मध्यवर्गीय जीवन से संसद की यात्रा तक: भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री रीता वर्मा

रीता वर्मा/अनुवाद : अमिता

भूतपूर्व केन्द्रीय संसाधन विकास (राज्य) और धनवाद की पूर्व सांसद रीता वर्मा का यह राजनीतिक अनुभव कई मायने में महत्वपूर्ण है. इस आलेख में वे राजनीति में आने के अपने निर्णय, राजनीतिक पार्टी के रूप में भाजपा का चुनाव एवं अपने आदर्श महिला नेताओं के बारे में बता रही हैं.

रीता वर्मा

मुझे कबूल है कि हम बहनें संसद के एक प्रफुल्लित और उज्ज्वल भीड़ के हिस्से हैं, तो क्या जेंडर के आधार पर उन्हें बांटना चाहिए। उस तथाकथित कमजोर लिंग के होने के बाद भी हममें से कुछ, सभी बाधाओं के बावजूद, हमारे संसदीय भविष्य को कामयाब बनाने में सफल रहे।

कई प्रेरणाएं जीवन में भाग्योदय में मदद करती हैं। और मैं अपवाद नहीं हूं। मैं आज जो भी हूं वह मुख्यतः अपने सामर्थ्य के कारण हूं, जिसे मैंने क्रमशः उद्घाटित किया, जो मुझमें मौजूद थी। मेरा जन्म और पालन-पोषण सभ्य मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। मैं इसी वर्ग के मूल्यों के साथ बढ़ी। अपने सामाजिक और पारंपरिक दायित्वों को पूरा करने तथा एक बेटी, पत्नी और मां की भूमिका निर्वाह करने के लिए तैयार हुई; इससे ज्यादा और कुछ नहीं। और बहुत जल्द ही इस वर्ग की संकीर्ण सीमाओं से बाहर निकली। शिक्षा के लिए मेरा प्यार सिर्फ साधारण नहीं था, बल्कि इसने मुझे उस समाज के लिए, जिसकी मैं कर्जदार हूं, योगदान देने का मौका और योग्यता प्रदान की। कैरिअर का महत्व अस्मिता बोध के लिए भी है, तथा दो आय बेहतर घरेलू बजट बनाते हैं, इसलिए भी। एक ओर अधिक संकीर्ण मूल्य, जो मध्यम-वर्गीय होने के कारण आकार लेते हैं, को मैंने त्याग दिया था, संस्थागत विवाह को अस्वीकृत करने के फैसले से। मेरा आत्मविश्वास और भी बढ़ गया, जब मैंने वैसा ही व्यक्ति पाया, जैसा मैं पसंद करती थी, और मैं सफल हुई। जब मैं अपने वैवाहिक जीवन का आनन्द उठा रही थी, तो सब ने सोचा मैं विद्रोही, गैर-जिम्मेदार हूं तथा सभी सामाजिक मूल्यों को निभाने में नकारात्मक साबित हुई, ससुराल की यह प्रबल धारणा बनी और दोस्तों में भी मेरे लिए कुछ ऐसी ही धारणा थी। एक महिला कोई बिकाऊ वस्तु नहीं है, और न ही किसी अनजान व्यक्ति को दहेज की टोकरी के साथ फेंक देने की वस्तु है। यह सिर्फ बीमार समाज की पहचान है, साथ ही यह औरतों के आत्म-सम्मान को भी नीचा दिखाती है।यह आम धारणा है कि महिलाओं के लिए सार्वजनिक जीवन अत्यंत कठिनाइयों से भरा होता है, भले ही पूरी तरह प्रतिबंधित क्षेत्र न भी हो।

इससे पहले कि मैं राजनीति में जाती इसके खतरनाक जीवन की जानकारी, पारंपरिक ज्ञान पर आधारित और सार्वजनिक जीवन की चुनौतियों का अज्ञान जो मुझमें थी, वह निश्चित रूप से मेरे लिए भयानक बाधा थी। लेकिन मेरे लिए मेरी क्षमता को प्रकट करने की मेरे भीतर की उत्कंठा अधिक प्रभावी हुई, जो कि न सिर्फ मेरी आत्मसंतुष्टि सिद्ध हुई थी, बल्कि सामाजिक रूप से सादेश्यपूर्ण भी ठहरी।मेरे जीवन की व्यक्तिगत त्रासदी मेरे पति का न होना बन गयी। यह मुझ पर संकुचित जीवन आरोपित किये जाने के लिए पर्याप्त था, पर्याप्त था मेरे ऊपर दया का बौछार होने के लिए, पर्याप्त था मेरे साथ लोगों की सहानुभूति और संरक्षकत्व से भरा व्यवहार करने के लिए। यह सब सुनिश्चित था यदि मैंने उस भाग्य से समझौता कर लिया होता, जो मेरे जैसी अधिकांश बहनों की ऐसी परिस्थितियों में नियति बन जाता है। पर हर काली गुफा के बाद प्रकाश सुनिश्चित होता है।स्पर्द्धात्मक राजनीति में सभी पार्टियां एक जिताऊ उम्मीदवार खोजती हैं। उन सबने मुझे अपना उम्मीदवार बनाने के लिए संपर्क किया। परंतु मैंने भारतीय जनता पार्टी को बहुत सोच विचार कर चुना। हालांकि मैं यह स्वीकार भी करती हूं कि तब मैं पार्टी के सभी कार्यक्रमो या सभी विचारधाराओं के भीतर मिशनरी उत्साह और अनुशासन से प्रभावित थी तथा इसके प्रभावशाली राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी मुझे प्रभावित किया था। इस चुनाव में मैं सफल हुई या असफल, यह अलग बात है, लेकिन सच्चाई यह है कि मैं जनता की उम्मीदों पर खरी उतरना चाह रही थी तथा राष्ट्र के पुनर्जागरण के राष्ट्रीय प्रयासों का हिस्सा बनना चाह रही थी, यह सब मेरे लिए चुनाव में कूदने की प्रेरणाएं थीं।

मदनलाल खुराना और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ रीता वर्मा

आधुनिक इतिहास की दो स्त्री-हस्तियां मुझे प्रभावित करती रही हैं, श्रीमती रूक्मणी देवी तथा श्रीमती सरोजनी नायडू। उन दोनों ने भारतीय समाज की सड़ी-गली मान्यताओं रीतियों को तोड़ने का साहस दिखाया तथा भारतीय स्त्रियों को पारंपरिक संस्कारों और प्रतिक्रियावाद (परंपरावाद) से मुक्त करने के प्रयास किए। इस प्रकार उन्होंने आधुनिक जगत में स्त्रीत्व को पुनर्परिभाषित किया, फलतः स्त्रियां सामाजिक व्यवस्था के शोषणमूलक और अन्यायपूर्ण मूल्यों से मुक्त होकर सड़कों पर आयीं तथा अपने पुरुष मित्रों की तरह अपने अधिकारों की मांग कर सकीं।यह समझना बहुत आसान है कि मैं रूक्मिनी देवी से इतना प्रेरित क्यों हुई। उनके रोम-रोम में विद्रोह था। दुर्भाग्य से वह बाल-विधवा थीं, लेकिन उन्होंने इस दुर्भाग्य से कभी हार नहीं मानी। उन्होंने औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने का निश्चय किया तथा अपने गैर-पारंपरिक विचार के कारण उनका विवाह एक अमेरिकन थियोसोफिस्ट डॉ. जॉर्ज अरूदले से हुआ, जो कि समाज में प्रचलित जाति प्रथा और धार्मिक आचरणों के विरोधी थे। अपनी सीखने की इच्छा के कारण उन्होंने शास्त्रीय नृत्य सीखा, जो कि उन दिनों एक अंधविश्वासी ब्राह्मण परिवार की लड़की के लिए सोचना भी असंभव था। शास्त्रीय नृत्य को घातक ‘देवदासी प्रथा’ से बचाकर, एक शुद्ध कला के स्तर तक उठाने का श्रेय किसी को जाता है, तो वह रूक्मिनी देवी हैं। उनके रोम-रोम में कुछ हासिल करने की क्षमता थी और सामाजिक दायित्वों के प्रति भी वह दृढ़ थी। वह आधुनिक भारत की अग्रदूत के रूप में सांस्कृतिक पुनर्जागरण में सहायक रहीं, जिसके लिए उन्होंने ‘कला-क्षेत्र’ नाम से केन्द्र स्थापित किया।श्रीमती सरोजनी नायडु भी किसी भी तरह से कम नहीं थीं, जिन्होंने भारतीय जनमानस के विश्वास को बढ़ाया। उन्होंने कहा, ‘भारत की स्वतंत्रता भारतीय स्त्रियों की स्वतंत्रता में निहित है।’ उनके बारे में सबसे अधिक प्रेरणादायक बात यह है कि उन्होंने ‘महिला आरक्षण’ का विरोध करते हुए कहा कि यह स्त्री-पुरुष की समानता के लिए रुकावट है, और मेरे विचारों में भी आरक्षण जैसी व्यवस्था आत्म-सम्मान के खिलाफ है।श्रीमती इंदिरा गांधी भी एक व्यक्तित्व हैं, जिनमें मुझे रुचि है और जिन्होंने मुझे प्रभावित किया। जनता उनकी स्पष्टता और दृढ़ता की प्रशंसा करती है। ऐसा कहा जाता है कि उनके कैबिनेट में वही एक पुरुष थीं। मेरी समझ में वह एक आदर्श नारी हैं। प्रकृति ने स्त्रियों को कोमल पुष्प सा बनाया है। चूंकि दुनिया उनके प्रति इतनी दयालु नहीं है इसलिए वे दुनियावी चतुराई सीख जाती हैं, यह चतुराई राजनीति से लेकर पावर के खेल में भी महिलाओं की भागीदारी का हिस्सा हो जाती है। मेरे विचार से श्रीमती गांधी ने एक संयुक्त परिवार का बुद्धिमान स्त्री की तरह अपने हितों के पक्ष में अपने निर्णय लागू किए। श्रीमती गांधी बड़ी चालाकी से पुरुषों के मूल्यों को आत्मसात करते हुए भी अपने लिए स्त्रियों जैसा सम्मान और व्यवहार हासिल करने में सफल रहीं।

राजनीति के क्षेत्र में आने के बाद कई तरह के विचार मुझे कौंधते रहे। संसद का समाजशास्त्र क्या है, संसद में, सेंट्रल कक्ष में समितियों में और गलियारों में। क्या पुरुष महिला सांसदों को महिला के रूप में ही देखते हैं या सांसद के तौर पर। प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। सार्वजनिक जीवन पुरुषों की दुनिया है, इसके साथ हमें विवाह करना होता है। एक पारदर्शी स्पेस और संसदीय एजेण्डे में समान भागीदारी आज की एक चुनौती है। किताबों की सूची इसमें मदद नहीं करती और न ही ‘एक सफल राजनीतिक कैरियर के दस कदम’ जैसी कोई युक्तियां हैं। फिर क्या है, एक सफल राजनीतिक भविष्य? लोगों को ऐसे में किनका अनुकरण करना चाहिए। मेरा अनुमान है सभी को अपने-अपने उत्तर ढूंढना चाहिए और अपना रास्ता तैयार करना चाहिए। मैं अभी तक इस खोज के प्रारंभिक चरण में हूं और कई अन्य भी ऐसी कल्पना कर रहे होंगे।यह स्पष्ट है कि, मेरी प्राथमिकता मेरा निर्वाचन क्षेत्र है। मैं उनके हितों को व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर संरक्षित करने का संकल्प करती हूं। मैं सफल होऊंगी कि असफल यह मेरे हाथ में नहीं है। लेकिन मैं समग्र रूप से इसके लिए प्रयत्न करूंगी। मेरी दूसरी प्राथमिकता है अपने देश को कुछ सकारात्मक, ठोस और कुछ नवीन देना। मुझे आशा है कि मेरी योग्यता मौकों का भरपूर प्रयोग करने से मुझे चूकने नहीं देगी। मेरे उत्साह और ईमानदारी के साथ-साथ मुझे बहुत कुछ सीखना है, और बहुत आगे जाना है।(वीमेन पार्लियामेंटेरियन इन इंडिया से साभार)

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