‘दिल्ली की नागरिक’ जिसने 15 सालों में दिल्ली को बदल दिया

ज्योति प्रसाद

कुछ ख़बरें झकझोर कर रख देती हैं. इनमें से एक ख़बर देवभूमि से आ रही है. देश के नामी अख़बार ने एक ख़बर प्रकाशित की है. उत्तरकाशी में पिछले तीन महीनों में 132 गाँवों में एक भी बेटी का जन्म नहीं हुआ है जबकि 216 लड़कों का जन्म हुआ है. ठीक इसी तरह से बाक़ी आंकड़े भी रास्ते में हैं जो जाँच के बाद हमारे दिमाग तक दस्तक दे देंगे. देश में हम आज भी ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ का नारा पकड़ कर बैठे हैं जबकि उत्तरकाशी के एक नहीं दो नहीं बल्कि 132 गांवों में बेटियों ने जन्म नहीं लिया.  

लड़कियों को जन्म लेना था लेकिन वे लेने नहीं दी गईं. अब सोचिए, अगर वे लड़कियाँ पैदा होतीं तब वे अपने होने को इस धरती पर कैसी आकृतियां देतीं? क्या यह संभव नहीं है कि वे बहुत कुछ बनकर उभरतीं? या फिर कुछ न भी बनती तब भी अपने होने को ही खुशियों के साथ जीती-खाती-पीती-हँसती-रोती-घूमती या फिर बदनाम ही हो जातीं…लेकिन वे होतीं! अगर वे ज़िंदा होतीं तब वे आपके और हमारे बीच होतीं! वास्तव में उनका होना ही है जो सबसे अच्छी बात होती.  

शीला दीक्षित और सोनिया गांधी

होने और न होने के बीच ही ज़िंदगी उभरकर आती है. यह हर उस होने वाले को तय करना है कि वह अपने होने को कितना सार्थक बना पाता है. यह रचना प्रक्रिया है. कई किताबों में इस पंक्ति को पढ़ा जा सकता है. यह होना ही रोशनी की तरह है. अपने होने को दिल्ली की जनता के बीच सार्थकता प्रदान करने का काम शीला दीक्षित ने बखूबी किया. उन्हें अक्सर टीवी पर अपने तरह-तरह के साक्षात्कारों के दरम्यां लगभग एक ही लय में बात करने वाली के तौर पर देखा जा सकता है. दिल्ली में कोई बच्चा पैदा हुआ और अपनी युवा अवस्था में गया, तब भी दिल्ली की मुख्य राजनितिक कुर्सी पर एक ही महिला मुख्यमंत्री बनी रही. यह कई लोगों को अजीब लगेगा पर दिल्ली के लोगों के लिए यह अजीब कतई नहीं है. पंद्रह वर्षों तक वे हर दिल्ली वाले के लिए आदत बन गई थीं. अब इस माहौल में शीला दीक्षित जैसी महिला नेता के इंतकाल पर दुखी होना स्वाभाविक है. 

उनका जन्म 31 मार्च 1938 में हुआ था. कल दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांसे लीं. उनका जन्म पंजाब के कपूरथला में हुआ था. उनका वैवाहिक रिश्ता उत्तर प्रदेश के एक राजनीतिक परिवार से जुड़ा. वे कन्नौज, दिल्ली, केरल के रास्ते होते हुए अपने कार्य  करती रहीं. पर इनमें सबसे बड़ा पड़ाव दिल्ली का तख़्त रहा. मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल सन् 2013 तक रहा. हालाँकि उनकी हार भी बेहद बड़ी रही पर उसे काफी लोग अब भूलने की कगार पर हैं. उनके काम को याद करने वाले लोग आज भी ज़्यादा हैं.

उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास में मास्टर किया था. उनकी हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा बेहद अच्छी थी. उन्होंने अपनी आत्मकथा- ‘सिटीजन डेल्ही: माय टाइम्स, माय लाइफ’ नाम से  लिखी है. इस किताब में उन्होंने अपने उन सभी राजनीतिक, सामाजिक और निजी जीवन अनुभवों को जगह दी है जिसने उनकी जीवन को दिशा और आकृति देने का काम किया. अपने निजी जीवन में अपने पति और प्रशासनिक सेवा अधिकारी से विवाह में जाति कैसे आड़े आई की परेशानी को भी दर्ज़ किया है. वे दिल्ली में मज़बूत व्यक्तित्व के तौर पर उभरीं. पुरूषों के कब्ज़े वाली जगह में अपना क़िला बनाकर उसे पंद्रह साल तक खड़ा रखना कोई मामूली बात नहीं है. उनके बारे में लिखे जा रहे बहुत से आलेखों में उनके ससुर और कॉंग्रेसी नेता उमाशंकर दीक्षित का ज़िक्र हो रहा है. पर शीला वह बनीं जो ख़ुद की पहचान गढ़ के चली गईं.  

राजनीति महिलाओं के लिए कठिन क्षेत्र रहा है. यहाँ महिला राजनीतिज्ञ होना आज भी चुनौतीभरा है. फिर भी अपने आसपास नज़र उठाने पर कुछ उदाहरण दिख ही जाते हैं. दिल्ली जैसा राज्य जो पूरा राज्य भी नहीं है, की तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपने कार्यकाल में दिल्ली मेट्रो, सीएनजी के इस्तेमाल, दिल्ली की हरियाली और स्कूलों-अस्पतालों में किए गए कामों को ज़्यादा महत्वपूर्ण माना है. उनका यह भी कहना था कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सेनेटरी पैड्स बंटवाने का काम उन्होंने ही शुरू किया. बात अगर दिल्ली की सड़कों की जाए तब दिल्ली में सड़कों के ऊपर जगह-जगह उड़ने वाले फ्लाय ओवरों में भी उनके काम को समझा जा सकता है.  

2010 में राष्ट्रमंडल खेलों में जो रूप दिल्ली को मिला वह कमोबेश आज भी दिल्ली के चेहरे पर देखा जा सकता है. साइन बोर्ड्स से लेकर दिल्ली की सड़कों को किनारे लगे खुबसूरत पेड़ों को निशानी के तौर पर लिया जा सकता है. इतना ही नहीं जिन दिल्ली की बसों में रोज़ कई हज़ारों लोग अपने सफ़र पूरे करते हैं, उनके रंग का चुनाव तक इस पूर्व मुख्यमंत्री ने ही किया. यहाँ तक कि एसी बसों के मामले में भी उन्हों ने साफ़ कहा, दिल्ली के लोग एसी बसों में सफ़र करने के हक़दार हैं. वास्तव में शीला दीक्षित को जननेत्री इन कामों ने तो बनाया ही बल्कि राजनीति के गलियारों में केंद्र और राज्य में दो विपरीत सरकारों के बावजूद अपने कामों को जारी रखने ने भी उन्हें एक सुलझी हुई नेता का चेहरा दिया. फिर भी उनके ही कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार और घोटालों के कई मामले सामने आएं और सन् 2013 में उन्हों ने जो हार देखी, उसके बारे में उन्हों ने शायद सोचा भी नहीं होगा.   

एक संयोग यह भी है कि जिस इलाक़े में शीला दीक्षित रहती थीं वह निज़ामुद्दीन नाम से दिल्ली में पहचाना जाता है. निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बहुत से लोग हर रोज़ अपनी मिन्नतों को माथा टेकने को कहते हैं और कुछ उनकी दरगाह को मिन्नतों के पुरी होने पर ख़ुशी से चूमने आते हैं. लेकिन यह बात भी दीगर है कि शाहजहाँ की बड़ी बेटी और मुग़ल शहजादी, पादशाह बेग़म जहाँआरा, निज़ामुद्दीन की दरगाह के अंदर ही आराम फरमा रही हैं. जहाँआरा ने ही चांदनी चौक जैसे बाज़ार को आकर देने का काम किया था. इतिहास में मुग़ल वक़्त को पढ़ने वाले के पास जहाँआराके लिए कहने के लिए बहुत कुछ होगा पर कई लोगों को यह मालूम है कि शाही मुहर को रखनेवाली का मुग़ल बादशाह शाहजहाँ पर असर था. मुग़ल राजनीति में पर्याप्त दख़ल देने वाली जहाँआरा का मृत्यु के बाद का पता निज़ामुद्दीन औलिया ही है. शीला दीक्षित का भी वर्तमान में यही पता था. इतना ही नहीं जहाँआरा ने शाहजहाँनाबाद को बसाने और निखारने का काम भी किया ठीक इसी तरह से शीला दीक्षित ने भी दिल्ली को बनाने और निखारने का काम किया. इसलिए जहाँआरा से शीला दीक्षित (दोनों का जन्म माह एक ही है-मार्च) तक महिलाओं का यह सफ़र बहुत सी समानताएं दिखाता है. देखना यह होगा कि समय के खाते में और वे कौन सी महिला क़िरदार होंगी जो दिल्ली के तख़्त पर अपना दावा करेंगी. हालांकि उन्हें याद करते हुए उनके कार्यकाल के दौरान हुए निर्भया बलात्कार काण्ड और बाद में उसपर उनकी विवादित टिप्पणी को भी याद किया जायेगा.

“(एक) कानून लागू करना ही काफ़ी नहीं है. आपको लोगों की मानसिकता को बदलना पड़ेगा और महिलाओं का सशक्तिकरण करना होगा.”- शीला दीक्षित

(“Enforcing a law is not enough. You have to change people’s mindset and empower women.”
– Sheila Dikshit)

ज्योति प्रसाद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं, समसामयिक मुद्दों पर लिखती हैं. 

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles