जिस दिन मैं उनके आश्रम में पहुंचा उस दिन मेहमाननवाजी की जिम्मेवारी गुजरात की गंगा बहन की थी. लम्बी, दुबली और हमेशा हंसमुख 70 साल से ऊपर की गंगा बहन बड़े सहज ढंग से मिलीं. शाम को उनके कमरे में बातचीत के लिए पहुंचा, उनके बारे में, ब्रह्मचर्य जीवन के बारे में बात करते हुए अचानक से जब मैंने उनसे कहा , ‘ आप बहुत खूबसूरत हैं,’ वे चिरपरिचित अंदाज में मुसकुरा भर दीं. छूटते ही मैंने उनसे पूछ लिया, ‘ कभी किसी को प्यार नहीं किया !’ उन्होंने कहा, ‘ सारे संसार से’.
इन पंक्तियों के लेखक ने 24 घंटे ब्रह्मचर्य जीवन जी रही औरतों के बीच गुजारे – अपनी यौनिकता के दमन के निर्णय के साथ आध्यात्मिक उन्नति में लगीं औरतों के बीच
ब्रह्मचर्य , सामूहिक निर्णय और श्रम-आधारित जीवन
नागपुर से 70 किलोमीटर दूर विनोबा के पवनार आश्रम ( ब्रह्म विद्या मंदिर) में रह रहीं इन औरतों के लिए आश्रम जीवन का मतलब है : ब्रह्मचर्य , सामूहिक निर्णय और श्रम-आधारित जीवन. सुबह 4 बजे से उनकी दिनचर्या शुरू होती है. 4.30 पर वे ईशावास्योपनिषद का पाठ करती हैं, दिन में 10 बजे विष्णुसहस्रनाम का और शाम में गीता पाठ करती हैं. सामूहिक रसोई , खेती और पशुपालन के श्रम –जीवन की रूटीन के अलावा वे एक मासिक पत्रिका ( मैत्री) का सम्पादन करती हैं, विनोबा –साहित्य का सम्पादन और बौद्धिक –आध्यात्मिक चिन्तन में लगी होती हैं- बौद्धिक और शारीरिक श्रम के लिए एक-समान मजदूरी लेती हैं.
ये तीस औरतें जब आश्रम में आई थीं तब युवा-सपनों से भरी थीं. सभी किसी न किसी गांधीवादी परिवार या स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े परिवार की बेटियाँ थीं, जिन्होंने विनोबा भावे के आन्दोलन भूदान से जुड़ने और ब्रह्मचर्य जीवन जीने का संकल्प लिया पवनार आश्रम को अपना ठिकाना बना लिया.
ब्रह्मचर्य और जेंडर –समानता का विनोबा- दर्शन
विनायक नरहरि विनोबा ( विनोबा भावे ) ने किशोरावस्था में ही ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था. अपने ब्रह्मचर्य प्रयोगों के लिए भी चर्चा में रहे महात्मा गांधी स्वीकार करते थे कि उन्हें विनोबा के ब्रह्मचर्य से प्रतिस्पर्धा है. विनोबा ‘पुरुष और स्त्री होने के भाव से मुक्त होने को ब्रह्मचर्य’ की कसौटी मानते थे, जिसे वे ‘ नपुंसक’ होना कहते थे. वे पुरुषों के द्वारा औरतों पर किये गये प्रतिबंधों के खिलाफ उनके आन्दोलन से ज्यादा असरकारी इस ‘ नपुंसक भाव’ को मानते थे, जो उनके अनुसार जेंडर –समानता का सर्वोत्तम रूप है .
ब्रह्मचर्य के गांधीवादी प्रयोग और महिलायें
गांधी विनोबा के आदर्श थे. गांधी ने भी ब्रह्मचर्य के प्रयोग औरतों पर किये. अपनी पोतियों के साथ उनके ब्रह्मचर्य के प्रयोग के लिए गांधीवादियों और गांधी के आलोचकों के अपने –अपने पक्ष –विपक्ष हैं. जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती को 16 साल की उम्र में गांधी ने ब्रह्मचर्य के लिए प्रेरित किया, तब प्रभावती गांधी आश्रम में रहने लगी थीं और जय प्रकाश नारायण अपनी पढाई के लिए विदेश में थे. पवनार आश्रम की ये गांधीवादी औरतें भी गांधी-विनोबा के ब्रह्मचर्य –विचार से प्रभावित हैं.
कटती गईं समाज से
1959 में जब विनोबा ने यह आश्रम बनाया था, तो उनके साथ काम करने आई लडकियाँ , देश के विभिन्न राज्यों से थीं, कुछ की पारिवारिक पृष्ठभूमि पाकिस्तान के सिंध आदि प्रान्तों की भी है. जीवन के अंतिम वर्षों में प्रवेश कर चुकी ( लगभग 20 औरतें 70-75 की उम्र पार कर चुकी हैं) ये औरतें एक निश्चित रूटीन जी रही हैं. आश्रम से बाहर सामाजिक जीवन से जुड़ना इनके लिए मना है, जो इनके अनुसार इन्होने स्वयं तय कर रखा है. यद्यपि ये अपने परिवार में कभी –कभी आना –जाना करती हैं. आश्रम में ही रह रही प्रवीणा देसाई जब ‘ आचार्य कुल’ की अध्यक्षा बनीं और देश भर में विद्यार्थियों को ब्रह्मचर्य-जीवन के लिए प्रेरित करने लगीं तो आश्रम की सदस्याओं ने सामूहिक निर्णय की प्रक्रिया से इन्हें दूर कर दिया, एक तरह से उनके सामूहिक बहिष्कार का निर्णय लिया. प्रवीणा ने ब्रह्मचारी युवाओं के लिए ‘ निवेदिता निलयम’ की स्थापना की.
आन्दोलनों में भागीदारी
विनोबा के जीवन काल में उन्होंने आश्रम के बाहर आंदोलनों में कई बार शिरकत की है. भूदान आन्दोलन ( 1951) में भागीदारी के अलावा आश्रम की शुरुआत ( 1959) के तुरत बाद 1961 में बिहार के सहरसा जिले में बीघा –कट्ठा आन्दोलन में आश्रम की महिलाओं ने भाग लिया. 1978-79 में गोहत्या-बंदी आंदोलन में आश्रम की औरतें शामिल हुई थी और 1973 में गीता के प्रचार के लिए विनोबा ने उन्हें मुम्बई भेजा. 1982 में विनोबा की मृत्यु के बाद महिलायें आश्रम की रूटीन जीवन (जिसे वे आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताती हैं) में सीमित हो गई.
नहीं आ रही नई लडकियाँ
15 साल की उम्र से ब्रह्मचर्य जीवन जी रही शांति कृपलानी कहती हैं, ‘ ब्रह्मचर्य जीवन कठिन नहीं है, लेकिन हमारी चिंता का विषय है कि नई लडकियाँ यहाँ नही आ रही हैं, हममे से कई ८० वर्ष की उम्र पार कर चुकी हैं , हमारे बाद आश्रम का क्या होगा !’ प्रवीना देसाई इसके लिए आश्रम जीवन की नीरसता और समाज से अलगाव को कारण बताती हैं. हाल के दिनों में उड़ीसा से 50 साल की नलिनी आश्रम में दाखिल हुई हैं . प्रवीना कहती हैं , ‘ हमारा नियम रहा है 25 से 30 के बीच की लडकियों को सदस्य बनाने का, ब्रह्मचर्य एक कठोर व्रत है, जो 50 साल तक गृहस्थ जीवन में रहते हुए कठिन है.
गाय –गीता और हिन्दू जीवन
‘ कामहा , कामकृत कान्त , काम –कामप्रद प्रभु’ – विष्णु सहस्रनाम की इस पंक्ति वे हर रोज पाठ करती हैं. यह पंक्ति विष्णु के हजार नामों में उनके ‘काम-देवता’ ( सेक्स –वासना के ईश्वर) नाम के जाप के लिए है.
दो –दर्जन से अधिक गायों की एक गोशाला आश्रम का हिस्सा है, जिनकी सेवा इनके श्रमपूर्ण जीवन का एक हिस्सा है. नियमित गीता पाठ और विष्णुसहस्रनाम के जाप को वे आध्यात्मिक जीवन का एक मार्ग बतलाती हैं, और इन्हें वे हिन्दू जीवन पद्धति मानने को तैयार नहीं होतीं.
दस फूट का संसार
सामूहिक खाना, श्रम और भजन के अलावा इनका समय इनके कमरे में ही बीतता है. एक छोटा बिस्तर , एक या दो कुर्सियां और कुछ धार्मिक किताबें- इनके कमरों का कुल दृश्य यही है. ज्यादातर औरतें एक कमरे में अकेले रहती हैं , लेकिन कुछ कमरों में दो –दो औरतें भी साथ रहती हैं. समाचारों के लिए आश्रम में आने वाले हिन्दी और मराठी के अख़बार पढती हैं. कई औरतों के पास रेडियो है और कई के पास मोबाईल भी, जिससे वे अपने घरों के सम्पर्क में भी रहती हैं
और भी हैं ब्रह्मचारी औरतों के आश्रम
देश भर में संचालित ब्रह्मकुमारी आश्रम भी औरतों के ब्रह्मचर्य जीवन को संरक्षण देते हैं. ब्रह्मकुमारी मूलतः धार्मिक आंदोलन है, जो ब्रह्मचर्य को शान्तिपूर्ण और वासनारहित जीवन के लिए जरूरी मानता है. इनका मानना है कि एक ऐसा समय होगा, जब बच्चे भी मानसिक शक्ति से पैदा किये जा सकेंगे.
और पुरुष –नियन्त्रण
औरतों के इस आश्रम में एक पुरुष ब्रह्मचारी भी स्थाई रूप से रहते हैं – गौतम बजाज. वे 1951 से 13 साल की उम्र में विनोबा भावे से जुड़ गये थे. आश्रम की औरतें शान्ति और गंगा कहती हैं, ‘ गौतम भाई बचपन से हमारे बीच हैं, वे हम बहनों की ही तरह हैं, उनके पुरुष होने का कोई अर्थ नहीं है.’ गौतम बजाज आश्रम के प्रवेश द्वार पर बने कमरे में रहते हैं, जिनकी भूमिका व्यवस्थापक सी दिखती है. बजाज कहते हैं , ‘ आश्रम का संचालन महिलाओं के सामूहिक निर्णय से होता है, लेकिन कई मामलों में मेरी विशेषज्ञता का वे आदर करती हैं.’