ध्वस्त घर दिखाते कठपुतली कलाकार |
जब हम कुछ पत्रकार मित्र 30 अक्टूबर को पुलिस के बर्बर लाठी चार्ज के बाद लुटे-पिटी कठपुतली कॉलोनी पहुंचे तो पूरा इलाका पुलिस छावनी में तबदील दिखा और कॉलोनी के लोग विलाप करते, अस्त-व्यस्त, पस्त. कुछ लोग अपने समान ढो-ढोकर जा रहे थे. श्वेता यादव की विस्तृत रपट:
विलाप करती कलाकार सरबती खान |
कहते हैं आशियाने बनाने में सालों लग जाते हैं और उजड़ने में वक्त नहीं लगता। शायद यही कहानी शादीपुर के पास बसे कठपुतली कॉलोनी के साथ घट रही है। एक समय था जब इन गलियों में घुसते ही ढोल-नगाड़े, कठपुतलियां और न जाने क्या-क्या करतब सुनाई और दिखाई पड़ते थे, आज वही गलियां मलबे में तब्दील थी और कुछ सुनाई दे रहा था तो वह था लोगों का रोना- चिल्लाना।
लगभग चार हज़ार परिवार सत्रह राज्यों के लोग और लगभग सत्रह भाषाएँ आज विस्थापित हो गईं। साठ साल से एक ही जगह रहने वाले लोग आज बेघर हो गए, जिन्हें आशियाना बनाने में सदियाँ लगी होंगी वे आज इस उम्मीद से बाहर से आने वाले हर व्यक्ति को देख रहे थे और सवाल कर रहे थे कि अब क्या होगा हमारा, कहाँ जायेंगे हम? बिखरे हुए लोग टूटे हुए मकान जाए तो जाएं कहाँ?
पुलिस की ज्यादती बयान करते लोगों की व्यथा सुनें वीडियो में :
30 अक्टूबर को राजधानी दिल्ली में पुलिस ने डीडीए की मदद से कठपुतली कॉलोनी की झुग्गियों को बिना किसी पूर्व नोटिस के तोड़ डाला। वहां के लोगों ने हमसे बात करते वक्त कहा कि हम लोगों को इस बात की कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी कि आज हमारे घर तोड़े जाएंगे ना ही हमें यह बताया गया कि इसके बाद हमें रहना कहाँ हैं? वहां के बाशिंदों ने हमसे बातचीत में कहा कि हमें अपने सामान तक को निकालने का समय नहीं दिया गया और सामान के साथ ही हमारे घरों को तोड़ दिया गया।
मामले का विरोध कर रही एनएफआई डबल्यू की महासचिव एनी राजा को पुलिस और डीडीए के लोगों ने बुरी तरह से पीटा, वे राम मनोहर लोहिया ट्रॉमा सेंटर में भर्ती हैं। मीडिया के तमाम साथियों के साथ भी पुलिस के बर्बर रवैये की खबर है। गौरतलब बात यह भी है कि एनी राजा को छोड़कर कोई भी राजनैतिक व्यक्ति या पार्टी कठपुतली कालोनी के सपोर्ट में नहीं है कायदे से आंकलन पर आपको यह स्पष्ट हो जाएगा कि बिना किसी राजनैतिक सपोर्ट के इस मामले का कठपुतली कॉलोनी के लोगों के पक्ष में जाना संभव नहीं जान पड़ता है।
जब हम वहां पहुंचे तो हमें लोगों ने बताया कि बिना सूचना बुलडोजर चलने के कारण एक बच्चे की मलबे में दब कर मौत हो गई तथा एक महिला की सदमें से मृत्यु हो गई। हालांकि अपनी तमाम कोशिश के बावजूद इस खबर की सत्यता की पुष्टि में हम असमर्थ रहे। इसके इतर हमें यह सूचना भी दी गई और इसकी पुष्टि करने में हम सफल रहे कि कठपुतली कालोनी के प्रधान की पत्नी ने आत्महत्या की भी कोशिश की जिन्हें सामूहिक प्रयास से बचा लिया गया और अभी वह ठीक हैं।
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घायल एनी राजा |
