सुशील मानव
हैवानियत की आग सिर्फ मुज़फ्फ़रपुर में हीं नहीं लगी है। इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक़ उत्तरी बिहार में मुजफ्फरपुर के पड़ोस के जिले सीतामढ़ी के एक बालगृह में अनियमितता और अपर्याप्तता देखने को मिली हैं, लेकिन विभागीय अनुशंसा के बावजूद इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है. वैसे TISS की रिपोर्ट के अनुसार ऐसी अनिमिततायें राज्य के 14 शेल्टर होम में हुई हैं, जिनमें से चार में यौन-शोषण के प्रकरण भी हैं. लेकिन अभी तक राज्य सरकार ने यौन-शोषण के मुख्य सरगना ब्रजेश ठाकुर के एक अन्य शेल्टर होम और दूसरे जिलों के अलग-अलग शेल्टर होम के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है, जो मुजफ्फरपुर में ही है और खबर है कि छापे के दौरान शेल्टर होम की छत पर शराब की बोतलें और कंडोम मिले हैं. बताया जाता है कि अनुमति लेने के नाम पर इस शेल्टर होम के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में कल्याण विभाग ने दो महीने की देरी की.
अपने संचालन के महज़ 40 दिन बाद ही इस बालगृह में 1 मार्च 2017 को एक उच्च बाल संरक्षण अधिकारी ने इस शेल्टर होम में अनियमितता पाए जाने पर इसे बंद किए जाने की अनुशंसा की थी। लेकिन विभाग ने उनकी चेतावनी को दरकिनार कर दिया था।
इस साल के फरवरी में एक बालकैदी के गुम होने की रिपोर्ट हुई थी। जबकि अप्रैल महीने में एक दूसरे निवासी की थैलासीमिया के चलते मौत होने की रिपोर्ट की गई थी। यह शेल्टर होम ‘सेंटर डायरेक्ट’ नामक एनजीओ द्वारा चलाया जा रहा था। इंडियन एक्सप्रेस के पास मौजूद डॉक्युमेंट में तबके एडीशनल डायरेक्टर गोपाल सरन ने इस होम के संचालन के थोड़े दिन बाद ही इसका निरीक्षण किया था और उन्होंने निरीक्षण में पाया था कि बाल कैदियों की फाइल को प्रॉपर तरीके से मेनटेन नहीं किया गया था। उन्होंने ये भी पाया था कि शेल्टर होम में पर्याप्त स्टाफ मौजूद नहीं था।
अतिरिक्त निदेशक गोपाल सरन ने पिछले साल 13 अप्रैल को अपना निरीक्षण रिपोर्ट सोशल वेलफेयर विभाग के डायरेक्टर सुनील कुमार को सौंपते हुए बालगृह में पर्याप्त अनियमितता पाये जाने की बुनियाद पर उसे बंद करने की अनुशंसा की थी।
गोपाल सरन अब डिप्टी कलेक्टर और एडी-सीपीयू इनचार्ज हैं। वे इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये एक इंटरव्यू में बताते हैं कि ‘मैंने रिकमेंड किया था कि शेल्टर होम मानकों पर खरा नहीं उतरा है। वहाँ पर कई निवासियों का नाम रजिस्टर में नहीं दर्ज था और निवासीय सुविधाएं भी मानकों के अनुरूप नहीं थी। मैंने अपना काम ईमानदारी से किया। इससे पहले कि मैं उसपर कोई कार्रवाई होते हुए सुनता मुझे वहाँ के चार्ज से मुक्त कर दिया गया।’
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शेल्टरहोम की कमियाँ निकालने के बाद इस साल के जून में डिस्ट्रिक्ट सीपीयू का इनचार्ज बना दिये गये गोपाल सरन बताते हैं कि मैंने बच्चों को अस्वस्थ स्थितियों में रहते हुए देखा था। उनको परोसा गया खाना भी मानकों के अनुरूप नहीं था। प्रत्येक बालकैदी की पर्याप्त फाइल होनी चाहिए, जिसमें उनका बैकग्राउंड मेडिकल हिस्ट्री (जोकि वहां मेनटेन नहीं था)। इन सबके अलावा एनजीओ में पर्याप्त मात्रा में स्टॉफ भी नहीं था।मुजफ्फरपुर सेवा संकल्प बालिकागृह यौन उत्पीड़न केस के बाद बालगृह चलाने वाले एनजीओ ने सभी स्टाफ बदल दिये हैं।
जिला बाल संरक्षण इकाईयां (CPU)राज्य के सोशल वेलफेयर विभाग के अधीन आती हैं। विभागीय रिपोर्ट दर्शाती हैं कि सोशल वेलफेयर डायरेक्टर सुनील कुमार ने गोपाल सरन के रिपोर्ट के जवाबी कारर्वाई में उनके रिपोर्ट के विपरीत बालगृह का फिर से ताजा निरीक्षण कराने के लिए 4 अक्टूबर 2017 को सीतामढ़ी के जिलाधिकारी को पत्र लिखा।
सोशल वेलफेयर विभाग के वर्तमान निदेशक राजकुमार ने कहा है कि यदि जिलाधिकारी आगे किसी कारर्वाई के लिए लिखते हैं तो यथाशीघ्र ज़रूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए शेल्टरहोम को अपने कब्जे में ले लेगें यदि उनके खिलाफ़ कोई केस बनता है तो। साथ ही हम पर्याप्त निगरानी के लिए हर शेल्टरहोम में सीसीटीवी कैमरा लगवा रहे हैं।
शेल्टर होम के खिलाफ 9 फरवरी को दर्ज किए गए एफआईआर के मुताबिक एक मानसिक रूप से अस्थिर लड़का गायब है जिसे सदर अस्पताल से 8 फरवरी को शेल्टर होम में लाया गया था। जबकि रहस्यमयी पस्थिति में अप्रैल महीने में एक लड़के की मौत हो गई थी जिसका कारण थैलासीमिया दर्शाया गया है।
मुजफ्फरपुर केस में जनहित याचिका दायर करने वाले संतोष कुमार बाते हैं कि जबसे मैंने पटना हाईकोर्ट में मुजफ्फरपुर केस को लेकर पीआईएल दायर की है मुझे बिहार के और भी कई जगहों के शेल्टर होम के खिलाफ विसंगतियों की सूचनाएं मिल रही हैं। सीतामढ़ी बालगृह केस साफ -दिखा रहा है कि कैसे सोशल वेलफेयर विभाग खुद अपने ऑफिसरों तक की चेतावनी को दरकिनार करके बालगृहों में मिलने वाली तमाम विसंगतियों पर आँखे मूँदे बैठा रहता है।
गोपाल सरन बताते हैं कि मुझे बच्चे के गुम होने या बालगृह में बालक के थैलासीमिया से मरने की कोई सूचना नहीं दी गई है। मुझे एक महीने पहले ही अतिरिक्त चार्ज (जिला सीपीयू) सौंपा गया है और मैं एनजीओ की ओर से दर्ज कराई गई रिपोर्ट ढूँढ़ रहा हूँ।
जबकि एनजीओ प्रतिनिधि की ओर से अभी कोई वक्तव्य नहीं आया है। एनजीओ के सेक्रेटरी का मोबाइल फोन स्विच ऑफ है और लैंलाइन नंबर पर कॉल करने पर कोई रिसीव नहीं कर रहा है।
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