अकेली-अकेली
मै अकेली बाते करती हूं।
यहाॅ आसपास कोई नहीं ।
फिर किस से बात करती हूँ?
अपने आप से बात करने की आदत है।
जिंदगी भर घर के लोगों का साथ था ।
उनकी सेवा मे मेरा हर पल गुजारा था ।
उनके लिये मेरा जीना था ।
अब अकेली रहती हूं ।
ईश्वर मेरा दोस्त है।
वो मेरा सखा है।
वो मेरे मन मे है
उससे मेरी बाते होती है ।
मेरे साथ मेरा मन है
मन मे ढेर सारी यादें हैं
यादों मे रिश्ते बसते है
उनसे मेरी बातें होती है
चार दिवारों का घर है
घर मे मेरे कोई नही होता
मै अकेली-अकेली हूँ
मै अकेली बातें करती हूँ।
गरिमा से रहो
जब कोई दे रही है बिंदियाॅ ,
हरे कांच की चुडियाॅ
कोई लगा रही है कुंकुंम
तो परहेज क्यों ?
महिलाओं का यह बचपन का हक है ।
अपना हक अदा करना है ।
पति नही है जब तेरा,
तुझे दुगनी जिम्मेदारी संभालनी है ।
इसलिये समाज में तुम्हे आम महिला की तरह रहना है।
पहले समाज मे पतिविहिन औरतों पर बहुत बंधन थे ।
अन्याय ,अत्याचार ,जुल्म होते थे ।
अब समाज तुम्हे अपना रहा है ।
समाज मे स्थान दे रहा है ।
तो फिर क्यों दूर भाग रही हो ?
अपने हक का सम्मान से स्वीकार करो ।
अपना अस्तित्व संभालो ।
अपना व्यक्तित्व निखारो ।
जीवन में गरिमा से रहो।
तू लडकी है
तू नही जायेगी वहाॅ
क्वांरी कन्या की पूजा के लिये ।
तू नही है कोई देवी माॅ
तू नही बनेगी माताजी !
तेरे पांव छूना ,तुझे खाना खिलाना
अब नही होगा ये !!
इधर वे क्वांरी कन्या के पाँव छूते
उधर उनके गाल चूमते।
देवी समझकर पूजते
और उनके साथ कुकर्म करते ।
अब लडकियाॅ देवी नहीं बनेगी ।
लडकी हैं ,लडकी रहेंगी ।
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