चारो तरफ की चीख-पुकार लोगों और लोगों के सवालों से घिरे हम दो पत्रकार, मैं और स्त्रीकाल के सम्पादक संजीव चंदन -जब भी आँखें एक दूसरे से मिली शांत भाव से बस एक ही सवाल कौंधा की सच ही तो पूछ रहे हैं लोग कहाँ जाएंगे? क्या करेंगे? एक तरफ पुलिस का घेरा और दूसरी तरफ लोगों का गुस्सा सब झेलते हुए हम उनसे सवाल करते जा रहे थे कि क्या आप लोगों को पता नहीं था कि आपके मकान आज टूटने वाले थे? क्या आप लोगों को कोई नोटिस दी गई थी आज के लिए? अगर मामला कोर्ट में था तो क्या कोर्ट का कोई फैसला आ चुका है इस सम्बन्ध में हमारे सभी सवालों का सामूहिक स्वर में एक ही जवाब आ रहा था और वह था “नहीं”
मुझे आज तक सरकारों का रुख समझ में नहीं आया उन्हें जब भी कभी किसी को विस्थापित करना होता है तो वह जाड़े का समय ही क्यों चुनते हैं? इसके अलावा जिन ट्रांजिट कैम्पों में उनके रहने की व्यवस्था की गई है क्या वहां जीवन यापन के समुचित प्रबंध हैं? सामजिक कार्यकर्ता स्नेहलता शुक्ल जो की इस लड़ाई में लगातार कठपुतली कॉलोनी के साथ बनी रहीं हैं का कहना है कि जितने परिवार यहाँ से विस्थापित किए जा रहे हैं उतने परिवारों के रहने की व्यवस्था सरकार ट्रांजिट कैम्पों में नहीं कर पाई है। परियोजना के मुताबिक बस्ती के लोग दो साल के लिए आनंद पर्वत (दिल्ली में पश्चिम उत्तर का एक इलाका) में बने ट्रांजिट कैम्प जाएंगे। और वापस अपनी जमीन पर आने के लिए इन्हें पैसे भी देने पड़ेंगे।
तीन महीने पहले प्रतिरोध के लिए इकट्ठे होते थे लोग |
क्या है पूरा मामला?
रेहजा बिल्डर्स को यह जमीन अपने एक प्रोजेक्ट के लिए चाहिए। रहेजा का कहना है कि 190 मीटर ऊंची 54 मंजिला यह इमारत दिल्ली की सबसे ऊंची इमारत होगी। इसमें 170 लग्जरी फ्लैट, एक स्काई क्लब और हेलीपेड बनाए जा रहे हैं। छह अक्टूबर 2009 में रहेजा और डीडीए के बीच हुए करार के मुताबिक प्रोजेक्ट में दो कमरे के 2641 फ्लैट, पार्क, ओपन एयर थियेटर, दो स्कूल जैसी सुविधाओं का वादा किया गया है। इसके बदले में रहेजा बिल्डर्स ने 6.11 करोड़ का भुगतान डीडीए को किया। रहेजा बिल्डर्स के हिसाब से इस पूरे प्रोजेक्ट में 254.27 करोड़ का खर्च आने वाला है। कुल 5.22 हैक्टेयर जमीन में से 3.4 हैक्टेयर जमीन कॉलोनी के पुनर्वास में इस्तेमाल होगी। रहेजा बिल्डर्स को शेष 1।7 हैक्टेयर जमीन पर निर्माण करवाने का हक़ हासिल होगा। माने कुल जमीन का 60 फीसदी हिस्सा ही पुनर्वास के काम लिया जाएगा।
तीन महीने पहले स्त्रीकाल से बात करती सरबती भट्ट: वीडियो
डीडीए के 2010 के सर्वे को भी सही माना जाए तो बनाए जा रहे फ्लैट और मौजूद झुग्गियों की संख्या में बड़ा अंतर है। क्योंकि यह सर्वे 6 साल पुराना है तो फिलहाल कुल परिवारों की संख्या में अंतर के और बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता। इस लिहाज से देखा जाए तो इस प्रोजेक्ट के जरिए कुछ लोगों का बेघर होना तय है।
आने वाले समय में सरकार और रहेजा मिलकर इन विस्थापित परिवारों का क्या भला करेंगे यह तो वक्त तय करेगा लेकिन इंसानियत के नाते इतना तो तय माना जा ही सकता है कि बिना किसी की मर्जी के उसे उसके घर से जबरन मार-पीट कर निकालना क़ानून अपराध है। लेकिन तब यह किस अपराध की श्रेणी में आएगा जब क़ानून के रखवाले ही किसी बिल्डर के साथ मिल कर घर गिराने लगें।
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