कुछ अल्पविराम

रंजना बिष्ट

जाने माने कथाकार व कवि सच्चिदानंद जोशी की पुस्तक  ‘कुछ अल्पविराम’ यात्रा संस्मरणों और रोजमर्रा की जिन्दगी से जुडी छोटी-छोटी घटनाओं का एक संकलन है। जिस प्रकार भाषा में अल्पविराम का बड़ा महत्व है वैसे ही मनुष्य का जीवन भी है जिसकी दिशा और दशा तय करने में छोटी-छोटी घटनाओं का भी बड़ा योगदान होता है। एक संवेदनशील मनुष्य अपने आस-पास के वातावरण से ही प्रेरणा प्राप्त करता है। किसी बड़े टर्निंगप्वाइंट का इन्तजार नहीं करता।

आज मनुष्य कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है। यह समस्याएं व्यक्तिगत भी हैं और सामाजिक भी। मनुष्य के विकासक्रम में उसके घर-परिवार और शिक्षा का बड़ा योगदान होता है। मगर यह सामाज की विडंबना ही है कि संयुक्त परिवार की जगह एकलपरिवार ने ले ली है और शिक्षा व्यवसाय बन कर रह गई है। किराए के सूपरमैन-इस कहानी के माध्यम से लेखक ने शिक्षा व्यवस्था पर कड़ा प्रहार किया है, जो बच्चों का न तो सही मार्गदर्शन कर पा रही है और ना ही मानवीय मूल्यों का विकास। अंग्रेजी शिक्षा के वर्चस्व ने हमारी संस्कृति और सभ्यता की जडों को इस कदर खोखला कर दिया है कि अपनी मातृभाषा भी हम भूल गए हैं। ‘विदेश में हिन्दी के अनुभव‘ इसबात की ओर संकेत करती है। लेखक का अपनी मातृभाषा हिन्दी के प्रति समर्पण साफ झलकता है जब वह कोपेहेगन में संतअल्बन के एंग्लिक चर्च में प्रवेश करते वक्त अंग्रेजी की जगह हिन्दी के पत्रक की मांग करते हैं।

यह भी पढ़ें: इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुन्ती देवी

‘हवाई यात्रा’ के जरिए जहां एक ओर उन्होंने मनुष्य से उसकी स्वाभाविकता छीन लेने वाली आडंबरपूर्ण आधुनिक जीवन शैली पर तंज कसा है वहीं दूसरी ओर ‘स्वतंत्रता दिवस’ लालबत्ती पर झंडे बेचती लड़की के जरिए आजादी के इतने दसक बाद देश के चिंताजनक हालातों की ओर संकेत किया है जहां आज भी नन्हें हाथों में कलम की जगह मजदूरी है।

धर्मनिरपेक्षता-मंदिर और मजार में भिखारियों का जिक्र करते हुए उन्होंने यह जाहिर किया है कि आमजन मान सस्वभाव से धर्मनिरपेक्ष होती है। वह अल्लाह और ईश्वर दोनों पर समान रूपसे आस्था रखती है।

लेडी श्रवण कुमार-भारतीय समाज की इस विडंबना की ओर संकेत किया है जहां पुरूष कोई कार्य करता है तो उसे समाज उसकी सराहना करता है। श्रवण कुमार की सेवा भक्ति का जिक्र हर एक की जुबान पर मिलता है। मगर हमारे देश में महिलाएं सेवाकर्म बरसों से करती आ रहीं हैं। मगर घर-परिवार हो या समाज सबने उसके योगदान को नजरअंदाज किया है।

यह भी पढ़ें: अम्बेडकर की प्रासंगिकता के समकालीन बयान

कथाकार डॉ. सच्चिदानंद जोशी के संस्मरणों के केन्द्र में जो पात्र हैं वह गरीब और आमजन हैं। जैसे भिखारी, कुली, वृद्ध महिला, ड्राइवर, गार्ड और बच्चें हैं हमारा तथाकथित सभ्य समाज जिनकी परवाह नहीं करता उनके प्रति चिंतन करना यह वास्तव में संवेदनशीलता है जो एक व्यक्ति को सामान्य मनुष्य से कवि, लेखक और रचनाकार बनाती है।

‘कुछ अल्पविराम’ में लेखक ने अपनी बात बहुत ही सरल और सहज ढंग से कही है। अनावश्यक रूप से अलंकृत शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। हिन्दी भाषा जनसाधारण की भाषा बनी रहे इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है। यह साहित्य और गैर-साहित्यिक दोनों तक रह के पाठक को पसंद आएगी।

पुस्तक- कुछ अल्पविराम
लेखक- सच्चिदानंद जोशी
प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, 4/19 आसफअली रोड, नईदिल्ली
मूल्य-150

लिंक पर  जाकर सहयोग करें . डोनेशन/ सदस्यता
आपका आर्थिक सहयोग स्त्रीकाल (प्रिंट, ऑनलाइन और यू ट्यूब) के सुचारू रूप से संचालन में मददगार होगा.
‘द मार्जिनलाइज्ड’ के प्रकाशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  पढ़ें . लिंक पर जाकर ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं:‘द मार्जिनलाइज्ड’ अमेजन ,  फ्लिपकार्ट
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016, themarginalisedpublication@gmail.com

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles