रिपोर्ट
प्रस्तुति – अरुण कुमार
आम्बेडकरवादी लेखक मंच के तत्वावधान में दिनांक 7 अगस्त 2022 को राजेंद्र सजल की कहानियों की पुस्तक ‘अंतिम रामलीला’ पर परिचर्चा का आयोजन नेहरू युवा केंद्र, आईटीओ, दिल्ली के सभागार में किया गया | इस अवसर पर प्रमुख वक्ताओं के रूप में प्रो.गोपाल प्रधान, अध्यक्ष जनसंस्कृति मंच, अनीता भारती, अध्यक्ष दलित लेखक संघ, प्रो. रजनी दिसोदिया, संस्थापक समय संज्ञान पत्रिका, संजीव चन्दन, संस्थापक स्त्रीकाल , प्रो. प्रमोद मेहरा, अध्यक्ष यूथ फेडरेशन ऑफ़ वर्ल्ड पीस एवं स्वयं लेखक राजेंद्र सजल उपस्थित थे | संजय सहाय, संपादक हंस अपनी अस्वस्थ्यता के चलते कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाए | कार्यक्रम का सञ्चालन युवा कवि और आलोचक अरुण कुमार ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन शोध छात्रा पूजा सूर्यवंशी ने किया |
संचालक अरुण कुमार ने कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत करते हुए बताया कि आम्बेडकरवादी लेखक मंच अपनी स्थापना से दलित साहित्य को लेकर गंभीर कार्य कर रहा है | इसी कड़ी में राजेंद्र सजल की सशक्त कहानियो को हिंदी की दुनिया से परिचित करवाने हेतु इस परिचर्चा का आयोजन किया गया है | इन कहानियों पर परिचर्चा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि लेखक की पहली कहानी ‘झमकू’ लगभग 20 वर्ष पूर्व दैनिक भास्कर में तथा दूसरी कहानी मधुरिमा में प्रकाशित हुई थी, उसके बाद पत्र-पत्रिकाओं में दस्तक दिए बिना ही सीधे अपनी पुस्तक में संकलित कहानियों के माध्यम से हिंदी साहित्य में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवायी है | लेखक का कहानी कौशल इतना जबरदस्त है कि आज नहीं तो कल आपको इन कहानियों से रूबरू होना पड़ेगा |
वक्ताओं में अपनी बात रखते हुए प्रो. रजनी दिसोदिया ने कहा कि राजेंद्र सजल सजग कहानीकार है | ये कहानी की बुनावट पर ज्यादा सोचते है | उन्होंने पुस्तक की भूमिका में इसे स्पष्ट रूप से कहानी की बुनावट पर बात की है, यह सोचना ही उन्हें अन्य लेखकों से अलग बनाता है | हम लोग दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र से परहेज करते है जबकि इस पर बात होनी चाहिए | इन कहानियों में जो स्थायी भाव है वह रस में परिणत हो जाता है | राजेंद्र सजल की कहानियों को भी दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से परखा जाना चाहिए | सजल की कहानियों में यथार्थ की अभिव्यक्ति है, ऐसा लगता है कि ये कहानियां आपके आसपास घट रही है | ‘इत्ती सी बात’ कहानी आपको बेहद भावुक कर देती है तो ‘मास्टर माई’ कहानी हमें हमारे घर के बुजुर्गों की समस्या से आँखे चार करवाती है | ‘अंतिम रामलीला’ कहानी एक दृष्टि, एक विश्लेषण की कहानी है जो कि अलग से एक चर्चा की मांग करती है | कुछ अर्थों में राजेंद्र जी प्रेमचंद जैसे कहानीकार लगते है, वह प्रेमचंद की तरह ही पाठक फ्रेंडली है | संग्रह की सभी कहानियां बेहद महत्वपूर्ण और पठनीय है |
प्रो. प्रमोद मेहरा ने बताया कि इस समय रीडरशिप की समस्या प्रगाढ़ हो चुकी है, कॉन्टेक्स्ट बड़ा चैलेंजिंग हो चुका है, रंगहीन, स्वादहीन की तरफ पाठक नहीं जाता है | 1.4 बिलियन लोगों के देश में क्या कहानियां आ रही है ? यह सोचना पड़ेगा | हमारी कितनी कहानियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना पाती है ? जबकि कहानी साहित्य की बेहद सशक्त विधा है | उन्होंने कहा कि जब द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिराया गया तब शहरों की एक सूची बनी थी उसमें क्योटो शहर का भी नाम था, लेकिन बम गिराने वालों ने क्योटो शहर पर बम नहीं गिराया क्योंकि उसके किसी सदस्य ने क्योटो की खूबसूरती को किसी कहानी में पढ़ा था | गैटे ने भी अन्तरराष्ट्रीय साहित्य की बात की है | राजेंद्र सजल की ‘अंतिम रामलीला’ कहानी प्रतिनिधि कहानी है, यह किसी गाँव की समस्या न होकर वर्तमान भारत की समस्याओं को केंद्र में रखती है | इसी प्रकार की कहानी ‘दिल्ली के बादशाह के दुःख’ है | ये कहानियां वैश्विक परिप्रेक्ष्य की कहानियां है और इनका अनुवाद अन्य भाषाओँ में होना चाहिए | स्वयं प्रमोद जी ने भी कहानी के अनुवाद करने की जिम्मेदारी भी ली |
स्त्रीकाल के संपादक, आलोचक संजीव चन्दन ने कहा कि संग्रह की कहानियां लेखक ने मुझे भूमिका लिखने हेतु प्रेषित की थी | भूमिका में ही मैंने बेहद जिम्मेदारी के साथ लिखा है कि ‘राजेंद्र सजल हिंदी कथा साहित्य की एक उपलब्धि होने वाले है’| इस बात की तस्दीक यहाँ मेरे पूर्व के वक्ताओं ने की है और बाद के वक्ता भी करेंगे | संजीव ने आगे कहा की हिंदी वाले बेहद अनुदार किस्म के लोग है | यहाँ अनुवाद की परंपरा को और अधिक मजबूत होना चाहिए खासकर भारत की अन्य भाषाओं से | राजेंद्र सजल वर्धा के साथी रहे है,वर्धा ब्राह्मणों के लिए ब्राह्मणों द्वारा संचालित विश्वविद्यालय है | बहुत से संघर्षों में के सजल साथी रहे, मित्रता का दबाव भी होता है मगर उनकी कहानियों को पढ़कर कोई भी दावा कर सकता है | ‘इत्ती सी बात’ कहानी में जो फेमिनिस्ट स्टेटमेंट है वही कहानी को महत्वपूर्ण बनाता है | सजल लोककथाओं से लोक परम्पराओं से उर्जा लेते है , उनकी शैली कहीं कहीं पर उन्हें विजयदान देथा के समकक्ष खड़ा कर देती है | इस संग्रह की सबसे अच्छी कहानी मुझे ‘कोख और कोठरी: अनसुलझा रहस्य’ लगी | ब्राह्मणवाद की सटीक पहचान उन्होंने संग्रह की प्रतिनिधि कहानी में की है | सजल वैचारिक रूप से संपन्न कहानीकार है, सभी कहानियां उम्दा है|
दलित लेखक संघ अध्यक्ष अनीता भारती ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि सजल की कहानियां चकित करती है| लम्बी कहानियों की अपेक्षा छोटी कहानियां ज्यादा प्रभावित करती है | ‘अंतिम रामलीला’ कहानी में मुझे ‘जय भीम’ नारे को लेकर काल क्रम का दोष लगता है | इस कहानी का गाँव राजेंद्र जी का अपना गाँव लगता है | कहानियों में पात्रों का चयन बड़ी सजगता से किया गया है | इनकी कहानियों में स्त्री-पुरुष सम्बन्ध बहुत ही सहज रूप में आता है जो कि कहानियों की विशेषता है | इस संग्रह की सबसे सशक्त कहानी मुझे ‘रखवाला’ लगी | रखवाला की ‘सुसली’ संग्रह की सबसे सशक्त स्त्री पात्र है | ‘झमकू’ कहानी में बाँझपन की समस्या को चित्रित किया है | झमकू कहानी की स्त्री द्वारा यह निर्णय लिया जाना कि मैं अपने गाँव वापस नहीं जाऊँगी राजस्थान के जातिवादी, पितृसत्तात्मक समाज में बहुत बोल्ड डिसीजन है | ‘बावली’ कहानी स्त्री विमर्श की कहानी है, वही ‘काला भूत’ कहानी दलित विमर्श की कहानी है | भाषा की दृष्टि सभी अत्यंत मजबूत कहानियां है, ठेठ राजस्थानी भाषा का इस्तेमाल, कहानी की विश्वसनीयता को बढ़ाते है| प्रत्येक कहानी में राजस्थान की गंध है |
