निवेदिता
जहानाबाद से गया जाने वाली सड़क के पास ही एरकी गांव है। जहां दलितों की सबसे बड़ी आबादी है। करीब 12 बजे दिन में हमलोग वहां पहुंचे। उंचे भूरे रंग के मकानों के सामने हिस्से पर गोबर से बना गोईठा सूख रहा था। सीधी-लंबी सड़कें और मैली सफेद दीवारें। सूरज ने आसमान पर कब्जा जमा लिया था और दिन भर गर्मी और तेज रौशनी घरों पर छायी हुई थी। सिर्फ मेहराबदार गलियां और घरों के कमरे ही इस गर्मी से बचे हुए थे। ये वही गांव है जहां कुछ माह पहले यौन उत्पीडन की घटना हुई थी और उसके वीडियो वायरल हुए थे। एक छोटे से कमरे में उनकी पूरी दुनिया है।
![]() |
पीड़िता के गाँव की गलियाँ, पड़ोस की दादी |
80 के आस-पास की उम्र होगी-वे इस घर की दादी हैं। मिट्टी की दीवारों को गोबर से लीप रही हैं। कमरे में मलीन अंधेरा है। एक छोटा सा रौशनदान है जिस पर सूरज की रौशनी पड रही है। एक चौकी पड़ी है और खिड़की के पास जलावन का ढ़ेर रखा हुआ है। हमें देखते ही उनके दुःख ताजा हो उठे। ऐसे क्षणों में उनके साहस के साथ सहन शक्ति शिथिल पड़ जाती है। उन्हें लगता है कि वे जिन्दगी में कभी अपने को निराशा- अवसाद की दलदल में से नहीं निकाल पायेंगे। इसलिए अपनी मुक्ति के दिन की कल्पना नहीं करते। बड़ी मुसीबतें अगर ज्यादा देर तक रहती है तो नीरस बन जाती है। जो लोग इस दौर से गुजरे हैं उनकी स्मृतियों में ये घटना किसी पुराने घांव की तरह है। जो अचानक फट पड़ता है।
उन्होंने भविष्य में देखना भी छोड़ दिया है। दुःख उनके चेहरे पर रिस रहा है । आंखों में गहरी पीड़ा है। ये उस लड़की की दादी हैं जिस बच्ची के साथ यौन हिंसा हुई। हमें देखते ही विफर पड़ती हैं। आपलोग अब क्यों आयें हैं? सबने मिलकर मेरी पोती की जिन्दगी बरबाद कर दी । क्या सरकारी एक लाख रुपया मेरी पोती की जिन्दगी की
खुशी वापस देगा? उनके दुःख पिधल रहे हैं। उनके पास कहने के लिए बहुत कम बातें बचीं हैं। उन्होंने बताया कि पोती को उनकी बहु बयान दिलवाने कोर्ट ले गयी है। अभी तक सिर्फ गिरफ्तारी हुई है। 13 लड़के गिरफ्तार हैं इस मामले में। दादी जानती है ऐसे हादसे जिन्दगी भर पीछा करते हैं। एक दलित परिवार की बच्ची स्कूल जाये और सपने देखे, ये आज भी हमारे समाज को नागवार है।
जहानाबाद के काको थाने की डेढसैया पंचायत के लड़कों ने जो बर्बरता की उससे ज्यादा बर्बर ये सरकार है जो छः माह में अपराध करने वाले लड़कों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पायी है। इस भयानक हिंसा ने लड़की की जिन्दगी में अवसाद भर दिए हैं। वह अपनी दसंवी परीक्षा पास नहीं कर पायी। इस हादसे से उबरने के लिए सरकार की तरफ से उसकी कौसिंलिंग नहीं की गयी। लगातार महिला संगठनों के दबाव के बावजूद उनकी सुरक्षा को लेकर प्रशासन गंभीर नहीं है। दादी ने बताया अभियुक्त के घर के लोग केस वापस लेने का दबाव बना रहे हैं। घर पर आकर धमकी देते हैं।
![]() |
पीड़ित लड़की का घर |
एक्शन एड की तरफ से गयी हमारी टीम ने इस मामले की जांच की और पाया कि अभी भी लड़की के घर के लोग दहशत में हैं। लड़की की पढ़ाई छूट गयी है। पुलिस और कोर्ट की लंबी और थका देने वाली प्रक्रिया से परेशान हैं। लड़की का पूरा परिवार काफी गरीब है। उसके दो छोटे भाई हैं। पिता और चाचा मजदूरी करते हैं। पूरे परिवार में ये लड़की पहली साक्षर है। किसी ने रौशनायी से बनते शब्दों का जादू नहीं देखा है। अब बहन भी रौशनाई में डूब गयी है। पढ़ना चाहती है पर दिमाग से दहशत निकलती नहीं। जिस गांव के लडकों ने इनकी जिन्दगी में जहर बोया वे पास के ही गांव के पासवान टोला से हैं। इनमें से कुछ नाबालिग हैं। इस बीमार समाज के लिए क्या कहा जाय, जहां नाबालिग बच्चे भी यौन हिंसा में शामिल हैं। परिवार चाहता है कि लडकी को न्याय मिले और कोर्ट कचहरी से जल्दी मुक्ति मिले। अभी तक पुलिस ने चार्जशीटदाखिल नहीं किया है। उन्हें नहीं मालूम की न्याय के लिए और कितनी लंबी लड़ाइ्र लड़नी होगी।
हमसब जानते हैं न्याय की लड़ाई आसान नहीं है। इस मामले पर सभी महिला संगठनों ने दवाब बनाया था तभी ये मामला आगे बढ़ा। आज फिर जरुरत है आंदोलन और संघर्ष की। जरूरत है सुनिश्चित करने की कि फिर किसी लड़की के साथ अमानवीय और हिंसक घटना नहीं हो। लड़की को न्याय मिले और वह सम्मानपूर्वक जी सके इसे सुनिश्चित करना होगा।
साहित्यकार और सोशल एक्टिविस्ट निवेदिता स्त्रीकाल के संपादन मंडल की सदस्य हैं.
आपका आर्थिक सहयोग स्त्रीकाल (प्रिंट, ऑनलाइन और यू ट्यूब) के सुचारू रूप से संचालन में मददगार होगा.