पूनम सिंह की कविताएँ

पूनम सिंह

कथाकार , कवि और आलोचक पूनम सिंह की कहानी , कविता और आलोचाना की कई किताबें प्रकाशित हैं . सम्पर्क : मो॰ 9431281949



क्षमाप्रार्थी


उत्तराखण्ड में कालकलवित हुए
मृतकों के लिए
मेरी कविता ने नहीं रखा था
एक लम्हे का मौन
नहीं जताया था
मृत्यु की बेरूखी पर
कोई अफसोस

उस दिन भी जब
गंगासागर में नहाने गये लोग
नहीं लौटे अपने घर
मैं उदास हुई
मेरी कविता नहीं

ईश्वर की ओर पीठ किये
रतजगी करने वाली मेरी कविता
जिद्दी नासमझ है मित्रों
मैं हृदय से क्षमाप्रार्थी हूँ
उसके लिए

यह कैसा मौजीपन है तुम्हारा

आज जब हमारी सांसें
सलीब परईसा की तरह टंगी है
आँखें डरावने सपनों को देखती
पत्थर हो रही है
पपड़ाये होठों पर शब्द
मूर्छित पड़े  हैं
तुम मल्हार गाने को कह रहे हो ?

विचित्र जीव हो तुम भी
उस  दिन
पूस की ठिठुरती रात में कहने लगे
चलो दरिया में
एक डुबकी लगा आए
यह  रात भी क्या याद करेगी
किसी ने इसके अहंकार को
इस तरह पानी में डुबोया है
यह कैसा मौजीपन है तुम्हारा
कल ही
सियासत के सभागार में
’हुकुम‘ के दहकते अंगारे को तुम
पान की गिलौरी सा
चबाने लगेथे
मैंने नजर की आलपीन चुभोई
तो चिहुँक कर
पच्च से थूक दिया
एक कुल्ला पीक
उस दुधिया कालीन पर
जहाँ पैर रखते हुए
सबने उतार दिये थे
अपने जूते

तब से तुम्हारे हाथों में जूते हैं
पैरों में गाँधी टोपी
एक टाँग पर खड़े

श्वान की विशेष भंगिमा में
बापू के स्मारक पर
जल चढ़ाते हुए
तुम कह रहे हो मुझसे
‘गाँधीबाबा की टोपी आज
सियासत के सिर से उतरकर
पैरों से लिपट गई है
इससे क्या मैं समय शापित
युगपुरूष की
अभ्यर्थना ना करूँ ?
समय के परिवर्तित परिदृश्य पर
कोई प्रतिक्रिया न जताऊँ ?

गाने दो मुझे मौज में
रागमल्हार !
बजाने दो खंजरी की तरह
हाथों में उठाये जूते
मैं वक्त की सच्चाई को
उसके उत्कर्ष तक पहुँचाना चाहता हूँ
विश्व अहिंसा दिवस के उल्लास में
बापू की समाधि को आज
मनुष्येतर प्राणियों का
शिवालय घोषित करना चाहता हूँ
तुम मुझसे इस कदर नाराज क्यों हो प्रिये ?

सचमुच अजीब जीव हो तुम भी
अजूबाहैतुम्हारा यह मौजीपन!

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles