कोई 2014 या 15 का साल होगा जब इति से बात और मुलाकात हुई होगी। फरवरी 2015 में स्त्रीकाल और साउथ एशियन वीमेन इन मीडिया द्वारा आयोजित ‘ गया सेमिनार’ में तो वह आई ही थी।
उसके बाद उसके साथ नियमित बातचीत होने लगी थी। स्त्रीकाल के लिए कई असाइनमेंट उसने किये। कुछ खुद से तय करके, कुछ मेरे सुझाव पर।
2015 में हमने कई जगह साथ रिपोर्टिंग की। कई जगह वह गई मेरे साथ। पातेपुर से रतन लाल इलेक्शन लड़ रहे थे। वहां रिपोर्टिंग के लिए गई।
दाउदनगर में हम सब गये। यह उसका कल्चरल रिपोर्टिंग का अनुभव था। मनीषा,इति, कर्मानंद आर्य और मैं वहां एक दिन रहे। जितिया आयोजन के लिए।
भाकपा (माले ) के महासचिव कामरेड दीपांकर भट्टाचार्य के साथ उनके इलेक्शन कैंपेन के दौरान इंटरव्यू और कैंपेन मोड देखने के लिए हमलोग साथ गये।
उसने हमारे असाइनमेंट पर उषा किरण खान का इंटरव्यू किया। कई रिपोर्ट और आलेख लिखे।
मैं उसे अपनी छोटी बहन की तरह देखता था। वह भी मुझे बड़े भाई की तरह समझती थी।
उसे कई बार परेशान देखता, लेकिन दुखी नहीं। बहन की शादी की, नौकरी को चिंता हो, या कोई छोटी मोटी परेशानी, जो मुझसे शेयर कर सके, मुझसे मदद ले सके, तो वह बेधड़क नॉक करती।
हेल्थ का इशू उसे तब भी था, जब वह मिली थी। लेकिन इस बार स्वास्थ्य उसे हमसे छीन कर ले गया। वह अपने ऑपरेशन के बाद बेहद तकलीफ में थी।
मेरे किडनी ट्रांसप्लांट के बाद एक बार फोन किया। उसने कहा कि ‘ मैं आपको फोन नहीं कर सकी थी बीमारी में, क्योंकि लगता था कि क्या कहें।’ उसने कहा कि ‘ वह कुछ शुभचिंतकों से खबरें ले रही थी मेरी। ‘ उसने बताया कि गूगल के लिए काम कर रही है। पैसे ठीक ठाक मिल रहे थे। उस दिन वह अपनी बुआ ‘ स्वर्णकांता ‘ यानी मुक्ता बुआ के यहां थी।
फिर उससे बात नहीं हुई, इधर दो तीन सालों से। और अब स्वर्णकांता के पोस्ट से उसकी बीमारी और बाद में न रहने की खबर।
उसके पापा सुमंत जी ने परसो- तरसो तबियत में सुधार की बात कही। हालांकि वह सुधार क्रिटिकल दायरे में था। मुझे लगा कि वह ठीक होकर पटना आयेगी। और कल उसके जाने की बात।
वह जुझारू थी, मिलनसार थी,निर्भीक और अकुंठ थी। उसके कुछ महत्वपूर्ण आलेखों का लिंक मैं दे रहा हूं कमेंट में।
इधर बहुत बात नहीं हो रही थी। कल जब उसके जाने की बात सुनी तो मन विचलित हो गया। अपने ध्यान को इस सूचना पर केंद्रित नहीं होने दिया। क्योंकि इन दिनों अपनों के जाने की सूचना मुझे बहुत ज्यादा विचलित कर देती है। लेकिन जब एकांत हुआ तो उसकी यादों से घिर गया। उसके साथ बीते हर क्षण, उसके साथ हुई बातचीत फिर से ताजा हो गये।
इति रंगमंच से भी जुड़ी थी। नाट्य संस्था इप्टा से भी।
अलविदा इति!