गुसाईं घराने के गायक डा. श्यामरंग शुक्ल अन्नपूर्णा देवी को याद कर रहे हैं.
तारा डूब गया। वह रोशनी रुक गई जो संगीत की दुनिया को अब तक रोशन करती रही। गुरु माँ अन्नपूर्णा का अवसान संगीत में एक युग का अवसान है। सुबह –सुबह जब यह समाचार मिला कि माता अन्नपूर्णा नहीं रहीं तो आँखों में दूर-दूर तलक अँधेरा-ही-अँधेरा नज़र आने लगा। उनके संग तालीम का अर्थ चला गया। तालीम की संस्कृति और तालीम के मानक चले गए। किसी की माँ चली गई तो किसी का गुरु चला गया और किसी का तो भगवान ही चला गया।
वह गुरुओं का गुरु और उस्तादों का उस्ताद थीं। माँ अन्नपूर्णा सही मायने में देवी थीं। मैहर की बेटी जीवन-भर संगीत का अलख जगाती रही। मैहरबाज की रक्षा में उन्होंने अपने सारे सांसारिक सुखों को होम कर दिया। प्रकाशन लिप्सा से परे रहकर उन्होंने अपने वालिद उस्ताद अलाउद्दीन खाँ की परंपरा को अक्षुण्ण रखा।
अपने शागिर्दों से कहा करती थीं कि संगीत केवल मनोरंजन के लिए नहीं है, वह आत्मा को तृप्त करता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में तीन योग बताए हैं —ज्ञानयोग, कर्मयोग एवं भक्तियोग जिसमें भक्तियोग सबमें सुलभ है भक्तियोग साधने का सबसे सुगम मार्ग संगीत है, पर संगीत को साधना सबसे ज़्यादा कठिन है। उन्होंने यह भी कहा कि रियाज़ के साथ-साथ चिंतन भी ज़रूरी है। चिंतन के बिना सुंदर सृजन नहीं होते।
अन्नपूर्णा जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा के दिन सन् 1926 में हुआ था। उनका पालन –पोषण बड़े लाड प्यार में हुआ , पर बाबा पढाई और रियाज़ को लेकर वे कोई समझौता नहीं करते थे। अन्नपूर्णाजी एक प्रतिभाशाली छात्रा थीं। उन्होंने कॉलेज तक की पढ़ाई बहुत अच्छे ढंग से पूरी की। शनैः-शनैः पंडित रविशंकर के संग प्रेम डोर में बँध गयीं और दोनों का विवाह हो गया।
दो प्रतिभाओं के मिलन में प्रायः विस्फोट भी हो जाया करता है। धीरे-धीरे संबंध देखने लगे, जिसका हश्र ये हुआ कि संबंध –विच्छेद हो गया। यद्यपि अन्नपूर्णाजी ने संबंध को सहेजने का हर संभव प्रयास किया। यहाँ तक कि उन्होंने मंच पर कभी न आने का संकल्प भी ले लिया, जिसको ताज़िंदगी निभाया भी.. पर रहिमन हाड़ी काठ की चढ़े न दूजी बार। दोनों अपनी –अपनी राहों पर चल पड़े।
बहुत ही सादा जीवन था उनका। सन् 1926 में अन्नपूर्णाजी का जन्म हुआ सन् 1956 तक उनके पास अपना एक फोटोग्राफ तक नहीं था। एक साक्षात्कार के सिलसिले में किसी पत्रकार के एक तस्वीर माँगने पर इन्होंने कहा था कि मेरी अब तक कोई तस्वीर ही नहीं खींची गई है। इस सादगी में जो समय बचा रहा उसको साधना को अर्पित किया। पंडित रविशंकर से संबंध –विच्छेद के बाद कुछ ही दिनों बाद इनका इकलौता बेटा पंडित शुभ शंकर का देहान्त हो गया। इस घटना ने अन्नपूर्णाजी को बहुत विचलित कर दिया, पर सुरों का कारवाँ बढ़ता रहा, थमा नहीं..। इनकी पीड़ा सुरों में उतरती चली गई।
इसी बीच प्रो. ऋषि कुमार पाण्डया का इनके जीवन में प्रवेश हुआ। वह इनसे सितार सीखते थे। माता पूरी तरह अकेली पड़ गई थीं। ऐसे में ऋषि कुमार से अनुरागात्मक संबंध हो जाना स्वाभाविक था ऋषि कुमार उनकी तनहाई के भागीदार रहे, पर माँ के एक शागिर्द ने बताया कि दोनों अलग –अलग कमरे में सोते थे। अभी हाल ही में ऋषि कुमार भी नहीं रहे। माँ अपने शागिर्दों से बेहद स्नेह करतीं थीं, तालीम में अपने वालिद बाबा अलाउद्दीन खाँ की कठोरता रखती थीं। आपके शिष्यों में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, उस्ताद आशीष खाँ, उ. बहादुर खाँ, पं,निखिल बनर्जी, अतुल मर्चेंट, सुरेश व्यास एवं मिलिंद शेवड़े सुधीर फड़के,नित्यानंद हल्दीपुर, बसंत काबरा, अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बारोट जैसे कई अन्य कलाकारों की लंबी फ़ेहरिस्त है। अन्नपूर्णा रोज़-रोज़ जनम नहीं लेती।
: बज़म से दूर वो गाता रहा तन्हा -तन्हा/ सो गया साज़ पे सर रख के सहर के पहले
उनकी दिव्य आत्मा को शतशः नमन!
डॉ. श्यामरंग शुक्ल, गुसाईं घराने के मशहूरगायक एवं संगीत के जाने-माने समीक्षक हैं. संपर्क: 9702605062
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