‘इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुन्ती देवी’ बिहार की उस स्त्री की कथा है, जिसके भीतर समाज को बदलने की ख्वाब पलते थे. जो कभी स्त्रियों को अनपढ़ नहीं देखना चाहती थीं. जिनके भीतर आजादी के पूर्व ही आजादख्याली बसती थी. जिन्होंने अपने कर्म से पूरे इसलामपुर को न सिर्फ प्रभावित किया, बल्कि पूरे बिहार व स्त्रियों के लिए सावित्रीबाई फुले की तरह प्रेरणा की स्रोत बन गईं! उस महान व दूरदर्शी सोच को जीवंतता प्रदान करने का काम उनकी बेटी पुष्पा कुमारी मेहता द्वारा होता है, जो अपनी माँ कुंती देवी से इसलिए प्रभावित हैं कि उनकी माँ सिर्फ उनकी माँ नहीं थी बल्कि उस युग में किसानों व पूरे पिछड़ों की माँ थीं.आज पूरा बिहार उन पर गर्व कर सकता है,वह पिछड़ों के लिए गोर्की की माँ की तरह थी, आलो आँधारी थीं!
भारत में ऐसी स्त्रियों की कथा बहुत कम लिखी गई है जिन्होंने हमें या अपने परिवार व समाज को बदलने का काम किया. हर स्त्री प्रेरणा व गरिमा की स्रोत हैं, बस मर्दवादी नजरिया से जरा अलग हटकर सोचा जाए. “इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुंती देवी” एक ऐसी ही स्त्री की सच्ची दास्तां है जिसके सहारे परिवार व समाज के विकास में स्त्रीयों की कितनी अहम भूमिका है, समझा जा सकता है. हिंदी के जीवनी साहित्य को नयी तकनीक से लिखने व परखने का नया आयाम भी यह पुस्तक प्रस्तुत कर रही है. इसके लिए पुष्पा कुमारी मेहता को धन्यवाद और प्रकाशक द मार्जिनलाइज्ड को हृदय से आभार; इस आशा के साथ कि आप और ऐसी स्त्रियों की सच्ची कथा लेकर आएं जो सबकुछ छोड़कर के भी परिवार, समाज व देश का मुस्कुराना देखना चाहती थीं.
माँ सपनों की तरह है, जो हमेशा जीवन में नवरंग लाती हैं। पुष्पा जी की माँ जीवन की नवरंग हैं, जो अंधकार-युग नें भी पिछड़ों की रोशनी बनकर आती हैं। ग्रमीण स्त्रियों की आशा बनकर आती हैं। इसलिए पुष्पा कुमारी मेहता उनके बहाने उनके संपर्क की सारी स्त्रियों का इतिहास लिख डालती हैं। एक तरह से यह जीवनी साहित्य स्त्रियों का सम्यक इतिहास, सम्यक् संघर्ष व सामूहिक जिम्मेदारी का आख्यान प्रस्तुत करता है।
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