बहुरिया रामस्वरूप देवी

प्रियंका प्रियदर्शिनी बिहार बलिदान की वह ऐतिहासिक धरती है जिसने जंग-ए-आज़ादी में ईंट का जबाब पत्थर से दिया है। आज़ादी के दीवानों ने गांधी के...

कथाकार राजेन्द्र सजल के कथा संग्रह ‘अंतिम रामलीला’ पर परिचर्चा

रिपोर्ट प्रस्तुति – अरुण कुमार   आम्बेडकरवादी लेखक मंच के तत्वावधान में दिनांक 7 अगस्त 2022 को राजेंद्र सजल...

प्रोफ़ेसर रतनलाल की रिहाई!

यह आंबेडकरवाद और एकजुट लड़ाई की जीत है एच. एल. दुसाध  सत्ता का रवैया देखते हुए...

हिमा दास: बहुजन समाज में लड़कियों के खेल-उत्साह और उत्सव की प्रतीक

हिमा चूँकि असम प्रदेश से आती है इसलिए उनके परिवेश की सामाजिक संरचना को जानना भी जरुरी है। पूर्वोत्तर भारत का समाज स्त्रियों के प्रति हिन्दुत्ववादी समाज की तरह कठोर नहीं रहा है। पूर्वोत्तर भारत खासतौर पर जनजातीय समाजों और उसके जैसी ही संरचना वाले बहुजन समाज में लड़की की खेल-कूद में भागीदारी को हीन नजरिये से नहीं देखा जाता बल्कि उसे एक उत्सव और जीवन जीने के नजरिये के रूप में देखा जाता है।

कविता का जोखिम: मियां कविता के विशेष सन्दर्भ में

आखिर कौन हैं ये मियां- मियां, मुस्लिम समुदाय में लोगो को सम्मान पूर्वक संबोधित करने वाला एक शब्द है. जैसे बंगाल में बाबु मोशाय या अंग्रेजी में जेंटलमैन. पर, असम में बंगाली मूल के मुसलमानों को पहचान के लिए अपमानजनक रूप में मियां शब्द से बुलाया जाता है. “अहमद मियां है”, असम में इस वाक्य को कहने का तात्पर्य हुआ कि अहमद बंगाली मूल का मुसलमान है.

मध्यवर्गीय जीवन से संसद की यात्रा तक: भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री रीता वर्मा

राजनीति के क्षेत्र में आने के बाद कई तरह के विचार मुझे कौंधते रहे। संसद का समाजशास्त्र क्या है, संसद में, सेंट्रल कक्ष में समितियों में और गलियारों में। क्या पुरुष महिला सांसदों को महिला के रूप में ही देखते हैं या सांसद के तौर पर। प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। सार्वजनिक जीवन पुरुषों की दुनिया है, इसके साथ हमें विवाह करना होता है। एक पारदर्शी स्पेस और संसदीय एजेण्डे में समान भागीदारी आज की एक चुनौती है।

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