1 अगस्त को हुआ कैंडल-मार्च : बालिका-कांड और घन गरज-तर्पण
वीरेन नंदा
जिन्हें सबसे पहले बोलना था, आगे आना था, वे देर से आये, लेकिन दरुस्त आये. मुजफ्फरपुर में बच्चियों से बलात्कार के मामले में शहर की सिविल सोसायटी की चुप्पी देश भर को चुभ रही थी, जिसे तोडी “साहित्य कला, संस्कृति मंच” ने साहित्यकार वीरेन नंदा की रिपोर्ट. वीरेन नंदा अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान के संस्थापक है.
मुजफ्फरपुर में मार्च |
बालिका-कांड विरोध-मार्च का समय ज्यों-ज्यों निकट आता जा रहा था, त्यों-त्यों आकाश में ‘उमड़-घुमड़ कर पागल बादल’ मंडराने लगा ! निर्धारित समय पांच बजे के लिए घर से ब्रह्मानंद ठाकुर और कुंदन कुमार के संग एमडीडीएम कॉलेज के गेट पर पहुँचने निकला तो घनघोर घटा की बादली छा गई। गेट के समीप पहुंचते-पहुंचते बरखा की टपर-टिपीर बूंदें स्वागत करने लगी। धीरे-धीरे लोग जुटने लगे तो टपर-टुपुर भी हौले-हौले बढ़ कर हमें डराने की कोशिश करने लगा। कैंडल-मार्च हो तो कैसे हो ? यह मंथन चल ही रहा था कि कॉलेज का गेट खुला और बारिश को धता करती, – बारिश की रिमझिम फुहार और बिजलियों के नर्तन पर करतल ध्वनि करती सैंकड़ों की संख्या में लड़कियां,हाथों में तख्तियाँ लिए गेट से निकल हमलोगों के साथ हो ली। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे बरखा भी बढ़ती रही ! कदम तेज होती रही, झमाझम झमझमाता रहा ! फिर भी लड़कियाँ डरी नहीं। न भींगने से, न घन-गर्जन-तर्जन से ! जुलूस बढ़ रहा था, बारिश बढ़ रही थी ! न लड़कियां रुकने को तैयार थी, न बरखा थमने को ! इधर लड़कियों के गगन भेदी नारें गूंज रहे थे तो उधर संगत करती – धरा-भेदी घन-गर्जना ! यह धरा – गगन की युगलबंदी चलती रही और चलता रहा कारवां ! सड़क के दोनों तरफ सजी दुकानों में भींगने से बचने खड़े मुसाफिर कौतुहलता से सब देख-सुन रहे थे। उत्साह और उमंगों की पेंग भरती ये लड़कियां पानी टँकी, हरि सभा, छोटी कल्याणी होते हुए कल्याणी चौक आकर रुकी तब भी न थमी बरखा। लड़कियों की गर्जना के साथ घन-गर्जन भी तर्पण करने व्याकुल ! कल्याणी पर रुक कर लड़कियों ने रास्ते भर दागे नारों का पुनः तर्पण किया। लड़कियों के हाथों में तख्ती थी और नारों में आग — “यौन उत्पीड़न कांड के आरोपी ब्रजेश ठाकुर को फांसी दो। बालिका गृह को यातना-गृह बनाना बन्द करो। कांड से जुड़े अपराधी अधिकारी को जल्द से जल्द सजा दो…….”।
शेल्टर होम में पुलिस खुदाई करती हुई |