प्रो. गोपाल प्रधान ने अपनी बात रखते हुए कहा कि राजेंद्र सजल की कहानियां हिंदी कहानी की मुख्यधारा में बड़ा हस्तक्षेप है | इसके लिए हमें वर्तमान हिंदी की कहानी को देखना समझना पड़ेगा | कहानी में मुख्य उपस्थिति शहर की है और नवउदारवाद के दौर में हमारे पास यथार्थ मीडिया के जरिए आता है | इसने हमारे अनुभव जगत को बेहद सीमित कर दिया, समकालीन कहानी में यह एक ब्लाईंड स्पॉट की तरह है | इसने पाठक की संवेदना का विस्तार नहीं होने दिया | राजेंद्र की कहानियों में यह यथार्थ अपनी पूरी भयावहता के साथ उपस्थित है | भाषा के मामले में फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ ने जो शुरू किया उसे राजेंद्र ने आगे बढाया है, भाषा में यथार्थ पूरी तरह उभरकर आया है | इन कहानियों में स्त्री समुदाय लड़ते हुए, जूझते हुए, बेहद सशक्त रूप से चित्रित हुआ है जैसे गोदान में होरी प्रमुख पात्र है मगर ‘धनिया’ की तेजस्विता अन्यतम है | ‘अंतिम रामलीला’ कहानी कलर्डस्कोपिक बहुरंगी यथार्थ की कहानी है जो कि मुझे बहुत पसंद है | सभी कहानियों में एक प्रकार की औपन्यासिकता है |
अपनी कहानियों की रचनात्मकता और शिल्प पर बात करते हुए कहानीकार राजेंद्र सजल ने अपने जीवन के संघर्षों के बारे में रूबरू करवाया | उन्होंने बताया कि मेरे पैदा होने पर जब मेरे पिता मेरी कुंडली के बारे में पूछने के लिए पंडित के पास गए तो पंडित दोपहर तक पिता से खेत में बेगार करवाते रहे, पंडित के मनमुताबिक कार्य न होते देख कर उसने मूलो में पैदा होना बताया तथा माता-पिता के लिए कष्टकारी बताया| जिसके चलते बचपन से ही माता-पिता का स्नेह मुझसे छिन गया और मुझे मेरी बड़ी बहन ने पाला | कक्षा नौ तक आते आते पंजाब ईंट भट्ठे पर काम करने पहुँच गया | इस प्रकार संघर्षों की आँच में तपकर बाहर निकला | उन्होंने कहा कि ये मेरी कहानियों का यथार्थ मेरे इर्द गिर्द बिखरा हुआ पड़ा है, जो अभी तक की कहानियों में व्यक्त हुआ है यह प्रारंभिक स्तर का है | अभी बहुत कुछ आना बाकी है |
इस परिचर्चा में भाग लेने राजस्थान से आए रामस्वरूप रावत ने कहा कि ग्रामीण परिवेश में व्यक्ति क्या भोगता है वह शहर में बैठा आदमी महसूस नहीं करता है, लेकिन इस गोष्ठी में आकर मेरी यह धारणा बदली है | यहाँ विचार और मानसिकता अद्भुत समावेश देखने को मिला है | कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन पूजा सूर्यवंशी ने किया | इस परिचर्चा में प्रसिद्द इतिहासकार एवं आम्बेडकरनामा के संस्थापक डॉ. रतन लाल, कवयित्री रजनी अनुरागी, नाटककार राजेश कुमार, कवि जावेद आलम खान, कवि समय सिंह जौल, कवयित्री संतोष देवी,शोध छात्रा संगीता झा,अजय कुमार, मनीषा, लारैब अकरम, द मूकनायक की संस्थापक मीना कोटवाल, राजा चौधरी सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे |