टाइम लाइन
वर्ष 2014 से 28 मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियों का निवारण करना है.
वर्ष 2017 की 30 अगस्त को तमिलनाडु के एक स्कूल से पीरियड से जुड़े रवैये को लेकर एक शर्मनाक ख़बर सामने आई. तमिलनाडु के तिरुनेलवेली ज़िले के पलायमकोट्टाई इलाके में एक छात्रा ने पीरियड के दाग को लेकर डाँट खाने के बाद आत्महत्या कर ली. सेंथिल नगर स्कूल की 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली इस छात्रा को शिक्षिका ने यूनिफॉर्म पर पीरियड्स के दाग लग जाने को लेकर डाँटा था, जिसके बाद 12 साल की इस छात्रा ने सुबह 3 बजे अपने पड़ोस कीएक इमारत से कूदकर आत्महत्या कर ली.
वर्ष 2018 में 29 नवंबर को खबर मिली कि नेपाल सीमा से लगे पिथौरागढ़ जिले के सल्ला चिंगरी क्षेत्र के कई गाँवों की छात्राओं को मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं भेजे जाने का मामला सामने आया. वे हर माह पाँचदिन घरों में ही बैठी रहती हैं. स्कूल और क्षेत्र के लोक देवता के मंदिर को जोड़ने वाला मार्ग एक ही है. किसी अनिष्ट की आशंका के चलते परिजन भी इस दौरान छात्राओं को स्कूल भेजने से बचते हैं. क्षेत्र के दो इंटर कॉलेज और दोजूनियर हाईस्कूल में इस तरह की समस्या सामने आई है.
वर्ष 2019 में 24 मई को नई दिल्ली में पहली बार मासिक धर्म आने से परेशान 12 साल की बच्ची ने फाँसी का फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली. बच्ची की बड़ी बहन ने पुलिस को बताया कि ”दो दिन पहले उसे पहली बारमासिक धर्म आया था. इससे वह तनाव में आ गई थी. हालांकि, बड़ी बहन ने उसे बहुत समझाया, लेकिन उसकी परेशानी कम नहीं हुई.”इस मामले में लड़की के परिवार का कहना है कि ”इसी वजह से बच्ची ने खुदकुशी कर ली.”
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वर्ष 2019 की 20 मई की खबर देश में पहली बार केरल के सभी स्कूलों में सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन लगाना अनिवार्य किया जा रहा है.
उपरोक्त तमाम बुरी खबरों के बीच किसी अच्छी खबर की तरह सामने आई यह बात है. वरना पीरियड्स कह लीजिए, मासिक धर्म या मासिक चक्र कह लीजिए…जिसे कालांतर में लगातार आना ही है उसे लेकर लोगों के मन में तथ्य कम और वहम ज्यादा होते हैं इसलिए कोई भी वर्ष हो और कोई भी प्रांत वहाँ की किशोरवयीन लड़कियों के जीवन में इसका आना सामान्य बात नहीं होती, बल्कि इसे आम बोलचाल की भाषा में ‘प्रॉब्लम’ ही कहा जाता है…कि अभी चार दिन ‘प्रॉब्लम’ है. वर्ष 2018 में देश की राजधानी दिल्ली में लड़कियों के लिए चलाए जाने वाले कुछ सरकारी स्कूलों का सर्वे किया गया तो सामने आने वाले आँकड़े शर्मनाक थे. सर्वेमें 12 से 18 साल की 600 लड़कियों से बातचीत की गई और उनमें से 40 फीसदी लड़कियों का कहना था कि मासिक धर्म के दौरान उन्हें मजबूरीवश एक से लेकर 7 दिनों तक छुट्टी लेनी पड़ती है. कारण कई थे- स्कूलों में लड़कियों के लिएअलग से टॉयलेट ना होना, नलों में पानी न आना और कपड़े या पैड फेंकने के लिए अलग से जगह ना होना वगैरह-वगैरह.
मासिक धर्म से जुड़े कुछ और कटु सत्य पर नजर डालें तो हालात और भी डरावने प्रतीत होते हैं. देश में 71 फीसदी किशोरियों को अपने पहले मासिक धर्म से पहले इसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. लगभग 20 फीसदी लड़कियाँ मासिकधर्म शुरू होते ही डर और सुविधाओं के अभाव के कारण स्कूल छोड़ देती हैं. 88 फीसदी किशोरियाँ नहीं जानतीं कि मासिक धर्म के दौरान सफाई ना रखने से क्या-क्या बीमारियाँ हो सकती हैं. सफाई ना अपनाने से इन्हें फंगल इंफेक्शन,यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन और रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन होते हैं. जागरूकता के अभाव में ये इंफेक्शन फैल कर न केवल बहुत सी लड़कियों को माँ बनने के सुख से वंचित कर रहे हैं बल्कि उनमें से बहुतों को कम ही उम्र में सर्वाइकल कैंसर काभी शिकार बना रहे हैं. देश में हर साल सर्वाइकल कैंसर के एक लाख 32 हजार नए मामले सामने आते हैं. इनमें कम उम्र की लड़कियों की भी संख्या होती है. वहीं राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य विभाग की ओर से करवाए गए सर्वे में 95.5 फीसदी छात्राओं ने माना कि उन्हें मासिक धर्म के बारे में जानकारी है. 79 फीसदी छात्राओं ने माना कि वे मासिक धर्म के दौरान स्कूल जाना या घर से बाहर निकलना पंसद नहीं करतीं. 45 फीसदी छात्राएँ मासिकधर्म के दौरान योग और खेलकूद नहीं करती जबकि 41 फीसदी ऐसा करती हैं. 28 फीसदी कभी कर लेती हैं कभी नहीं करती. इसी तरह 63.5 फीसदी छात्राओं ने बताया कि उन्हें महिला प्रजनन प्रणाली के बारे में जानकारी है जबकि 86.5प्रतिशत छात्राओं को पुरुष प्रजनन प्रणाली की जानकारी नहीं थी.
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पहले 13 से 14 साल की उम्र में किशोरियों के शरीर में बदलाव देखने को मिलते थे ये बदलाव अब 11 से 12 साल में होने लगे हैं. मगर इस उम्र में बच्चियाँ इन बदलावों के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होती हैं. इस बारे में बच्चियों को पहलेसे जानकारी देना जरूरी है, ताकि वे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो सकें. लेकिन हमारे देश में होता कुछ उल्टा ही है. मासिक धर्म के दौरान बेटियों को अलग-थलग रखा जाता है. प्रचलित मान्यता के दौरान इस समय वे पूरी तरहसे अपवित्र हो जाती हैं. हालाँकि प्रगतिशील समाज में बहुत सारी चीजें बदल चुकी हैं. लेकिन पिछड़े क्षेत्रों में इन सब बातों को काफी तवज्जो दी जाती है. कई घरों में माँ को पीरियड आने पर बेटियों को खाना बनाना होता है, ऐसे में वे स्कूलनहीं जा पाती हैं. इतना ही नहीं माँ के बिल्कुल अलग-थलग पड़ जाने के कारण पूरी जिम्मेदारी बेटियों को उठानी पड़ती है.
बच्चियों का स्कूल जाना केवल इस एक वजह से रुक जाए, तो इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है और वह भी इस सदी में! ऐसे में केरल के सभी स्कूलों में सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन लगना कितना सुखद है. सभी उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनों को अनिवार्य करने वाला केरल भारत का पहला राज्य बन गया है. गर्मियों की छुट्टियों के बाद फिर से खुलने के लिए राज्य के स्कूलों के लिए सिर्फ कुछ हफ्तेबचे हैं, सरकार ने सभी स्कूलों को नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से ही वेंडिंग मशीन लगाना अनिवार्य कर दिया है. यह भी तय किया गया है कि मशीनों की संख्या स्कूल में छात्राओं की संख्या के अनुपात में होनी चाहिए. इसे राज्य सरकार की ‘शी पैड’ योजना के तहत लागू किया जाएगा, जिसका उद्देश्य सभी छात्राओं को सेनेटरी पैड उपलब्ध कराना है. शिक्षा विभाग ने राज्य के सभी सरकारी, निजी, सहायता प्राप्त और वित्तविहीन स्कूलों को भी पीने केपानी और लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा,“हर महिला को मासिक धर्म स्वच्छता का अधिकार है. सरकारकी ‘शी पैड ’योजना का उद्देश्य राज्य भर के सभी स्कूली छात्रों को स्वस्थ और स्वच्छ सैनिटरी पैड वितरित करना है. पर्यावरण के अनुकूल निपटान प्रणाली और इस्तेमाल किए गए पैड के लिए डिस्टिलरी को योजना के हिस्से के रूपमें वितरित किया जाएगा. अगले कुछ वर्षों में इस योजना पर अनुमानित 30 करोड़ रुपये खर्च किए जाएँगे. यह परियोजना राज्य महिला विकास निगम के नेतृत्व में स्थानीय स्व-सरकारी संस्थानों के सहयोग से कार्यान्वित की जारही है. सरकारी आँकड़ों के अनुसार, केरल में कुल 1845 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं, जिनमें निजी और सरकारी दोनों क्षेत्र शामिल हैं.
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