एक विचार ऐसा आ रहा है, खासकर हिंदी क्षेत्र में यह ज्यादा है कि जो दलित लड़कियां है उनको दलितों में ही शादी करनी चाहिए. एक, दूसरा कि जो पढ़े-लिखे दलित लड़के हैं जिनकी नौकरी लग जाती है उन को ब्राह्मण लड़कियां ले जाती हैं. ये खास विचार पढ़े लिखे बुद्धिजीवी प्रोफ़ेसरों के बीच विमर्श में है. इसको आप कैसे देखियेगा.
मुझे ऐसा नहीं लगता है. दलित लड़कियों ने भी ब्राह्मण और मराठा आदि लड़कों के साथ शादियां की है. जब कोई लड़का-लड़की किसी भी वक्त पर एक दूसरे के निकट आते हैं, उनकी पहचान हो जाती है, तब उनको जाति, धर्म मालूम होने के बावजूद भी वे अपना साथी चुनते हैं और उनकी शादी होती है. यहाँ एक बात ऐसी भी है कि कुछ लोगों को लगता है कि भाई इन्होने ब्राह्मण की लड़की के साथ शादी की है, इन्हें अपने समाज की लड़की के साथ करनी चाहिए थी. लेकिन जब प्रेम विवाह होता है तो कोई जाति का विषय होता नहीं है. चार-पांच प्रतिशत जगह पर गड़बड़ होती है. लेकिन 95 प्रतिशत जगह पर दोनों आपस में मिलते हैं और अपने माँ-बाप को बताते हैं. फिर, आज कल के माँ बाप भी सेक्यूलर होते हैं, बोलते हैं, ठीक बात है. माँ-बाप भी लड़का-लडकी ढूंढने से बच जाते हैं. शादी कोर्ट में होने से कम खर्चों में भी हो जाता है. मेरा व्यक्तिगत मानना है कि अंतरजातीय विवाह का बाबा साहब ने समर्थन किया है. . विश्वेश्वर,जो कर्णाटक के लिंगायत धर्म के संस्थापक हैं, ने अंतरजातीय विवाह को 12वीं शताब्दी में प्रोत्साहित किया था. जातिवाद ऐसे तो ख़त्म होगा नहीं लेकिन अंतरजातीय विवाह से जातिवाद ख़त्म हो सकता है.
महिला आरक्षण को लेकर आपकी क्या राय है?
बाबा साहब अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल लिखा था. उसमें उन्होंने महिलाओं को समान न्याय और सामान अधिकार सुनिश्चित किये थे. महिला ब्राह्मण हो या किसी भी जाति की हो उन सब के ऊपर अन्याय हुआ है और इसीलिए बाबा साहब ने हिन्दू कोड बिल लाया था. मुझे लगता है कि महिलाओं को जिस तरह पूरे देश भर के स्थानीय स्वराज संस्थाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया है और इस मुद्दे को सब ने स्वीकार कर लिया था उसी तरह लोकसभा और विधानसभा में भी किया जाना चाहिए. लेकिन यहाँ क्यों विरोध कर रहे हैं मेरे समझ में नहीं आ रहा है. पिछली बार यूपीए के समय पर कांग्रेस पार्टी भी चाहती थी, बीजेपी भी चाहती थी, दोनों का बहुमत था उसके बावजूद भी समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और अन्य लोगों ने इसका क्यों विरोध किया मालूम नहीं. उनको शायद ये लगता था की उच्च वर्ग की महिलायें उसमें ज्यादा आ जायेंगी.
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आरक्षण के बारे में आप क्या सोचते हैं?
आरक्षण के मुद्दे पर मैंने यह प्रस्ताव रखा था कि अगर कुछ लोगों को डर लगता है कि अपनी सीट महिलाओं को जायेगी तो 545 सीटों (543 एलेक्टेड और 2 एंग्लो इंडियन) की लोकसभा सीटों में 181 सीटें और जोड़ दी जायें, इससे 181 जगह पर दो-दो उम्मीदवार होंगे. एक पार्टी का एक महिला उम्मीदवार और एक अन्य उम्मीदवार होगा. मैंने बोला था कि लोकसभा के लिए जगह कम हो तो सेंट्रल हाल को लोकसभा बनाओ. मेरा व्यक्तिगत मत है कि महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण लोकसभा में और विधानसभा में मिलना ही चाहिए.
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लेकिन आरक्षण के भीतर आरक्षण वाली बात, जो मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, या अन्य लोग उठा रहे हैं, हम सब भी इसी पक्ष के हैं. इसपर आपका पक्ष क्या है?
हमारा कहना था कि अनुसूचित जाति की 69 सीटों को अलग ही छोड़ दो और 181 में हमारी महिलाओं को भी आरक्षण चाहिए अलग से. लेकिन वैसा हुआ नहीं. क्योंकि सामान्य वर्ग और आरक्षित वर्ग दोनो से ही 33% महिलाओं के लिए आरक्षित होना था.
ओबीसी महिलाओं के लिए भी मांग थी न? .
लेकिन ओबीसी महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलेगा क्योंकि अभी राजनितिक आरक्षण ओबीसी को नहीं है. ओबीसी को जबतक आरक्षण नहीं मिलेगा तब तक ओबीसी महिलाओं को भी नहीं मिलेगा. इसके लिए भी संविधान संशोधन करना पड़ेगा.
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अपनी पार्टी के भीतर महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए क्या कर रहे हैं, कुछ कुछ किया आपने कभी?
हमारी पार्टी तो ज्यादातर अलायंस में रही. कांग्रेस पार्टी के साथ हम तीन चार इलेक्शन लड़े, उसमें दस सीट-बारह सीट ऐसे मिलती थी. कारपोरेशन में हमने काफी महिलाओं को टिकट दिया, खासकर जहां महिला वर्ग के लिए आरक्षित सीटें थीं.
बाबा साहब ने 1942 में सबसे बड़ा सम्मलेन महिलाओं का किया था, लेकिन अभी दलित आंदोलन से महिलायें गायब दिखती हैं, कम दिखती हैं, खास कर लीडरशिप के पोजीशन पर ?
हमारी कोशिश यह है कि महिलायें जुड़ें.
आपके यहाँ एक-दो चेहरे ही तो दिखते हैं.
हमने महिलाओं का संगठन बनाया, जिसमें रजनी तिलक को भी अपनी पार्टी में जिम्मेदारी दी थी. हमें महिला विंग को स्ट्रांग करना चाहिए. महाराष्ट्र में हमारा महिला विंग है. जिले-जिले में महिला विंग है, लेकिन सुशिक्षित, पढी-लिखी महिलाएं ज्यादा नहीं आती हैं. बचत गट (सेल्फ हेल्प ग्रुप) के माध्यम से महिलाओं को इकठ्ठा करना, उनके ऊपर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना, उनको छोटे-मोटे उद्योग देना, यह काम हो तो महिलायें पार्टी में आएँगी ही.
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