनीय आकर्षण।
वीडियो क्लिप्स
- 5-8 वर्ष के एक बच्चे और उसकी सुन्दर शिक्षिका के आपस में लाड़ प्यार का दृश्य जिसमें कुछ चुम्बन भी शामिल हैं।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
इस बात पर सख्त अफसोस जताया गया कि बचपन में हमारी टीचर्स ऐसी क्यों न हुई। इसके बाद अपने स्वयं के बच्चों की वर्तमान ‘सेक्सी’ टीचरों के बखान हुये। पालक शिक्षक सभाओं में उन्हें ‘दान देने’ की योजनाएं बनीं। यही नहीं, कुछ ‘माल लगने वाली’ टीचरों की अराल तस्वीरें भी ग्रुप में साझा की गईं, उनके चेहरे-मोहरे, शरीर के तिलों, यहां तक कि नागों पर भी अतिशय कामोत्तेजना प्रदर्शित की गई।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
बच्चे से ईर्ष्या और; दमित व कुंठित काम आकांक्षाओं की खुल कर अभिव्यक्ति जैसे किसी भी स्त्री को जबरन या धोखे से स्पर्श करने की कामना, युवा लड़कियों की देहयष्टि निहारने का नैनसुख, ग्रुप के साथियों में अपनी इन कामनाओं को पूरा करने के तरीकों पर डींगें हांकना, अनुमति के बिना स्त्रियों की तस्वीरें साझा करना।
वीडियो क्लिप्स
- साड़ी में लिपटी, घर के किसी सदस्य के किसी कार्य के लिए आवाज लगाने पर तुरंत भाग कर आने वाली संयुक्त परिवार की संस्कारी बहू का छुप कर योनि में वाइब्रेटर लगाना, उसके रिमोट के बटनों को दादी का टीवी का रिमोट समझ कर दबाते जाना, और उसके बाद घर के सारे सदस्यों के सामने बहू के चेहरे पर यौन-तृप्ति तक के सारे भाव एक एक करके आना।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
बहुत पसंद किया गया, क्योंकि बहू बहुत ‘हॉट (hot)’ दिख रही है।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
क्रिटिक्स में हाल में काफी चर्चित नेटफ्लिक्स व चार निर्देशकों द्वारा बनाई गई ‘स्नेज (Lust stories) के वायरल हुये इस हिस्से में यह दिखाने की कोशिश की गई थी कि पति से असंतुष्ट स्त्री अपनी यौन जरूरतों के बारे में खुद ही निर्णय लेने की पहल कर रही है, और रिमोट दादी के हाथ में होना शायद इस बात का प्रतीक कि हताश औरतें अब आपस में ही इस जरूरत को भी निपटा लेने की तरफ बढ़ रही हैं। मगर फिल्म के इस पहलू पर किसी सदस्य की नजर ही नहीं पड़ी। स्त्री की यौन असंतुष्टि उनके लिए अनजान चीज थी।
वीडियो क्लिप्स
- एक हाई प्रोफाइल पाकिस्तानी (जैसा कि वीडियो के साथ दावा किया गया) व्यवसायिक यौन कर्मी का साक्षात्कार जिसमें वह अपने फोन नम्बर, कार्यस्थल और सेवाओं की जानकारी दे रही है।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
कुछ ने पाकिस्तान के लिए तुरंत फ्लाइट पकड़ने की इच्छा प्रकट की तो कुछ ने दोस्तों से आस-पड़ोस में ही ऐसी कोई जगह ढूंढ देने की गुजारिश की।
लतीफे और टेक्स्ट संदेश
- पश्चिमी देश के एक पुरुष के बारे में, जिसे बचपन से भारी वक्ष वाली गर्लफ्रेंड चाहिए थी। जब वह उसे मिल जाती है तो उसकी मूर्खता से चिढ़ जाता है। फिर आगे भी वह जिंदगी भर स्त्रियों में आरोपित दूसरे गुणों जैसे भावावेश, महत्वाकांक्षा, जीवंतता वाली प्रेमिकाएं ढूंढता है लेकिन एक-एक करके उन सब का बुरा अनुभव पाने के बाद उसे लगता है कि वह मूर्ख किन्तु भारी वक्ष वाली प्रेमिका ही सर्वोत्तम थी।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
बहुत लाइक्स मिले। ‘सही है’ की सहमति भी।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
बुद्धिमत्ता के स्त्रा जाति में पाये जाने वाले स्वरूप की गलत समझ और जीवन के प्रति उनके (पुरुषों से) अलग नजरिये का, उनके सौंदर्य बोध का उपहास, और उससे सिर्फ यौन संतुष्टि पाने की अपेक्षा रखना ही श्रेयस्कर माना जा रहा है, जिससे सदस्य पूर्ण सहमत दिखाई देते हैं।
लतीफे और टेक्स्ट संदेश
- घर की नौकरानी का मातृत्व अवकाश मांगते हुए मालकिन को भी सावधान करना क्योंकि मालिक का नसबंदी ऑपरेशन सफल नहीं रहा है।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
यह कह कर चुटकियां ली गईं कि यह तो ग्रुप के एडमिन की असल कहानी है।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
प्रत्येक स्त्री में यौन साथी को ढूंढना; वैचारिक सम्बन्धों में झूठ की उपस्थिति की स्वीकार्यता; यौन सम्बंधों में विवाहित स्त्रियों को तरजीह देना।
लतीफे और टेक्स्ट संदेश
- एक कामोत्तेजित इतरलिंगी पुरुष के एक यौनकर्मी किन्नर द्वारा मूर्ख बन जाने का किस्सा जो ‘हैंड वर्क (Hand work)’ और ‘ब्लो जॉब (Blow Job)’ में बहुत कुशल है लेकिन असल रतिक्रिया में साथ नहीं दे सकता।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
कामोत्तेति पुरुष का यौन-तृप्ति तक न पहुंच पाना हद दर्जे की हताशा पैदा करता है, इससे सभी सहमत दिखे। अश्लील शब्दों में इसकी अभिव्यक्ति की गई।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
कामेच्छा व यौनतृप्ति का पुरुष जीवन में बहुत अहम माना जाना; इतरलिंगी पुरुषों का तीसरे लिंग के व्यक्तियों को बहुत निचले दर्जे का समझना।
लतीफे और टेक्स्ट संदेश
- बीवियों की रतिक्रिया में तथाकथित हमेशा की अरुचि का मजाक उड़ाता हुआ किस्सा जिसमें एक सांड एक नई खरीदी गई गाय के गर्भाधान के लिए लाया जाता है लेकिन गाय किसी भी तरह उसकी तरफ आकृष्ट नहीं होती। पशु चिकित्सक निदान में कई गलतियां; करने के बाद सही अनुमान लगाने में कामयाब होता है कि यह गाय जरूर उसकी पत्नी के शहर से है।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
हर एक सदस्य को इस किस्से में अपनी पत्नी नजर आई।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
पत्नियों की असल यौन प्रकृति के बारे में असमझ – उनकी अति व्यस्तता अथवा यौन असंतुष्टि से पैदा हुई अरुचि को न समझ कर उन्हें उबाउ प्राणी मान लेना।
लतीफे और टेक्स्ट संदेश
- सस्ती तुकबंदी के रूप में लैला मजनूं का नया किस्सा जिसमें यौनांगों व यौनक्रिया से सम्बंधित हिन्दी के बेहद अश्लील शब्द प्रयोग किये हैं। कामोत्तेजित मजनूं द्वारा ‘दो फीट लम्बे और खंबे जैसे मोटे’ शिश्न को लैला की योनि में उसके मना करने, मिन्नतें करने और चीखते रहने के बावजूद जबरन घुसा दिया जाता है जिससे उसकी योनि फट जाती है और अंततः उसकी मृत्यु हो जाती है। गिरफ्तार करने वाले दरोगा से मजनूं को इसके अलावा कुछ और नहीं कहना है कि वह बेकसूर है और यह सब उसके बड़े शिश्न की वजह से हुआ है।
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
बहुत से सदस्यों द्वारा पसंद किया गया और अश्लील शब्दों के खुल कर प्रयोग पर चटखारे लिये गये।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
कामेच्छा व यौनतृप्ति का पुरुष जीवन में सबसे अहम माना जाना, यौनक्रिया में हिंसा का सहज स्वीकार; तुकबंदी में दरअसल एक वहशी पुरुष द्वारा प्रेमिका पर किये गये बलात्कार, दरिंदगी और हत्या का वर्णन है; मगर सदस्य सिर्फ अश्लील शब्दों को पढ़ कर ही कामोत्तेजित होते दिखाई दिये। प्रतीत हुआ कि उन्हें विषय वस्तु से कुछ लेना ही नहीं था। अपराध का संज्ञान तक न लेना, नैतिक जिम्मेदारी और भावनाओं से पल्ला झाड़ने वाला रवैया स्पष्ट रूप में सामने आया।
लतीफे और टेक्स्ट संदेश
- ‘एक आदमी किसी औरत के कपड़ों के बारे में सबसे ज्यादा आनंद ये सोच कर लेता है कि वह इन कपड़ों के बिना कैसी दिखेगी!’
सदस्यों की खारा प्रतिक्रियाएं जो लाइक्स के अतिरिक्त मिलीं
काफी तालियां बजाई गईं।
प्रतिक्रियाओं से प्रकाश में आए मनोभाव व अवधारणाएं
यौनक्रिया को जीवन के प्रत्येक कार्यकलाप पर आरोपित करना; अनन्वेशित प्रतीत होती स्त्रा देह का अदमनीय आकर्षण।
[Conflict of Interests – The authors declare no conflict of interests in this research project]
संदर्भ
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Pornography
2. https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_sexuality_in_India
3. https://nypost.com/2017/03/09/there-are-three-types-of-porn-watcher-and-only-one-is-healthy/
4. http://www.socialcostsofpornography.com/Bridges_ Pornographys_Effect_on_Interpersonal_Relationships.pdf
महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, सेवाग्राम में प्राध्यापक डा. अनुपमा गुप्ता स्त्रीकाल की संस्थापक संपादकों में हैं और डा मनोज चतुर्वेदी फिरोजाबाद में ईएनटी डॉक्टर हैं.
यह आलेख स्त्रीकाल के प्रिंट एडिशन के स्वास्थ्य अंक में प्रकाशित है.
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