लड़कियों का नेतृत्व कर रही डॉ.पूनम सिंह माइक थाम गरजी– “हस्तिनापुर के महारथियों ! हिम्मत है तो छुओ हमें ! हम द्रौपदी की करुण पुकार नहीं, समुद्र का उफनता हाहाकार हैं। फूल नहीं अंगार हैं।” इसके बाद डॉ.भारती सिन्हा, डॉ.अंजना वर्मा, मनोज कुमार वर्मा, रमेश ऋतंभर आदि ने इस कांड के विरोध में अपना वक्तव्य देते हुए निंदा की और शहर को सोंचने पर बाध्य किया। एमडीडीएम की छात्रा-नेत्री सोनाली कल्याणी चौक पर दुकानदारों और दुकान पर भींगने से बचने वाले खड़े राहगीरों को चुनौती देते बोली- ”आप लोग वहां क्यों खड़े हैं ? यहां आइए और हमलोगों के साथ भींगिये ! बारिश में भींगते हुए हम लड़कियां उस घिनौने कांड के विरूद्ध आवाज उठाने सड़कों पर निकली हैं और आप चुप खड़े हैं ! आइए, सड़कों पर उतारिए। आप के घरों की मां, बहन बेटियों की इज्जत जब उतारी जाएगी तब क्या आप उतरेंगे ? हम आधी आबादी सड़क पर उतरे हैं तो आप को भी आना चाहिए। ऐसा कृत्य दुबारा न हो, कोई दुबारा हिम्मत न कर सके इसके लिए तो उतरे सड़कों पर।” इसके बाद एमडीडीएम की ही छात्रा स्वर्णिम चौहान, आकृति वर्मा और चेतना आनंद ने भी अपनी बात जोशो-खरोश के साथ रखी।
यह मार्च “साहित्य कला, संस्कृति मंच” के तत्वावधान में आयोजित था जिसमें शहर के आम नागरिक, साहित्यकार, अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, किसान, अध्यापक, प्राध्यापक, कलाकार, रंगकर्मी एवं कई संगठनों के लोग शामिल हुए, जिनमें लक्षणदेव प्रसाद सिंह, पूर्व-कुलपति रविन्द्र कुमार रवि, शशिकांत झा, ब्रह्मानंद ठाकुर, डॉ.मंजरी वर्मा, टी.पी.सिंह, रमेश पंकज, अजय कुमार, वीरेन नंदा, डॉ. नीलिमा झा, डॉ.अमिता शर्मा, नदीम खान, डॉ.पायोली, डॉ.तूलिका सिंह, डॉ.रेखा श्रीवास्तव, पंखुरी सिन्हा, सोनू सरकार, बैजू कुमार, कुंदन कुमार, संजीत किशोर, अर्जुन कुमार, विजय कुमार, दीपा वर्मा आदि सहित एमडीडीएम की सैंकड़ों छात्राओं ने न केवल बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया बल्कि मेघ में भींगते हुए अपनी बात कहते-कहते अवाम को भिंगोया भी और कुछ सवाल भी खड़े किए कि “सांस्कृतिक नगरी कही जाने वाली इस नगरी को, जो अपनी उपलब्धियों की फेहरिश्त से देश के माथे पर सूर्य की तरह चमक रहा था, उस पर एक अदने से कुकर्मी ने कालिख पोत दी। उसे मिटाने की यह हमारी पहल है। और अपने शहर से यह कालिख मिटानी है तो यह आप-हम-उन-उस-सबों की पहल के बिना नहीं मिटेगी। तो आएं, हमने पहल की है तो आप भी करें। दो कदम हमने बढ़ाया है तो दो कदम आप भी बढ़ाएं और इस कालिख को मिटाने संग-साथ कदम-ताल करें।”
सभा समाप्ति के बाद पुनः यह कैंडल-मार्च उसी रास्ते हाथों में तख्तियाँ थामे नारों का उदघोष करते वापस लौटा। यह कैंडल-मार्च शहर में अब तक के हुए सबसे शानदार मार्च में गिना जायेगा क्योंकि इसमें वारिश के कारण मोमबत्तियां तो जल नहीं रही थी लेकिन उन नन्हीं- नन्हीं लड़कियों के भीतर आग सुलग रही थी जो मोमबत्ती की रौशनी से ज्यादा तेज थी।
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