स्त्रीकाल डेस्क
आज, 22 अगस्त, 2017 को देश के सर्वोच्च न्यायालय में मुस्लिम समुदाय ने प्रचलित तीन तलाक के मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया आइये 9 बिन्दुओं में समझते हैं फैसला और कोर्ट रूम गतिविधियों को
1. 5 संवैधानिक बेंच के तीन जज कुरियन जोसफ, यूयू ललित और आरएफ नरीमन ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया. चीफ जस्टिस जेएस खेहर और अब्दुल नजीर ने अ संसद को इस बारे में कानून बनाने के लिए निर्देश दिया. स्पष्ट है कि बहुमत इसे असंवैधानिक मान रहा था.
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2. तीन तलाक का मामला मुस्लिम धर्म की महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है. संवैधानिक बेंच में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी धर्म के पांच जज शामिल थे. लेकिन कोई महिला नहीं थी.
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3. आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप के योग्य नहीं बताया था. यही उसका पक्ष था, फैसला प्रायः इसके अनुरूप आया. मामला संसद के पाले में. बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी थी अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत परंपरा की बात है और संविधान पर्सनल लॉ को संरक्षित करता है. 1400 साल से आस्था चली आ रही है. सरकार चाहे तो पर्सनल लॉ को रेग्युलेट करने के लिए कानून बना सकती है. हिंदुओं में आस्था है कि राम अयोध्या में पैदा हुए हैं. ये आस्था का विषय है. अनुच्छेद 14 स्टेट कार्रवाई की बात करता है पर्सनल लॉ की नहीं। सिब्बल ने कहा, ‘तीन तलाक पाप है और अवांछित है। हम भी बदलाव चाहते हैं, लेकिन पर्सनल लॉ में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए. निकाहनामा में तीन तलाक न रखने की शर्त के बारे में लड़की कह सकती है कि पति तीन तलाक नहीं कहेगा. मुस्लिम का निकाहनामा एक कॉन्ट्रैक्ट है. सहमति से निकाह होता है और तलाक का प्रावधान उसी के दायरे में है.
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4. सुप्रीम कोर्ट ने यह चिहिनित किया कि पाकिस्तान सहित कई इस्लामिक देश तीन तलाक की अनुमति नहीं देते तो भारत में क्यों नहीं?
5. पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने पहली बार इस पर विचार किया कि तीन तलाक गैर इस्लामिक है.
6. तीन तलाक के खिलाफ अपना पक्ष रखने वाले वकीलों ने इसे महिला के मूलभूत अधिकारों का हनन बताया.
7. मोदी सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ कोर्ट आये पेटिशनर के पक्ष में अपनी दलील दी और इसे असंवैधानिक बताया.
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8. सुनवाई के दौरान कुरान, शरीयत और इस्लामिक कानून के इतिहास पर जोरदार बहस हुई। साथ ही संविधान के अनुच्छेदों पर विस्तार से दलीलें पेश की गईं। संविधान के अनुच्छेद-13 (संविधान के दायरे में कानून) , 14 (समानता का अधिकार), 15 (जेंडर, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार), 21 (मान सम्मान के साथ जीने का अधिकार) और 25 (पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ और नैतिकता के दायरे में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) पर बहस हुई.
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9. याचिकाकर्ता शायरा बानो के वकील अमित चड्ढा ने कहा कि अनुच्छेद 25 में धार्मिक प्रैक्टिस की बात है। तीन तलाक अनुच्छेद 25 में संरक्षित नहीं हो सकता. धार्मिक दर्शनशास्त्र में तीन तलाक को बुरा और पाप कहा गया है. ऐसे में इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संरक्षित कैसे किया जा सकता है. राम जेठमलानी ने तीन तलाक के खिलाफ दलील पेश करते हुए कहा कि अनुच्छेद-13 के तहत कानून की बात है. जो भी कानून है वह संविधान के दायरे में होगा. मूल अधिकार का जो कानून, रेग्युलेशन या परंपरा उल्लंघन करेगा वह मान्य नहीं हो सकता.