लूला से लालू तक: क्या बिहार और ब्राजील का एक ही पैमाना है!

नचिकेत कुलकर्णी

इन क्षेत्रों में, क्रमशः बिहार और ब्राजील में, शोषित सामाजिक-आर्थिक वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो प्रमुख नेता, वर्तमान में भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं। हम इन आरोपों के राजनीतिक तर्क से चिंतित हैं, जिसे केवल राजनीतिक प्रतिशोध या पक्षपातपूर्ण रवैये के संदर्भ में नहीं समझा जा सकता है।

बाये लालू प्रसाद और दायें लूला

लालू प्रसाद और लूला दा सिल्वा के खिलाफ कानूनी मामले और फिर उन्हें दी गयी जेल इस बात के उदाहरण हैं कि दक्षिणपंथी ताकतें भ्रष्टाचार के मुद्दे का सेंटर-लेफ्ट के लोकप्रिय राजनीतिक संरचनाओं के खिलाफ एक हथियार के रूप में कैसे इस्तेमाल करती हैं। कोई यह नहीं कह रहा है कि लालू के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) या लूला के पार्टिडो डॉस ट्रबलहैडोर्स (वर्कर्स पार्टी या पी टी) नस्ल/जाति-वर्ग संबंधों के सामाजिक परिवर्तन का प्रयास कर रहे थे। हालांकि, इन राजनीतिक ताकतों के उदय ने शोषित वर्गों में राजनीतिक जागरण जरूर लाया, उन्हें आगे बढ़ाया। कई मायनों में, इन दलों के नेतृत्व वाली सरकारों ने सत्ता के पुनर्वितरण की एक व्यवस्था बनायी/ माहौल बनाया (एक ऐसी प्रक्रिया जो निश्चित रूप से ब्राजील या बिहार में पूरी होने को शेष है) जिसने संबंधित क्षेत्रों में परंपरागत रूप से प्रभावी वर्गों को खतरा पैदा कर दिया। दुखद विडंबना यह है कि भारत में वामपंथ की कई आवाजें जो लूला के बारे में काफी मुखर हैं, लालू के बारे में अपेक्षाकृत उदासीन हैं।

इसे भ्रष्टाचार के मुद्दे को भुनाने का वर्चस्वशाली वर्गों द्वारा एक प्रयास के रूप में देखा जा सकता है – जो सत्ता से दूर हो गया है या बेनकाब हो चुका है. इसके जरिये वह अपनी स्थिति को मजबूत करने या फिर से हासिल करने की कोशिश करता है। माइकल टेमर ने महाभियोग के बाद 2013 में ब्राज़ील के राष्ट्रपति के रूप में वर्कर्स पार्टी के डिल्मा रूसेफ़ की जगह ली, जो संवैधानिक तख्तापलट से कम नहीं था।

जगन्नाथ मिश्रा को चारा घोटाला मामले में बरी कर दिया गया था। कैसे योजनापूर्वक टार्गेट किया जाता है इसे समझने के लिए देख सकते हैं कि कैसे टेबर, ब्राजील में पेट्रोब्रास घोटाले में एक प्रमुख अभियुक्त, या बिहार में चारा घोटाले के एक प्रमुख अभियुक्त जगन्नाथ मिश्रा के साथ बहुत ही नरमी से पेश आया गया,  क्योंकि उनकी सामाजिक स्थिति और राजनीतिक विचारधारा वर्चस्वशाली हितों के अनुरूप है। भ्रष्टाचार का मुद्दा एक मजबूत बहाना है जिसका इस्तेमाल दक्षिणपंथी ताकतें लोकतंत्र को खत्म करने के लिए खंजर की तरह करती हैं. यह दुर्जेय राजनीतिक विरोधी को चुनावी राजनीतिक प्रक्रिया से बाहर करने तक सीमित नहीं है बल्कि  एक गहरे स्तर पर, यह लोकप्रिय जनादेश को कम करने के साथ-साथ जनता की एजेंसी को कम करने का तरीका है। ऐसा नैतिकता का उन्माद पैदा करके हासिल किया जाता है जो अंततः एकाधिकारवाद की ओर जाता है। इसे समझने के लिए मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी के उदय का मार्ग प्रशस्त करने वाला अन्ना हजारे परिघटना एक केस है।

भ्रष्टाचार पर भावनात्मक बयानबाजी – व्यक्ति के नैतिक दोषों तक ही सीमित है और यह वंचन एवं सत्ता से बेदखली के मुद्दों को पीछे धकेल देती है। ये (वंचन और सत्ताहीनता) संरचनात्मक/ व्यवस्थागत समस्या हैं जिसे जनता की सामूहिक कार्रवाई से ठीक किया जा सकता है। सामाजिक राजनीतिक यथास्थिति को बनाए रखने हेतु दक्षिणपंथी ताकतों के लिए यह जरूरी है कि वे इन संरचनात्मक मुद्दों को केंद्र के लाने की क्षमता रखने वाली राजनीतिक प्रगति और लक्ष्यों को रोके, राजद और पी टी ऐसी ही दो राजनीतिक संभावनायें थीं। भ्रष्टाचार विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों के लिए एक सुरक्षित आड़ है, क्योंकि इसमें शक्ति और संपत्ति के संबंधों पर एक खरोंच आये बिना नैतिक आक्रोश के माध्यम से अशांति उत्पन्न करने की क्षमता है। लूला और लालू के मामले में की गयी जांच और उनके फंसाने के एक समान तरीके भी उन्हें एक सूत्र में जोड़ते हैं। जन लोकपाल के विरोध में और विधेयक को लागू करने की जल्दबाजी के खिलाफ बोलते हुए लालू प्रसाद ने संसदीय लोकतंत्र के संस्थानों को खतरे में डालने के बारे में चेतावनी दी थी. उन्होंने आगाह किया था कि किसी अनुत्तरदायी प्राधिकरण में जांच की शक्ति देना भी खतरनाक है।

ब्राजील में इस तरह के खतरे तथाकथित “ऑपरेशन कार वॉश” से आए, जिसने पी टी और उसकी सरकार को निशाना बनाया। मूल रूप से, एक आपराधिक जांच के जरिये ब्राजील को अपराध मुक्त करने के इस ऑपरेशन का नेतृत्व एक न्यायाधीश, सर्जियो मोरो ने किया था, जो अब ब्राजील में दक्षिणपंथी सरकार में न्याय मंत्री हैं। मोरो ने पी टी के नेतृत्व को ठिकाने लगाने के लिए अपनी व्यापक शक्तियों का गैरजिम्मेवराना इस्तेमाल किया। वास्तव में, उसी समय के आसपास, भारत एक उन्माद से गुजर रहा था, जो मूलतः विनोद राय (तत्कालीन नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) जैसे गैरजिम्मेवार लेखाकार द्वारा पैदा किया गया था और जो मोरो-एस्के फैशन में काम कर रहे थे। भारत के साथ-साथ ब्राज़ील में भी भ्रष्टाचार विरोधी उन्माद के बाद उभरे सर्वसत्तावाद से यह और जरूरी हो गया है कि उस कठिन समय में कही गयी लालू प्रसाद की बार्तो पर गंभीर तवज्जो दी जाये. यह जरूरत विशेषकर उस लेफ्ट या सेंटर-लेफ्ट के लिए है जो भ्रष्टाचार विरोधी तामझाम से जुड़ने को बेताब होता है या जुड़ जाया करता है।

ईपीडवल्यू से साभार. नचिकेत कुलकर्णी लोक वांग्मय गृह (प्रकाशन) के संपादक मंडल में हैं.

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