14वां शीला सिद्धान्तकर स्मृति सम्मान इस साल कवयित्री सुधा उपाध्याय को दिये जाने का निर्णय लिया गया है. उन्हें यह सम्मान उन्हें उनके कविता संकलन ‘इसलिए कहूंगी मैं’ के लिए दिया जा रहा है. शीला सिद्धान्तकर सम्मान राग-विराग नामक साहित्यिक संस्था द्वारा उन्हें 7 अप्रैल को नई दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में आयोजित समारोह में दिया जायेगा.
सम्मान वरिष्ठ लेखिका नूर जहीर द्वारा दिया जायेगा जबकि सम्मान समारोह की अध्यक्षता प्रोफेसर नित्यानंद तिवारी करेंगे और डॉ आशुतोष कुमार मुख्य वक्ता होंगे. इस समारोह के दूसरे भाग में राग विराग कला केंद्र के कलाकारों द्वारा कथक नृत्य प्रस्तुति भी होगी, जिसकी कोरियोग्राफी पुनीता शर्मा करेंगी.
इसके पहले यह सम्मान नीलेश रघुवंशी, पवन करण, निर्मला पुतुल, मंजरी दुबे, अनीता वर्मा, पंजाबी कवि नीतू अरोड़ा, रजनी अनुरागी, सोनी पांडेय, आभा दुबे और कवयित्री ओमलता आदि कवियों को दिया गया है. पिछले साल का शीला सिद्धांतकर सम्मान मराठी भाषा की ख्यात युवा कवि कल्पना दुधाल को उनकी दूसरी काव्य कृति ‘धग असतेच’ के लिए दिया गया था.
सुधा उपाध्याय की दो कवितायें:
1.
सावधान
इक्कीसवीं सदी की खानाबदोश औरतें
तलाश रही हैं घर
सुना है अब वो किसी को नहीं सुनतीं
चीख कर दर्ज करा रही हैं सारे प्रतिरोध
जिनका पहला प्रेम ही बना आख़िरी दुःख
उनींदी अलमस्ती
और बहुत सारी नींद की गोलियों के बीच
तलाश रहे वे साथी जो दोस्त बन सकें
आज नहीं करतीं वे घर के स्वामी का इन्तजार
सहना चुपचाप रहना कल की बात होगी
जान गयी हैं खानाबदोश औरतें
अब वे किस्मत को दोष नहीं देतीं
बेटियां जनमते जनमते कठुआ गयी हैं.
2.
मैं तो इसी जनम को मानती हूँ
और एक सिर्फ तुम्हें जानती हूँ
इसीलिए तुमसे अधिक अधिक और अधिक मांगती हूँ
तुम इतना प्रेम दे दो कि लुटा सकूं रोम रोम से
हर पल हर सांस सभी खाली मन, बर्तन भर दूं उसी विश्वास से
तडप कर देना भी कोई देना है
इतना दे दो कि अघाने से भी और बहुत बहुत सारा बच जाए
चोर भी चुरा ले जाए भिखारी का पेट भर जाए
पड़ोसियों की जलन मिट जाए बीमार को भी आराम आ जाए
अगर इतना प्रेम देने से हिचकिचाए मन
तो भी ये मुंह से न कहना
न न ना कहना
झूठ मूठ ही सही आज तो लबालब भर देना
पाने वाला झूठ सच से परे होता है
इसलिए तुमसे अधिक अधिक और अधिक माँगती हूँ…